कुछ भी कहने की आजादी बनाम हिंदुस्तान का जनतंत्र

4
144

देश तोड़क ताकतों के खिलाफ कड़ा रूख अपनाए सरकार

– संजय द्विवेदी

भारतीय जनतंत्र ने अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर क्या वास्तव में लोगों को खुला छोड़ दिया है। एक बहुलतावादी,बहुधार्मिक एवं सांस्कृतिक समाज ने अपनी सहनशीलता से एक ऐसा वातावरण सृजित किया है जहां आप कुछ कहकर आजाद धूम सकते हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के लोकतांत्रिक अधिकार का दुरूपयोग भारत में जितना और जिसतरह हो रहा है उसकी मिसाल न मिलेगी। बावजूद इसके ये ताकतें भारत के लोकतंत्र को, हमारी व्यवस्था को लांछित करने से बाज नहीं आती। क्या मामला है कि नक्सलियों के समर्थक और कश्मीर की आजादी के समर्थक एक मंच पर नजर आते हैं। क्या ये देशद्रोह नहीं है। क्या भारत की सरकार इतनी आतंकित है कि वह इन देशद्रोही विचारों के खिलाफ कुछ भी नहीं कर सकती। आखिर ये देश कैसे बचेगा। एक तरफ देश के नौ राज्यों में बंदूकें उठाए हुए वह हिंसक माओवादी विचार है जो 2050 में भारत की राजसत्ता की कब्जा करने का घिनौना सपना देख रहा है। दूसरी ओर वे लोग हैं जो कश्मीर की आजादी का स्वप्न दिखाकर घाटी के नौजवानों में भारत के खिलाफ जहर भर रहे हैं। किंतु देश की एकता अखंडता के खिलाफ चल रहे ये ही आंदोलन नहीं हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों से लेकर सीमावर्ती राज्यों में अलग-अलग नामों, समूहों के रूप में अलगाववादी ताकतें सक्रिय हैं जिन्होंने विदेशी पैसे के आधार पर भारत को तोड़ने का संकल्प ले रखा है। अद्भुत यह कि इन सारे संगठनों की अलग-अलग मांगें है किंतु अंततः वे एक मंच पर हैं। यह भी बहुत बेहतर हुआ कि हुर्रियत के कट्टपंथी नेता अली शाह गिलानी और अरूंधती राय दिल्ली में एक मंच पर दिखे। इससे यह प्रमाणित हो गया कि देश को तोड़ने वाली ताकतों की आपसी समझ और संपर्क बहुत गहरे हैं।

