लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
सम्पादक जी-प्रवक्ता
आज 10.08.2011 को एक सज्जन ने प्रवक्ता पर मेरे किसी आलेख/आलेखों को पढकर मुझे फोन किया| उनके और मेरे बीच में जो संवाद हुआ उसे मैं प्रवक्ता के पाठकों की जानकारी हेतु प्रस्तुत करना चाहता हूँ| आशा है कि आप इसे प्रदर्शित करेंगे|
फोन पर हुआ संवाद
फोनकर्ता सज्जन : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी बोल रहे हैं?
मेरा जवाब : हॉं जी…!
फोनकर्ता सज्जन : मीणा जी मैं………बोल रहा हूँ| आपको प्रवक्ता पर पढा और संघ तथा हिन्दुत्व के बारे में आपके विचार पढे| मैं इस बारे में आपसे कुछ बात करना चाहते हूँ…….
मेरा जवाब : ….जी बोलिये आपका स्वागत है| आप जो भी कहना चाहते हैं, खुलकर कहें, मैं सुनने को तैयार हूँ|
फोनकर्ता सज्जन : मीणा जी आपके लेख पढने से ज्ञात होता है कि आप विद्वान आदमी हैं, आपको कॉंग्रेस, भाजपा या अन्य किसी पार्टी से भी कोई लगाव नहीं है| आप अपनी बात खुलकर लिखते हैं| आप गॉंधी के खिलाफ भी लिखते हैं| आपकी हिन्दुत्व में भी आस्था है, लेकिन आप हिन्दुत्व की कमियों पर भी खूब लिखते हैं….
मेरा जवाब : इसमें क्या आपत्ति है?
फोनकर्ता सज्जन : आपत्ति तो कुछ भी नहीं है| हम तो ये चाहते हैं कि आप जैसे लोग देश के लिये और अपने समाज के लिये काम करें…
मेरा जवाब : तो क्या मैं देश और समाज के खिलाफ काम कर रहा हूँ…?
फोनकर्ता सज्जन : नहीं मीणा जी नाराज नहीं हों, मेरा कहने का मतलब ये नहीं है…!
मेरा जवाब : तो भाई आप कहना क्या चाहते हैं? अपनी बात खुलकर कहें|
फोनकर्ता सज्जन : देखिये मीणा जी जब आप अपने आपको हिन्दू मानते हैं| हिन्दू होने पर आपको गर्व है तो पुरानी बातों को क्यों उखाड़ते हैं? जो कुछ हो चुका उसे भुलाकर क्या हम मिलकर काम नहीं कर सकते हैं?
मेरा जवाब : क्यों नहीं कर सकते? आप भी पुरानी बातों को भुला दो संघ से कहो उन बातों का गुणगान करना बन्द करे, जो देश के बहुसंख्यक निम्न वर्गीय हिन्दुओं का हजारों वर्षों से अपमान करती रही हैं? धर्म के नाम पर जिन किताबों में अपमानकारी बातें लिखी गयी हैं, उन सबको को प्रतिबन्धित और नष्ट किया जावे और…(बीच में ही)
फोनकर्ता सज्जन : मीणा जी आप संघ के बारे में काफी कड़वी भाषा लिखते हैं, क्या कारण है? संघ से क्या कोई निजी दुश्मनी है?
मेरा जवाब : नहीं बन्धु मेरी न तो संघ से कोई दुश्मनी है और न हीं मैं संघ के खिलाफ में कुछ लिखता हूँ, बल्कि मैं तो वही लिखता हूँ, जो समाज में अपनी आँखों के सामने घटित होते हुए देखता हूँ|
फोनकर्ता सज्जन : इसका मतलब ये हुआ कि आपने संघ को निम्न तबके के लोगों के साथ भेदभाव और अत्याचार करते हुए देखा है?
मेरा जवाब : देखिये भाई संघ अपने आप में तो कुछ करता नहीं, संघ का आशय संघ के कार्यकताओं से ही होता है और संघ के कार्यकर्ता जो करते हैं, वे संघ के ही कार्य कहलाते हैं|……(बीच में ही)
फोनकर्ता सज्जन : तो क्या संघ के कार्यकर्ता संघ की नीतियों के खिलाफ काम करते हैं?
मेरा जवाब : संघ की नीति क्या हैं? ये तो आप जानें, लेकिन संघ के कार्यकर्ता पूरी तरह से सामन्ती और मनुवादी विचारधारा के पोषक हैं, जो आधुनिक समाज में अप्रासंगिक और अलोकतान्त्रिक होने के साथ-साथ असंवैधानिक भी है|
फोनकर्ता सज्जन : मीणा जी बतायेंगे कि संघ के लोग ऐसा क्या करते हैं, जिससे आपको संघ के प्रति इतनी अधिक नाराजगी है?
मेरा जवाब : एक बात हो तो बताऊँ, संघ के कार्यकर्ता तो लोगों के साथ इतना घटिया और अमानवीय व्ययहार करते हैं कि उसे संसदीय भाषा में लिखना भी सम्भव नहीं है|
फोनकर्ता सज्जन : कुछ तो बतायें…
मेरा जवाब : संघ के कार्यकर्ता छुआछूत को बढावा देते हैं| दलितों के दूल्हे को घोड़ी पर सवार होकर बारात की निकासी करने पर दूल्हे और उसके परिवार के साथ मारपीट करते हैं| दलित-आदिवासी वर्ग के लोगों से यह उम्मीद करते हैं, कि वे उच्च जातीय लोगों के समक्ष चारपाई पर तक नहीं बैठें| दलित-आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोगों को जब कोई उत्पीड़ित करता है तो संघ के लोग उत्पीड़ित के बजाय उत्पीड़क का साथ देते हैं| उन्हें वोट नहीं देने (…बीच में ही..)
फोनकर्ता सज्जन : क्या आपने इस बारे में संघ के किसी उच्च पदाधिकारी को शिकायत की है?
मेरा जवाब : संघ को शिकायत करना मेरा काम नहीं है और मुझे नहीं लगता कि संघ के उच्च पदाधिकारियों के समर्थन या उनकी मूक सहमति के बिना संघ के नीचे के कार्यकर्ता लोगों का उत्पीड़न कर सकते हैं| इसलिये संघ के उच्च पदाधिकारियों को शिकायत करने का औचित्य भी क्या है? संघ के लोग सड़क पर जो कुछ ताण्डव करते हैं, उसे टीवी के जरिये सारा देश देख चुका है| सारी दुनिया को संघ के बारे में ……..(बीच में ही)
फोनकर्ता सज्जन : मीणा जी आपको मेरी सलाह है कि आप संघ की शाखा में जायें, तब आपको संघ की सच्चाई का ज्ञान होगा|
मेरा जवाब : मैं संघ की शाखा में भी जा चुका हूँ और संघ की शाखाओं की सचाई भी जानता हूँ….
फोनकर्ता सज्जन : शाखा में जाकर आपको कैसा लगा?
मेरा जवाब : मुझे ऐसा लगा मानो संघ की शाखाओं में जो सिखाया जाता है, वही जीवन का सत्य है और वही स्वर्ग का रास्ता है, लेकिन शाखाओं से बाहर निकलकर शाखा में सिखाने वाले और सीखने वालों के आचरण तथा चरित्र में कोई तालमेल नहीं दिखता| ऐसे में शाखा में जाने का औचित्य क्या रह जाता है? इससे यह भी लगता है कि सार्वजनिक रूप से जो सिखाया जाता है, वो तो संघ के दिखावटी दॉंत हैं और बन्द कमरों में संघ के कार्यकर्ताओं को जो कुछ निर्देश दिये जाते हैं, वे ही संघ के असली (खाने के) दॉंत हैं, जो हिन्दुत्व को मजबूत करने के बजाय…. (बीच में)
फोनकर्ता सज्जन : मीणा जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद| मैं कोशिक करूँगा कि आपसे राजस्थान के संघ के किसी उच्च पदाधिकारी की आमने-सामने मुलाकात करवा सकूँ और संघ के बारे में जो कुछ आप बतला रहे हैं, उस पर भी पूरी छानबीन हो|
मेरा जवाब : धन्यवाद|
Mukesh
मधुसूदन उवाच
राजेश जी की टिप्पणी ने उत्सुकता जगायी, तो श्री. मीणा जी की और, शैलेन्द्र कुमार की टिप्पणी देखी।
मैं केवल यही कहूंगा, कि, प्रवक्ता के नियमों के अनुसार, जो कोई टिप्पणी करना चाहे, कर सकता है। यदि नहीं, तो प्रवक्ता के सम्पादक अपना निर्णय दें।
एक युवा पाठक और टिप्पणी कार अपनी टिप्पणी करने में उत्साह दिखाते आया है। उसका स्वागत ही उचित मानता हूं। क्या संविधान इस अधिकार के विपरित है?
dr.rajesh kapoor
उपरोक्त लेख एक असफल प्रयास है जबरन वह अर्थ निकालने का जो निकल नहीं रहा. …. बड़े दुःख के साथ लिख रहा हूँ की डा. मीना जी आपका वास्तविक स्वरुप शैलेन्द्र जी की उस टिपण्णी से सामने आ गया है जो आपकी असलियत को उजागर करती है. श्री शैलेन्द्र की टिपण्णी से आप ऐसे बौखलाए की अपना संतुलन खो कर गाली-गलौच पर उतर आये. काफी गहरे तक आप विचलित हुए होंगे , क्यूँ ? यदि उनकी बात निराधार होती तो आप विचलित न होते. आप की प्रतिक्रया बहुत कुछ कह गयी. आप लिखते हैं…..
”घटिया और मानसिक रूप से रुग्ण इंसान तुम जैसे ऐरे गिरे लोगों से न तो ये सवाल पूछे गए हैं और न ही तुम जैसे उथले लोग इनके जवाब देने में सक्षम हो! बेहतर होगा कि अपनी औकात में रहो! मूर्खों के लिए चुप्पी सबसे बड़ा आभूषण है!”….-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’.. आपका यह कथन तो आपके सन्दर्भ में, आपके लिए होना चाहिए. आपका अंकुश आप पर न रह सका जब आपकी असलियत उजागर करने वाली टिपण्णी की गयी. ,मीना जी ईसाई होने में तो कोई अपराध नहीं. मेरे कई मित्र इसाई है. बुराई है विदेशी ताकतों, विदेशी चर्च के इशारे पर भारत को तोड़ने के प्रयास करना, यह घोर पाप और राष्ट्रीय अपराध है. ऐसा करने वालों के विरुद्ध सक्रीय होना हर देशभक्त भारतीय का कर्तव्य है.
मुकेश चन्द्र मिश्र
मीना जी नमस्कार
अगर सचमुच आप हिन्दुवों में व्याप्त बुराईयों और कुरीतियों से चिंतित हैं और उसे दूर करना चाहते हैं तो उसके लिए जमीनी स्तर पड़ जुड़कर कार्य करना पड़ता है जो की संघ कर रहा है अगर आपको लगता है की वो पर्याप्त कार्य नहीं कर पा रहा है तो आपको अपनी तरफ से भी प्रयास करने चाहिए सिर्फ एक दूसरे को दोष देने से बुराईयाँ ख़त्म नहीं होती बल्कि बढ़ती हैं, गटर साफ़ करने के लिए उसमे उतरना पड़ता है, ये तो आप भी मानते होंगे की हिन्दू धर्म इस्लाम की तरह नहीं है जिसमे कोई परिवर्तन न हो सके बसर्ते उसमे पूर्वाग्रह ना हो और दूसरे पक्ष को सुनने की क्षमता हो और हाँ यदि आप ये मन ही बना चुके हैं की हिन्दू धर्म का कुछ नहीं हो सकता तो आप भी उनलोगों का अनुसरण कर सकते हैं जो बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक होना पसंद करते हैं.
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
श्री किशोर बडथ्वाल जी,
नमस्कार!
बेशक आपने सच्चे उत्तरों से कन्नी काटी, लेकिन आपके प्रश्न के उत्तर में पूछे गए प्रश्नों के आपने उत्तर दिए! इसके लिए आपका आभार!
मैं विनम्रता पूर्वक कहने को विवश हूँ कि जब तक (संघ) ‘आदिवासी’ को ‘वनवासी’ कहता रहेगा! जिसके पीछे निहितार्थ हैं, जिन्हें आप जानते और समझते हुए भी स्वीकार नहीं करना चाहते, जिसके पीछे आपकी जो भी मजबूरी हैं! पर ये सब देश और धर्म के लिए शुभ नहीं हैं! तब तक आपके या संघ के साथ ‘आदिवासी’ का आत्मीय तौर पर जुड़ना मुझे तो संभव नहीं लगता! इसलिए आगे की चर्चा का कोई औचित्य नहीं है!
किशोर बडथ्वाल
मीणा जी को प्रणाम,
मैने किस प्रकार से कन्नी काटी है, क्या स्पष्ट करेंगे? और आप विचार विमर्श से पलायन क्यों कर रहे हैं? चर्चा का कोई औचित्य नही है से आपका क्या तात्पर्य है? और संघ के लिये आदिवासी या वनवासी दोनो सिर्फ शब्द हैं जिनके अर्थ वो सिर्फ वनक्षेत्र मे रहने वाले उन व्यक्तियों के लिये करता है जो समाज से अलग थलग हैं, जहां तक दलित समाज की बात है, उसके लिये संघ का सेवा भारती संगठन कई वर्षों से कार्य कर रहा है और उसके बहुत अच्छे परिणाम भी सामने आये हैं.. यदि आप तर्क देने के स्थान पर पलायन करना चाहते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नही है, किंतु जब आप कुछ लिखते हैं तो उसके लिये पूर्वाग्रही हो कर ना लिखें..
धन्यवाद.
Awadhesh
मीना जी, गाली गलौज पर उतर आये हैं. असल में यह संघ में गए, लेकिन संघ इनके अन्दर नहीं गया.
मीना जी, एक काम करो फिर से संघ में जाओ, लेकिन इस बार अपना मीना बन कर जाना. मीना के आगे क लगा कर मत जाना.
भारत माता की जय.
मधुसूदन उवाच
वह अफ़साना, जिसे अंज़ाम तक, लाना न हो मुमकिन॥
उसे एक ख़ूबसूरत मोड देकर छोडना अच्छा।
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
घटिया और मानसिक रूप से रुग्ण इंसान तुम जैसे ऐरे गिरे लोगों से न तो ये सवाल पूछे गए हैं और न ही तुम जैसे उथले लोग इनके जवाब देने में सक्षम हो! बेहतर होगा कि अपनी औकात में रहो! मूर्खों के लिए चुप्पी सबसे बड़ा आभूषण है!
shailendra kumar
इन सवालों का जवाब हम तब देते जब ये सवाल आपके होते जब इन सवालों के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ होना साबित हो गया है तो इन सवालों का कोई मतलब नहीं आपके पीछे विदेशी चर्च है इसे आप मान ले
शर्म करों, शर्म करों, शर्म करों,
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मैं संघ में जा चुका हूँ और सचाई जानता हूँ : डॉ. मीणा
from : http://www.pravakta.com/archives/28325#comments
उक्त लिंक पर प्रदर्शित लेख पर ‘निरंकुश’ टिप्पणी
श्री किशोर बर्थवाल जी स्तरीय चर्चा के लिए आमंत्रण है! स्वागत है! आप लिखते हैं कि-
“संघ के सेवा भारती और वनवासी कल्याण आश्रम जो कार्य करते हैं क्या आपने कभी उसका मूल्यांकन किया है. या आप भी ऐसा ही सोचते हैं कि दलितों की सेवा सिर्फ वही करता है जो सवर्णो का विरोध करता है..?”
सबसे पहेल तो यदि संभव हो तो और यदि आप संघ की ओर से अधिकृत या सक्षम हों या आप तैयार हों तो ये बताने क़ा कष्ट करें कि-(फिर आपके सभी सवालों के उत्तर मिलेंगे!)
1-“आदिवासी” को किस प्राधिकार के तहत संघ द्वारा “वनवासी” घोषित किया गया है?
2-संघ “आदिवासी” को “आदिवासी” नहीं हमेशा “वनवासी” क्यों कहता है! “आदिवासी” को “वनवासी” घोषित करना अनेक संदेह खड़े करता है!
(1) इसके पीछे संघ क़ा क्या मकसद है?
(2) क्या कोई गुप्त एजेंडा है?
(3) आदिवासी” को “वनवासी” घोषित करने से “आदिवासी” क़ा क्या भला किया जा रहा है?
3. संघ की और से अधिकारिक रूप से दलित या आदिवासियों का अपमान करने वाले किसी गैर अनुसूचित जन जाति के किसी अपराधी के खिलाफ क्या कभी “अजा/अजजा अत्याचार निवारण एक्ट, 1989” के तहत-
(1) कोई एक भी एफआईआर दर्ज करवाई?
(2) यदि हाँ तो उसका परिणाम क्या रहा?
(3) यदि नहीं तो क्या ये माना जावे कि संघ के लाखों (या संघ के प्रवाक्तावादी लेखकों की की मानें तो करोड़ों) लोगों के सामने कभी इस एक्ट क़ा उल्लंघन ही नहीं हुआ?
4. क्या संघ की और से सुप्रीम कोर्ट में या किसी हाई कोर्ट में याचिका दायर करके कभी ये आग्रह किया गया कि संविधान के अनुच्छेद 13 (1) के अनुपालन में-
(1) उन सभी धर्म ग्रंथों के प्रकाशन पर पाबंदी लगाई जावे जो संविधान के भाग 3 के खिलाफ हैं और मूल अधिकारों क़ा उल्लंघन करते हैं?
(2) यदि हाँ तो-प्रमाण सार्वजनिक करें!
(3) यदि नहीं तो-दलितों तथा आदिवासियों से अपनी (संघ की) पुरातन और मनुवाद पर आधारित कथित हिन्दू धर्म को मजबूत बनाने वाली नीतियों क़ा समर्थन करने की क्यों आशा की जाती है और दलित आदिवासियों के समर्थन के बिना देश में हिंदूवादी सरकार क़ा गठन करने क़ा सपना कैसे पूरा होगा!
किशोर बडथ्वाल
मीणा जी को प्रणाम,
प्रश्न के उत्तर मे प्रश्न पूछना किस प्रकार की सार्थक बहस का परिचायक है? क्या इसका उत्तर देंगे? आपके पूछे गये प्रश्न के लिये मै यही कहना चाहूंगा..
१. संघ के लिये नाम नही कार्य ज्यादा महत्वपूर्ण है, आपका प्रश्न कुछ ऐसा ही है जैसे ये कहा जाये कि जनता दल का नाम भारतीय जनता पार्टी क्यों नही है.?
२. संघ वनवासी को घोषित नही करता, संघ वनवासियों के लिये कार्य करता है. संघ का कार्य किसी विशेष समूह के बारे मे कोई संज्ञा या विशेषण देना नही है.
संघ का कोई गुप्त एजेंडा नही है, यदि आपको सेवा कार्यों मे भी कोई गुप्त एजेंडा दिखता है तो तो ये आपकी मानसिकता का दोष है, इसमे कोई भी व्यक्ति किसी प्रकार की सहायता नही कर सकता है.
संघ वनवासी कल्याण आश्रम के द्वारा समाज से दूर हुए लोगो के जीवन स्तर को सुधारने का प्रयास करता है.
३. संघ का कार्य सेवा आधारित है, और उसके लिये किसी भी प्रकार की एफ आई आर लिखवाना आवश्यक नही है. संघ के वो व्यक्ति जिनके अंदर स्वयं सेवक नाम का तत्व होता है, (आप जैसे नही जो संघ के अंदर तो गये, किंतु संघ उनके अंदर नही आया) उनके अंदर किसी भी प्रकार का जातिवाद नही होता है. और जो संगठन सेवा आधारित हो आप उसके सेवा कार्यों का मूल्यांकन उसके द्वारा की जाने वाली एफआईआर पर करते हैं?
२. प्रथम उत्तर को ही पढें.
३.संघ ने जिन क्षेत्रों मे कार्य किया है वहां इस एक्ट का उल्लंघन अनेको बार होता था, किंतु संघ के कार्य और उसके प्रभाव के बाद वहां से जातिवाद कम या खत्म हुआ है.
४. आप संघ के सेवा कार्यो का मूल्यांकन न्यायालयों मे लगाई जाने वाली अपीलों से करना चाहते हैं तो इसमे आपका वैचारिक दोष है, संघ कर्म आधारित संरचना को मानता है, जन्म आधारित नही, और जन्म आधारित कुरीतियों के उन्मूलन के लिये संघ हमेशा प्रयासरत रहा है, जिसके उदाहरण के लिये मैं ये कहना चाहूंगा कि राम मंदिर आंदोलन के समय नींव का पत्थर एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति से रखवाया गया था. और समस्त संघ के सहयोगी साधु संतो ने भोजन भी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के यहां किया था, यह एक स्पष्ट संकेत था जिसमे ये लक्षित होता था कि संघ किसी भी प्रकार के जातिवाद को सैद्धांतिक या व्यवहारिक रूप से नही मानता है और ऐसे किसी भी प्रयास का प्रतिकार करता है.
Girija Selat
मुझे यह समझ में नहीं आता की अगर डा मीना दलित फ्रीडम से जुड़े है तो इससे उनके कथन की असत्यता किस प्रकार सिद्ध होती है! किसी संगठन से जुड़े होने मात्र से ही कोई व्यक्ति झूठा साबित नहीं हो जाता! मेरे विचार से संघ को अपने अन्दर झाँक कर देखना चाहिए की वास्तव में उसने मीना जी द्वारा उठाये गए प्रश्नों को दूर करने का क्या प्रयास किया है! यह अनुभव सिर्फ मीना जी का नहीं बल्कि कई लोगो का है की संघ के खाने के दांत और दिखने के दांतों में क्या अंतर है! और जो काम संघ खुद नहीं करना चाहता उसके लिए किस प्रकार उसने अपने आतंकवादी अनुषांगिक संगठन खड़े कर रखे है!
kishor barthwal
मीना जी को प्रणाम,
आपने तथाकथित संघ के व्यक्ति को जो कुछ भी कहा कि संघ के व्यक्ति दलितो को प्रताडित करते हैं, उसमे क्या आप ये सिद्ध कर सकेंगे कि वो संघ से संबंधित थे, और उन्होने संघ के आदेश पर ऐसा किया..? किसी व्यक्ति के कार्य के लिये संगठन को दोष देना कैसे उचित है? स्वयंसेवक होना एक तत्व है, जिसके लिये ये आवश्यक है कि व्यक्ति के अंदर संघ के बताये हुए मार्ग या पद्धति के अनुसार आचरण करे, यदि कोई व्यक्ति अपने व्यक्तिगत जीवन मे ऐसा नही करता है तो उसे संघ के आदेश पर या संघ के संस्कारों के कारण गलत कैसे कहा जा सकता है? संघ के सेवा भारती और वनवासी कल्याण आश्रम जो कार्य करते हैं क्या आपने कभी उसका मूल्यांकन किया है. या आप भी ऐसा ही सोचते हैं कि दलितों की सेवा सिर्फ वही करता है जो सवर्णो का विरोध करता है..?
Satyarthi
भाई दिवस दिनेश जी
मेरी टिप्पणी की सत्यता अथवा असत्यता सिद्ध करने के लिए मीणाजी के उत्तर की प्रतीक्षा न करें. कृपया www .dalitfreedomnetwork.org पर जा कर ‘ about us’ पर क्लिक करें और जो भी जानकारी वहां से मिले उसका लाभ उठायें.
shailendra kumar
http://www.dalitnetwork.org/go?/dfn/about/C31/
ये सही लिंक है
[B]All-India Confederation of Scheduled Caste and Scheduled Tribe Organizations (SC-ST Confederation).[/B]
मीणा जी के इस संगठन से सम्बन्ध क्या है ये भी जान लीजिये
१. http://www.merikhabar.com/News/_N39962.html
२. http://www.pravakta.com/archives/author/dr-purushottammeena
अभी तीन दिन पहले मैं इनके ब्लॉग http://presspalika.blogspot.com/
पर गया था वहां इनके परिचय में इनका ये पद (पूर्व राष्ट्रीय महासचिव : अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ) भी उल्लिखित था लेकिन अब वो वहां से हटा लिया गया है बाकि सब सुधी पाठकों के भरोसे छोड़ दे रहा हूँ
Er. Diwas Dinesh Gaur
आदरणीय कौशलेन्द्र जी, मैं आपकी बात से सहमत हूँ| मैं भी इस बात को स्वीकार करता हूँ कि अनेक विचारधाराओं को लेकर इस मंच पर चर्चा ho| क्योंकि तभी कोई निष्कर्ष निकल सकता है|
किन्तु गद्दारों व देशद्रोहियों को यहाँ स्थान देना कहाँ तक उचित है? यदु विपरीत विचारधाराओं को झेलना इतना ही ज़रूरी है तो फिर तो दाउद इब्राहिम, मुल्ला उमर या गिलानी को भी यहाँ पधारने का आमंत्रण दे देना चाहिए| इन सब के सामने तो ये मीणा शायद बहुत छोटा है| इसने अभी तक सत्यार्थी जी की टिप्पणी का उत्तर नहीं दिया है, इससे सिद्ध होता है कि सत्यार्थी जी की टिप्पणी सत्य ही है|
चर्चा के लिए भाँती भाँती की विचारधाराओं का होना आवश्यक है, दल्लों का नहीं|
मैंने अपनी समझ के हिसाब से टिप्पणी की है| मुझे प्रवक्ता व सम्पादक जी से कोई शिकायत नहीं है| मैंने तो समय समय पर उन लोगों से भी अपनी बात कही है जो इन दल्लों से तंग आकर प्रवक्ता से प्रवक्ता को छोड़ने का निर्णय ले चुके हैं| मैंने उन्हें प्रवक्ता पर पुन: सक्रीय करने के प्रयास किये हैं| इनमे आदरणीय भाई अभिषेक पुरोहित जी व आदरणीय भाई पंकज झा जी शामिल हैं| निश्चित रूप से ये दोनों राष्ट्रवादी विचारधारा के धनि व्यक्ति हैं| किन्तु कब कोई भला कब तक गालियाँ सुनता रहे?
फिर भी मैं प्रवक्ता पर किसी प्रकार का प्रश्न चिन्ह नहीं लगाऊंगा| मुझे आज भी इस मंच से प्रेम है व हमेशा रहेगा| मैं बस अपनी बात कहना चाहता था|
आपके मार्गदर्शन के लिए आपका आभारी हूँ|
Ram narayan suthar
देखा गद्दार अपने बीच में कैसे छिपे रहते है
और गद्दारी करते हुए भी अपने आप को कितना महान समझते है
ऐसे गदारो की अब कमी नहीं है इस देश में
इनकी तुलना एक वफादार स्वामिभक्त ……………से की जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी
vimlesh
ओये मीने तन्ने तो कमाल कर दिया धोती को फाड़ के रुमाल कर दिया .
सत्यार्थी जी ने तो पता नहीं क्या लिख दिया वो सब कोरी गप्प है
तू तो एकदम दूध का धुला है
मुझे भी बड़े दरबार ले कर चल कभी ये हिन्दू धर्म बकवास लगता है तेरे आका लोग कितना पैसा देंगे धर्म चेंज करने का पैसे का बड़ा टोटा चल रहा है .
जल्दी जवाब देना शालीनता की तो उम्मीद भी ना करना .
मधुसूदन उवाच
कृपया पढिए। सत्त्यार्थी जी की टिप्पणी से उद्धृत:
मीणाजी इस पर मौन है।
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॥सत्त्यार्थी –जी की टिप्पणी का निम्न हिस्सा॥
कहते हैं: ==>”…कुछ समय पूर्व मुझे पता लगा की अमेरिकी तथा अन्य देशवासी ईसाइयों ने एक वेबसाइट चला रखा है जिसका नाम है “दलित फ्रीडम नेटवर्क ” .इसके कर्ताधर्ता सब ईसाई हैं . इस वेबसाइट पर जाने पर पता लगा की इस का मुख्यालय वाशिंगटन डीसी में है. और यह एक विराट विश्वव्यापी गठबंधन है उन लोगों का जो अपने आप को न्यायप्रिय बता कर “इतिहास के प्राचीनतम उत्पीडित मानव समूहों ” को स्वतंत्रता दिलवाने के लिए कृतसंकल्प हैं . शब्दजाल काट कर देखा जाये तो स्पष्ट होगा की यह विश्व भर के ईसाइयों का गठबंधन है जो भारत के दलितों को ईसाई बना कर हिन्दू धर्म की दासता से मुक्त करवाना चाहते हैं. वेबसाइट के अनुसार भारत में इन की दो सहयोगी संस्थाएं हैं 1.ओपरेशन मर्सी इंडिया फ़ौन्दतिओन (foundation )और 2 अनुसूचित जाति एवं जनजाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ .इनके भारत में २००० से अधिक कार्यकर्ता कार्यरत हैं. सहयोगी संगठन —>नंबर दो वही है जिसके राष्ट्रीय सचिव डाक्टर मीणाजी रह चुके हैं <–.इनके सहयोगियों के पास अपर धन शक्ति है जिस का कुछ अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है की एक ब्रिटिश एन जी ओ एक्शन एड में कार्य करने के लिए एक आई ए एस अफसर ने पद की आर्थिक,सामाजिक सम्मान,सेवा कल तथा सेवा निवृत्ति के बाद की संभावनाए आदि सब छोड़ कर इस एन जी ओ में नौकरी करना श्रेयस्कर समझा. ……….
मधुसूदन उवाच
Kaushalendra Mishra · Medical Officer at Cg govt.
मिश्र जी की टिप्पणी मुझे बहुत सूझ-बूझ वाली प्रतीत होती है। तभी तो हमारे पूरखे कहा करते थे, “वादे वादे जायते शास्त्र बोधः”.
RTyagi
सत्यार्थीजी आपने सही कहा
भारत – हिंदुत्व = पाकिस्तान
क्योंकि uske बाद तो क्योई भी हिंदुस्तान की संस्कृति और शालीनता, उदारता की परवाह करता ही नहीं है … बाकि सब तो लुटेरे ही बैठे हैं… जो देश की जनता को गुमराह कर रहे हैं.. उनमे से एक मीना भी है…Deshdrohi
RAM NARAYAN SUTHAR
सत्यार्थीजी ने हमारी आँखे खोले दी हमने तो समझा था एक भटका हुआ हिन्दू है परन्तु यह तो एक धर्म परिवर्तित ईसाई निकला और इनका उद्देश्य है हिन्दुओ में आपसी द्वेष फेलाकर इसाइयों की संख्या बढ़ाना
सावधान देशद्रोही और धर्मद्रोही से
Awadhesh
मीणा जी!! मेरे प्रश्न का उत्तर आपने अभी तक नही दिया? प्रश्न यह था कि जब आप संघी बने तो आपको समाज में अच्छा कार्य करने से किसने रोका था? अगर आप संघी नहीं है तो कुछ भी लिखें, लेकिन अगर संघी बनने की कोशिश करेंगे तो मुझे जबाव अवश्य दिजीयेगा.
Er. Diwas Dinesh Gaur
भाई सत्यार्थी जी, आपने तो आँखें खोल दीं| आपका बहुत बहुत धन्यवाद…अभी तक तो मुझे केवल शंका थी, आपने तो शंका को यकीन में बदल दिया| ये मीणा तो सच में गद्दार है|
अब भी ये कह रहा है की परवक्ता पर इस विषय में विस्तार से लेख लिखूंगा|
अत: मैं संपादक जी से पूछना चाहता हूँ कि क्या प्रवक्ता अब देशद्रोहियों व गद्दारों के लेख भी यहाँ छापेगा? सम्पादक जी इससे प्रवक्ता की छवि निश्चित रूप से खराब होगी| हमे प्रवक्ता मंच से प्रेम है| यह हमे हमारे घर जैसा लगता है| यहाँ देशद्रोहियों व गद्दारों को स्थान देना अनुचित है|
अब तो देखना यह है कि आगे किन किन के कपडे उतरते हैं?
सत्यार्थी जी को बहुत बहुत बधाई एवं धन्यवाद…
अजित भोसले
सभी भाइयों से मैं निवेदन करता हूँ की इस निकृष्ट व्यक्ति का लेख पढो ही मत, मैं पहले भी यह आग्रह कर चुका हूँ. क्योंकि मुझे दुःख होता है जब कपूर साहब और मधुसूदन जी जैसे बुद्धिमान लोग व्यथित होकर इस नराधम पर टिप्पणियाँ करके इसको इसकी गलतियां बता कर इसे सुधारने का प्रयास करते हैं, अब जब सत्यार्थी जी ने सारा कच्चा चिट्ठा खोल ही दिया है तो आप लोग जीवन मैं दुबारा इसके लेख पढ़ना तो दूर सरसरी निगाह से देखो भी नहीं, चूंकि इसे इस विश्वमान के लिए आर्थिक लाभ हो रहा है इसलिए ये आपकी बात सुनते हुए भी अनसुनी करेगा, आप लोग क्या सोचते हैं की यह गलत है इसका एहसास इसे नहीं है यह एहसास इसे आप लोगों से ज्यादा है पर जैसे कलमाडी और राजा जानते थे की उनके कुकर्मों से देश को बहुत बड़ी हानी हो रही है फिर भी उन्होंने बुरे काम करना जारी रखा. ऐसे ही यह आप लोगों के समझाने के बावजूद यह नीच काम जारी रखेगा.
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मैंने पिछली टिप्पणी में लिखा था कि
“यहाँ पर प्रस्तुत टिप्पणी ही इस बात का प्रमाण हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में विसम्मति या आलोचना के लिए कोई स्थान नहीं है”
उक्त टिप्पणी के प्रतिउत्तर में श्री मधुसूदन उवाच जी लिखते हैं कि
“मित्र डॉ. मीणा जी,
(१) क्या प्रवक्ता पर आप और जगदीश चतुर्वेदी, श्री राम तिवारी, अखिलेश…….. इत्यादि यों की टिप्पणियां नहीं छपती?
(२) क्या प्रवक्ता पर आप और जगदीश चतुर्वेदी, श्री राम तिवारी, अखिलेश…….. इत्यादि यों के लेख नहीं छपते ?”
उक्त दोनों बिन्दुओं के प्रकाश में क्या मैं ये समझू कि प्रवक्ता ही संघ है? जहाँ छपने वाली विसम्मत टिप्पणियों को आप संघ की उदारता बता रहे हैं!
मैं अभी तक तो ऐसा नहीं मानता रहा हूँ! प्रवक्ता के संपादक का संघी होना या संघ के विचारों के करीब होना और प्रवक्ता को ही संघ का मंच मानना, बिलकुल भिन्न बातें हैं!
फिर प्रवक्ता की उदारता या निष्पक्षता को संघ से जोड़ने का कारण आप जानें या संपादक श्री संजीव सिन्हा जी?
अंत में श्री मधु सूदन जी लिखते हैं कि
“[”और न ही केंद्र में भाजपा को सत्ता में आने दे रहा है!” आप का यह वाक्य मुझे समझ में नहीं आ रहा। अंतमें: आप अगर किसी का भी द्वेष फैलाए बिना, समस्याएं सुलझाना चाहते हैं, तो मुझे तो सहायक, संघ ही दिखाई देता है।]”
इस बारे में मैं एक पूरा आलेख लिखने की सोच रहा था, लेकिन फ़िलहाल इतना कि-
“भूत की गलतियों या अछईयों से केवल सबक लिया जा सकता है, भूत को फिर से जिया नहीं जा सकता!
वर्तमान हमारा सच है और भविष्य में केवल अनिश्चित सम्भावना हैं!”
चाहे कितना ही सुन्दर रहा हो लेकिन गुजर चुके कल अर्थात “भूत” के लिए “न तो वर्तमान जीवन की धारा के प्रवाह को विराम दिया जा सकता है” और न हीं “आज” को “आने वाले अनिश्चित कल की स्वर्णिम संभावनाओं के लिए स्थगित किया जा सकता है!”
इस प्रकार मेरे विनम्र विचार में “आज ही सच” है और जिसे आगे बढ़ना या बढ़ाना है, उसे आज के वैज्ञानिक, सामाजिक और राजनैतिक परिद्रश्य में चीजों तथा अपने आसपास के हालातों को देखना एवं समझना होगा! केवल हल्ला मचाने से या कुछ असत्यों को सत्य या सत्यों को असत्यों की चासनी में लपेटने से सच जानने वाले लोगों के दिलों तथा विचारों को बदला नहीं जा सकता?
मुझे दुःख है कि न तो संघ और न ही हिन्दुओं की पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा के नेतृत्व के पास इतनी साधारण सी बात को समझने की निष्पक्ष द्रष्टि का आभाव है! परिणामस्वरुप कथित रूप से हिन्दू हित ही बात करने वाली भाजपा और शिव सेना सत्ता से केवल दूर या बहार ही नहीं है, बल्कि बहुत दूर भी हैं! इनको जब-जब भी सत्ता मिली हैं, उसकी वजह इनकी पवित्र नीति नहीं, बल्कि अपवादों को छोड़ दिया जाये तो जनता की सत्ताधारी पार्टी के प्रति हतासा, निराशा और दूसरों को भी आजमाने की सोच ही मुख्य वजह रही है!
पुनश्चय :-
फिर से मैं सखेद लिखने को विवश हूँ कि
प्रवक्ता पर लिखने वाले संघ या कथित हिंदुत्व के हिमायती लेखकों और टिप्पणीकारों में भी द्रष्टिकोण का यही दोष है, जो संघ और भाजपा के प्रति, उन लोगों में जो संघ और भाजपा से ही व्यथित, असंतुष्ट या आहत हैं, अनुराग नहीं, दूरी तथा वित्रष्णा पैदा करता है! डंडा के बल पर लोगों को अपना बनाने का समय समाप्त हो चूका है| अब तो अपने गलत कार्यों के प्रति क्षमा और पश्चाताप का पवित्र भाव और आहतों या वंचितों या तिरष्क्रतों के प्रति हेय नहीं, बल्कि आदर, सम्मान और स्वीकार भाव को आत्मसात कर अपनाने की महति जरूरत है, जो केवल शब्दों या प्रकल्पों से नहीं, बल्कि दैनिक जीवन में हर कदम पर अपने आचरण से भी प्रमाणित करना होगा!
अंतिम उक्त बात तुलनात्मक रूप से संघ और संघियों (कथित सवर्णों) के ही वर्तमान तथा भविष्य के संरक्षण के लिए व्यावहारिक द्रष्टि से अपरिहार्य है! लेकिन फिर से खेद कि अभी तक ऐसे विसम्मत किन्तु बेहद जरूरी विचारों पर संघी विचार करने को ही तैयार नहीं हैं! ऐसा नहीं हो कि…………..?
देशद्रोही, धर्मद्रोही, गद्दार, ईसाईयों-मिशनरियों का एजेंट, विदेशी धन पर पलने वाला, मूर्ख, कांग्रेस का चम्मच, फर्जी डॉक्टर, नकली आदिवासी, दिग्विजय सिंह का अनुयाई, हिन्दुओं का दुश्मन, ब्राह्मन विरोधी, जातीवादी, संकीर्ण सोच और कुंठाओं से ग्रस्त, बीमार, मनोविकृत जैसे अनेकानेक आभूषणों से संघियों के समूह द्वारा सज्जित एक हिन्दू आदिवासी की कडवी, किन्तु सच्ची टिप्पणी!
शुभाकांक्षी
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश”
मधुसूदन उवाच
मित्र डॉ. मीणा जी,
(१) क्या प्रवक्ता पर आप और जगदीश चतुर्वेदी, श्री राम तिवारी, अखिलेश…….. इत्यादि यों की टिप्पणियां नहीं छपती?
(२) क्या प्रवक्ता पर आप और जगदीश चतुर्वेदी, श्री राम तिवारी, अखिलेश…….. इत्यादि यों के लेख नहीं छपते ?
(३) संघ भी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है। हिन्दु सेवक संघ नहीं है।
(४) उसका ढांचा भी, प्रेमादर पूर्ण, “पारिवारिक जन तन्त्रात्मक” है।
आह्वानात्मक, “मैं जीता, तू हारा” ” जांघ थपथपाकर आजा, तुझे मैं खतम कर दूंगा ” ऐसा पहलवानी ढंग का नहीं है।
(५) वहां हम “हमारी समस्याएं” “अपने देशकी समस्याएं” “अपनी समस्याएं” ऐसा शब्द प्रयोग करते हैं।
वहां, जब तक आवश्यक ना हो, तब तक, किसी जाति का नाम तक पूछा/उच्चारा नहीं जाता।
(६) कभी “मैं मनु और संघ” नामक पुस्तक पढें।
(क)एक बात,आप कहते हैं, कि, “भ्रष्ट लोगों की सरकारों के विरुद्ध संघ कुछ नहीं कर पा रहा है”
आपकी यह बात मुझे दूरसे भी सही प्रतीत होती है। शायद राजनीति को “ऋषि-सता” की भांति नियमन में इसकी मर्यादाएं है।इसकी अन्य विशेषताएं भी है।
(ख)—“और न ही केंद्र में भाजपा को सत्ता में आने दे रहा है!”
आप का यह वाक्य मुझे समझ में नहीं आ रहा।
अंतमें: आप अगर किसी का भी द्वेष फैलाए बिना, समस्याएं सुलझाना चाहते हैं, तो मुझे तो सहायक, संघ ही दिखाई देता है।
वैसे, आप मेरी बात मानने के लिए भी “बाध्य” नहीं है।
१५ अगस्त स्वतंत्रता दिवस की शुभ कामनाएं।
सादर, सप्रेम।
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
यहाँ पर प्रस्तुत टिप्पणी ही इस बात का प्रमाण हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में विसम्मति या आलोचना के लिए कोई स्थान नहीं है और यही कारण है कि भ्रष्ट लोगों की सरकारों के विरुद्ध संघ कुछ नहीं कर पा रहा है और न ही केंद्र में भाजपा को सत्ता में आने दे रहा है!
अहतशाम अकेला
जी बिलकुल सही कहा आपने सभी टिप्पड़ी पढ़कर तो ऐसा ही लगा, की अंधे को अँधा कहा जाता है तो बुरा लगना लाजमी है
Awadhesh
मीणा जी, कुछ तो जबाब दो? नहीं दे सकते तो फिर दोबारा संघी मत बनना.
shailendra kumar
सत्यार्थी जी आपने तो ऑंखें खोल दी अभी तक तो मैं मीणा जी को पीड़ित ही समझ रहा था ये तो गद्दार निकला
मधुसूदन उवाच
Satyarthi
(१)सत्यार्थी जी की टिप्पणी संक्षेपमें सब कुछ कह देती है।ज़रुर पढिए।
(२)२००५ में २९९ मिलियन डॉलर एन जी ओ द्वारा भारत भेजे गए थे। उस धनसे समाचार पत्र, स्तम्भ लेखक, नियत कालिक (मॅगेज़िन्स), सम्पादक, नेताओं तक भी पहुंच जाकर उनसे ईसाई प्रशंसा में कार्य करवाए जाते हैं। किसी ईसाइ विरोधी योगी, स्वामी, कार्यकर्ता का खून तक करवाने में सुपारियां दी जाती है।धनका वितरण (अ)वर्ष भर के, मतान्तरितों की संख्या से।(ब) लेखोंकी संख्यासे (टिप्पणियों की नहीं) वितरित होता है। (क) लेखकों को आकर्षित करनेका विज्ञापनी ढंग उपजाया गया है।
(३) चेतकर रहें, फिर संकट ग्रस्तों कों कैसे फसाना, इसका भी क्रमबद्ध ढंग विकसित हुआ है। क्या क्या कहें?
(४) हिंसा के सामने अहिंसक मारा ही जायगा? (५) सर्व धर्म समभाव के तले “एक धर्म ही सत्य” जीत जाएगा?
(६) क्या Tolerance of Intolerance से Tolerance की वृद्धि होगी? या Intolerance पनपेगा?
(७) पाठकों आज नहीं टिक पाए तो हम इतिहास का पन्ना बनके रह जाएंगे।
(६) भारत – हिंदुत्व= पाकीस्तान ?
अगर नहीं है, तो आज पाकीस्तान में कौनसा भारतीयत्व जीवित है?
dr.rajesh kapoor
भाई सत्यार्थी जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. – मुझे डा. मीना जी की लेखन शैली से साफ़-साफ़ अनेकों बार लगा की वे विदेशी चर्च जैसी भारत को तोड़ने वाली भाषा का प्रयोग करते हैं. भारत विरोधी यूरोपीय ईसाईयों की भाषा और तकनीक भी वही जी वाली है जिसका प्रयोग वे लोग १५० साल से भी अधिक समय से करते आ रहे हैं और डा. मीणा जी भी देश को टुकड़ों में बांटने वाली तकनीक का प्रयोग करते हैं. विद्वेष की आग लगाने का यह काम अल्प संख्यक व दुर्बाल वर्ग के कल्याण के नाम किया जाता है. इस से मुझे विश्वास हो गया की वे छद्म / गुप्त ( क्रिप्टो ) ईसाई हैः और विदेशी चर्च के इशारे पर काम कर रहे हैं. – आपने इसका ठोस प्रमाण देकर मेरे अनुमान को पुष्ट कर दिया है. धन्यवाद.
– डा. मीना जी समाज को तोड़ने, विभाजित करने वाली भाषा का प्रयोग कितना भी करें पर लगता नहीं की अब ऐसे प्रयासों का विशेष प्रभाव होता होगा.
– इसी प्रकार संघ जैसे देशभक्त संगठनों की बदनामी के लिए मीना जी द्वारा किये प्रयासों के परिणाम संघ के हित में होते लग रहे हैं. यदि मीना जी संघ के विरुद्ध न लिखते तो संघ के पक्ष में जो इतना लेखन हो रहा है वह तो न हुआ होता. अनेकों संघ के प्रशंसक और संघ के प्रशंसा में दिए जा रहे अनेकों तर्क कहाँ सामने आते.
– कुल मिला कर सोये हिन्दू समाज व सघियों को जगाने में मीणा जी का योगदान महत्वपूर्ण है. – डा पुरुषोत्तम मीणा जी का भारत, भारतीयता व हिन्दू निंदा कार्यक्रम यूँही चलता रहे तो शायद लाभ ही होगा.
nikhil singh
मैं पहले भी कह चूका हूँ पुरोशोत्तम मीना कोई लेखक नहीं अपितु राजनितिक रोटिया सेकने वाला “कांग्रेस का दलाल” है. इस व्यक्ति के अन्दर हिन्दू संप्रदाय के सामान्य वर्ग के लिए इतनी घृणा और द्वेष भरा हुआ है कि यह किसी भी सीमा तक गिर सकता है
अरे मीणा तू क्या समाज को सुधारेगा क्युकी समाज कि सबसे बड़ी गंदगी तो तू खुद है जो अपने ही देश को अपने ही समाज में फूट डालता है
अब भी तुम्हें चेतावनी देता हू कडवाहट भरी लेखनी छोड़ दे नहीं तो वो दिन दूर नहीं है जब समाज में ऐसे riots होंगे—– जिसके जिम्मेदार तेरे जैसे कुछ तुच्छ टुच्चे लोग होंगे
में आप सब लोगो से आग्रह करता हूँ ज़हर भरी बातो को सुनने कि भी एक सीमा होती है आप लोग क्यों इससे बहस कर रहे हैं यह व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन खो चूका है इसे gentleman वाली भाषा अब कभी समझ नहीं आयेगी यह ऐसे ही ज़हर उगलता रहेगा और आप लोग इससे ऐसे ही बेहसते रहेंगे
Ateet Agrahari
मीना जी,
मैंने संघ को बहुत समीप से जनता हु लेकिन आपने जो भी आरोप लगाये है वह एक स्वस्थ्य मानसिकता वाला आदमी का नहीं हो सकता है ,
माफ़ करियेगा आप से बहुत छोटा हुलेकिन आपको अच्छे बुरे का सुझाव दे सकता हु.
v.k. verma
हम लोग छद्म वेश व् नाम धारी अवेध संतानों द्वारा राज करने व् मीना जी जैसों द्वारा चुने —- के गुलाम हैं सचाई जानने के लिए आगे दी गयी लिंक देंखे ये मेरी बनाई
नहीं है व् नेट पर उपलभध है http://www.krishnajnehru.blogspot.com/
v.k. verma
इन जैसों को क्यों भाव देते हो इनका उद्देश्य ही ध्यान आकर्षण है ध्यान व जवाब न देने पर ये खुद ही समाप्त हो जायेंगे ,हर मुर्ख को जवाब देना जरूरी नहीं है….लगता है ये किसी आरक्षित श्रेणी के हैं व् हीन भावना से पीडित हैं ..शोर्ट कट से आगे बढ़ गए लोगों में इर्षा व् हीन भावना लाजमी है रंग सियार शेर हो ही नहीं सकता ,उसके बोलते ही असलियत खुल जाती है ….आज इनके जसे लोगों के व् इनके वोटों के अधिकार से ही देश पतन व् बदनामी पता है..
Vinay Diwan
मैं न कभी संघ की शाखा मैं गया हूँ न संघ के बारे मैं कुछ जनता हूँ…यह उसी तरह है जैसे हमने न कभी भगवान को देखा है न कभी उससे मिले हैं फिर भी आत्मा उसे स्वीकार करती है. ‘शिशुपाल’ हर काल मैं मिल जायेंगे !
Satyarthi
जब से मुझे प्रवक्ता पर डाक्टर मीणाजी के लेख पढने का अवसर मिला मुझे विस्मय होता रहा की मीणाजी की लेखनी किस कारण से हिन्दू धर्मं, धर्म ग्रंथों ,हिन्दू संस्कृति तथा इन में आस्था रखने वालों के विरोध में इतना विष वमन करती है और भारत विरोधी मुसलमान तथा ईसाई आक्रान्ताओं तथा उनके वर्तमान प्रतिनिधिओं के प्रति इतनी सौहार्द पूर्ण क्यों है . अमेरिकी तथा यूरोपीय ईसाइयों द्वारा आयोजित “भारत तोड़ो” अभियान मेरे लिए चिंता का विषय है और इसीलिए में इन्टरनेट पर देश के विदेशी शत्रुओं तथा उनके भारतीय सहयोगिओं के बारे में जो जानकारी मिलती है उसका मनन करता रह्ता हूँ. कुछ समय पूर्व मुझे पता लगा की अमेरिकी तथा अन्य देशवासी ईसाइयों ने एक वेबसाइट चला रखा है जिसका नाम है “दलित फ्रीडम नेटवर्क ” .इसके कर्ताधर्ता सब ईसाई हैं . इस वेबसाइट पर जाने पर पता लगा की इस का मुख्यालय वाशिंगटन डीसी में है. और यह एक विराट विश्वव्यापी गठबंधन है उन लोगों का जो अपने आप को न्यायप्रिय बता कर “इतिहास के प्राचीनतम उत्पीडित मानव समूहों ” को स्वतंत्रता दिलवाने के लिए कृतसंकल्प हैं . शब्दजाल काट कर देखा जाये तो स्पष्ट होगा की यह विश्व भर के ईसाइयों का गठबंधन है जो भारत के दलितों को ईसाई बना कर हिन्दू धर्म की दासता से मुक्त करवाना चाहते हैं. वेबसाइट के अनुसार भारत में इन की दो सहयोगी संस्थाएं हैं 1.ओपरेशन मर्सी इंडिया फ़ौन्दतिओन (foundation )और 2 अनुसूचित जाति एवं जनजाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ .इनके भारत में २००० से अधिक कार्यकर्ता कार्यरत हैं. सहयोगी संगठन नंबर दो वही है जिसके राष्ट्रीय सचिव डाक्टर मीणाजी रह चुके हैं .इनके सहयोगियों के पास अपर धन शक्ति है जिस का कुछ अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है की एक ब्रिटिश एन जी ओ एक्शन एड में कार्य करने के लिए एक आई ए एस अफसर ने पद की आर्थिक,सामाजिक सम्मान,सेवा कल तथा सेवा निवृत्ति के बाद की संभावनाए आदि सब छोड़ कर इस एन जी ओ में नौकरी करना श्रेयस्कर समझा. इन ईसाई संगठनों की न्यायप्रियता जगद्विख्यात है जिसके कारण अमेरिका के मूल आदिवासिओं का अस्तित्व ही मिटा दिया गया. अफ्रीका से लाये गए दासों पर जो अत्याचार किये गए वे दिल दहला देने वाले हैं. भारत में भी गोवा इन्क्विजिशन के क्रूर अत्याचार इतिहास में अंकित हैं. पर आज का युग प्रचार का युग है जिन्हें ईसाइयों की काली करतूतों का पता नहीं है वे इनके मिथ्या प्रचार के जाल में फँस जाते हैं.
प्रवक्ता के पाठकों से मेरा विनयपूर्वक आग्रह है की वे दलित फ्रीदोम नेटवर्क के वेबसाइट पर जाकर इस संगठन के बारे में जो जानकारी साईट पर उपलब्ध है उस से लाभान्वित हों.
Prof. Madhusudan
प्रश्न:
क्या, कुछ विद्वान् सूरज पर थूंक कर भी दिखा सकते हैं?
उत्तर:
हाँ| क्यों नहीं? पर क्या मिलनेवाला है?
प्रश्नकर्ता:
नाम गिनाइए|
उत्तर:
(१) लाभमल (२) मोतिमल (३) जवाहरमल (४) दिग्गुमल (५) सिब्बुमल (६) चिन्नुमल (७) मनिसंकरा (यह कहाँ गया?)
उत्तर: बस वैसे ही खो जाओगे|
और कोई?
हाँ और भी एक है|
अब आप सभी पाठक कोई मूर्ख तो नहीं| आप सारे एक नाम जोड़ सकते हैं|
सूरज पर थून्कनेका कम्पिटिशन चल रहा है|
अपने नाम लिखवाइए|
dr.rajesh kapoor
संघ के लोग सीधे स्वर्ग से तो उतरे नहीं. किसी भी संस्था की बात करें, आदर्श स्थिति कुछ और होती है और व्यवहार में अनेक त्रुटियाँ रह जाती हैं. पर जिन्हें केवल आलोचना करनी है वे ढूंढ़-ढूंढ़ कर नकारात्मक उदहारण निकाल लेते है और उन्ही का ढिंढोरा पीटते हैं. क्या इसे भुलाया जा सकता है की संघ के स्वयंसेवक ही हैं जो हर भूकंप, बाढ़, सुनामी के अवसर पर जात,पात का लेश मात्र भी विचार किये बिना तन-मन-धन से सेवा में जुट जाते है. प्राकृतिक आपदाओं के बाद हिन्दुओं के साथ-साथ मुस्लिम और ईसाई भाईयों को भी बिना किसी भेद-भाव के अनेकों बार मकान बना कर देने के उदाहरण हैं. कईबार पाक के आक्रमण के समय सेना के जवानों के साथ मिलकर देश रक्षा के लिए जीवन जोखिम में डाल चुके है. इसी लिए तो संघ के स्वयंसेवकों को दिल्ली की २६ जनवरी की परेड में भाग लेने के लिए निमंत्रण मिला था. और कौनसी संस्था है देश में जिसने देश सेवा के ऐसे कीर्तिमान स्थापित किये हों ? संघ में भी समय के साथ कमियाँ आई हो सकती हैं पर एक भी और संस्था बतलाये जो देश के युवाओं को देशभक्ति के साथ चरित्र निर्माण की शिक्षा दे रही हो ? हाँ बाबा रामदेव जी इस क्षेत्र में श्रेष्ठ काम कर रहे है. कहीं यही कारण तो नहीं की संघ और बाबा जी के विरुद्ध भयानक कुप्रचार चल रहा है ? कुछ तो है वरना केवल और केवल आलोचना, प्रशंसा के लिए शब्दों का अकाल….. इंदिरा जी द्वारा देश पर आपात्काल लादे जाने के समय जब सारा देश आतंक के साए में था तब भी तो जयप्रकाश जी के साथ मिलकर लाखों संघी जेलों में गए थे. मार खाई, परिवारों ने भी यातनाये सही पर कभी शिकायत नहीं की. देश सेवा को कर्तव्य मान कर किया. है कोई तुलना इनके देशभक्तिपूर्ण कार्यों की ? फिर भी इन्हें पानी पी-पी कर कोसना कहाँ तक उचित है ? यह न तो सज्जनता है और न इमानदारी. यह एकांगी सोच, यह एकांगी विरोध क्या बहुत कुछ कहता नहीं लगता ? दाळ में काला तो क्या दाल नी काली है. आतंकवादी, नेक्स्लाईटर, देशद्रोही, देश का अरबों रुपया लूटने वाले नेता बुरे नहीं लगते ; संघ और बाबा रामदेव महान दुष्ट लगते हैं. … मतलब साफ़ है की देश हित में जो भी काम करे वही दुष्ट लगता है कुछ ख़ास लोगों को. ….. ऐसा अनुचित व अन्यायकारी व्यवहार तो वे ही लोग कर सकते हैं जिन्हें देश और देश भक्त ताकतों की जड़ें खोदनी है. इसी की रोज़ी-रोतो वे खाते होंगे, तभी तो……..
Awadhesh
डा. श्रीमान मीना जी,
आप ने लिखा की आप संघ की शाखा में गए, इसका मतलब हुआ की आपने ध्वज प्रणाम भी किया होगा. अब मैं आपको एक स्वयंसेवक मान सकता हूँ. एक स्वयंसेवक के नाते मैं दुसरे स्वयंसेवक से पूछता हूँ की उसने संघ में रहते हुए देश समाज के लिए क्या किया और अपने आचरण से समाज में आदर्श नहीं स्थापित किया नहीं किया तो क्यों. आपको किसने रोका था. आशा है आप जैसा विद्वान व्यक्ति मुझे निराश नहीं करेगा. आप चाहे तो मुझे फ़ोन भी कर सकते हैं.
सादर वन्देमातरम.
अवधेश कुमार
9958092091
jagadish
आप संघ “शब्द” कहीं दूर से सुन लिए हैं कभी संघ गए नहीं ! इस भारतीय लोकतंत्र को एक स्वस्थ विपक्ष देने का श्री भी मेरे मत में संघ को ही जाता है वरना कांग्रेसी तानाशाही में हम आज पल रहे होते ! संघ राष्ट्रवादी है
jagat mohan
कोरी बकवास
विपिन किशोर सिन्हा
बहुत पाप लगेगा, मीणा जी! सच न बोलने की कसम खा रखी है आपने। किसको बेवकूफ़ बना रहे हैं आप? कभी कहते हैं – मुझे हिन्दू होने पर गर्व है और उसके बाद हिन्दुत्व को पानी पी-पीकर गाली देते हैं। अब आप कह रहे हैं कि मैं संघ की शाखाओं में गया हूं। संघ की शाखा में आप एक दिन भी नहीं गए हैं। गए रहते तो गाली आपकी जुबान पर ही नहीं आती। संघ में कोई किसी की जाति कभी पूछता ही नहीं। वहां एक दूसरे को प्रथम नाम में जी लगाकर संबोधित करने की स्वस्थ परंपरा है। पूरी जिन्दगी संघ में गुजर जाती है और जाति का पता ही नहीं चलता।संघ के प्रत्येक स्वयंसेवक की बस एक ही जाति होती है – हिन्दू। मनगढ़न्त आरोप लगाने से आपका व्यक्तित्व हल्का हो रहा है। आपके हृदय में हिन्दू, हिन्दू-संगठन हिन्दू-साहित्य और हिन्दू धर्म के लिए अपार विष भरा हुआ है. आप लेख नहीं लिखते हैं, विष वमन करते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रवक्ता पर आप जितना दुरुपयोग करते हैं, उतना कोई नहीं करता। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह आपको सद्बुद्धि दे।
ahtshamtyagi@gmail.com
बहुत अच्छा मीना जी!
कमाल का लिखते हो इसमें तो कोई दो राय नहीं,
सार्वजनिक रूप से जो सिखाया जाता है, वो तो संघ के दिखावटी दॉंत हैं और बन्द कमरों में संघ के कार्यकर्ताओं को जो कुछ निर्देश दिये जाते हैं, वे ही संघ के असली (खाने के) दॉंत हैं,……..इसमें भी कोई शक नहीं
आपके लिए तो बस यही कहना चाहूँगा मीना जी
तुन्दिये बाद ए मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब
ये तो चलती हैं तुझे ऊंचा उड़ाने के लिये
Kuldip Gupta
मैं बंद कमरे व खुले कमरे दोनों सभाओं में गया हू.
मैं उपरोक्त विचारों से असहमत हूँ .