जिन आँखों के तारे थे हम उन आँखों में पानी है !

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जिन आँखों के तारे थे हम उन आँखों में पानी है !
सुलगते हुये रिस्तो की सच्ची यही कहानी है !

जरा सी चोट लगी जब हमको माँ कितना रोई थी !
सूखे में हमें सुलाया खुद गीले में सोई थी !
ऐसी माँ की क़द्र ना करना क्या बात नहीं बेईमानी है !

सुबह से लेकर शाम तलक जो पीछे पीछे भागी थी !
तबियत जब नाशाद हुई तब रात रात भर जागी थी !
माँ तेरी ममता कहूँ इसे या तेरी क़ुरबानी है !

रोज सबेरे उठ कर जो हमको गले लगाती थी !
मुख चूम चूम कर मेरा अहो भाग्य मानती थी !
जो सम्बल थी मेरा आज बनी परेशानी है !

रूखा सूखा खाकर भी जो चुपड़ी रोटी देती थी !
वाट निहारे आने की आने पे बलइया लेती थी !
क्यूँ ऐसी ममता को रुसवा करने की ठानी है !

धन यौवन मान सम्पदा जिसने हम पर वार दिया !
सर्वस्व लुटा कर अपना हमको केवल प्यार दिया !
ऐसे अनमोल प्यार का क्या दुनिया में कोई शानी है !

ममता मयी जननी को हम आज बोझ समझते है !
”मेरी माँ है ” ऐसा कहने में भी झिझकते है !
क्या लहू हमारा सफ़ेद हुआ या लहू हुआ अब पानी है !

जो आज करेंगे वही मिलेगा सच्ची बात है एकदम यार !
काटें जो तू बोवेगा तो कहाँ मिलेगा तुझको प्यार !
मेरी माँ की चरण धूलि में राकेश मेरी जिंदगानी है !

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राकेश कुमार सिंह
जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में 15 फरवरी सन 1965 को हुआ। शिक्षा स्नातक पेशे से सिक्योरिटी ऑफिसर वाईएमसीए नई दिल्ली में कार्यरत शौकिया लेखन क्रॉउन पब्लिकेशन के द्वारा काव्य संकलन *'यादें'* इपीफैनी पब्लिकेशन के द्वारा काव्य संग्रह *तुम्हारे बिना* और स्ट्रिंग पब्लिकेशन के द्वारा *सीपियाँ*और *काव्यमंजरी* प्रकाशित। (काव्य संकलन 120 सर्वश्रेष्ठ कविताएं *दिव्या* और 200 सर्वश्रेष्ठ शायरियां साझा संकलन में सहभागिता ऑनलाइन पत्रिकाओं जैसे प्रवक्ता.कॉम, अमर उजाला.कॉम, रिटको.कॉम, योर कोटस.कॉम पर हजारों रचनाएं प्रकाशित।

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