किंतु अफसोस इस बात का है कि गणतंत्र को चलाने और राजधर्म को निभाने की जिम्मेदारी जिन लोगों पर है वे वोट बैंक से आगे की सोच नहीं पाते। वे देशद्रोह को भी जायज मानते हैं और उनके लिए अभिव्यक्ति के नाम पर कोई भी कुछ भी कहने और बकने को हर देशद्रोही आजाद है। दुनिया का कौन सा देश होगा जहां उसके देश के खिलाफ ऐसी बकवास करने की आजादी होगी। भारत ही है जहां आप भारत मां को डायन और राष्ट्रपिता को शैतान की औलाद कहने के बाद भी भारतीय राजनीति में झंडे गाड़ सकते हैं। राजनीति में आज लोकप्रिय हुए तमाम चेहरे अपने गंदे और धटिया बयानों के आधार पर ही आगे बढ़े हैं। अभिव्यक्ति की आजादी का ऐसा दुरूपयोग निश्चय ही दुखद है। गिलानी लगातार भारत विरोधी बयान दे रहे हैं किंतु उनके खिलाफ हमारी सरकार के पास कोई रास्ता नहीं है। वे देश की राजधानी में आकर भारत विरोधी बयान दें और जहर बोने का काम करें किंतु हमारी सरकारें खामोश हैं। गिलानी का कहना है कि “ घाटी ही नहीं जम्मू और लद्दाख के लोगों को भी हिंदुस्तान के बलपूर्वक कब्जे से आजादी चाहिए। राज्य के मुसलमानों ही नहीं हिंदुओं और सिखों को भी आत्मनिर्णय का हक चाहिए।”ऐसे कुतर्क देने वाले गिलानी बताएंगें कि वे तब कहां थे जब लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडितो को घाटी छोड़कर हिंदुस्तान के तमाम शहरों में अपना आशियाना बनाना पड़ा। उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया, महिलाओं को अपमानित किया गया। जिन पत्थर बाजों को वे आजादी का योद्धा बता रहे हैं वे ही जब श्रीनगर में सिखों के घरों पर पत्थर फेंककर उन्हें गालियां दे रहे थे, तो वे कहां थे। इन पत्थरबाजों और आतंकियों ने वहां के सिखों को घमकी दी कि वे या तो इस्लाम कबूल करें या घाटी छोड़ दें। तब गिलानी की नैतिकता कहां थी। आतंक और भय के व्यापारी ये पाकपरस्त नेता भारत ही नहीं घाटी के नौजवानों के भी दुश्मन हैं जिन्होंने घरती के स्वर्ग कही जाने धरती को नरक बना दिया है। दिल्ली में गिलानी पर जूते फेंकने की घटना को उचित नहीं ठहराया जा सकता किंतु एक आक्रोशित हिंदुस्तानी के पास विकल्प क्या है। जब वह देखता है उसकी सरकार संसद पर हमले के अपराधी को फांसी नहीं दे सकती, लाखों हिंदूओं को घाटी छोड़नी पड़े और वे अपने ही देश में शरणार्थी हो जाएं, पाकपरस्तों की तूती बोल रही हो, देश को तोड़ने के सारे षडयंत्रकारी एक होकर खड़ें हों तो विकल्प क्या हैं। एक आम हिंदुस्तानी मणिपुर के मुईया, दिल्ली के बौद्धिक चेहरे अरूंधती, घाटी के गिलानी, बंगाल के छत्रधर महतो के खिलाफ क्या कर सकता है। हमारी सरकारें न जाने किस कारण से भारत विरोधी ताकतों को पालपोस कर बड़ा कर रही हैं। जिनको फांसी होनी चाहिए वे जेलों में बिरयानी खा रहे हैं, जिन्हें जेल में होना चाहिए वे दिल्ली की आभिजात्य बैठकों में देश को तोडने के लिए भाषण कर रहे हैं। एक आम हिंदुस्तानी इन ताकतवरों का मुकाबला कैसे करे। जो अपना घर वतन छोड़कर दिल्ली में शरणार्थी हैं,वे अपनी बात कैसे कहें। उनसे मुकाबला कैसे करें जिन्हें पाकिस्तान की सरकार पाल रही है और हिंदुस्तान की सरकार उनकी मिजाजपुर्सी में लगी है। कश्मीर का संकट दरअसल उसी देशतोड़क द्विराष्ट्रवाद की मानसिकता से उपजा है जिसके चलते भारत का विभाजन हुआ। पाकिस्तान और द्विराष्ट्रवाद की समर्थक ताकतें यह कैसे सह सकती हैं कि कोई भी मुस्लिम बहुल इलाका हिंदुस्तान के साथ रहे। किंतु भारत को यह मानना होगा कि कश्मीर में उसकी पराजय आखिरी पराजय नहीं होगी। इससे हिदुस्तान में रहने वाले हिंदु-मुस्लिम रिश्तों की नींव हिल जाएगी और सामाजिक एकता का ताना-बाना खंड- खंड हो जाएगा। इसलिए भारत को किसी भी तरह यह लड़ाई जीतनी है। उन लोगों को जो देश के संविधान को नहीं मानते, देश के कानून को नहीं मानते उनके खिलाफ हमें किसी भी सीमा तक जाना पड़े तो जाना चाहिए।

शुक्र है कि दारूल -उलूम देवबंद ने जमात उलेमा-ए हिंद के तत्वावधान में एक सम्मेलन कर कश्मीर को भारत का अविभाज्य और अभिन्न अंग बताया है। जाहिर है जब कश्मीर का संकट एक विकराल रूप धारण कर चुका है, ऐसे समय में देवबंद की राय का स्वागत ही किया जाना चाहिए। इससे पता चलता है कि देश में आज भी उसके लिए सोचने और करने वालों कमी नहीं है। दारूल उलूम देवबंद ने यह खास सम्मेलन कश्मीर समस्या पर ही आयोजित किया था। इसमें बड़ी संख्या में उलेमाओं ने हिस्सा लिया था। इस सम्मेलन में वक्ताओं ने दो टूक कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। वक्ताओं ने इस सम्मेलन में आतंकवादियों की तीव्र भर्त्सना करते हुए वहां फैलाई जा रही हिंसा को गलत बताया। वक्ताओं का कहना था कि भारत एक फूलों का गुलदस्ता है। हम इस बात को गवारा नहीं कर सकते कि उससे किसी फूल को अलग किया जाए। जमात उलेमा –ए –हिंद के नेता महमूद मदनी ने यह भी कहा कि कश्मीर में अलगाववादियों के कारनामों का शेष भारत के मुसलमानों पर गंभीर परिणाम होगा। दारूल उल उलूम की इस पहल का निश्चय ही स्वागत किया जाना चाहिए। यह भी उल्लेखनीय है पहली बार यह महत्वपूर्ण संस्था इस विषय पर खुलकर सामने आयी है। कश्मीर का संकट आज जिस रूप में हमारे सामने हैं उसमें प्रत्येक देशभक्त संगठन का कर्तव्य है कि वह आगे आकर इन मुद्दों पर संवाद करे तथा सही रास्ता सुझाए। देश के सामने खड़े संकटों में देश के संगठनों का दायित्व है कि वे सही फैसले लें और अमन का रास्ता कौम को बताएं। क्योंकि ऐसे अंधेरों में ही समाज को सही मार्गदर्शन की जरूरत होती है। ऐसे समय में दारूल-उलूम की बतायी राह एक मार्गदर्शन की तरह ही है। जो लोग भारत से कश्मीर को अलग करने का ख्याब देख रहे हैं उन्हें इससे बाज आना चाहिए। अभिव्यक्ति की आजादी का फायदा उठाकर जो तत्व देशतोड़क विचारों के प्रचारक बने हैं,उनपर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। भारतीय राज्य की अतिशय सदाशयता देश पर भारी पड़ रही है, हमें अपना रवैया बदलने और कड़े संकेत देने की जरूरत है। देश को यह बताने की जरूरत है गिलानी और अरूधंती जैसे लोग किससे बल पर देश में यह वातावरण बना रहे हैं। उनके पीछे कौन सी ताकते हैं। सरकार को तथ्यों के साथ इनकी असलियत सामने लानी चाहिए।

