-जगदीश्वर चतुर्वेदी
बाबा रामदेव फिनोमिना मध्यवर्गीय घरों में घुस आया है। बाबा के सिखाए योगासन के अलावा उनकी बनाई वस्तुओं का भी बड़े पैमाने पर घरों में सेवन हो रहा है। देशी बाजार की उन्नति के लिहाज से यह अच्छा है। बाबा रामदेव को लेकर मुझे कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं है। वे बहुत ही अच्छे योगी-व्यापारी हैं। उनका करोड़ों का योग व्यापार है। हजारों एकड़ जमीन की उनके पास संपदा है। करोड़ों रूपयों का उनका टर्न ओवर है। मेरे ख्याल से एक योगी के पास आज के जमाने में यह सब होना ही चाहिए।
योग का पैसे से कोई अन्तर्विरोध नहीं है। आधुनिक समाज में अच्छा योगी, ज्योतिषी, पंडित, विद्वान, बुद्धिजीवी, राजनेता वह है जिसके पास वैभव हो, दौलत हो, वैभवसंपन्न लोग आते-जाते हों, उसकी ही समाज में प्रतिष्ठा है। आम लोग उसे ही स्वीकृति देते हैं। जब किसी व्यक्ति का मन प्रतिष्ठा पाने को छटपटाने लगे तो उसे वैभवसमपन्न और संपदा संपन्न लोगों का दामन पकड़ना चाहिए। मीडिया का दामन पकड़ना चाहिए बाकी चीजें स्वतःठीक हो जाएंगी।
बाबा रामदेव मुझे बेहद अच्छे लगते हैं क्योंकि उन्होंने धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के बनाए मानकों को तोड़ा है। उन्होंने महर्षि महेश योगी, रजनीश आदि के बनाए मार्ग का अतिक्रमण किया है। एक जमाने में धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में जबर्दस्त रुतबा था। मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि वे स्व.श्रीमती इंदिरा गांधी को योग प्रशिक्षण देते थे। योग को राजनीति, संस्थान और बाजार के करीब लाने में स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की बड़ी भूमिका रही है। वे नियमित श्रीमती गांधी को योग शिक्षा देते थे। बाद में उन्होंने अपने काशमीर स्थित आश्रम में योग प्रशिक्षण शिविर लगाने शुरू कर दिए और श्रीमती गांधी पर दबाब ड़ालकर योग शिक्षक पदों की सबसे पहले केन्द्रीय विद्यालयों में शुरूआत करायी। मुझे याद है योग शिक्षक की नौकरी में स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के योग संस्थान के प्रमाणपत्र की अहमियत होती थी।
स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने अपने इर्दगिर्द राजनीतिक शक्ति भी एकत्रित कर ली थी और आपातकाल की बदनाम चौकड़ी के साथ भी उनके गहरे संबंध थे। स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी पहले आधुनिक संयासी थे जो योग को राजनीति के करीब लाए और योग को रोजगार की विद्या बनाया। योग को स्कूलों तक पहुँचाने की शुरूआत की। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने योग को राजनीति से जोड़ा था, बाबा रामदेव ने देह, स्वास्थ्य और सौंदर्य से जोड़ा है।
जिस समय यह सब चल रहा था विदेशों में महर्षि महेश योगी और देश में आचार्य रजनीश ने मिलकर उच्चवर्ग, उच्च मध्यवर्ग और मध्यवर्ग में अपने पैर फैला दिए थे। गांव के गरीबों में बाबा जयगुरूदेव और उनके पहले श्रीराम शर्मा के गायत्री तपोभूमि प्रकल्प से जुड़ी युग निर्माण योजना ने बहुत जबर्दस्त सफलता हासिल की थी।
मुश्किल यह थी कि स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी से लेकर बाबा जयगुरूदेव तक धर्म उद्योग पूरी तरह बंटा हुआ था, इनमें अप्रत्यक्ष संबंध था ऊपर से। लेकिन धर्म के क्षेत्र में श्रम-विभाजन बना हुआ था।
बाबा रामदेव की सफलता यह है कि उनके योग उद्योग में उपरोक्त सभी का योग उद्योग में ही समाहार कर लिया है। बाबा के मानने वालों में सभी रंगत के राजनेता हैं। जबकि धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का खेल सिर्फ श्रीमती गांधी तक ही सीमित था। बाबा रामदेव ने य़ोग के दायरे में समूचे राजनीतिक आभिजात्यवर्ग को शामिल किया है।
उसी तरह आचार्य रजनीश की मौत के बाद मध्यवर्ग और उच्चवर्ग के बीच में जो खालीपन पैदा हुआ था उसे भरा है। रजनीश के दीवानों को अपनी ओर खींचा है, उस जनाधार को व्यापक बनाया है।
