नई ऊंचाइयों को छू रहे भारत-नेपाल संबंध !

नेपाल भारत का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण पड़ोसी है। भारत के लिए नेपाल का और नेपाल के लिए भारत का बहुत बड़ा महत्व है। दोनों देश 1,850 किलोमीटर से  ज्यादा की सीमा साझा करते हैं।भारत के लिए नेपाल का महत्व इसलिए क्यों कि नेपाल पांच भारतीय राज्यों- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, सिक्किम और बिहार के साथ अपनी सीमा साझा करता है। यही कारण है कि नेपाल और भारत एक दूसरे के लिए विभिन्न सांस्कृतिक और आर्थिक आदान-प्रदान के महत्त्वपूर्ण बिंदु रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो सदियों सदियों से चले आ रहे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों के कारण अपनी विदेश नीति में यह हमारे लिए एक विशेष महत्त्व रखता है। नेपाल का जहां एक ओर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये सामरिक महत्त्व है वहीं दूसरी ओर नेपाल का भारत के साथ रोटी-बेटी का संबंध तक है। यहां तक कि दोनों देशों के बीच खुली सीमा है और दोनों ही एक दूसरे के साथ निर्बाध आवाजाही तक करते रहे हैं। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि भारत और नेपाल हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म के संदर्भ में बुद्ध के जन्मस्थान लुंबिनी(नेपाल में स्थित) के साथ समान संबंध साझा करते हैं । वास्तव में, वर्ष 1950 की शांति और मित्रता की भारत-नेपाल संधि भारत और नेपाल के बीच मौजूद विशेष संबंधों का आधार है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि नेपाल और भारत के संबंध इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्यों कि नेपाल भारत की ‘हिमालयी सीमाओं’ के ठीक बीच में है और भूटान के साथ, यह एक उत्तरी ‘सीमा’ के रूप में कार्य करता है और चीन से किसी भी संभावित आक्रमण के खिलाफ बफर राज्यों के रूप में कार्य करता है। हाल ही में नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल प्रचंड 31 मई से भारत की यात्रा पर आए। नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड की हाल की भारत यात्रा से भारत नेपाल संबंधों को एक नई ऊंचाई मिली है, क्यों कि पिछले कुछ समय से नेपाल और भारत के संबंधों में सीमा विवाद को लेकर कड़वाहट देखने को मिल रही थी। जानकारी देना चाहूंगा कि लिम्पियाधुरा, कालापानी, और लिपुलेख के क्षेत्रों को लेकर भारत-नेपाल के बीच विवाद रहा है और प्रचंड के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने पर शुरूआत में भारत के प्रति रवैये में थोड़ी खटास थी, लेकिन प्रचंड की भारत यात्रा से अब रिश्तों में पुनः गर्माहट आ गई है, क्यों कि अब दोनों ही देशों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अटूट दोस्ती के बीच सीमा विवाद दरार नहीं बनेगा, यह बहुत ही काबिलेतारिफ बात है, क्यों कि नेपाल और भारत के सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक यहां तक कि सामाजिक रिश्तों की लंबे समय से एक अलग ही पहचान रही है। हाल ही में एक जून को नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ नेपाल के पीएम प्रचंड ने द्विपक्षीय वार्ता की। जानकारी देना चाहूंगा कि इस व्यापक बातचीत में हर उन मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई, जिससे भविष्य में भारत-नेपाल संबंध और भी अधिक प्रगाढ़ व बेहतरीन हों। बातचीत के दौरान दोनों ही नेताओं ने भारत-नेपाल साझेदारी को सुपरहिट बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं, यह दोनों ही देशों के लिए एक बहुत ही अच्छा संकेत है। ‌हाल की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 7 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं जिनमें सीमा पार पेट्रोलियम पाइपलाइन का विस्तार, एकीकृत जांच चौकियों के