आपरेशन बटाला हाउस के शहीद इन्स्पेक्टर मोहनचन्द शर्मा

कलम आज उनकी जय बोल

विपिन किशोर सिन्हा

१९ सितंबर, २००८ को सवेरे दिल्ली पुलिस को यह खुफिया जानकारी मिली कि नई दिल्ली के जामिया नगर क्षेत्र की चार मंजिली इमारत बटाला हाउस में पांच खूंखार आतंकवादी भविष्य के वारदात की योजना बना रहे हैं। दिल्ली पुलिस के इन्सपेक्टर मोहनचन्द शर्मा ने अविलंब कार्यवाही का निर्णय लिया। अपने सात साथियों की जांबाज टीम के साथ वे बटाला हाउस के आतंकवादियों के ठिकाने पर पहुंच गए। दिन के साढ़े दस बजे उन्होंने आतंकवादियों को पकड़ने की कार्यवाही आरंभ की। लेकिन दूसरी ओर से जबर्दस्त फायरिंग शुरु हो गई। गोलीबारी की आड़ में आतंकवादियों ने भागने की कोशिश की। पुलिस की जवाबी कार्यवाही में अतीफ अमीन और मोहम्मद साज़िद, दो आतंकवादी मारे गए; मोहम्मद सैफ और जिशान, दो घायल अवस्था में पकड़े गए और एक आरिज़ खां भागने में कामयाब रहा। इनमें से अतीफ अहमद छ: दिन पहले हुए (दिनांक – १३-९-०८) दिल्ली के सिरियल बम धमाकों का, जिसमें ३० लोग मारे गए थे और सौ से ज्यादा घायल हुए थे, का नामजद मुजरिम था। इसके अतिरिक्त वह अहमदाबाद, जयपुर, सूरत और फैज़ाबाद के जघन्य बम-विस्फोटों का भी मुज़रिम था। उसके खिलाफ कई न्यायालयों में हत्या, षड्‌यंत्र और बम विस्फोटों के आपराधिक मामले चल रहे हैं। इस आपरेशन में बेशक दो आतंकवादी मारे गए लेकिन पुलिस और देश को इसकी महंगी कीमत चुकानी पड़ी। दिल्ली पुलिस के वीर इन्सपेक्टर मोहनचन्द शर्मा इस कार्यवाही में शहीद हो गए। ये वही मोहनचन्द शर्मा थे जिन्होंने अपनी अल्प काल की सेवा में सात वीरता पुरस्कार अपनी जांबाजी और कर्त्तव्यनिष्ठा के बल पर हासिल किए थे। मरणोपरान्त उन्हें २६ जनवरी, २००९ को गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर भारत के राष्ट्रपति ने शान्तिकाल के सर्वोच्च सैनिक सम्मान ‘अशोक चक्र’ से अलंकृत किया। लेकिन उस अमर शहीद, वीर शिरोमणि मोहनचन्द शर्मा की राष्ट्रयज्ञ में दी गई आहुति को दिग्विजय सिंह, राहुल गांधी, अमर सिंह, मुलायम सिंह यादव और कई धर्मनिरपेक्षवादियों ने फर्जी साबित करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। कई एन.जी.ओ. ने दिल्ली हाई कोर्ट में इसे फर्जी मुठभेड़ बताते हुए जांच के लिए याचिका दायर की। दिनांक २१ मई, २००९ को दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को घटना की जांच करने का आदेश दिया। मानवाधिकार आयोग ने अपनी ३० पेज की रिपोर्ट दिनांक २५-७-०९ को हाई कोर्ट में जमा कर दी। रिपोर्ट में किसी तरह के मानवाधिकार के उल्लंघन की बात स्वीकार नहीं की गई। आयोग ने दिल्ली पुलिस को भी ‘क्लीन चिट’ दी थी।

उत्तर प्रदेश के वर्तमान विधान सभा चुनाव में दिग्विजय, राहुल और मुलायम की तिकड़ी ने आपरेशन बटाला हाउस को फर्जी एनकाउंटर घोषित किया। कांग्रेसी नेताओं ने विवाद में सोनिया गांधी को घसीटते हुए बयान दिए कि बटाला हाउस के मृत आतंकवादियों की लाशों को देखकर श्रीमती गांधी की आंखों से आंसू टपकने लगे थे। मुस्लिम वोटों की चाह में ये नेता और पार्टियां किस कदर नीचे गिर सकती हैं, इसका प्रमाण है, इस कार्यवाही को विवादास्पद बनाने की साज़िश। यह न सिर्फ अमर शहीद इन्सपेक्टर मोहनचन्द शर्मा की राष्ट्र की बलिवेदी पर दी गई पुण्य आहुति का अपमान है, बल्कि भारत के राष्ट्रपति, अशोक चक्र और न्यायपालिका का भी अपमान है।

अमर शहीद, वीरशिरोमणि मोहनचन्द शर्मा! इस देश को तुम्हारी अत्यन्त आवश्यकता थी। अभी तुम्हारी उम्र ही कितनी थी! तुम्हारी विधवा पत्नी और तुम्हारे बच्चों की आंखों से अनवरत गिरते आंसुओं पर किसी नेता का ध्यान नहीं जाता। उन्हें वोट की लालच में आतंकवादियों के शवों पर आंसू बहाने से फुर्सत ही कहां मिल पा रही है? अफवाह फैलाई गई कि विभागीय प्रतिद्वंद्विता के कारण योजनाबद्ध ढ़ंग से तुम्हें तुम्हारे साथियों ने ही गोली मार दी थी। ‘अशोक चक्र’ पाने वाले महावीर! तुम्हारी हुतात्मा यह प्रश्न अवश्य करती होगी – क्यों न्योछावर कर दिए अपने प्राण, ऐसे कृतघ्न देशवासियों के लिए।