महर्षि महेश योगी और रजनीश ने योग को कम्पलीट बहुराष्ट्रीय धार्मिक उद्योग के रूप में स्थापित किया था। बाबा रामदेव ने उसे एकदम मास मार्केट में बदल दिया और इन सबके जनाधार, राजनीतिक आधार, आर्थिक आधार, देशी बाजार, विदेशी बाजार आदि को सीधे सम्बोधित किया है और टेलीविजन का प्रभावी मीडियम के रूप में इस्तेमाल किया है। इस क्रम में अमीर से लेकर निम्न मध्यवर्ग और किसानों तक योग उद्योग का विस्तार किया।
बाबा रामदेव फिनोमिना ऐसे समय में आया है जब सारे देश में नव्य उदार आर्थिक नीतियां तेजी से लागू की जा रही थीं और उपभोक्तावाद पर जोर दिया जा रहा था। भोग के हल्ले में बाबा रामदेव ने योग के भोग का हल्ला मचाया और भोग की बृहत्तर परवर्ती पूंजीवादी प्रक्रिया के बहुराष्ट्रीय प्रकल्प के अंग के रूप में उसका विकास किया।
बाबा रामदेव फिनोमिना का कामुकता, कॉस्मेटिक्स और उपभोक्तावाद के अंतर्राष्ट्रीय प्रोजेक्ट के लक्ष्यों के साथ गहरा विचारधारात्मक संबंध है। मजेदार बात यह है कि बाबा रामदेव के भाषणों में बहुराष्ट्रीय निगमों के द्वारा मचायी जा रही लूट की आलोचना खूब मिलेगी। वे अपने प्रत्येक टीवी कार्यक्रम में बहुराष्ट्रीय मालों की आलोचना करते हैं और देशी मालों की खपत पर जोर देते हैं।
इस क्रम में वे देशी माल और योग के ऊपर विशेष जोर देते हैं। इन दोनों की खपत बढ़ाने पर जोर देते हैं। इस समूची प्रक्रिया में बाबा रामदेव ने कई काम किए हैं जिससे नव्य उदार नीतियां पुख्ता बनी हैं। इन नीतियों के दुष्प्रभाव के कारण जो हताशा, थकान, निराशा और शारीरिक तनाव पैदा हो रहे थे उनका विरेचन किया है। इससे देशी-विदेशी बुर्जुआजी को बेहद लाभ मिला है। उन्हें इस तनाव को लेकर चिन्ता थी वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें, उन्हें यह भी डर था कि कहीं यह तनाव बृहत्तर सामजिक तनाव का कारण न बन जाए। ऐसे में बाबा रामदेव का पूंजीपतिवर्ग ने सचेत रूप से संस्कृति उद्योग के अंग के रूप में विकास किया और उनकी ब्राण्डिंग की ।
बाबा रामदेव फिनोमिना को समझने के लिए योग और कामुकता के अन्तस्संबंध पर गौर करना जरूरी है। योग का अ-कामुकता से संबंध नहीं है। बल्कि योग का कामुकता से संबंध है। नव्य उदार दौर में संभोग, शारीरिक संबंध, सेक्स विस्फोट, पोर्न का उपभोग, सेक्स उद्योग, सेक्स संबंधी पुरानी रूढियों का क्षय, कामुकता का महोत्सव सामान्य और अनिवार्य फिनोमिना के रूप में उभरकर सामने आए हैं। इस समूची प्रक्रिया को योग ने देशज दार्शनिक आधार प्रदान किया है विरेचन के जरिए।
योगी लोग सेक्स की बात नहीं करते योग की बातें करते हैं, लेकिन योग का एक्शन अकामुक एक्शन नहीं होता बल्कि कामुक एक्शन होता है। इसका प्रधान कारण है योग की आंतरिक क्रियाओं का कामुक आधार। यह बात जब तक दार्शनिक रूप में नहीं समझेंगे हमें कामुक उद्योग और योग उद्योग के अन्योन्याश्रित संबंध को समझने में असुविधा होगी।
योगासन का समूचा तंत्र कामुकता से जुड़ा है। योग को तंत्रवाद का हिस्सा माना जाता है। तंत्रवाद दार्शनिक तौर पर कामुक भावबोध, कामुक अंगों की इमेज और समझ से जुड़ा है। ऐतिहासिक तौर पर तंत्रवाद में सबसे ज्यादा उन अनुष्ठानों पर बल दिया जाता था जो स्त्री की योनि पर केन्द्रित थे. इसके लिए संस्कृत का सामान्य शब्द है ‘भग’, तंत्रवाद की विशिष्ट शब्दाबली में इसे लता कहते हैं।
इस प्रकार भग केन्द्रित धार्मिक क्रियाओं को भग यज्ञ कहा गया जिसका शाब्दिक अर्थ है स्त्री के गुप्तांग का अनुष्ठान या लता साधना। उल्लेखनीय है कि तांत्रिक यंत्रों में, अर्थात इसके प्रतीकात्मक रेखाचित्रों में स्त्री के गुप्तांग पर ही बल दिया जाता है। स्त्री की नग्नता का आख्यान सिर्फ भारत में ही उपलब्ध नहीं है बल्कि इसकी चीन, अमेरिका आदि देशों में परंपरा मिलती है। इसका स्त्रियों के कृषि अनुष्टानों के साथ गहरा संबंध है। यह विश्वव्यापी फिनोमिना है।
भारत में भग योग या लता साधना पर गौर करें तो पाएंगे कि तंत्रवाद में स्त्री की योनि का संबंध प्राकृतिक उत्पादकता से था। वह भौतिक समृद्धि की प्रतीक मानी गयी है. तांत्रिक परंपरा में भग को भौतिक समृद्धि के छःरूपों या ‘षड् ऐश्वर्य’के संपूर्ण योग का नाम दिया गया है।
