भारत की बेटी ने विश्व में रोशन किया देश का नाम



—प्रियंका सौरभ 

वो कहते हैं न हौसले बुलंद हो और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी कामयाबी की छलांग लगाई जा सकती है। कुछ ऐसी ही कहानी है हरियाणा की अनुकृति की, अनुकृति ने ये साबित कर दिखाया है कि बेटियों की जिंदगी सिर्फ चूल्हा-चौके तक सीमित रखना अब पुरानी बात हो गई है। आज बेटियां हर क्षेत्र में अपने परिवार और देश का नाम रोशन कर रही हैं। गरीबों की पढ़ी-लिखी और आगे बढ़ीं चाहें वो देश की बेटी हिमा दास हो या फिर कुश्ती के मैदान में अपना परचम लहराने वालीं फोगाट सिस्टर्स। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि मुहिम है। हरियाणा की बेटियां ने विश्व में नाम रोशन कर भारत को गौरवान्वित किया है। सभी यदि बेटियों की नींव को मजबूत करने में सहयोग करेंगे तो वह दिन दूर नहीं जब भारत दोबारा से विश्व गुरु बन जाएगा।

हरियाणा के नारनौल में 23 अक्टूबर 1981 को नारनौल में जन्मी तथा हिसार में पली-बढ़ी डॉ एस अनुकृति ने अपने नगर और प्रदेश का ही नहीं, बल्कि अपने देश का भी नाम विश्व में रोशन किया है। आज विश्वबैंक, वाशिंगटन (अमेरिका) में बतौर अर्थशास्त्री ज्वाइन करने के साथ ही अनुकृति विश्व की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने वाली इस सर्वोच्च बैंकिंग संस्था की  दस सदस्यीय मानव संसाधन समिति की सदस्य भी बन गई हैं जो पूरे विश्व में मानव संसाधन विकास का जिम्मा संभालती है। इससे पूर्व सात वर्षों तक बीसी यूनिवर्सिटी, बोस्टन (अमेरिका) में अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर रही अनुकृति के पति सिद्धार्थ रामलिंगम पहले से ही विश्व बैंक में सलाहकार के पद पर कार्यरत हैं।

वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद डॉ रामनिवास ‘मानव’ तथा अर्थशास्त्र की पूर्व प्रवक्ता डॉ कांता भारती की लाडली बेटी तथा जन्मजात विशिष्ट प्रतिभा की धनी अनुकृति की उपलब्धियां वैश्विक स्तर की रही हैं। दिल्ली के सेंट स्टीफेन्स कॉलेज से बीए इकोनॉमिक्स (ऑनर्स) और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एमए (अर्थशास्त्र) करने के उपरांत विश्व के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक कोलंबिया विश्वविद्यालय मैनहैट्टन (अमेरिका) से एमए (अर्थशास्त्र), एमफिल और पीएचडी की तीन उपाधियां एक साथ प्राप्त कीं।  रोचेस्टर, ब्राउन, विसकोंसिन मेडीसिन, कोलंबिया, न्यूयॉर्क और मेरीलैंड सहित अमेरिका के छह प्रमुख विश्वविद्यालय में पीएचडी हेतु चयनित होने वाली अनुकृति को अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया, भारत और कतर सहित सात देशों के सत्रह विश्वविद्यालयों तथा समतुल्य संस्थानों में सर्विस हेतु चयनित होने का गौरव भी प्राप्त हुआ।

अपनी शिक्षा के दौरान भारत सरकार का नेशनल अवार्ड, अमेरिका की जीई कैपिटल स्कॉलरशिप, विकरी और हैरिस अवार्ड तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय की करोड़ों की स्कॉलरशिप प्राप्त करने वाली अनुकृति को वर्ल्ड इकोनोमेट्रिक सोसाइटी का प्रथम यंग रिसर्चर अवार्ड भी प्राप्त हो चुका है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, बोस्टन (अमेंरिका) की फैलो रह चुकी अनुकृति वर्तमान में कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मैनहैट्टन (अमेरिका) की फैलो इंस्टीट्यूट लेबर इकोनॉमिक्स, बोन (जर्मनी) की रिसर्च एफिलिएट हैं। भारत और अमेरिका के अतिरिक्त कनाडा, पेरू, पोर्टोरिको, बरमूडा,  ब्रिटेन, स्पेन, जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन, चीन, हांगकांग, सिंगापुर, केन्या और इथोपिया सहित लगभग बीस देशों की यात्रा कर चुकी हैं। अनुकृति डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स की विशेषज्ञ हैं तथा 14 वर्ष पूर्व विश्वबैंक की सलाहकार रहते हुए, लैंगिक समानता, विश्व में महिलाओं की आर्थिक स्थिति, महिलाओं की अशिक्षा और पिछड़ापन, बाल-कुपोषण आदि अनेक विषयों पर कार्य कर चुकी हैंं।

उल्लेखनीय है कि डॉ एस अनुकृति एक अच्छी लेखिका भी हैं। देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके लेख तो प्रकाशित होते ही रहते हैं, वर्ष 1999 में उनका एक बालकाव्य संग्रह ‘फुलवारी के फूल’ भी  प्रकाशित हो चुका है। 2018 में ‘डॉटर ऑफ महेंद्रगढ़’ नाम से बनी वीडियो फिल्म में भी इनका जीवन-परिचय शामिल किया गया था।
अनुकृति के इकलौते भाई मनमुक्त मानव देश के एक जांबाज़ आईपीएस अफसर थे जिनकी 2015 में नेशनल पुलिस अकादमी में ट्रेनिंग के दौरान मृत्यु हो गई थी।

देश की अन्य जांबाज़ बेटियों की तरह ही अनुकृति  ने भी न सिर्फ अपने परिवार बल्कि देश का नाम रोशन किया है। बल्कि शिक्षा को अपनी कामयाबी की सीढ़ी बनाकर विश्व में भारत का डंका बजाया है। वैसे भी भारत को  विश्व गुरू बनाने के लिए विद्यार्थियों को शिक्षा देने के साथ-साथ चरित्रवान और संस्कारवान बनाना हमारी परम्परा रही है। इस पावन धरा की पावन भूमि पर कल्पना चावला व मिंटी अग्रवाल जैसी बेटी ने पूरी दुनियां में नाम रोशन किया। इस देश की युवा पीढी को देश को विश्व की महा शक्ति बनाने की बजाए विश्व गुरू बनाने पर अपना पूरा फोकस रखना होगा।

अनुकृति  की  सफलता  से हमें यही लगता है कि युवाओं को छोटे मन से नहीं बडे मन से किसी कार्य को करना चाहिए। छोटा मन रखकर विद्यार्थी बडा नहीं हो सकता और टूटे मन से काम करने वाला विद्यार्थी कभी अपने पैरों पर खडा नहीं हो सकता।
—प्रियंका सौरभ 

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