इस्लामी नहीं बल्कि शैतानी साम्राज्य स्थापित करने की कोशिश

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-तनवीर जाफ़री-
iraq

इराक़ व सीरिया में आतंक का अब तक का सबसे बड़ा इतिहास लिखने वाले आतंकी संगठन आईएसआईएस अर्थात् इस्लामिक स्टेट इन इराक़ और अल शाम ने इन दिनों पूरी दुनिया का ध्याान अपने आतंकी कारनामों तथा नापाक राजनैतिक मंसूबों के कारण अपनी ओर आकर्षित किया है। सीरिया से लेकर इराक़ तक अब तक हज़ारों बेगुनाह मुसलमानों की बेरहमी से हत्या करने वाले इस संगठन को दाईश के नाम से भी जाना जा रहा है। इस संगठन का मुखिया इराक़ी नागरिक अबु बकर अल बग़दादी है। वैसे तो इस संगठन को सुन्नी मुसलमानों के संगठन के नाम से प्रचारित किया जा रहा है। परंतु दरअसल ऐसा नहीं है। ग़ौरतलब है कि इस्लाम धर्म इस समय लगभग 73 वर्गों में बंटा हुआ है। इन्हीं में एक वर्ग या फ़िरक़े का नाम है सलफ़ी अथवा वहाबी वर्ग। इस समय इराक़ व सीरिया में ख़ून की होली खेल रहे व दुनिया में तथाकथित इस्लामी साम्राज्य स्थापित करने का सपना देखने वाले इस संगठन के लोगों का संबंध इसी वहाबी वर्ग से है। लगभग 13 हज़ार लड़ाकों के इस संगठन में अधिकांश सदस्य अलक़ायदा से ही संबद्ध रहे हैं।

बग़दादी जोकि न केवल आईएसआईएस का मुखिया है बल्कि उसे उसके समर्थकों द्वारा नवगठित तथाकथित इस्लामी राज्य का ख़लीफ़ा भी घोषित किया जा चुका है। वह अलक़ायदा में एमन-अल-जवाहिरी के बराबर की हैसियत रखने वाला कमांडर था तथा 2003 तक इराक़ की एक मस्जिद में मौलवी था। उस के पश्चात इराक़ में हुए अमेरिकी सैन्य हस्ताक्षेप के बाद वह एक लड़ाके के रूप में खुलकर अलकायदा में शामिल हो गया। इसने अलक़ायदा में अपना अलग गुट भी बनाना शुरू कर दिया। स्वयं को एक मज़बूत कमांडर के रूप में स्थापित करने के बाद इसने सीरिया के चरमपंथी संगठन अल नसरा से हाथ मिलाने का प्रयास किया था। जबकि एमन-अल-जवाहिरी बग़दादी की इस कोशिश के खि़लाफ़ था। जवाहिरी का मत था कि सीरिया के हालात से निपटने का काम अलनसरा पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए। जबकि बग़दादी सीरिया से लेकर इराक़ तक के कथित इस्लामी साम्राज्य का सपना उसी समय देखने लगा था। बग़दादी, अबुदुआ, डॉक्टर इब्राहिम अवाद तथा इब्राहिम अलीअल बद्री अल समाराई जैसे अनेक नामों से अपनी पहचान बनाने वाले बग़दादी ने इराक से अमेरिकी सेना के पैर उखाडऩे में अपनी अहम भूमिका निभाई। वह ओसामा बिन लाडेन व एमन अल जावाहिरी की तरह गुफाओं या बंकरों में छुपकर अपने किसी दुश्मन से मुक़ाबला करने पर विश्वास नहीं करता है बल्कि स्वयं मोर्चे पर मौजूद रहकर युद्ध की रणनीति तैयार करता है तथा हमलों को संचालित करता है। बगदादी के इसी दु:स्साहसी व आक्रामक रवैये के चलते अमेरिका ने 2011 में उसे आतंकी घोषित कर दिया था तथा उसे जि़ंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए एक करोड़ डॉलर का इनाम घोषित किया था।

