पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री गिलानी पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के प्रति अपनी अंधभक्ति दिखाने के चलते अपनी प्रधानमंत्री की कुर्सी खो चुके है, और ऐसा लगता हैं कि उनके स्थान पर आए प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ भी अपनी कुर्सी इसी के चलते खोने वाले है।
यह बात अलग है ,कि पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय नें राजा परवेज अशरफ को 18 सितम्बर तक का समय दिया है । पर ऐसा लगता नही कि पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देशानुसार कुछ होने वाला है । यदयपि अशरफ ने प्रधानमंत्री बनने के बाद न्यायालय अवमानना अधीनियम में बदलाव कर उच्च -पदस्थ लोगों को इस कानून से मुक्त करा दिया।यह कुछ इसी तरह का कृत्य था ,जैसे आपात-काल में तात्कालिन प्रधानमंत्री श्रीमती इनिदरा गांधी ने संविधान संशेाधन कर प्रधानमंत्री एवं कुछ अन्य पदों को किसी किस्म की न्यायालयीन कार्यवाही से मुक्त करा लिया था।पर पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय ने इस बदले हुए कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया। साथ ही राजा परवेज अशरफ को न्यायालय अवमानना की नेाटिस जारी कर 27 अगस्त तक उनसे जबाब मांगा है।उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी पर यह आरोप है कि अपनी पत्नी बेनजीर भुटटों के प्रधानमंत्रित्व- काल में उन्होने अथाह संपत्ति बटोरी थी, और जिसका बड़ा हिस्सा सिवस बैंकों में जमा होना बताया जाता है। उस दौर में जरदारी का नाम ही मि. दस परसेन्ट पड़ गया था। पाकिस्तान का सर्वोच्च न्यायालय बहुत पहले यह स्पष्ट आदेश कर चुका है कि पाकिस्तान सरकार इस संबंध में उचित जांच कराकर यदि आवश्यक हो तो पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी पर तत्संबंध में आपराधिक प्रकरण चलाए। लेकिन पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री गिलानी ने पाकिस्तान सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश को इस आधार पर मानने से इंकार कर दिया कि संविधान के अनुसार राष्ट्रपति पर कोर्इ आपराधिक प्रकरण नही चलाया जा सकता। भले ही पाकिस्तानी सर्र्वोच्च न्यायालय ने इसके चलते गिलानी को न्यायालय अवमानना का दोषी माना हो और उन्हे अपनी प्रधानमंत्री की कुर्सी खोनी पड़ी हो। पर असलियत क्या यही है कि गिलानी ने पाकिस्तानी संविधान के प्रति अपनी आस्था के चलते सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को मानने से इंकार कर दिया? दुनिया के किसी भी देश में जहां लिखित संविधान है, वहां संविधान की व्याख्या का अधिकार भी वहां के सर्वोच्च न्यायालय को ही रहता है। ऐसी स्थिति में यदि पाकिस्तान का सर्वोच्च न्यायालय यह कहता है कि जरदारी के दोषी पाए जाने पर उनके विरूद्ध मुकदमा चलना चाहिए तो यही बात संविधान-सम्मत होनी चाहिए। लेकिन गिलानी जैसे वफादारों को क्या कहा जाये कि संविधान की व्याख्या का अधिकारी स्वत: को ही मानते है। अब एक बार यदि ऐसा मान भी लिया जाये कि राष्ट्रपति के विरूद्ध आपराधिक अभियोजन नही हो सकता। तो इस दिशा में जांच कराए जाने पर क्या आपतित है? अब गिलानी जैसे लोग शायद यही कहेगे कि राष्ट्रपति के विरूद्ध