विमल कुमार सिंह
एक समय था जब ईसाइयत और इस्लाम ने प्रलय मचाती सेनाओं का सहारा लेते हुए दुनिया के एक बड़े हिस्से में अपने मत का प्रचार-प्रसार किया। किंतु आज के बदले हुए माहौल में जब ताकत के बल पर अपने मतावलंबियों की संख्या बढ़ाना संभव नहीं रहा, तब इन दोनों मतों ने अपनी रणनीति में भी बदलाव किया है।
ईसाइयत के पैरोकार जहां सेवा का चोंगा ओढ़कर दूसरे पंथों के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का मतांतरण करने में लगे हैं, वहीं इस्लामी नेतृत्व ने अपनी जनसंख्या वृद्धि को ही हथियार बना लिया है। पड़ोसी देश बांग्लादेश से हो रही नियोजित घुसपैठ इसी हथियार का एक नमूना है।
संख्याबल में अपने को सर्वोपरि और दूसरे को मिटा देने की यह विधर्मी मानसिकता आज भारत में पूरे जोर-शोर से काम कर रही है। भारतीय मतावलंबियों का मतांतरण, बांग्लादेशी घुसपैठ और भारतीय मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि की असामान्य दर के कारण देश के कई हिस्सों में भारतीय मतावलंबी अल्पमत में आ चुके हैं। वोटबैंक की मानसिकता में जकड़ा हुआ देश का राजनैतिक नेतृत्व इस समस्या की गंभीरता को समझने और उसका निदान ढूंढने के लिए आवश्यक कदम उठाने को तैयार नहीं है। बड़ी संख्या में देश का बुद्धिजीवी वर्ग भी जनसंख्या असंतुलन के इस खतरे के विकराल स्वरूप को नहीं देख पा रहा है।
ऐसी स्थिति में समस्या का समाधान ढूंढने के लिए जनसामान्य को ही आगे आना होगा। भारतीय मूल के सभी मतावलंबियों को चाहिए कि वे आपस में मिलकर सरकार पर दबाव डालें कि वह बांग्लादेशी घुसपैठ को रोकने के लिए सरकारी तंत्र को सक्रिय करे और साथ ही ऐसी स्थितियां निर्मित करे जिसमें बिना कोई भेदभाव किए सभी नागरिकों को असामान्य रूप से जनसंख्या बढ़ाने के लिए हतोत्साहित किया जाए।
सेवा की आड़ में हो रहा मतांतरण एक ऐसी समस्या है जिसका उपाय केवल सरकार के पास नहीं है। इसे रोकने में समाज की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है। भारतीय मूल के पंथों एवं संप्रदायों का कर्तव्य बनता है कि वे अपने समाज के पिछड़े वर्ग को सम्मान दें और उसके आर्थिक उन्नयन में हाथ बंटाएं। अपनों की ओर से सम्मान के साथ मदद में उठा एक छोटा सा कदम भी सेवा की आड़ में हो रहे मतांतरण को रोकने की ताकत रखता है।
यदि सरकार और समाज दोनों की ओर से जनसंख्या असंतुलन के इस खतरे से निपटने का गंभीर प्रयास नहीं किया गया तो स्थिति कभी भी विस्फोटक एवं नियंत्रण के बाहर हो सकती है। सहिष्णुता एवं सहअस्तित्व की बातें केवल भारतीय मूल के संप्रदाय करते हैं, दूसरे नहीं। इसे समझने के लिए दूर जाने की जरुरत नहीं। अपने ही देश में कश्मीर घाटी और मिजोरम में भारतीय मतावलंबियों के साथ जो हुआ, वह आने वाले खतरे को बयान करने में सक्षम है।
चौखट के बाहर से ही इस समस्या का समाधान संभव है। जनतंत्र और वोट बॅन्क की चौखट से बाहर गए बिना, इस समस्या को देखा परखा, सुलझाया, नहीं जा सकता। क्षेत्रीय आपात्काल घोषित करना, ऐसी समस्याओं के लिए राष्ट्र धर्म माना जा सकता है। कश्मीर के हिन्दुओं के हित में ऐसा निश्चित न्याय्य ही ठहरेगा। अन्याय का निराकरण करना न्याय्य ही समझा जाएगा।
जैसे कोई ग्रहस्थ अपने ही बालकों पर घोर अत्याचार करता हो, तो पुलिस भी उसके घरमें घुसकर न्याय प्रस्थापित करना अपना कर्तव्य ही समझती है। दृढ (पॉलिटिकल विल) ईच्छा शक्ति चाहिए।
था एक लाल, वल्लभ, मां का॥———
ऐसा है, और, क्या कोई बाँका?॥ ——-
बस एक नरेन्द्र दिखाई देता है। तब तक अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते रहो।
देश की किसे परवाह है. इस देश की जनता को कांग्रेस एंड लेफ्ट ने भोगी बना दिया है. देश के लिए सोचने वाले बहुत कम है. और करने वाले उससे भी कम.
प्रिय बंधू आपका लेख पढने में तो बहुत अच्छा लगा लेकिन यह हमारी गंगा-जमुनी तहजीब से मेल नही खाता, भारत की धर्म-निनिर्पेक्ष आत्मा (सड़ी गली)को ठेस पहुचा सकता है, अंतिम संदेष्टा की बातों को झूटा साबित कर्ता प्रतीत होता है, इस सारी कायनात को एकदिन इस्लाम ग्रहण करना ही होगा क्योंकि यह सभी धर्मों का सबसे आधुनिक रूप है, कैनेडा जैसे बेहद आधुनिक देश में वहां की जनभावनाओं को ठेंगा दिखाते हुए एक विद्यालय में मुस्लिम बच्चों के साथ हिन्दू,ईसाई यहूदी, आदि बच्चों को जबरन नमाज़ पढवाई जा रही है उखाड़ ले जो उखाड़ना है निरीह हिन्दुओं और बेवकूफ ईसाइयों को. इस्लाम दुनिया को शान्ति का सन्देश देता है इसका विरोध सर्वथा अनुचित है, इसके शान्ति सन्देश को हम पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईराक, लीबिया, सीरिया मिस्त्र, और ना जाने कितने इस्लामी देशों में स्पष्ट रूप से देख सकते है और ईश्वर से प्रार्थना कर सकते है की इस मौजूदा सरकार की सहायता से ऎसी घोर शांती हमारे देश में जितनी जल्दी स्थापित हो सके इसके लिए सारे घोड़े खोल दिए जाएँ, भारतीय मतावलंबियों को जेलों में सड़ाने के इंतजाम किये जाए जैसा की नरेंद्र मोदी के लिए किये जा रहे है भारतीयता की बात करने वाले लोगो के पिछवाड़े पर बैत लगाए जाए जैसा की बाबा रामदेव के साथ किया गया ऐसे और ज्यादा से ज्यादा कदम हमारी धर्म-निरपेक्ष सरकार को जल्दी से जल्दी उठाने चाहिए.
“बड़ी संख्या में देश का बुद्धिजीवी वर्ग भी जनसंख्या असंतुलन के इस खतरे के विकराल स्वरूप को नहीं देख पा रहा है।”
“सहिष्णुता एवं सहअस्तित्व की बातें केवल भारतीय मूल के संप्रदाय करते हैं, दूसरे नहीं। इसे समझने के लिए दूर जाने की जरुरत नहीं। अपने ही देश में कश्मीर घाटी और मिजोरम में भारतीय मतावलंबियों के साथ जो हुआ, वह आने वाले खतरे को बयान करने में सक्षम है।”
आपकी इन दो लाइनों ने मन को छू लिया, बेहद तथ्य-परक लेख, लेकिन आज के भौतिकवादी युग में हिन्दुओं या भारतीय मतावलंबियों से यह अपेक्षा करना निरर्थक है, आज जो केरल की स्थिति है यह स्थिति चालीस पहले कश्मीर की थी लेकिन कश्मीर से सबक लेकर केरल वासी जागरूक हो पायेंगे ऐसा मैं नही समझता, फिर भी आपका प्रयास सराहनीय है कुछ तो फर्क पडेगा इस लेख के लिए साधुवाद.