दुर्भाग्यवश यही बग़दादी अब स्वयंभू रूप से तथाकथित इस्लामी राज्य का ख़लीफा घोषित कर दिया गया है। इसके समर्थक दुनिया को गुमराह करने के लिए इसे सुन्नी मुसलमान तथा इसके स्वयंभू इस्लामी राज्य को मुस्लिम सुन्नी राज्य के नाम से प्रचारित कर रहे हैं। जबकि वास्तव में बग़दादी व इसके संगठन से जुड़े सभी लड़ाके केवल वहाबी विचारधारा के हैं जोकि 100 वर्ष पूर्व समाप्त हो चुके आटोमन साम्राज्य के दौर-ए-ख़िलाफ़त को पुन: क़ायम करने की कोशिश कर रहे हैं। इस्लाम धर्म में सबसे पवित्र माना जाने वाला रमज़ान का महीना शुद्ध रूप से इबादत व पवित्रता का महीना माना जाता है। इस पवित्र महीने के दौरान आम मुसलमान किसी को दु:ख-तकलीफ़ देने,ख़ून खऱाबे में शामिल होने तथा अपवित्रता से परहेज़ करता है। परंतु आईएसआईएस का सरगना वहाबी बग़दादी अपने क़त्लोग़ारत को सही ठहराते हुए यह शैतानी संदेश दे रहा है कि ‘पवित्र महीने रमज़ान में अल्लाह के रास्ते पर जेहाद से बेहतर कोई और काम नहीं है’। अर्थात् छोटे-छोटे बच्चों को बेरहमी से क़त्ल करना, मुस्लिम व ईसाई धर्मस्थलों को ध्वस्त करना, दूसरों की आस्था व विश्वास को ठेस पहुंचाना तथा अपने खूंखार व कट्टरपंथी विचारों को बंदूक़ की नोक पर दूसरों पर जबरन थोपे जाने को यह शैतान इबादत व जेहाद बता रहा है। इस राक्षस के तथाकथित जेहाद के चलते अब तक इराक़ में हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं तथा लाखों इराक़ी बेघर हो चुके हैं। विश्लेषकों का मानना है कि आईएसआईएस ने क्रूरता व आतंक के क्षेत्र में अलक़ायदा को भी बहुत पीछे छोड़ दिया है। और अब यह संगठन केवल सीरिया या इराक़ के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा ख़तरा साबित हो रहा है। हालांकि अल बग़दादी भी अलक़ायदा प्रमुख ओसामा बिन लाडेन के इस्लामी साम्राज्य स्थापित करने के सपनों को ही पूरा करने में लगा है। परंतु उसने स्वयं को महज़ ख़लीफ़ा घोषित करने के चलते अलक़ायदा को विभाजित किया, सीरिया में घुसपैठ कर अपनी शक्ति का विस्तार किया तथा अचानक कथित इस्लामी राज्य की घोषणा भी कर डाली।

बहरहाल, उत्तरी सीरिया में अलेपको से लेकर पूर्वी इराक़ के दियला तक अपने तथाकथित इस्लामी साम्राज्य की घोषणा करने वाले बग़दादी व उसके संगठन की समाप्ति के दिन अब क़रीब आ चुके हैं। पूरी दुनिया का मुसलमान इनकी शैतानी हरकतों, शैतानी विचारों तथा राक्षसी कारनामों से दु:खी हो चुका है। बग़दादी के लोग विश्व के मुसलमानों से अपने स्वयंभू ख़लीफ़ा के प्रति वफ़ादारी दिखाने का आदेश जारी कर रहे हैं। और जो भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी वर्ग का क्यों न हो इसे अपना ख़लीफ़ा मानने से इंकार कर रहा है उसे या तो गोलियों से भून दिया जाता है या फिर उसे फांसी के फंदे पर लटकाया जा रहा है। इस संगठन ने इराक़ में अब तक सैकड़ों ऐसे सुन्नी धर्मगुरुओं का क़त्ल करवा दिया जिन्होंने दाईश के काले झंडों को अपनी मस्जिदों पर लगाने से इंकार कर दिया था। वहाबी वर्ग वैचारिक रूप से किसी दरगाह, मजार, रौज़ा, मक़बरा, इमामबारगाह, पीर-फ़क़ीर आदि को नहीं मानता। और इन्होंने अपने इन ज़हरीले विचारों को कार्यानिवत करते हुए गत् एक माह के भीतर इराक़ में सुन्नियों, शिया तथा ईसाइयों की अनेक इबादगाहों को बेरहमी के साथ ध्वस्त कर दिया। उत्तरी इराक़ में ख़ासतौर पर इन्होंने कई मस्जिदों, दरगाहों व मक़बरों को विस्फोट से उड़ा दिया। मौसूल शहर में शिया समुदाय की आस्था का केंद्र रही दरगाह अल-बुका-हुसैनिया को विस्फ़ोट कर उड़ाया गया। मौसूल में सुन्नियों की आस्था का प्रमुख केंद्र समझे जानेवाले ‘लड़की के मक़बरे’ को बुलडोज़र चलाकर शहीद कर दिया गया। ताल अफ़ार में साद बिन अक़ील हुसैनिया के मक़बरे को विस्फोट से तहस-नहस कर दिया गया। ताल अफार के समीप महलाबिया जि़ले में अहमदअल रिफ़ाई की दरगाह पर बुलडोज़र चला दिया गया। मौसूल में कई चर्चों को भी विस्फ़ोट अथवा बुलडोज़र चलाकर ध्वस्त कर दिया गया। गोया कि प्रत्येक वह धर्मस्थल जो इनकी नज़रों में इस्लामी शिक्षा के विरुद्ध है चाहे वह किसी भी धर्म अथवा वर्ग के विश्वास का केंद्र क्यों न हो उन्हें यह वहाबी कट्टरपंथी ध्वस्त करते जा रहे हैं।