पुराने विश्वास के आधार पर स्त्री की योनि सभी प्रकार की भौतिक समृद्धि का स्रोत है। स्त्री के गुप्तांग का भौतिक संपत्ति के साथ क्या संबंध रहा है इसके बारे में सैंकड़ों सालों से समाज ने सवाल पूछने बंद कर दिए हैं। किंतु यह उचित प्रश्न है और इसका एक ही उत्तर है कि स्त्री योनि भौतिक समृद्धि का स्रोत है। स्त्री के गुप्तांग के साथ समृद्धि कैसे जुड़ गयी इसके बारे में हम आगे कभी विस्तार से चर्चा करेंगे।
बाबा रामदेव फिनोमिना और परवर्ती पूंजीवाद में एक बुनियादी साम्य है कि ये दोनों देहचर्चा करते हैं और दोनों ने देह को प्रतिष्ठित किया है उसे सार्वजनिक विचार विमर्श और केयरिंग का विषय बनाया है। देह की महत्ता को स्थापित करने मे कास्मेटिक उद्योग की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस अर्थ में बाबा रामदेव और कॉस्मेटिक उद्योग एक जगह आकर मिलते हैं कि दोनों की चर्चा के केन्द्र में देह है।
उल्लेखनीय है तंत्रवाद में सबसे ज्यादा देहचर्चा मिलती है। योग में सबसे ज्यादा देहचर्चा मिलती है। आर्थिक उदारीकरण के दौर में देहचर्चा मिलती है, विज्ञापनों की धुरी है देहचर्चा। इस समूची प्रक्रिया में योगासन और प्राणायाम के नाम पर चल रहा समूचा कार्य-व्यापार देहचर्चा को धुरी बनाकर चल रहा है।
देहचर्चा की खूबी है कि इसमें विभिन्न किस्म के भेद खत्म हो जाते हैं सिर्फ जेण्डरभेद रह जाता है। लेकिन स्त्री-पुरूष का भेद खत्म हो जाता है। देहचर्चा करने वाले स्त्री-पुरूष को समान मानते हैं।
देहचर्चा ने जातिप्रथा और वर्णाश्रम व्यवस्था का तीखा विरोध किया था। प्राचीन कवि सरह पाद ने तो ‘देहकोश’ के नाम से महत्वपूर्ण किताब ही लिखी थी। सरह पाद ने ‘देहकोश’ में धर्म के औपचारिक नियमों और विधान की तीखी आलोचना लिखी थी। एस.वी.दासगुप्त ने ‘आव्स्क्योर रिलीजस कल्ट्स ऐज बैकग्राउण्ड ऑफ बेंगाली लिटरेचर’’(1951) में लिखा है उसका प्रथम विद्रोह समाज को चार वर्णों में विभाजित करने की उस रूढ़िवादी प्रणाली के विरूद्ध था जिसमें ब्राह्मणों को सबसे उच्च स्थान पर रखा गया था। सरह का मानना है कि एक जाति के रूप में ब्राह्मणों को श्रेष्ठतम मानना युक्तिसंगत नहीं हो सकता क्योंकि यह कथन कि ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुए थे, कुछ चतुर और धूर्त लोगों द्वारा गढ़ी गई कपोल कल्पना है।’’
मूल बात यह है कि देहचर्चा भौतिकवादी दार्शनिकों के चिंतन के केन्द्र में रही है। तंत्र और योग वालों ने इस पर कुछ ज्यादा ध्यान दिया है। सहजिया साहित्य में तो यहां तक कहा गया है कि ‘‘जिस व्यक्ति को अपनी देह का ज्ञान हो गया है वही सबसे प्रज्ञावान है। और यही संदेश सभी धर्मग्रंथों का है।’’ वे यह भी मानते हैं कि ‘‘सभी ज्ञान शाखाओं का आधार यह देह है।’’आगे लिखा है ‘‘ यहां (इस देह के अंदर) गंगा और यमुना है,यहीं गंगा सागर, प्रयाग और काशी है और इसी में सूर्य तथा चंद्र हैं। यहीं पर सभी तीर्थस्थल हैं-पीठ और उपपीठ हैं।मैंने अपनी देह जैसा परम आनंद धाम और पूर्ण तीर्थ स्थल कभी नहीं देखा।’’
कोई भी व्यक्ति जब योग-प्राणायाम करता है तो वह अपने शरीर को स्वस्थ रखता है साथ ही इसका मूल असर उसकी कामुकता पर होता है। उसकी कामुक इच्छाएं बढ़ जाती हैं. कामुक इच्छाओं का उत्पादन और पुनर्रूत्पादन करना इसका बुनियादी लक्ष्य है, दूसरा लक्ष्य है देह को सुंदर बनाना और इस प्रक्रिया में वे तमाम वस्तुएं जरूरी हैं जो देह को सुंदर रखें और यहीं पर बाबा रामदेव अपने पूरे पैकेज के साथ दाखिल होते हैं। उनके पास देह को सुंदर बनाने की सारी चीजें हैं और यह काम वे बडे ही कौशल के साथ करते हैं। भारतीय परंपरा के प्राचीन ज्ञानाधार और चेतना के रूपों का योग-प्राणायाम के जरिए दोहन करते हैं और उसे संस्कृति उद्योग की संगति में लाकर खड़ा करते हैं। यह एक भौतिक और सभ्य बनाने वाला काम है।
योग गुरु रामदेव बाबा को शायद अब विज्ञापन वाले बाबा कहना ज्यादा उचित होगा। विदेशी बैंकों में रखे गए काले धन को वापस लाने की बात करने वाले बाबा अब तो व्यापारिक कंपनियों का प्रचार-प्रसार भी करने लगे है। ऐसा लगता है कि अब शायद उन्हें माया की ताकत का पता लग गया है, इसलिए तो अब वे काले धन के पीछे पड़े है !!! कहीं उनकी यह मांग ब्लेकमेलिंग तो नहीं??
