बुद्धिजीविता बनाम व्यक्ति निर्माण: संघ की दूरगामी दृष्टि

लेखक: शिवेश प्रताप

हाल ही में आजतक के साहित्यिक मंच पर पत्रकार राहुल देव और कवि नरेश सक्सेना ने एक गंभीर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, आरएसएस सौ साल से बौद्धिक कर रहा है, किंतु आज तक ऐसा कोई बुद्धिजीवी नहीं पैदा कर पाया, जिसका नाम संघ के बाहर कोई जानता हो।” यह सवाल जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही विचारणीय भी। ऐसा कह इस कवि-पत्रकार द्वय ने अपने वैचारिक दिवालियेपन से समाज का परिचय कराया और यह बताया की ये बेचारे संघ की रीति और नीति से कितने अनभिज्ञ हैं। इन्हें यह समझना चाहिए की वामपंथ की तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ख़ालिस बुद्धिजीवी पैदा करने की फैक्ट्री नहीं है। संघ का उद्देश्य वास्तविक चरित्र-व्यक्ति निर्माण है, न कि बुद्धिजीविता से कुण्ठित भीड़ का सृजन।

संघ न तो व्यक्ति को केवल बुद्धि आधारित जीवन जीने की शिक्षा देता है और न ही ऐसी किसी प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है। अपनी प्रार्थना में संघ का स्वयंसेवक सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत् कहकर ऐसा शुद्ध शील-चारित्र्य मांगता है जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाये। संघ का उद्देश्य बुद्धि को बढ़ावा देना नहीं है, संघ विचार को बढ़ावा देता है। “विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर् कहकर हम विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति के द्वारा परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं यानि राष्ट्र के वैभव को उच्चतम शिखर पर पहुँचाने का सामर्थ्य मांगते हैं। संघ का हर कार्य आत्मभाव, समर्पण और त्याग पर आधारित है। संघ व्यक्ति निर्माण और चरित्र निर्माण का मंच है। इसका लक्ष्य हर स्वयंसेवक को भारत माता की सेवा के लिए तैयार करना है। संघ के लिए बुद्धिजीविता साध्य नहीं है, बल्कि यह समाज और राष्ट्रहित में कार्य करने वाले व्यक्तियों को तैयार करने का माध्यम है।

आज के समाज में बुद्धिजीविता को एक शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन यह समझना आवश्यक है कि बुद्धिजीविता केवल क्षणिक परिवर्तन ला सकती है। इसके विपरीत, व्यक्ति निर्माण का प्रभाव दीर्घकालिक और समाज के हर क्षेत्र में सकारात्मक होता है। संघ बुद्धिजीविता की अल्पकालिक चमक के बजाय व्यक्ति निर्माण के दीर्घकालिक प्रभाव में विश्वास रखता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) इसी व्यक्ति निर्माण की दिशा में पिछले सौ वर्षों से कार्य कर रहा है।

पूर्व राज्यपाल आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री जी कहा करते थे की बुद्धिजीवी का अर्थ है ऐसा व्यक्ति जो अपनी बुद्धि के आधार पर जीविका चलाता हो। जब बुद्धि के आधार पर जीविका चलाने को महिमामंडित किया गया, तब समाज में कई गंभीर समस्याएं उत्पन्न हुईं। बीते दशकों में यह सत्य भी होता दिखाई दिया है, डॉक्टरों ने मरीजों को केवल पैसा कमाने का साधन मान लिया, शिक्षकों ने कक्षाओं से गायब होकर “अर्बन नक्सल” बनने का रास्ता चुना और छात्रों ने “टुकड़े-टुकड़े गैंग” बनाकर समाज में विघटनकारी गतिविधियों को बढ़ावा दिया। वामपंथी बुद्धिजीविता ने समाज को हिंसा, विभाजन और अशांति के अलावा कुछ नहीं दिया। यह बुद्धिजीविता पूंजीवादी नेक्सस का हिस्सा बनकर समाज को खोखला करती है। वामपंथ ने श्रमिकों को “बुद्धिजीवी” बनने का सपना दिखाया, लेकिन इसके परिणामस्वरूप कलकत्ता से कानपुर तक औद्योगिक संयंत्र बंद हो गए। श्रमजीवी लोगों को दाने-दाने का मोहताज कर दिया। इस विचारधारा ने परिवार और सामाजिक मूल्यों को कमजोर किया और देशभक्ति व सांस्कृतिक चेतना पर भी आघात किया।