4 COMMENTS

  1. कुछ भी कहने की आजादी बनाम हिंदुस्तान का जनतंत्र -by- संजय द्विवेदी

    संजय द्विवेदी जी, आपकी राय में निम्न प्र्श्नऔ का उत्तर क्या है ?

    यह देश के Home Minister को भी स्पष्ट नहीं है. तभी दिल्ली पुलीस को मामला पड़ताल के लिए सौंपा है:

    – हुर्रियत के कट्टपंथी नेता अली शाह गिलानी और अरूंधती राय दिल्ली में एक मंच पर :

    (१) अभिव्यक्ति की आजादी के लोकतांत्रिक अधिकार का दुरूपयोग कब होता है ?

    (२) देशद्रोह और देशद्रोही विचार कब प्रारंभ होते हैं ?

    – अनिल सहगल –

  2. बिल्कुल सही कहा आपने अभिव्यक्ति की इस तरह की आजादी सिर्फ इसी देश में हो सकती है अन्यत्र नहीं। उसमें भी चमत्कार है। भारत विरोधी बयान और गतिविधि में लिप्त रहने वाले लोग व संगठन अच्छे हैं वे सही कहते हैं और उनका विरोध करने वाले लोग सांप्रदायिक, फंडामेंटलिस्ट और पिछड़े लोग। एक तरफ भारत माता, सरस्वती और हनुमान आदि का बेढंगे चित्र बनाने वाला आजादी से घूमता है वहीं एक संपादक जिसने किसी मोहम्मद का कार्टून अपने अखबार/पत्रिका में छाप दिया तो उसे देश की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ में डाल दिया। एक और बुखारी जामा मस्जिद के सामने खुलकर कहता है मैं सबसे बड़ा आतंकवादी फिर भी वह खुल्ला घूमता रहा और समय-समय पर पत्रकारों को मारता-पीटता रहा वहीं हिन्दू धर्म के सबसे बड़े संत शंकराचार्य को भारत के सबसे बड़े पर्व पर सींखचों के पीछे डाल दिया गया। एक और अलगाववादियों को हमारे देश के नेता पुचकारते हैं और उनके लिए १०० करोड़ का राहत पैकेज जारी करते हैं (इसलिए कि पत्थरों से क्या होगा बेटा बम खरीदो फिर वे फेंकना तब आजादी मिलेगी) वहीं कई सालों से अपनी ही जमीन से बेदखल किए गए कश्मीरी पंडित टेंट में अपनी जिंदगी बिताने को मजबूर, उनके लिए कोई राहत पैकेज नहीं।
    तश्वीर बदलने की जरूरत है। भारत की राजनीति बुरे दौर से गुजर रही हैं गंदी हो चुकी राजनीति को गंगा जल से धोने की जरूरत है।

  3. “देश को यह बताने की जरूरत है गिलानी और अरूधंती जैसे लोग किससे बल पर देश में यह वातावरण बना रहे हैं। उनके पीछे कौन सी ताकते हैं।”

    कहीं आप किसी बाहरी ताकत का नाम तो नहीं लेना चाहते हैं ? क्या आपको ऐसा लगता है कि इस देश में कुछ बाहरी टूटे फूटे देशों के लोग अलगाववाद को बढ़ा रहे हैं ? असंभव… यह तो अन्दर अन्दर का खेल है .

  4. आलेख की महत्ता में तो कोई खामी नहीं .अलबत्ता ये जो दारुल उलूम देवबंद का देशभक्ति पूर्ण निर्णय है उस पर हम सब भारत वासियों को फक्र है ..और ये भी सही है की यह कोई अनापेक्षित घटना नहीं है ये तो उनकी भी जिम्मेदारी थी सो उन्होंने पूरी की अब कश्मीर के अमन पसंद लोगों और शेष भारत की जनता को आपसी सौहाद्र एवं एकता कायम कर विश्व आतंक के प्रणेताओं को करारा जबाब देना होगा .आपस में धार्मिक जातीय एकता के लिए न्याय और क़ानून के शाशन को सम्मान देना होगा .

Leave a Reply to Anil Sehgal Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here