रामदेव आज से कुछ साल पहले एक अनजाना सा नाम था। योग का सहारा लेकर अचानक यह नाम देश का वीवीआइपी बन गया। मुनिओं के इस देश में कभी भी योग गुरुओं की कमी नहीं रही है, लेकिन रामदेव का नाम इस प्रकार प्रचारित किया गया कि उनसे बड़ा कोई योग गुरु है ही नहीं, और इसमें उन्हें काफी हद-तक सफलता भी मिल गयी। इस दौरान एक खेल यह खेला गया कि योग गुरु रामदेव सिर्फ भारत में ही योग सिखायेंगे, इसका असर यह हुवा कि देशभक्त जनता उनके साथ जुटती गयी और रामदेव देश के सबसे बड़े हीरो बन गए। धीरे-धीरे बाबा रामदेव बड़े-बड़े नेता, मंत्री, अधिकारियों के खास बन गए। देशभक्ति की बात करने वाले बाबा अचानक अंग्रेजी बोलने लगे। फिर उन्होंने पार्टी भी बना ली। इसके बाद तो वे विदेशों में पूंजीपतियों द्वारा जमा किये गए पैसों का हिसाब भी मांगने लगे।
चतुर्वेदी जी लगता है आप चारों वेद पढ़ गए तभी यह विचित्र और गूढ़ ज्ञान निकाल के ला सके हो। धन्य हो आप हमें तो आज तक यह पता ही नहीं था। हम तो सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य और आत्मिक शांति के लिए योग करते रहे। श्री राजेश कपूर जी आप तो यूं ही बेवजह परेशान हो रहे हैं। सीखो कुछ इन महान भोगाचार्य जी से। आप इतने विरोध के बाद रुकिएगा नहीं वरना दुनिया को कैसे पता चलेगा आप कुतर्कों को, आपकी घटिया मानसिकता को।
आदरणीय तिवारी जी सबसे पहले तो आपसे विनती है कि कृपया मुझे दिनेश गौड़ के नाम से संबोधित न करें| मेरा नाम दिवस गौड़ है, दिनेश मेरे पिता का नाम है|
दूसरी बात आपने तो बड़ी ही चतुराई के साथ महाबली वीर हनुमान को भी वामपंथी बना डाला जो कि श्री राम के परम भक्त हैं| आपने कहा कि वामपंथ का लाल ध्वज हनुमान की लाल लंगोट से आया है, तो क्या साम्यवादी रूस और चीन के महान क्रांतिकारी भी हनुमान भक्त थे जिन्होंने साम्यवाद को जन्म दिया था? क्योंकि लाल झंडा तो उन्होंने ही दिया है वामपंथ को|
लेखक महोदय आप पता नहीं क्या कहना चाहते हैं . ‘ सम्भोग ‘ का ‘ योग ‘ न होता तो आप जन्मते ही नहीं न हमें यह लेख पढना पड़ता .
आप बुद्धि विशारद हैं ज्ञान ,योग, सम्भोग आप जाने पर प्राणायाम मैं बाबा रामदेव के ‘ प्रचार ‘ से ही जान पाया और सिर्फ वही करता भी हूँ .मेरे अस्थमा पर तो रामबाण उपाय रहा और मैं डाक्टरी दवाओं से मुक्त स्वस्थ हूँ और सामान्य जीवन जी रहा हूँ .
आदरणीय डॉ राजेश कपूर जी सादर वंदन
मेने श्री चतुर्वेदी जी के आलेख पर छोटी सी टिप्पणी की थी ,उसमे मेने योग के खिलाफ एक शब्द भी नहीं लिखा और जिन महापुरुषों के नाम आपने गिनाये हैं उनका मान ‘ छीवे का छिनाला ‘नहीं है की किसी एक आम आदमी के कहने सुनने से घट जाएगा ,इन महापुरुषों को पढ़ पढ़ कर ही हम सीखे हैं की -मिटा दे अपनी हस्ती को गर मर्तवा चाहे …की दाना खाक में मिलकर …गुले गुलजार होता है …इन सभी प्रातः स्मरणीय महानुभों की तस्वीरें हमने भी घर में लगा रखी हैं …उनके आदर्शों में ही हम अपना और देश का भविष्य देखते हैं …
भाई दिनेश गौर जी आपको यह जानकर ख़ुशी होगी की महाबली वीर हनुमान तो सर्वहारा -गरीवों के उद्धारक हैं .वे आदि कामरेड हैं .उनके लाल लंगोट से ही लाल झंडे का
janm hua है.jai bajrang …lal sallam….