लेकिन नहीं वीर इन्सपेक्टर! तुमपर करोड़ों हिन्दुस्तानियों को गर्व है। भारत सरकार तुम्हें अशोक चक्र तो दे सकती है, लेकि मुस्लिम बहुल जामिया नगर में, जहां तुम शहीद हुए थे, तुम्हारा कोई स्मारक नहीं बना सकती, किसी रोड का नामकरण तुम्हारे नाम पर नहीं कर सकती। वोट कटने के डर से तुम्हारी पुण्यतिथि पर कोई समारोह भी नहीं कर सकती। परन्तु हमने अपने हृदयों में तुम्हारा स्मारक बनाया है। तुम्हारी मां जब भी तुम्हें याद करेंगी, उनकी आंखें नम होंगी, परन्तु उन नम आंखों में जो सबसे चमकता सितारा दूसरों को दिखेगा, वह तुम होगे। तुम्हारे पिता तुम्हें स्मरण कर भले ही चुपचाप आकाश को देखने लगें, लेकिन अपनी छाती को गर्व से उन्नत होने से नहीं रोक सकते। तुम्हारी पत्नी अभी भले ही अपनी आंखों से झरते अनगिनत मोतियों को रोक पाने में सफल न हों, किन्तु वही अपने पोते-पोतियों को तुम्हारी शौर्य-गाथा सुनाते समय अपनी आंखों में दिव्य ज्योति की चमक को नहीं रोक पाएंगी।

इन्सपेक्टर। तुमने अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया देश और समाज के लिए – उस संकट की घड़ी में, जो तुम्हारी सबसे कठिन परीक्षा की थी। तुमने अपने आदर्श, देशभक्ति और कर्त्तव्यनिष्ठा पर तनिक भी आंच नहीं आने दी। तुमने अपनी सामान्य ड्‌युटी से कई गुणा अधिक ड्‌युटी की है। हम हिन्दुस्तानी तुम्हें सदैव याद करेंगे – गर्व और सम्मान के साथ।

5 COMMENTS

  1. सबसे पहले तो आपको साधुवाद इस पठनीय और जानकारी लेख के लिए.
    शर्मा जी के बलिदान के बाद अमर सिंह और दिग्विजय सिंह के बयान सुने. और शर्म महसूस हुई कि अमर और दिग्गी जैसे लोग इस देश में नेता हैं. और उन्हें हम झेल रहे हैं. और मरते समय ये कोइ मंत्री रहे तो कोइ इमानदार पुलिस उनको सलामी भी देगा. वोट बैंक की राजनीति कितनी वीभत्स हो गयी है इस देश में. कल सलमान रश्दी ने भी दिल्ली में इंडिया टूडे कोंक्लेव में इस पर प्रकाश डाला था. नेता और मीडिया प्रो-सेकुलर होते-होते प्रो-जेहादी हो गए हैं. और महेशचंद्र शर्मा जैसे लोग भूला दिए जाते हैं.

  2. अमर शहीद श्री मोहन चंद शर्मा की शहादत को शत शत नमन ! लेखक ने देश की बलिवेदी पर कुर्बान होने वाले महान देश भक्त को सुनहरे शब्दों में श्रधांजलि दी हैं !

  3. विपिन जी आप का आलेख बहुत सुन्दर है. हमें गर्व है मोहन चंद शर्मा जैसे अफसर पर. परन्तु कुछ बातें इस विषय में और हैं जिन्हें आप नज़रंदाज़ कर रहे है. आप ने कभी उस इलाके का दौरा किया है जहाँ मुठभेर हुई थी. शायद नहीं? क्यों? क्या एक निष्पक्ष्य पत्रकार को ये शोभा देता है कि वो एक तरफ़ा बाते लिखे. में जानता हूँ कि आप का आलेख मोहन जी की शहादत पर है. परन्तु आप ने इस में यह भी ज़िक्र किया है की एक आतंकवादी भागने में कामयाब रहा. यदि आप लेख लिखने से पहले उस क्षेत्र का अवलोकन करते तो ये कभी नहीं लिखते बल्कि दूसरों की तरह आप भी यही सवाल उठाते की यहाँ से भागने का कोई रास्ता ही नहीं है फिर पुलिस ने कैसे कहा की एक आतंकवादी भाग गया है. मैं जामिया में कभी नहीं रहा. मैं आज भी लक्ष्मी नगर में ही रहता हूँ. परन्तु इस हादसे के बाद में वहां सच्चाई जानने गया था. मैं आप को कोई तस्वीर नहीं बताऊंगा बल्कि आप से कहूँगा कि एक बार आप उस हादसे वाली जगह को देख कर आइये. मुठ्भैर वाली साडी असलियत आप के सामने आ जाएगी. मेरी तरह.

  4. एक सच्चे देशभक्त को इससे बड़ी श्रधांजलि और क्या दे सकते हैं आज के राजनीतिज्ञ. तुष्टिकरण की निति पर चलने वाले को सिर्फ वोटों से मतलब है. मोहन चंद जैसो की अवर्णनीय कुर्बानियों से नहीं.

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