राजनीति

मैं संघ में जा चुका हूँ और सचाई जानता हूँ : डॉ. मीणा

लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ 

श्री संजीव सिन्हा जी,

सम्पादक जी-प्रवक्ता 

आज 10.08.2011 को एक सज्जन ने प्रवक्ता पर मेरे किसी आलेख/आलेखों को पढकर मुझे फोन किया| उनके और मेरे बीच में जो संवाद हुआ उसे मैं प्रवक्ता के पाठकों की जानकारी हेतु प्रस्तुत करना चाहता हूँ| आशा है कि आप इसे प्रदर्शित करेंगे| 

फोन पर हुआ संवाद

फोनकर्ता सज्जन : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी बोल रहे हैं?

मेरा जवाब : हॉं जी…!

फोनकर्ता सज्जन : मीणा जी मैं………बोल रहा हूँ| आपको प्रवक्ता पर पढा और संघ तथा हिन्दुत्व के बारे में आपके विचार पढे| मैं इस बारे में आपसे कुछ बात करना चाहते हूँ…….

मेरा जवाब : ….जी बोलिये आपका स्वागत है| आप जो भी कहना चाहते हैं, खुलकर कहें, मैं सुनने को तैयार हूँ|

फोनकर्ता सज्जन : मीणा जी आपके लेख पढने से ज्ञात होता है कि आप विद्वान आदमी हैं, आपको कॉंग्रेस, भाजपा या अन्य किसी पार्टी से भी कोई लगाव नहीं है| आप अपनी बात खुलकर लिखते हैं| आप गॉंधी के खिलाफ भी लिखते हैं| आपकी हिन्दुत्व में भी आस्था है, लेकिन आप हिन्दुत्व की कमियों पर भी खूब लिखते हैं….

मेरा जवाब : इसमें क्या आपत्ति  है?

फोनकर्ता सज्जन : आपत्ति तो कुछ भी नहीं है| हम तो ये चाहते हैं कि आप जैसे लोग देश के लिये और अपने समाज के लिये काम करें…

मेरा जवाब : तो क्या मैं देश और समाज के खिलाफ काम कर रहा हूँ…?

फोनकर्ता सज्जन : नहीं मीणा जी नाराज नहीं हों, मेरा कहने का मतलब ये नहीं है…!

मेरा जवाब : तो भाई आप कहना क्या चाहते हैं? अपनी बात खुलकर कहें|

फोनकर्ता सज्जन : देखिये मीणा जी जब आप अपने आपको हिन्दू मानते हैं| हिन्दू होने पर आपको गर्व है तो पुरानी बातों को क्यों उखाड़ते हैं? जो कुछ हो चुका उसे भुलाकर क्या हम मिलकर काम नहीं कर सकते हैं?

मेरा जवाब : क्यों नहीं कर सकते? आप भी पुरानी बातों को भुला दो संघ से कहो उन बातों का गुणगान करना बन्द करे, जो देश के बहुसंख्यक निम्न वर्गीय हिन्दुओं का हजारों वर्षों से अपमान करती रही हैं? धर्म के नाम पर जिन किताबों में अपमानकारी बातें लिखी गयी हैं, उन सबको को प्रतिबन्धित और नष्ट किया जावे और…(बीच में ही)

फोनकर्ता सज्जन : मीणा जी आप संघ के बारे में काफी कड़वी भाषा लिखते हैं, क्या कारण है? संघ से क्या कोई निजी दुश्मनी है?

मेरा जवाब : नहीं बन्धु मेरी न तो संघ से कोई दुश्मनी है और न हीं मैं संघ के खिलाफ में कुछ लिखता हूँ, बल्कि मैं तो वही लिखता हूँ, जो समाज में अपनी आँखों के सामने घटित होते हुए देखता हूँ|

फोनकर्ता सज्जन : इसका मतलब ये हुआ कि आपने संघ को निम्न तबके के लोगों के साथ भेदभाव और अत्याचार करते हुए देखा है?

मेरा जवाब : देखिये भाई संघ अपने आप में तो कुछ करता नहीं, संघ का आशय संघ के कार्यकताओं से ही होता है और संघ के कार्यकर्ता जो करते हैं, वे संघ के ही कार्य कहलाते हैं|……(बीच में ही)

फोनकर्ता सज्जन : तो क्या संघ के कार्यकर्ता संघ की नीतियों के खिलाफ काम करते हैं?

मेरा जवाब : संघ की नीति क्या हैं? ये तो आप जानें, लेकिन संघ के कार्यकर्ता पूरी तरह से सामन्ती और मनुवादी विचारधारा के पोषक हैं, जो आधुनिक समाज में अप्रासंगिक और अलोकतान्त्रिक होने के साथ-साथ असंवैधानिक भी है|

फोनकर्ता सज्जन : मीणा जी बतायेंगे कि संघ के लोग ऐसा क्या करते हैं, जिससे आपको संघ के प्रति इतनी अधिक नाराजगी है?

मेरा जवाब : एक बात हो तो बताऊँ, संघ के कार्यकर्ता तो लोगों के साथ इतना घटिया और अमानवीय व्ययहार करते हैं कि उसे संसदीय भाषा में लिखना भी सम्भव नहीं है|

फोनकर्ता सज्जन : कुछ तो बतायें…

मेरा जवाब : संघ के कार्यकर्ता छुआछूत को बढावा देते हैं| दलितों के दूल्हे को घोड़ी पर सवार होकर बारात की निकासी करने पर दूल्हे और उसके परिवार के साथ मारपीट करते हैं| दलित-आदिवासी वर्ग के लोगों से यह उम्मीद करते हैं, कि वे उच्च जातीय लोगों के समक्ष चारपाई पर तक नहीं बैठें| दलित-आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोगों को जब कोई उत्पीड़ित करता है तो संघ के लोग उत्पीड़ित के बजाय उत्पीड़क का साथ देते हैं| उन्हें वोट नहीं देने (…बीच में ही..)

फोनकर्ता सज्जन : क्या आपने इस बारे में संघ के किसी उच्च पदाधिकारी को शिकायत की है?

मेरा जवाब : संघ को शिकायत करना मेरा काम नहीं है और मुझे नहीं लगता कि संघ के उच्च पदाधिकारियों के समर्थन या उनकी मूक सहमति के बिना संघ के नीचे के कार्यकर्ता लोगों का उत्पीड़न कर सकते हैं| इसलिये संघ के उच्च पदाधिकारियों को शिकायत करने का औचित्य भी क्या है? संघ के लोग सड़क पर जो कुछ ताण्डव करते हैं, उसे टीवी के जरिये सारा देश देख चुका है| सारी दुनिया को संघ के बारे में ……..(बीच में ही)

फोनकर्ता सज्जन : मीणा जी आपको मेरी सलाह है कि आप संघ की शाखा में जायें, तब आपको संघ की सच्चाई का ज्ञान होगा|

मेरा जवाब : मैं संघ की शाखा में भी जा चुका हूँ और संघ की शाखाओं की सचाई भी जानता हूँ….

फोनकर्ता सज्जन : शाखा में जाकर आपको कैसा लगा?

मेरा जवाब : मुझे ऐसा लगा मानो संघ की शाखाओं में जो सिखाया जाता है, वही जीवन का सत्य है और वही स्वर्ग का रास्ता है, लेकिन शाखाओं से बाहर निकलकर शाखा में सिखाने वाले और सीखने वालों के आचरण तथा चरित्र में कोई तालमेल नहीं दिखता| ऐसे में शाखा में जाने का औचित्य क्या रह जाता है? इससे यह भी लगता है कि सार्वजनिक रूप से जो सिखाया जाता है, वो तो संघ के दिखावटी दॉंत हैं और बन्द कमरों में संघ के कार्यकर्ताओं को जो कुछ निर्देश दिये जाते हैं, वे ही संघ के असली (खाने के) दॉंत हैं, जो हिन्दुत्व को मजबूत करने के बजाय…. (बीच में)

फोनकर्ता सज्जन : मीणा जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद| मैं कोशिक करूँगा कि आपसे राजस्थान के संघ के किसी उच्च पदाधिकारी की आमने-सामने मुलाकात करवा सकूँ और संघ के बारे में जो कुछ आप बतला रहे हैं, उस पर भी पूरी छानबीन हो|

मेरा जवाब : धन्यवाद|