इनके इसी वहशियाना आचरण से दु:खी होकर पूरे विश्व में आईएसआईएस के विरुद्ध संघर्ष करने हेतु मुस्लिमों की भर्ती किए जाने के समाचार हैं। इराक़ व सीरिया के कई सुन्नी चरमपंथी गुट भी अब इन्हें चुनौती देने लगे हैं। शिया-सुन्नी संघर्ष के नाम पर दाईश ने इराक़ के जिन सुन्नियों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की थी वे भी अब यह समझ चुके हैं कि दाईश का इरादा इस्लामी या सुन्नी साम्राज्य नहीं बल्कि आतंक का वहाबी साम्राज्य स्थापित करने का है। और इसी वजह से अब इराक़ी सुन्नियों ने दाईश के विरुद्ध बग़ावत करने का ऐलान कर दिया है। इनके विरुद्ध इरा$क में हो रही सैन्य कार्रवाई में इराक़ की सुन्नी इराक़ की सेना का खुलकर साथ दे रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि इराक़ के सुन्नी धर्मगुरुओं ने न सिर्फ़ वहाबी संगठन के विरुद्ध फ़तवा जारी किया है बल्कि इसके विरुद्ध जेहाद किए जाने की घोषणा भी कर दी है। इराक़ सहित पूरे विश्व के अनेक मुस्लिम धर्मगुरु बग़दादी के स्वयंभू ख़लीफ़ा बनने के दुष्प्रचार को झूठा, मक्कारी भर तथा शैतानी प्रचार बता रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि बग़दादी के विरुद्ध उठने वाले स्वर में इसे अमेरिका व इज़रायल का एजेंट बताया जा रहा है। इराक़ में इसके आतंक व बर्बरता से दु:खी शिया-सुन्नी क़बायली तथा कुर्द सभी इसके ख़िलाफ़ होकर जगह-जगह जनसभाएं कर इसका विरोध कर रहे हैं। तथा इसे इस्लामी नहीं बल्कि आतंकी संगठन बता रहे हैं। इराक़ के सुन्नी आलिमों ने सामूहिक रूप से यहां तक कहा है कि इनके विरुद्ध जेहाद करना इराक़ के सुन्नियों पर लाज़िम (अतिआवयक) है। इन धर्मगुरुओं ने इराक़ के सुन्नी युवाओं से आईएसआईएस के विरुद्ध सीधी कार्रवाई करने तथा इन्हें इराक़ की धरती से खदेड़ने व इनका सफ़ाया करने का आह्वान किया है।

वैसे तो ईरान यदि इनके विरुद्ध खुलकर सैन्य कार्रवाई करे तो मात्र चंद घंटों के भीतर ही आईएसआईएस का वजूद समाप्त हो सकता है। परंतु ईरान इराक़ में कोई बड़ी व सीधी कार्रवाई करने से कतरा रहा है। इसके बावजूद अमेरिका, ईरान द्वारा इराक़ को दी जा रही सहायता तथा रूस द्वारा उपलब्ध कराए गए लड़ाकू विमानों के हमलों से इन आतंकियों को भारी नुकसान पहुंचाया गया है। आशा है कि शीघ्र ही इराक़ व सीरिया पर छाए आतंक के इस बादल का जल्द ही सफ़ाया हो जाएगा और इस्लाम के यह स्वयंभू शैतानी ठेकेदार जल्द ही अपनी सही मंजि़ल यानी जहन्नुम में पहुंचा दिए जाएंगे।

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