न्याय का रास्ता साफ करती मीडिया

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19 सालों के बाद ऐसा क्या हो गया कि पूरा देश रुचिका गिरहोत्रा को न्याय दिलाने के लिए मरा जा रहा है? देश का गृह मंत्री खुद पूरे मामले पर नजर रखे हुए है। हरियाणा सरकार जल्द ही इस मामले को सी बी आई को सौंपने पर विचार कर रही है। हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक एस पी एस राठौर के सारे दोस्त-रिश्‍तेदार और उनके गॉड फादर एक-एक करके उनसे किनारा कर रहे हैं। जिस सरकार के कार्यकाल में श्री राठौर की पदोन्नति हुई थी, वो भी अपना दामन पाक-साफ बताने में किसी से पीछे नहीं रहना चाहती है। माकपा की पोलित ब्यूरो की सदस्य वृंदा करात ने हरियाणा के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री भूपिंदर सिंह हुड्डा से मिलकर उनसे आग्रह किया है कि वे राठौर को राजनीति संरक्षण न दें और पूर्व में राजनीतिक संरक्षण देने वाले दोषी राजनेताओं के खिलाफ भी कड़ी-से-कड़ी कारवाई करें। केन्द्रीय गृह सचिव श्री जी के पिल्लई श्री राठौर को 15 अगस्त 1985 को दिये गये उत्कृष्ट सेवा पदक को वापस लेने और उनको मिल रहे पेंशन में कटौती करने के रोडमैप को अमलीजामा पहना चुके हैं। अब राठौर के साथ-साथ इस तरह के घिनौने चरित्र वाले दूसरे पुलिस वालों से भी मेडल वापस लेने का रास्ता साफ हो गया है।

हाल ही में पत्रकार शिवानी भटनागर केस में दोषी आई पी एस अधिकारी का मेडल भी अब वापस लिया जा सकता है। पर यहाँ पर यह सवाल उठता है कि क्या मेडल वापस लेने से संबंधित अधिकारी के उस योगदान या समर्पण का महत्व कम हो

जाएगा?

सभी इंसान दोहरे चरित्र को अपने जीवन में एक साथ जीते हैं और उनकी मन:स्थिति भी हर वक्त एक समान नहीं होती। इसलिए सरकार को कम-से-कम इस तरह से भावना में बह कर निर्णय नहीं लेना चाहिए।

इस तरह के मामलों में पीड़िता को ज्यादा जलील न होना पड़े इसके लिए केंद्रीय कानून मंत्री श्री वीरप्पा मोइली ने स्वयं आगे बढ़कर आनन-फानन दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन का मार्ग प्रशस्त करवा दिया।

उल्लेखनीय है कि दंड प्रक्रिया संहिता में संषोधन के लिए कवायद सालों -साल से चल रहा था। प्रियदर्शिनी मट्टू और जेसिका लाल के मामले के बाद से ही मीडिया दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन के लिए दबाव बना रहा था।

अंतत: 31 दिसम्बर को रुचिका मामले में मीडिया द्वारा बनाये गये दबाव के आगे केंद्र सरकार झुक गई और इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दिया। अब अगर मुकदमों के फैसले से पीड़ित पक्ष संतुष्ट नहीं है तो वह सरकारी ऐजेंसी की अनुमति के बिना भी अपील दायर कर सकता है। सी आर पी सी की धारा 372 में हुए इस संषोधन के बाद बलात्कार की शिकार पीड़िता को न्याय पाने के प्रयास के दौरान अभियुक्त के उत्पीड़न से सुरक्षा भी दी जाएगी।

हरियाणा सरकार के महाधिवक्ता श्री हवा सिंह को भी अब सी बी आई की अदालत द्वारा राठौर को सुनायी गई छह महीने की सजा कम लगने लगी है। श्री सिंह के अनुसार राठौर को सजा आई पी सी की धारा 306 के तहत मिलनी चाहिए और इसके लिए इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की महत्ती भूमिका होनी चाहिए। श्री सिंह के अनुसार राठौर के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस चलाना ज्यादा उपयुक्त होगा। श्री हवा सिंह के इस विचारधारा को केन्द्र सरकार ने मान लिया है। अब राठौर के खिलाफ मुकदमा आई पी सी की धारा 306 के तहत के तहत चलेगा।

