धार्मिक ‘कट्टरता’ के नाम पर राष्ट्रीय चिन्ह का ‘अपमान’ चिंताजनक

संतोष कुमार तिवारी 

देश में जिस तरह आज धर्म और जाति को लेकर लोगों में कट्टर बनने का प्रचलन बढ़ता जा रहा हैं, यह बेशक़ देश और आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत ही चिंताजनक हैं, क्योंकि  इस तरह के लोगों को न देश से कुछ लेना हैं और न परिवार से. उनको केवल अपनी कट्टर सोच के माध्यम से हिंसा और अराजकता फैलाने में ही आनन्द आता है। बड़े शर्म की बात यह भी हैं कि देश के कुछ नेता भी अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस तरह के कट्टर लोगों का समर्थन करने से बाज नहीं आते हैं जो कहीं न कहीं देश और समाज को बांटने में अहम भूमिका निभाता हैं। कट्टरता की जद में राष्ट्रीय प्रतीक और राष्ट्र की धरोहर जब आने लगे तो यह असहनीय हैं लेकिन कट्टर मानसिकता और सोच वाले अपने कुकृत्यों से देश की अस्मिता पर भी आघात करके अपनी गंदी सोच और मानसिकता को देश और दुनिया को दिखा देते हैं जिसका किसी भी तरह समर्थन करना गलत हैं।

 ऐसा ही एक ताज़ा मामला 5 सितम्बर को कश्मीर में स्थित हजरतबल में देखने को मिला जहां एक उन्मादी भीड़ ने धार्मिक कट्टरता के वशीभूत होकर बोर्ड पर लगे अशोक चिह्न से तोड़फोड़  किया जो यह पूरी तरह सिद्ध करता हैं कि राष्ट्रीय प्रतीकों के साथ तोड़फोड़ करने वाले किसी भी तरह से देश और कश्मीर के हितैषी नहीं हैं बल्कि इसमें शामिल होने वाले और इसका  समर्थन करने वाले भारत ही नहीं अपितु कश्मीर के भी दुश्मन हैं। लगता हैं कि कश्मीर के हजरतबल दरगाह में राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिह्न से तोड़ फोड़ करने वालों को ऑपरेशन सिंदूर के बाद कश्मीर में आई शांति रास नहीं आ रही है। 

 दरअसल प्रदेश के सीएम उमर अब्दुल्ला और पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती को राजनीति के लिए अशांत कश्मीर चाहिए और इसी क्रम में दोनों नेताओं ने अपनी राजनीतिक रोटी सेकते हुए इस राष्ट्र विरोधी कार्य का विरोध करने की जगह अपराधियों का बचाव करते दिखे क्‍योंकि इस विवाद में इससे बेहतर दलील नहीं हो सकती कि अशोक चिन्‍ह से मुसलमानों की धार्मिक भावना आहत होती है। 

 मालूम हो कि डल झील के किनारे स्थित हजरतबल दरगाह पैगंबर मोहम्मद के पवित्र बाल (रौ-ए-मुबारक) के लिए जानी जाती है। जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड ने सौंदर्यीकरण के बाद 3 सितंबर 2025 को एक शिलापट्ट लगाया था। इस पट्टिका पर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिह्न अंकित था, जिसका उद्घाटन वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष और बीजेपी नेता दाराख्शां अंद्राबी ने किया। 5 सितंबर को जुमे की नमाज के दौरान भीड़ ने इस शिलापट्ट पर पत्थरों से हमला कर अशोक चिह्न को क्षतिग्रस्त कर दिया। पुलिस  सीसीटीवी फुटेज के आधार पर कई लोगों को हिरासत में लेकर कार्यवाही में जुटी हैं लेकिन इस कार्य ने पूरे विश्व में एक अलग तरह का संदेश दे दिया कि भारत में धार्मिक कटटरता के आगे राष्ट्रवाद गौण हो गया हैं।

अब यहां सवाल पैदा होता हैं कि अशोक चिन्ह से आखिर क्यों भावना आहत हो रही हैं? भावना आहत होने के नाम पर देश के राष्ट्रीय चिन्ह के साथ तोड़फोड़ कैसी देशभक्ति हैं? आखिर देश के कुछ कट्टर विचारधारा और विकृत मानसिकता के लोग समय-समय प इस तरह की हरकत करके देश की अस्मिता, एकता और भाईचारा को खंडित करने का चक्रव्यूह क्यों रचते हैं? यदि अशोक चिन्ह से इतनी नफ़रत हैं तो तमाम लाभ की जगहों पर इस विचारधारा की धार कुंद कैसे हो जाती हैं? कट्टरपंथियों द्वारा समय समय पर देश में ऐसे कार्य किये जाते हैं जो सामन्य जीवन जीने वालों के लिए सर दर्द बन जाते हैं।

एक चिंता की बात और भी देखने को मिलती है कि जहां देश के बड़े-बड़े लोग ऐसे लोगों को मूक समर्थन देकर प्रोत्साहित करते हैं और यह मूक समर्थन ही देश के लिए किसी खतरे से कम नहीं हैं। देश की एकता, अखंडता, भाईचारा बनाये रखना सभी की महत्वपूर्ण भूमिका हैं। धर्म और जाति के नाम पर लोगों को बाटकर अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा को मजबूत करना पूरी तरह गलत हैं। 

संतोष कुमार तिवारी 

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