जगदीश्वतर चतुर्वेदी ने बड़ी चतुराई से बाबा रामदेव के योग उद्योग द्वारा उनके वैभव-संपन्नता का विस्तृत वर्णन करते उनकी दूसरे योग व धर्म के व्यापारियों से तुलना कर उनके योग का सीधा संबंध कामुकता से जोड़ा है| यदि योगी लोग कामुकता की नहीं बल्कि योग की बात करते हैं तो लेखक क्योंकर आधुनिक भारतीय संचार माध्यम में प्रचलित देहचर्चा के प्रभुत्व को बनाए रखने हेतु योग और कामुकता में न्योन्याश्रित संबंध दर्शा रहे हैं? वैसे तो सांस लेने जैसी साधारण और प्राकृतिक क्रिया और कामुकता में भी महत्वपूर्ण संबंध है| और, लेख में विषय-वस्तु और इसके शीर्षक, समाज को सभ्यत बना रहे हैं बाबा रामदेव में कटुव्यंग्य प्रत्यक्ष नज़र आ रहा है| बढती जनसंख्या को देखते हुए इस लेख के अनुसार भारतीय युवा पीढ़ी सदैव सभ्य रही है| युवा पीढ़ी में स्वाभाविक सुंदर देह और मदमस्त जवानी के हिचकोले योग नही बल्कि भोग और विलासिता को छूते हैं| बाबा रामदेव के योग में तो अधिकतर प्रोढ आयु में शरीर से अस्वस्थ और रुग्ण लोग अपनी जिंदगी के दो लम्हें और बढाने के लिए हाज़िर होते दिखाई देते हैं|
ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक यहां भोगवाद और कामुकता में फंसे रहने के कारण समाज को सभ्य बना रहे बाबा रामदेव के मुख्य उद्देश्य—बिमारी, बुराई व भ्रष्टाचार से मुक्त स्वस्थ, संस्कारवान व शक्तिशाली भारत का निर्माण—को तो व्यक्त करना भूल ही गए हैं|
आलोचना ने आपको एक नकारात्मक प्राणी बना दिया है, और आप उसमे इतने घुस गए हैं की आपका अपना कोई व्यक्तित्व ही नहीं बचा है| आप बाबा रामदेव की आलोचना इसीलिए कर रहे हैं क्योंकि उनके भक्त करोड़ों हैं आपको कुछ गाली जरूर पड़ जाएँगी लेकिन एक घाघ आदमी की छवि तो बनेगी.
अपने विषय अनुरूप आपने न तो कभी मीडिया की आलोचना की न ही कभी साहित्य की आप व्यक्तिगत आलोचना को ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं. आपसे बेहतर तो वो भिखारी है जो मंदिर के सामने बैठ के अपना गुजर बसर कर लेता है. आप बाबाजी की धुल भी नहीं बन सकते. आपके विश्वविद्यालय के छात्र ही आपको ठीक करेंगे. कलकत्ता मैं हैं इसीलिए ऐसी बात कर रहे हैं.
आदरणीय कपूर साहब, उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद| आप जैसे राष्ट्र भक्तों से ही सीख कर आगे बढ़ रहा हूँ| अब इन वामपंथियों का समय समाप्त होने वाला है| क्यों कि ये खुद वामपंथ को बदनाम करके उसे समाप्त कर रहे हैं|
दिनेश गसुर जी, साधुवाद. आपकी लेखनी को धार लगती जा रही है, जारी रखें.
भाई तिवारी जी आज आपने भी साबित कर दिया कि आप भी वासना से आगे सोचने- समझने की क्षमता से वंचित हैं. अरे मित्र ब्रह्मचर्य सम्भोग का सुख पाने की एक सबसे निम्न कोटी की उपलब्धी है. ब्रह्मचर्य के महत्व और प्रभावों को जानना हो तो सिद्धांत तो आप क्या पढ़ें-समझेंगे, स्वामी विवेकानंद, महर्षी दयानंद, रामकृष्ण परमहंस, तुलसी, नानक , दादू, कबीर, गांधी को ही देखलो. विवाह करके भी संयम साधना से व्यक्ती कितना ऊंचा उठ सकता है, यह तो देखो. पर वामपंथ के कुंठित घेरे में रहते हुए इतनी समझ विकसित होनी मुश्किल है. निवेदन है कि वामपंथ का इतना अपमान अपने व्यवहार से करने का क्रम जारी रख कर आप हमारा काम आसान कर रहे हैं. पाठकों को समझ आ रहा है कि वामपंथियों की समझ की सीमा और दिशा क्या है. खैर , फिर भी आपके कल्याण की शुभकामनाओं सहित सादर आपका शुभ चिन्तक.