विकास के साथ ही  पनबिजली में सहयोग बढ़ाने से जुड़े समझौते शामिल हैं। इन समझौतों में एक ट्रांजिट की संशोधित भारत-नेपाल संधि भी है। इसके जरिए नेपाल के लोगों के लिए नए रेल रेल मार्गों के साथ ही भारत की अंतरदेशीय जलमार्ग सुविधा का वहां के लोग प्रयोग कर सकें, इसके लिए प्रावधान किया गया है। दोनों ही देशों ने नए रेल लिंक स्थापित कर भौतिक संपर्क बढ़ाने का फैसला किया है। इतना ही नहीं, बातचीत के दौरान भारतीय रेल संस्थानों में नेपाल के रेलकर्मियों को प्रशिक्षण देने पर भी सहमति बनी है। नेपाल के सुदूर पश्चिमी क्षेत्र से संपर्क को बढ़ावा देने के लिए शिरशा और जुलाघाट में और दो पुल बनाए जाने पर भी समझौता किया गया है। जानकारी देना चाहूंगा कि एक दीर्घकालीन बिजली व्यापार समझौते के तहत भारत ने आने वाले 10 वर्षों में नेपाल से 10,000 मेगावाट बिजली का आयात करने का लक्ष्य रखा है‌। इसके साथ ही मोतिहारी अमलेहगंज पाइपलाइन के सकारात्मक प्रभाव को देखते हुए इस पाइपलाइन को चितवन तक ले जाने का फैसला भारत ने किया है। इसके अलावा, सिलीगुड़ी से पूर्वी नेपाल में झापा तक और एक नई पाइपलाइन भी बिछाई जाएगी। साथ ही साथ चितवन और झापा में नए स्टोरेज टर्मिनल भी लगाए जाएंगे। यहां यह भी बताता चाहूंगा कि पड़ौसी नेपाल के साथ आपसी संबंधों को मजबूत करना हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकता में शामिल रहा है और इस बात का पता हमें इस बात से चलता है कि वर्ष 2014 में पदभार संभालने के 3 महीने के अंदर ही भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेपाल की पहली यात्रा की थी और उस वक्त पीएम मोदी ने भारत-नेपाल संबंधों के लिए ‘हिट’ फॉर्मूला दिया था- हाईवे, आई-वे और ट्रांस-वे‌। ऊपर आलेख में यह जानकारी पाठकों को पहले ही दे चुका हूं कि नेपाल के साथ भारत के पुराने मजबूत धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों के साथ ही सामाजिक संबंध तक रहे हैं। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बनने के बाद पुष्प कमल दहल प्रचंड की ये पहली विदेश यात्रा थी और जिस तरह से चीन के प्रति प्रचंड का सकारात्मक रवैया रहा है, उसको देखते हुए दिसंबर 2022 और इस साल की शुरुआत में ये कयास लगाए जा रहे थे कि प्रचंड अपनी पहली विदेश यात्रा पर शायद भारत की बजाय चीन को तवज्जो दें, लेकिन प्रचंड ने भारत आकर इन सभी अटकलों पर विराम लगा दिया है। नेपाल खाद्यान्न जरूरतों और ऊर्जा के लिए भारत पर आश्रित है और नेपाल, भारत का सबसे बड़ा कारोबार साझेदार रहा है। हालांकि हमारा दुश्मन पड़ौसी चीन पिछले कुछ समय से नेपाल में अपनी गतिविधियों को लगातार बढ़ाने में लगा है, चीन अपना आर्थिक दायरा बढ़ा रहा है, यहां तक कि नेपाल की राजनीति तक को प्रभावित करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। प्रचंड की यात्रा से निश्चित ही चीन को भी एक संदेश जरूर जाएगा कि भले ही कुछ समय पहले दोनों देशों के रिश्तों में थोड़ी कड़वाहट जरूर थी लेकिन छिटपुट विवाद के मुद्दों को आपसी सहमति,वार्ता/बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता है और अच्छे संबंध स्थापित किए जा सकते हैं।दोनों पक्षों द्वारा हाल ही में व्यापार, ट्रांजिट, निवेश, पनबिजली, बिजली व्यापार, सिंचाई, बिजली पारेषण लाइन, पेट्रोलियम पाइपलाइन के विस्तार, एकीकृत जांच चौकी और भूमि और हवाई संपर्क सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को और मजबूत करने के तरीकों पर जो विस्तार से चर्चा की गई है,वह आने वाले समय में निश्चित ही दोनों ही देशों के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी और दोनों ही देशों के रिश्तों हिमालय की ऊंचाइयों पर जायेंगे।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

सुनील कुमार महला

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