राठौर पर अच्छी तरह से नकेल कसने के लिए नये सिरे से एफ आई आर दर्ज किये गये हैं। 5 जनवरी को तीसरा एफ आई आर के रुप में आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया है।

पीड़ित रुचिका गिरहोत्रा का नाम आज दिल्ली से लेकर मेघालय तक आम आदमियों के बीच चर्चा में है। देश के विविध भागों में स्कूली बच्चे रुचिका को न्याय दिलाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। इस मुद्वे पर बुद्विजीवी वर्ग और आम लोगों के बीच अद्भुत सहमति एवं सामंजस्य देखा जा रहा है।

एक गैर सरकारी संगठन (एन जी ओ) ने कहा है कि वह पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर रुचिका गिरहोत्रा मामले की जांच की मांग करेगा। रुचिका के लिए लड़ाई लड़ रहे उसके मित्र का परिवार 29 दिसबंर से पूरे देश में हस्ताक्षर अभियान शुरु चुका है।

गैर सरकारी संगठन वर्ल्ड हृयूमन राइट राइट्स काउंसिल (डब्लू एच आर सी) ने कहा है कि वह 1990 में राठौर की ओर से रुचिका के साथ छेड़छाड़ और घटना के तीन साल बाद आत्महत्या की परिस्थितियों के मामले की उच्चस्तरीय जाँच की माँग करेगा।

जबकि चंडीगढ़ के सी बी आई अदालत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने फैसले में कहा था कि राठौर का अपराध पूरी तरह से साबित हुआ है। पर छह महीने की सजा सुनाना राठौर के लिए बहुत ही महंगा पड़ा। कम सजा की खबर ने स्थिति को राठौर के प्रतिकूल कर दिया।

एस डी एम स्तर के अधिकारी ने रुचिका के स्कूल जाकर उसके स्कूल से निष्कासन के मामले की जाँच की है। जाँच के नतीजे चौंकाने वाले हैं। स्कूल के कर्मचारियों का कहना का रुचिका का स्कूल से नाम अप्रैल, 1990 से सितम्बर,1990 तक का फीस जमा नहीं होने के कारण कटा था। निश्चित रुप से इस पहलू पर भी विचार करने की जरुरत है।

19 सालों के बाद जरुर जमाना बहुत आगे बढ़ गया है। पर इतना भी आगे नहीं बढ़ा है कि समाज और सरकार रुचिका मामले की तरह अन्य मामलों और कई बार इससे भी गंभीर मामलों में अपनी संवेदनशीलता नहीं दिखाये।

रुचिका को न्याय मिले, इसमें किसी को कोई भी आपत्ति हो ही नहीं सकती। किन्तु इस मामले को इस हद तक तूल दिये जाने की कतई जरुरत नहीं है। आज भी हजारों नहीं लाखों की संख्या में ऐसी रुचिका हैं जो न्याय की आस लगाये गुमनामी में जिल्लत की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं।

लक्ष्मी उरांव के साथ हुई बलात्कार के प्रयास की घटना को देश में कितने लोग जानते हैं? लक्ष्मी उरांव के साथ हुई बर्बर घटना के दो साल हो चुके हैं, पर उसे आज भी न्यायसंगत न्याय नहीं मिल सका है।

यह घटना नवम्बर 2007 की है। कुछ समाज के तथाकथित प्रभावशाली लोगों ने उस आदिवासी लड़की को भरे बाजार में बलात्कार करने के लिए नंगा कर दिया था और बेचारी लक्ष्मी नग्नावस्था में ही गुवाहटी की सड़कों पर भाग निकली थी और इस पूरे घटनाक्रम को पूरी दुनिया ने टी.वी के पर्दे पर भी देखा था।

गोवा में रुसी लड़की के साथ हुए बलात्कार के आरोपी राजनेता जॉन फर्नांडीस को भले ही सर्वोच्च अदालत ने जमानत देने से मना कर दिया है। फिर भी इस मामले में फैसले में हो रही देरी सभी के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।

1 जनवरी को गाजियाबाद में ईलाज करवाने अस्पताल गई यशोदा नाम की 20 साल की लड़की से छेड़छाड़ करने वाले डॉक्टर के खिलाफ मुकदमा कायम करने में पुलिस वाले आनाकानी कर रहे थे। बड़ी मुश्किल से डॉक्टर के खिलाफ मुकदमा कायम हो सका। रुचिका की तरह यशोदा को भी न्याय चाहिए।

आरुषि हत्याकांड मामला अभी तक सुलझ नहीं पाया है। अब सी बी आई आरुषि के माता-पिता का नार्को टेस्ट करवाना चाहती है। इसके लिए अदालत ने अनुमति भी दे दिया है। क्या आरुषि की आत्मा नहीं भटक रही न्याय पाने के लिए? जाने कब सरकार अपनी नजरें इनायत करेगी उसकी आत्मा पर?

पड़ताल से स्पष्ट है कि रुचिका मामला हमारे सामने नजीर बनकर आया है। इसकी आड़ में बहुत सारे बरसों से लटके निर्णय को आज हकीकत में तब्दील किया जा चुका है। इस पूरे मामले में मीडिया की भूमिका भी जरुरत से ज्यादा ही सकारात्मक रही है। मीडिया के लगातार फॉलोअप का ही नतीजा है कि राठौर का सितारा अचानक से डूब गया।

इससे इतना तो स्पष्ट है कि मीडिया चाहे तो समाज में क्रांति का बिगुल तो बजा ही सकता है। पर आज मीडिया ने अपना उद्देश्‍य भूलकर बाजार का दामन थाम लिया है। उसके सरोकार बदल चुके हैं।

सरकार भी सोई है। जब ज्यादा हो-हल्ला हो जाता है, तो गृह मंत्री से लेकर प्रधान मंत्री तक जाग जाते हैं। रुचिका मामले में भी ऐसा हुआ। जब मीडिया ने बार-बार सरकार को बताया कि रुचिका के साथ अन्याय हुआ तो उसके कान में भी जूँ रेंग गया। उसे लगा कि यदि अब भी वह सोई रही तो जनता का गुस्सा उसे नुकसान पहुँचा सकता है। चुनाव का मौसम होता तो रुचिका को और भी जल्दी न्याय मिल जाता। कृषि मंत्री शरद पवार ताल ठोक कर यह नहीं कहते कि शक्कर की कीमत दो साल तक कम नहीं हो सकती।

19 सालों के बाद के भारत में परिवर्तन जरुर आया है, पर इस परिवर्तन से अन्य रुचिकाओं को क्यों महरुम रखा जा रहा है। इस पर सभी को जरुर विचार करना चाहिए। हमारे समाज में आज भी न्याय की बाट जोह रही रुचिकाओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है।

-सतीश सिंह

2 COMMENTS

  1. अन्य रुचिकाओं को तभी न्याय मिल सकता है जब देश में पर्याप्त अदालतें हों, सभी अपराधों के अन्वेषण के लिए पुलिस से पृथक न्यायपालिका के नियंत्रण में स्वतंत्र ऐजेंसी का गठन हो।

  2. रुचिका के मामले में मीडिया की अति सक्रियता के बाद हमारा राजतन्त्र और समाज जग पाया १९ साल की कुम्भकर्णी नींद से जब लोग जाग ही चुके है तो उम्मीद की जा सकती है कि रुचिका के परिजनों को न्याय मिलेगा।बात तो तब बने जब इस केस में राठौर का गलत साथ देने वाले हर व्यक्ति को उसके किये की सज़ा मिले।

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