तिवारी जी हनुमान भी ब्रह्मचारी हैं, क्या उन्होंने भी ब्रह्मचर्य का पालन आपके द्वारा वर्णित इस फ़ालतू कारण के लिए किया? कुछ तो सोच समझ के अपने विचार रखिये| या भारतीय संस्कृती के साथ साथ हनुमान में भी आपकी आस्था नहीं है| और रही बात योग की तो यह योग भी भारत के महान विद्वान् संतों द्वारा प्रदात एक अमूल्य विद्या है जिसका उपयोग आरोग्य पाने के लिए किया जाता है न कि आपके द्वारा वर्णित इस घटिया कारण के लिए|
बंधुवर चतुर्वेदी जी क्या आप को समझ आया कि आप के इस लेख से पाठकों के सामने आपकी छवि एक ऐसे लेखक के रूप में बनी है जो विषय की समझ न होने पर भी कुछ भी उलटा- सीहा लिखता है. – – कई बार लगा है कि आप कम्युनिस्ट पूर्वाग्रहों व गलत संस्कारों के कारण गलती तो कर रहे हैं पर वैचारिक रूप से बेईमान नहीं हैं. प्रिय बंधू यह अनाप-शनाप लिखना क्या ज़रूरी है ? योग की आप से कहीं अधिक समझ तो टिप्पणी करने वाले पाठकों को है.
– भाई योग तो शरीर के रोगों को समाप्त करने से भी बहुत आगे की बात है. वासनाओं, कामनाओं को जीतने व मन को साध कर मानवीय क्षमताओं की परम सिद्धियों को प्राप्त करने की अद्भुत कला योग है. इतना ही नहीं, सिद्धियों से भी ऊंची स्थिती को प्राप्त करने अर्थात मोक्ष की अवस्था प्राप्त करने की अद्भुत साधना योग है.
– आपने योग को भोग और काम वासना से जोड़ कर जो अज्ञानता का परिचय दिया है उसके कारण पाठकों ने आपके प्रति अनेक अपमानजनक उदगार आपके विरुद्ध प्रकट किये हैं जिसके दोषी आप स्वयं हैं, पाठक नहीं.
– तंत्र साधना में एक पञ्च मकारों की वाम मार्गी साधना है जिसे आपने अपने अज्ञान का परिचय देते हुए योग साधना बतलाने की बचकानी भूल की है. इस वाम मार्गी साधना में भग पूजा भी एक अंग है, पर सात्विक तंत्र साधना में ऐसा कुछ नाम को भी नहीं है.
– बिना विषय को जाने समझे उस पर कुछ भी गलत-सलत कह देने से ऐसी अपमान जनक स्थिती आ जाती है जैसी की आज आपको भोगनी पड़ रही है. आप सब की पुराणी आदत है की हिन्दू धर्म के विरुद्ध कुछ भी अंट-संट कह दो , बेचारे हिन्दू कुछ बोलते तो हैं नहीं ; फिर भी आप लोग उन्हें कहते हैं ‘ कट्टर पंथी, हिन्दू आतंकी’ आदि. पर अब समय बदल गया है. अब हिन्दू समाज आप लोगों की मार खा-खा कर जागने लगा है जिसका प्रमाण हैं आप और डा. मीना जी जैसे सज्जनों (?) को मिल रहे करारे जवाब जो पहले तो कभी नहीं मिलते थे. आगे से ज़रा सोच, समझ कर.
– आप ने जिस तरह जबरन योग को काम वासना के साथ जोड़ने का अतिवादी और विचित्र प्रयास किया है , क्या उससे किसी को भी आपके बारे में यह नहीं लगेगा की आप दमित वासना के शिकार हैं ? वरना आजतक ऐसा बेतुका प्रयास तो किसी बड़े से बड़े ना समझ ने भी न किया होगा. मैं ये तो कहने का साहस नहीं करूंगा की आप किसी मनो- रोग चिकित्सक से परामर्श लें पर इतना ज़रूर कहूंगा की ज़रा स्वयं शांत मन से अपने विचारों और मनः स्थिति का विश्लेषण करें जिससे भविष्य में आपके लिए ऐसी अशोभनीय स्थितियां उत्पन्न न हों.
– अति काम वासना के चिंतन, अतृप्त वासनाओं, निराशा से कई बार विचित्र भूलें व्यक्ती से होने लगती हैं . अत्यधिक घृणा के भावों को पालने से भी अस्थाई या स्थाई रूप से मन विश्छ्रिन्खलता का शिकार बन सकता है. वाम पंथ का आधार ही घृणा है. घृणा को पालने वाले स्वस्थ, संतुलित मनः स्थिती के होने बड़ी मुश्किल बात है. मनोविज्ञान का स्थापित सिद्धांत है यह जो की मैंने नहीं बनाया.
– आप औरों के प्रति दुराग्रह के चलते अनेकों कटु व अपमान जनक बातें लिख चुके हैं. जैसे कि मुझे ही कह चुके हैं कि मैंने कभी सह्या लोगों की सगत नहीं की, मुझे किसी से ट्यूशन लेकर पढ़ना-लिखना-सभ्यता सीखनी चाहिये. आशा है कि तर्कसगत उत्तर सुनने का धैर्य अभी तक आपके पास बचा हुआ होगा.आप चाहें तो मेरे आक्षेपों का तर्कसगत उत्तर दें न कि साहित्यिक गालियाँ देकर अपनी भड़ास निकालेंगे. और या फिर मुझे लिखने से रोकने की वामपंथी दादागिरी का सुपरिचित प्रयास करेंगे. जो कि आप और आपके स्वनाम धन्य साहित्यकार अनेक दशकों से करते आये हैं.