राहुल देव और नरेश सक्सेना को याद दिलाना चाहता हूं कि आज वह जिस बुद्धिजीविता का महिमा मंडन कर रहे हैं इस वामपंथी बुद्धिजीविता के राजनैतिक गढ़ त्रिपुरा को कुछ वर्ष पहले संघ के चार समर्पित स्वयंसेवकों श्री श्यामलकांति सेनगुप्ता, श्री दीनेंद्र डे, श्री सुधामय दत्त तथा श्री शुभंकर चक्रवर्ती ने अपने प्राणोत्सर्ग से उखाड़ फेंका। इन चारों को अपहरण 6 अगस्त 1999 को त्रिपुरा के कंचनपुर के वनवासी कल्याण आश्रम के छात्रावास से हुआ था और बाद में उनकी हत्या कर दी गई थी। आपकी सोने की बनी बुद्धिजीवी लंका को व्यक्तिनिर्माण की पूंछ ही जलाकर भस्म करती है। त्रिपुरा ने व्यक्ति निर्माण से आपकी बुद्धिजीविता को उत्तर दिया, आगे और भी नाम जुड़ेंगे।

वामपंथी और पूंजीवादी नेक्सस आज इतना मजबूत हो चुका है कि पूरी दुनिया इसके प्रभाव में है। राष्ट्र की संकल्पना में बुरु तरह विफल वामपंथी बुद्धिजीविता ने अब अपना रूप बदल समाज में भ्रम फैलाकर परिजीवी के रूप में पूंजीवाद को प्रश्रय दे रहा है। अमेरिका से भारत तक बुद्धिजीविता ने पूंजीवाद की दासी बनकर राजनीति और समाज में अपनी जगह बनाई। भारत से लेकर अमेरिका तक राष्ट्रभाव का उत्थान इन परिजीवियों के लिए संकट के रूप में खड़ा हुआ है इसलिए ये इतने बेचैन हैं।

राहुल देव और नरेश सक्सेना का यह सवाल कि “संघ ने कोई बुद्धिजीवी क्यों नहीं पैदा किया?” उचित है और इस तरह से वामपंथी गिरोह के हरावल दस्ते के दो बेरोजगार सेनापति आज जब अपने पुराने बुद्धिजीवी अखाड़े में संघ को ललकार रहे हैं तो यह नास्टैल्जिया उनकी बेचारगी को प्रगट कर रहा है। राहुल देव और नरेश सक्सेना जी काश आप इस विषय पर भी विचार करते की जिस देश को तोड़ने के लिए आने वैचारिक पूर्वज लगे रहे और पाकिस्तान बनवाया तो उस पाकिस्तान में आपका बुद्धिजीवी अवशेष क्यों नहीं मिलता?

पुनः एक बार कहना चाहूँगा संघ बुद्धिजीवी पैदा करने का मंच नहीं है। यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक यज्ञ है जिसमें सौ वर्षों से अनगिनत प्रचारकों, स्वयंसेवकों नें “मैं नहीं, तू ही” कह-कह कर स्व जीवन की आहुति दे दिया है। संघ का उद्देश्य व्यक्ति को राष्ट्रहित में कार्य करने के लिए तैयार करना है। संघ के चरित्रबल और कार्यों ने यह सिद्ध किया है कि समाज का उत्थान बुद्धिजीविता से नहीं, बल्कि नैतिकता और त्याग से होता है। वामपंथी बुद्धिजीविता जहां समाज में विभाजन और अशांति का कारण बनी है, वहीं संघ ने अपने सौ वर्षों के साधना से शांति, समरसता और राष्ट्रभक्ति का दीप जलाया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,862 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress