अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में लोहा मनवा रहा इसरो !

हाल ही में 14 जुलाई का दिन इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने चंद्रयान- 3 को सफलतापूर्वक लांच कर दिया। इसरो के सभी वैज्ञानिकों को इसके लिए सर्वप्रथम हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। जानकारी देना चाहूंगा कि शुक्रवार की दोपहर यानी कि 14 जुलाई 2023 को 2 बजकर 35 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन सेंटर से इस मिशन के तहत चंद्रयान -3 को लांच कर दिया गया। भारत ऐसा देश है जिसने बहुत कम लागत और बहुत कम समय में यह कर दिखाया है कि उसके अंतरिक्ष कार्यक्रम किसी भी विकसित देश से कतई कमतर नहीं हैं। वास्तव में, दुनिया के जिन भी देशों ने अब तक चंद्रमा पर जो भी अन्वेषण कार्य किया है, वे अब तक उस तरह की उपलब्धि हासिल नहीं कर पाए हैं जो चंद्रयान अभियानों के दौरान भारत ने अर्जित की है। यह हमें गौरवान्वित करता है। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि इस अंतरिक्ष अभियान के तहत यानी 41 दिन की अपनी यात्रा में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर एक बार फिर इसरो मिशन के तहत चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का प्रयास करेगा ,जहां अभी तक दुनिया का कोई भी देश नहीं पहुंच पाया है। यहां पाठकों को यह जानना बहुत ही महत्वपूर्ण और जरूरी है कि भारत ऐसा देश रहा है जिसने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शुरुआत साईकिल जैसी छोटी चीज का इस्तेमाल करते हुए अपनी अंतरिक्ष यात्रा अन्य देशों की तुलना में बहुत बाद में शुरू की थी, लेकिन बावजूद इसके भारत ने दुनिया को यह दिखा दिया है कि अंतरिक्ष कार्यक्रमों के मामलों में उसका कोई सानी और प्रतिस्पर्धी नहीं है। भारत ने बहुत ही कम समय में उन लक्ष्यों और उद्देश्यों को हासिल करने में सफलता पाई है जो दुनिया के विकसित देशों के लिए एक टेढ़ी खीर है। दुनिया के बड़े और विकसित देशों अमेरिका,रूस, जर्मनी, फ्रांस, जापान,चीन ने भी अब तक चांद के मामले में वे उपलब्धियां हासिल नहीं की हैं जो भारत ने हासिल की हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि चंद्रयान -2 मिशन एक अत्यधिक जटिल मिशन था, जिसने इसरो के अंतरिक्ष क्षेत्र में पिछले मिशनों की तुलना में एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण तकनीकी छलांग का प्रतिनिधित्व किया। इसमें चंद्रमा के  दक्षिणी ध्रुव का पता लगाने के लिए एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल थे। मिशन को स्थलाकृति, भूकंप विज्ञान, खनिज पहचान और वितरण, सतह रासायनिक संरचना, शीर्ष मिट्टी की थर्मो-भौतिक विशेषताओं और कमजोर चंद्र वातावरण की संरचना के विस्तृत अध्ययन के माध्यम से चंद्र वैज्ञानिक ज्ञान का विस्तार करने के लिए डिज़ाइन किया गया था लेकिन इसमें थोड़ी खामी रह गई थी, बावजूद इसके इस मिशन की दुनिया के बड़े देशों द्वारा भूरी भूरी प्रशंसा की गई थी। वर्तमान में चंद्रयान-3 मिशन के तहत उन प्रयोगों का विस्तार किया गया है, जो भविष्य में चंद्रमा पर मानव जीवन की संभावना का संकेत देते हैं। उल्लेखनीय है कि 15 अगस्त, 2003 वह दिन है  जब हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा चंद्रयान मिशन की औपचारिक रूप से घोषणा की गई थी। वास्तव में, चंद्रयान-3 भारत का तीसरा ‘मून मिशन’ है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि चंद्रयान-2 की तरह ही चंद्रयान-3 का मकसद भी चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है। दक्षिणी ध्रुव वो स्थान है जहां पर आज तक दुनिया का कोई भी देश नहीं पहुंच सका है। अब पाठकों के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि आखिर चांद पर लैंडिंग में दक्षिणी ध्रुव का चुनाव ही क्यों किया गया है ? तो इसका उत्तर सीधा सा है। दरअसल, कुछ अंतरिक्ष विज्ञानियों का यह मानना ​​​​है कि दक्षिणी ध्रुव पर पानी की बर्फ अधिक है, जो मूल्यवान संसाधन है‌। साथ ही यहां लैंडिंग में आसानी भी रहती है। वहीं, कुछ वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि चांद का दक्षिणी ध्रुव सौर ऊर्जा, भौतिक संसाधनों के मामले में उत्तरी ध्रुव से कहीं अधिक बेहतर है। पाठकों को यह जानना चाहिए कि दक्षिणी ध्रुव चांद का ऊंचे पहाड़ों और गड्ढों से भरा काफी अंधेरे वाला इलाका है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि हमेशा ठंडी रहने वाली चांद की इस क्षेत्र की उपसतह पर पानी और बर्फ मिल सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद का दक्षिणी ध्रुव ऐटकेन बेसिन में है। यह एक विशाल गड्ढा है। यही जगह दक्षिणी ध्रुव को भौगोलिक रूप से काफी पसंदीदा बनाता है। उम्मीद है कि सतह या उसके पास चंद्रमा की गहरी परत और ऊपरी मेटल हो। कुल मिलाकर दक्षिणी ध्रुव में स्थायी छाया और ठंडे तापमान वाला इलाका काफी ज्यादा है, इसलिए माना जाता है कि वहां पानी की संभावना ज्यादा है।हालांकि चांद के दोनों ध्रुवों के बीच अंतर कुछ खास नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद के दोनों ध्रुव पर ऐसी जगहें हैं, जहां हमेशा धूप खिली रहती है। चंद्रमा पर सूर्य की रोशनी पहुंचती है और सूर्य से प्रकाशित टॉप 20 जगहों में सात उत्तरी ध्रुव के पास हैं। दक्षिणी ध्रुव के मुकाबले उत्तरी ध्रुव पर सूर्य का प्रकाश ज्यादा समय तक रहता है।यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 1990 के दशक में कई मून मिशन भी दक्षिणी ध्रुव पर ही फोकस्ड थे। इसी वजह से आगे के चंद्रमा पर भेजे जाने वाले मिशन में दक्षिणी ध्रुव को तरजीह दी जाने लगी।यहां पाठकों को यह भी बता दूं कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका और चीन समेत दुनिया की नजरें भी हैं। चीन ने कुछ साल पहले दक्षिणी ध्रुव से कुछ दूरी पर अपने एक लैंडर को उतारा था। इतना ही नहीं, अमेरिका तो जल्द ही चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की तैयारी भी कर रहा है। हाल फिलहाल चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च कर दिया गया है, लेकिन इसे चांद तक पहुंचने में डेढ़ महीने का समय लगेगा। अनुमान है कि 23 या 24 अगस्त को चंद्रयान-3 चांद की सतह पर लैंड कर सकता है।अगर चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर वहां सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग कर लेता है तो ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन जाएगा। इतना ही नहीं, चांद की सतह पर लैंडर उतारने वाला चौथा देश बन जाएगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि चांद की सतह पर अब तक अमरीका, रूस और चीन जैसे देश ही पहुंच चुके हैं। सितंबर 2019 में इसरो ने चंद्रयान-2 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने की कोशिश की थी, लेकिन तब लैंडर की हार्ड लैंडिंग हो गई थी।  वर्तमान मिशन में इसरो के वैज्ञानिकों ने मिशन में काफी सुधार करते हुए चंद्रयान 3 में कई तरह के बदलाव किए गए हैं। हालांकि चंद्रमा का साउथ पोल का कुछ एरिया लगातार अंधेरे की आगोश में रहता है, क्योंकि वहां सूरज की रोशनी बिल्कुल ही नहीं पहुंचती है और यही कारण भी है कि वहां पर तापमान शून्य से 235 डिग्री तक नीचे रहता है। इतने कम तापमान में न सिर्फ किसी मशीन का काम करना भी काफी मुश्किल होता है बल्कि चंद्रमा के साउथ पोल पर तमाम क्रेटर्स के होने की वजह से भी लैंडिंग करना काफी मुश्किल है। यहां अपने पाठकों को यह भी बता दूं कि अब तक जो भी मिशन चांद पर भेजे गए हैं वे खासतौर पर इक्वेटर या विषुवत रेखा (चंद्रमा के बीचों-बीच से गुज़रने वाली और उसे उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव में बांटने वाली आभासी रेखा) पर या उसके आस-पास के एरिया तक ही पहुंचे हैं। अब तक इक्वेटर से सर्वाधिक दक्षिण में 40 डिग्री अक्षांश तक नासा द्वारा सर्वेयर-7 को भेजा गया है।चीन का चांग-4 भी 45 डिग्री अक्षांश पर चंद्रमा के फार रीजन (जो पृथ्वी से कभी नहीं दिखता) में उतरा था।अमरीकी स्पेस एजेंसी नासा ने एक रिपोर्ट में बताया था कि ऑर्बिटरों से परीक्षणों के आधार पर कहा जा सकता है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ है और यहां दूसरे प्राकृतिक संसाधन भी हो सकते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष  1998 में नासा के एक मून मिशन ने दक्षिणी ध्रुव पर हाइड्रोजन की मौजूदगी का पता लगाया था। नासा का कहना है कि हाइड्रोजन की मौजूदगी वहां बर्फ होने का सबूत देती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि है, जिस पर गर्व किया जा सकता है। चंद्रयान- 3 की लांचिंग से भारत का कद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यकायक बढ़ गया है।आज दुनिया के विकसित देश भी यह मानने लगे हैं कि भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रहा है और जल्द ही यह दुनिया के विकसित देशों को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में पीछे छोड़ देगा।

सुनील कुमार महला

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