– अपनी हिदू विरोधी मानसिकता से लिखे अनेकों लेखों ने ही आपके शुभचिंतक पाठकों को घृष्ट बनाया है.
– ऐसा तो हो नहीं सकता कि आप हमें, हमारे समाज, हमारे धर्म, संस्कृति, हमारे पूर्वजों, देवों को बार-बार अपमानित करते रहें और हम चुचाप सब सहते रहें. आप मर्यादाओं का पालन करें, तभी औरों से भी अपेक्षा करें. ऐसा न समझें कि आपने हिन्दुओं के अपमान का लाईसेंस प्राप्त किया हुआ है. अगर है भी तो वह केवल केरल और बंगाल में है. कब तक रहेगा, देखते हैं.
– मेरी कोई बात कटु और कष्ट कर लगे तो क्षमा चाहूंगा. याद रखें कि इस भाषा के लिए हमें आप ही बार-बार बाध्य कर रहे हैं.
महान क्लासिक व्यंग लेख़क श्रीलाल शुक्ल ने ‘राग दरबारी ‘में इस बाबत स्पस्ट और विस्तार से सिद्ध किया है कि क्यों ब्रह्मचर्य का पालन किया जाना जरुरी है ,.योग और ब्रह्मचर्य से मानव ज्यादा उर्जा संचित इसीलिए करता है ताकि वह उसका सेक्स के माध्यम से ज्यादा आनंद ले सके ,आदरणीय चतुर्वेदी जी ने इस वर्ज्नात्म्क विषय में आलेख प्रस्तुत कर पाठकों को चमत्कृत कर दिया .कुछ आदत से मजबूर इंसान हैं जिन्हें सत्य में नहीं झूंठ और छलना में दिलचस्पी है …इसीलिए ऐसे लोगों को श्री चतुर्वेदी जी कि अर्थ्वात्तात्म्क वैज्ञनिक सोच और फिलोसफी से तकलीफ होती है .इसमें चतुर्वेदी जी इन पीड़ितों कि कोई मदद नहीं कर सकते ….
चतुर्वेदीजी,मेरे विचार से तो बाबा रामदेव पर अपनी भडास निकालने में आप अपने ही एक लेख को भूल गए की साम्यवाद सन्यासवाद नहीं होता.योग का सचमुच में इश्वर भक्ति से सीधा सम्बन्ध नहीं है पर इसका सम्भोग से सम्ब्बंध है यह आपके दूषित मस्तिष्क की उपज मात्र है.इस लेख में आपकी हताशा भी झलकती है.मैं मानता हूँ की रामदेव ने योग को व्यापार बना दिया है,अगर ऐसा है भी तो गलत क्या है?आपने शायद मुयायना नहीं किया है नहीं तो आप पाते की रामदेव ने योग को आम जनता तक पहुंचा दिया है और पहली बार भारतीय अपने खानपान के प्रति जागरूक हुए हैं.एक स्वस्थ परम्परा कायम हुयी है और लोग शरीर की नश्वरता के सिद्धांत से अलग हte हैं और शारीरिक स्वस्थता पर ध्यान देने लगे है.ऐसा करने में अगर unme shaaririk saundarya bhi aa jaata hai to isame aapko kya etraaj hai.prachchhan roopse aapke dukkh ka kaaaran to mujhe yah lagataa hai ki aap Ramdev ki lokapriyataa se tilmilaa uthe hai.ek salaah aur. Mere vichaar se aapke is lekh mein bhag aur yoni ki vyakhyaa bahut hi aashlil ho gayee haiaur sabhyataa ki seemaa par kar gayeehai.achchha hota ki apni niraashaa ko aap kisi anya roop mein darshaate.
योग पर आपका विश्लेषण गलत है . इस विषय पर आपकी पकड़ नहीं है .
बाबा रामदेव अभी तो भारत ही नहीं दक्षिण एशिया के योग पुरुष के रूप में स्थापित हैं .
एक लोक अवधारणा है की किसी उंचाई पर चढ़ना यदि कठिन है तो उस पर बने रहना और भी मुश्किल …चतुर्वेदी जी ने इस आलेख में बड़ी सरल शैली में धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ,महेश योगी से लेकर रजनीश तक और पूंजीवादी भोग्य्वाद से लेकर दार्शनिक कामुक्तावाद का क्या ही कच्चा चिठ्ठा पेश किया है …बधाई….भारतीय स्कूली छात्रों के पाठ्यक्रम के लायक प्रस्तुती है ….
माननीय लेखक महोदय,
आपके लेख पढ़कर ऐसा लगता है कि आप किसी न किसी अज्ञात कुंठा से ग्रसित हैं! हालांकि मैं आपकी कुछ बातो से सहमत हूँ परन्तु आपने विषय को अनावश्यक रूप से योग सम्बंधित बातों को पूर्व से पश्चिम की और मोड़ दिया है!
कामुकता के साथ हर चीज को जोड़ने का आपका नजरिया सही नहीं है! हम मान लेते हैं कि आपके चिंतन के केंद्र में सेक्स के लिए बहुत महत्व है परन्तु ये परिभाषित करना कि योग करने से कामुकता बढ़ जाती है निहायत ही गलत है!