जांच उनकी शान के खिलाफ है। बिडम्बना यह कि जरदारी स्वत: इस विषय पर मौन साधे बैठै है। उन्होने स्वत: भी कभी नही कहा कि वह पाक-साफ है, और किसी भी जांच के लिए तैयार है। बेहतर तो यह होता कि वह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से स्वत: उच्च -स्तरीय एवं निष्पक्ष जांच की मांग करते ताकि ”दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। पर समस्या यह है कि जब सिर्फ पानी ही पानी है, तो जरदारी भला ये हिम्मत कैसे करते? इसका मतलब स्पष्ट है कि जरदारी ने पाकिस्तान को लूटकर अरबो-खरबों रूपएं सिवस बैको में जमा कर रखे है, जिसके लिए निशिचत रूप से उन्हे अभियोजित कर दणिडत किया जाना चाहिए।
अब सवोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एवं वर्तमान के प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू फरमाते है कि पाकिस्तान सर्वोच्च न्यायालय कि यह आदेश गलत है कि राष्ट्रपति जरदारी के विरूद्ध जांच एवं अभियोजन की कार्यवाही हो। उनका कहना है-इग्लैण्ड के राजा के विरूद्ध भी किसी आपराधिक प्रकरण में कोर्इ कार्यवाही नही हो सकती। ऐसा लगता है कि श्री काटजू यह बताना चाहते है कि राष्ट्रपति या राजा कुछ भी करें, पर वह विधि के ऊपर है। पर ऐसा मानना लोकतंत्र की मूल अवधारणा के ही खिलाफ है। इसका मतलब तो यह हुआ कि इस तरह से चाहे कोर्इ घोटाले करें, बलात्कार करे, हत्या करें, उसमें कार्यवाही होना तो दूर जांच भी नही हो सकती। वस्तुत: यह बहुत ही खतरनाक दर्शन है, जिसके चलते भारत ओैर पाकिस्तान तथा कर्इ विकासशील देश में शासकों द्वारा ऐसी लूट जारी है, जिसके चलते आम आदमी बदहाली का जीवन जीने को बाध्य है। वस्तुत: जहां तक इग्लेण्ड के राजा का प्रश्न है, वह आपराधिक अभियोजन से इसलिए मुक्त है, कि ऐसा माना जाता है कि ‘राजा कोर्इ गलती इसलिए नही करता कि उसे कुछ भी करने का अधिकार ही नही है। लेकिन इसका मतलब यह नही कि राजा और यदि कोर्इ व्यकितश: अपराध करेगा तो उसे ऐसा करने का अधिकार है।
अब बड़ा सवाल यह कि गिलानी और राजा परवेज अशरफ जैसे लोग अपना पद खोने के बाबजूद जरदारी के विरूद्ध कोर्इ कार्यवाही करने को क्यो तैयार नही है? इसके लिए पहली बात तो यह कि यह कोर्इ जनता से चुने प्रधानमंत्री तो है-नही। यह जरदारी की कृपा से प्रधानमंत्री बने है। इसलिए यदि इन्होने इस दिशा में कोर्इ उपक्रम किया तो जरदारी, राष्ट्रपति की हैसियत से और साथ ही पार्टी पर नियत्रंण के चलते इन्हे पहले ही पद से रूखसत कर देगें। इतना ही नही उल्टे उन्हे ही किसी प्रकरण में उलझा सकते है। वैसे भी वर्तमान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री अशरफ पर मंत्री रहते घोटाले का आरोप है। इसलिए इन लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उलंघन कर स्वामिभक्ति दिखाने के चलते यह ‘शहीदी बाना ओढ़ना ज्यादा उचित समझा है। दुर्भाग्यजनक स्थिति यह कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप का लोकतंत्र जैसे एक गिरोह- तंत्र में बदल गया है। इसलिए सत्ता के शीर्ष पदो पर बैठे लोगों के विरूद्ध किसी निष्पक्ष जांच एवं कार्यवाही की अपेक्षा करना एक मृगतृष्णा जैसा हो गया है। बड़ा सवाल यह कि ये कैसी वफादारी है, जो राष्ट्र की तुलना में व्यकित को वरीयता देती है।