पर्यावरण

प्रकृति के प्रहार को जरा समझिए

uttrakhandउत्तराखंड में कुदरत का कहर प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा है। वनों की अंधाधुंध कटाई और नदियों के कोख को लहूलुहान करने का घातक परिणाम है। इस प्रतिकार ने देवभूमि उत्तराखंड समेत समूचे मानवता को हिलाकर रख दिया है। कुदरत के कहर से रामबाड़ा और गौरीकुंड का अस्तित्व मिट गया है। हजारों साल पुराना केदारनाथ मंदिर का ज्योतिर्लिंग और गुंबद छोड़ बाकी सब मटियामेट है। ऋषिकेश में शिव की मूर्ति गंगा में विलीन हो गयी है। आपदा के सैलाब ने हजारों जिंदगी लील ली है। लाखों लोग अभी भी जीवन-मौत के बीच फंसे हुए हैं। कितने लोग इस आपदा के शिकार हुए हैं। अंदाजा लगाना कठिन है। लेकिन माना जा रहा है कि जन-धन की व्यापक पैमाने पर क्षति हुई है। केदारघाटी के सैकड़ों गांव लापता हैं। अभी तक बचाव दल पहुंच नहीं पाया है। आपदा में संचार के साधनों के जमींदोज होने से मुश्किलें सघन हो गयी है। अगर कहीं दोबारा बारिश होती है तो मश्किलें कई गुनी बढ़नी तय है। केंद्र व राज्य सरकार दोनों आपदा प्रबंधन में बुरी तरह नाकाम हुई हैं। सेना को मोर्चा संभालना पड़ा है। पर मौजूं सवाल यह है कि क्या मानव प्रकृति के इस विनाशकारी खेल से कोई सबक लेगा? क्या वह प्रकृति के साथ खिलवाड़ बंद करेगा? क्या वनों को धरा का आभुषण समझ उसकी रक्षा करेगा? क्या नदियों की धारा मोड़ने की जिद् से पीछे हटेगा? कहना अभी कठिन है। इसलिए कि प्रकृति पहले भी अपना रौद्र रुप दिखा चुकी है लेकिन उसने कोई सबक नहीं ली। मतलब साफ है। स्वभाव से अहंकारी और स्वार्थी मानव प्रकृति के संकेत को समझने को तैयार नहीं है। वह उसके साथ अनुकूलता स्थापित करने के बजाए उस पर नियंत्रण चाहता है। आखिर प्रकृति क्या करे? उसे भी अपना रौद्र रुप दिखाना जरुरी हो गया। लेकिन इस विनाशकारी लीला से मानव को समझ लेना होगा कि वह भले ही वैज्ञानिकता के चरम बिंदू पर पहुंच जाए लेकिन प्रकृति के आगे उसका जोर नहीं चलने वाला। वह अपने छोटे से खिलवाड़ मात्र से सबकुछ तहस-नहस कर सकती है। लेकिन दुर्भाग्य है कि मानव जानबूझकर प्रकृति की इस भाषा, व्याकरण से अंजान बना हुआ है। वह यह मानने को तैयार नहीं कि प्रकृति जलजले दिखा रही है या तबाही का मंजर परोस रही है तो उसके लिए वह जिम्मेदार है। वह प्रकृति को ही दोषी ठहरा रहा है। लेकिन अब उसे समझना होगा कि अगर सुरक्षित रहना है तो प्रकृति के साथ सामंजस्य बढ़ानी होगी। यह तथ्य है कि अंधाधुंध विकास के नाम पर प्रति वर्ष 7 करोड़ हेक्टेयर वनों का विनाश किया जा रहा है। पिछले सैकड़ों सालों में मानव ने प्रकृति की एक तिहाई से अधिक प्रजातियों को नष्ट कर दिया है। जंगली जीवों की संख्या में 50 फीसद की कमी आयी है। जैव विविधता पर भयानक संकट मंडरा रहा है। वनों के विनाश से प्रतिवर्ष 2 अरब टन अतिरिक्त कार्बन-डाइआक्साइड वायुमण्डल में घुल-मिल रहा है। बिजली उत्पादन के लिए नदियों के सतत प्रवाह को रोककर बांध बनाए जाने से खतरनाक पारिस्थितिकीय संकट खड़ा हो गया है। जल का दोहन स्रोत सालाना रिचार्ज से कई गुना बढ़ गया है। मानव को इस पर गहनता से विचार करना होगा। उसे समझना होगा कि प्राचीन सभ्यताओं के लोग प्रकृति के प्रति आस्थावान और उदार थे। प्रकृति के हर अवयवों की उपासना करते थे। उनका चिंतन और वैज्ञानिक सोच प्रकृति के अनुकूल था। सिंधु घाटी की सभ्यता हो या मिश्र की नील नदी घाटी की सभ्यता या दजला-फरात अथवा ह्नांगहों नदी घाटी की सभ्यता। सभी में प्रकृति के प्रति अनुराग और एक एकरसता थी। इन सभ्यताओं के लोग प्रकृति के एक-एक अवयव में ईश्वर का अंश देखते थे। वैदिक कालीन समाज का मानव देवताओं के अस्तित्व को प्रकृति में निहारता था। देवता प्रकृति के विभिन्न अवयवों के प्रतिनिधि हुआ करते थे। भारत की सर्वाधिक प्राचीन सिंधु सभ्यता के लोग जल,वृक्ष, और नदी की आराधना किया करता थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक सील पर तीन मुख वाला एक पुरुष ध्यान की मुद्रा में बैठा है। उसके सिर पर तीन सींग है। उसके बांयी ओर एक गैंडा और भैसा है। दांयी ओर एक हाथी,व्याघ्र एवं हिरन है। यह प्रतीक प्रकृतिवादी समाज की रुपरेखा को निरुपित करता है। इसी सभ्यता में वृक्ष पूजा और नागपूजा के भी प्रमाण मिलते हैं। क्या यह समझने के लिए पर्याप्त नहीं है कि हजारों वर्ष पूर्व मानव प्रकृति के कितना निकट और अनुकूल था? प्रकृति से उसकी कितनी समरसता थी? या उसकी सोच कितनी व्यापक और उदार थी? वैदिक काल के अनगिनत उद्धरणों से प्रकृति और मानव की निकटता के प्रमाण मिलते हैं। वैदिक काल में देवताओं की आराधना पशु और पेड़-पौधों के रुप में होती थी। मरुतों की माता की कल्पना चितकबरी गाय के रुप में की गयी है। इंद्र को वर्षा का देवता मानते हुए उसकी तुलना गाय खोजने वाले सरमा स्वान के रुप में की गयी है। वरुण जो वैदिककालीन महत्वपूर्ण देवता थे उन्हें समुद्र का देवता,ऋतु परिवर्तन एवं दिन रात का कर्ता-धर्ता,आकाश,पृथ्वी एवं सूर्य का निर्माता के रुप में जाना जाता था। ईरानी सभ्यता में वरुण को अहुरमज्दा और यूनान में यूरेनस के रुप में माना गया। पृथ्वी को देवी के रुप में आराधना की गयी है। बाढ़ की विभिशिका से बचने के लिए लोग नाना प्रकार के यज्ञ-हवन और अन्यान्य विधानों का पालन करते थे। प्राचीन मिश्र में नील नदी की पूजा की जाती थी। ऐतिहासिक ग्रंथों में मिश्र को नील नदी का वरदान कहा गया है। ह्नांगहों नदी की रौद्रता से जब चीन के लोग भयाक्रांत होते थे तब उसकी शरणागत होकर आराधना करते थे। यानी सम्यक आचरण अपनाकर अपनी सुरक्षा का उपाय स्वयं ढुंढते थे। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि प्राचीनकालीन सभी सभ्यताओं में प्रकृति और मानव के बीच एक अन्योन्याश्रित संबंध था। प्रकृति की सुरक्षा में ही मानव अपनी सुरक्षा निहारता था। लोग प्रकृति की अनुकूलता को बनाए रखने के लिए स्वयं अपना आचरण प्रकृतिपरक बनाते थे। न कि अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए प्रकृति का संहार करते थे। उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। शास्त्रों में उसकी महिमा का बखान है। लेकिन अंधाधुंध विकास की परिकल्पना ने देवभूमि को विकृत बना दिया है। वनों की अंधाधुध कटाई से पारिस्थिकीय असंतुलन पैदा हो गया है। लेकिन अब समझना होगा कि वन प्राकृतिक संतुलन के आधार हैं और इसे नष्ट करने का मतलब सीधे प्रकृति को चुनौती देना होगा। उत्तराखंड में वनों के विनाश के साथ नदियों के कोख को भी लहूलुहान किया जा रहा है। नेताओं और भू-माफियाओं की मिलीभगत से खनन चरम पर है। अभी दो वर्ष पहले गंगा के किनारे अवैध खनन के खिलाफ आंदोलनरत चैंतीस वर्षीय निगमानंद को अपनी जिंदगी की आहुति देनी पड़ी। तब सरकार ने खनन पर रोक लगाने और कड़े कानून बनाने का भरोसा दिया। लेकिन आज भी खनन जारी है। एक अरसे से पर्यावरणविदों द्वारा गंगा नदी पर बनाए जा रहे बांध का विरोध किया जा रहा है। लेकिन आस्था पर विज्ञान की मुहर लगाने वाली सरकारों को उनका विरोध रास नहीं आ रहा है। वे किस्म-किस्म का कुतर्क गढ़ अपना पक्ष मजबूत कर रही हैं। जबकि पर्यावरणविदों द्वारा आगाह किया जा चुका है कि अगर गंगा पर प्रस्तावित 69 बांध अस्तिव में आते हैं तो गंगा का 39 फीसदी हिस्सा झील बन जाएगा। यानी ये बांध न केवल गंगा की अविरलता को बाधित करेंगे बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाएंगे। देखना दिलचस्प होगा कि मानव उत्तराखंड की आपदा से कोई सबक लेता है या पुनः प्रकृति से खिलवाड़ का खेल जारी रखता है।