इसके स्थान पर आपको जितना धन गरीब लोगों ने बाबा रामदेव जी के सहयोग, प्रचार, योग के माध्यम से बचाया है उसकी व्याख्या करनी चाहिए थी!
शायद आप जैसे अधिक पढ़े लिखे लोगों का सोचने का नजरिया ही और है ……………….
बाबा रामदेव जी भी आप जैसे चेलों की योग व्याख्या पढ़ और सुनकर हँसे बिना नहीं रह सकेंगे!!
जय बाबा रामदेव!
जय पतंजलि योगपीठ!!
जय भारत स्वाभिमान!!!
जय भारत!!!!
फ़िलहाल भारत में हिन्दुत्व के आइकॉन नरेन्द्र मोदी हैं और भारतीय संस्कृति तथा योग से सम्बन्धित आइकॉन रामदेव बाबा हैं… इन दोनों के करोड़ों चाहने वाले और फ़ॉलोअर हैं… ज़ाहिर सी बात है कि इन्हीं दोनों पर सर्वाधिक छींटाकशी और हमले किये जायेंगे…
ऊपर टिप्पणी में सुनील पटेल जी कह ही चुके हैं कि पूरे लेख में योग और सेक्स की अर्थहीन और बेतुकी तुलना की गई है, जबरन और जैसे-तैसे घसीटकर रामदेव बाबा का नाम कामुकता से जोड़ने की भद्दी कोशिश की गई है… मुझे आश्चर्य है कि इतने झिलाऊ, बोझिल और ऊबाऊ लेख कैसे लिख लेते हैं चतुर्वेदी जी?
मुझे लगता है कि अयोध्या निर्णय के पश्चात, श्री चतुर्वेदी जी को पूरे आराम तथा रामदेव बाबा की एक “झप्पी” की सख्त आवश्यकता है… वरना वे ऐसे लेख लिखते ही रहेंगे।
योग से कामुकता नहीं जागती अपितु अनुलोम विलोम प्राणायाम से तो पाँचों इन्द्रियों को वश में किया जा सकता है| स्वामी रामदेव जी को उद्योगपति बताने वालों तुम्हारे वामपंथ का बैंक बैलेंस खुल चूका है| एक ऐसी विद्या जो लुप्त हो चुकी थी उसे पुन: जागृत करने का श्रेय स्वामी जी को जाता है| पूरे भारत में आज लोग मुफ्त में आरोग्य पा रहे हैं तो इसमें आपको क्यों आग लग रही है? आप यदि योग प्राणायाम करेंगे तो आपकी भी बुद्धि सही प्रकार से कार्य करेगी और यह जो फ़ालतू की बकवास आप यहाँ बिखेरते हैं आपको उसी पर शर्म आएगी| विश्वास न हो तो एक बार करके देखें, हम तो भुगत भोगी हैं| हमारे तो कितने ही परिचितों ने इसका लाभ उठाया| खुद मै भी इसका असर देख चूका हूँ|
एक कहावत है , बमूर में भटा लगाना.
स्वामी रामदेव जी जो योग और प्रयानाम का पावन कार्य कर रहे है उन्हें उद्योग बताने की पूरी कोशिश श्री चतुर्वेदी जी अपने तर्कों द्वारा कर रहे है.
* योग जो किसी ज़माने में केवेल उच्च वर्ग के लिए आरक्षित था आज जन जन, गाँव गाँव तक पहुँच गया है. जो स्वामी रामदेव द्वारा बताया गया योग और प्रयाणं नियेमित कर रहे है उनसे पूछिए उनका कितना फायदा हो रहा हा और कितना पैसे वे दवाओं का बचा रहे है.
* सेक्स और स्वामी रामदेव जी का यहाँ बेमेल तुक है.
* स्वस्थ सरीर हो तो शारीरिक सुख भी स्वस्थ होगा, इसमें कोई नई बात तो नहीं है.
* स्वामी रामदेव जी के उत्पाद – जो सामान वे बेच रहे है वह बहुत उच्च स्तरीय, शुद्ध और बहुत जायज या कहे नुयेनतम कीमत पर है. वोही सामान दूसरी बड़ी कम्पनियों में बहुत ज्यादा कीमत पर मिलते है.
* योग और तंत्र विज्ञानं – यह बहुत वृहद विषय है. किन्तु यहाँ स्वामी रामदेव जी का इससे क्या वास्ता?
समाज को सभ्य बना रहे हैं बाबा रामदेव – by – जगदीश्वर चतुर्वेदी
१. अब तो कोई भी राजनीति का नेता बाबा रामदेव जी के पास नहीं आता. यह वर्ष २०१० में हुआ है.
२. योग-प्राणायाम स्वस्थ रहने के लिए है. इसका अभ्यास कामुकता पर नियंत्रण के लिए है. इसका प्रचार-प्रसार तो यही कह कर किया जाता है.
३. दवाई खानी ही है तो आयुर्वेद की खाने में बहुत लाभ हैं.
४. योग-प्राणायाम करो और मौज करो.
५. योग करने वाला सभ्य तो स्वयं ही बन जाता है.
– अनिल सहगल –