कई सबक दे गया साल 2015

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2015समय चक्र किसी के रोके रूकता नही है जो आज है वह कल बन जाता है ।इसी लिये
वक्‍त के आईने मे हर तस्‍वीर इतिहास बन जाती है ।बेशक हम आगे बढ़ रहे हैं
लेकिन पीछे कदमों के निशान भी छोड़ कर जा रहे हैं ।कैलेंडर फिर हमें एक
और नया साल दे रहा है ,नये साल के सूरज का उजास फैलते ही हम सन 2016 का
स्‍वागत कर रहें हैं ।लेकिन सच ये है कि हम बीते हुये समय को याद नही
करते और नये का स्‍वागत करने लग जाते हैं ।हमें पिछली भूलों और कमजोरियों
से सबक ले कर कुछ नया करने का संकल्‍प लेना चाहिये ।कुछ ऐसा करने का कि
नया साल हमें निराश न करे ।हमारे सामने बहुत बड़ा क्षेत्र ,बहुत बड़ा
मैदान है ।पूरा आसमां है उड़ान भरने के लिये और अनंत अभिलाषाएं हैं
।हमेशा की तरह साल 2015 की भी शुरूआत तमाम उम्‍मीदों – अपेक्षाओं के साथ
हुयी थी और साथ मे इस बार अच्‍छे दिन आने का सपना भी था ।लेकिन पूरे साल
न तो अच्‍छे दिन के दर्शन हुये और न ही संसद के भीतर या बाहर जनता ही नजर
आयी ।बल्‍कि इस साल भी हमारे नेता, अभिनेता, प्रतिपक्ष और समाज के पुरोधा
असली मुद्दों पर कम, प्रतीकों के गिर्द ही अपनी नीतियां और रणनीतियां
गढ़ते, झगड़ते रहे।ध्यान का केंद्र चाहे विधान सभा चुनाव हों, या महिला
सुरक्षा, बिगड़ते पर्यावरण से जुडे बाढ़-सूखा हों, सार्वजनिक परिवहन या
विदेश नीति, जिस तरह उन पर संसद के भीतर-बाहर और न्‍यूज़ रूम मे टकराव
हुए, तलवारें चलीं, लगा कि देश ने असली विचारणीय मुद्दों पर तो गंभीरता
से सोचना बंद ही कर दिया है ।देश की राजनीति में नया गुबार पैदा करने
वाले दादरी काण्ड समेत कई कड़वी-मीठी यादें देकर 2015 हमसे विदा हुआ है
।इस साल कन्नड़ साहित्यकार एमएम. कलबुर्गी की हत्या के बाद देश में बढती
असहिष्णुता को लेकर शुरु हुई बहस और प्रतिक्रिया ने दादरी काण्ड के बाद
और जोर पकड़ लिया। उसके बाद देश में कथित असहिष्णुता के खिलाफ
साहित्यकारों द्वारा खुद को मिले सम्मान लौटने का सिलसिला और तेज हो गया।
साहित्यकारों द्वारा सम्मान लौटाने को लेकर जारी बहस के बीच राष्ट्रपति
प्रणव मुखर्जी को बयान देना वड़ा । उन्‍होने देश में विविधता, बहुलता और
सहिष्णुता को भारतीय सभ्यता के प्रमुख मूल्य करार देते हुए उन्हें बरकरार
रखने की जरुरत बताई। दादरीकांड की गूंज बिहार विधानसभा चुनाव में भी
सुनाई दी थी। असहिष्‍णुता को लेकर बढ़ते विवादों के बीच बयान देकर आमिर
खान भी घेरे में आ गए। आमिर पुरस्कार वापसी का समर्थन किया था और कहा था
कि सृजनात्मक लोगों के लिए अपना असंतोष या निराशा व्यक्त करने का तरीका
पुरस्कार वापसी है।
साल 2015 ने भी एक साल पहले की तरह देश
की राजनीतिक दिशा को बदलने का काम किया है।प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी
अभी तक राजनीतिक रूप से अपराजेय नजर आ रहे थे लेकिन अविश्‍वसनीय तरीके से
दिल्‍ली मे भाजपा महज तीन सीटों पर सिमट गयी ।इसी के साथ देश के राजनीतिक
और सामाजिक हालात तेजी से बदलते दिखे ।भूमि अधिग्रहण ,वन रैंक पेंशन और
राजनीतिक दलों के निजी मसलों पर सड़क से संसद तक गतिरोध देखा गया । जम्मू
कश्मीर, महाराष्ट्र, हरियाण और झारखंड में मोदी लहर पर सवार होकर जिस तरह
से भाजपा नीत एनडीए की सरकार बनी उसे रोकने में दिल्ली और बिहार ने अहम
भूमिका निभाई। इस दौरान कुछ प्रदेशों में स्थानीय निकाय चुनावों में भी
भाजपा को कड़ी टक्कर मिली और कहीं-कहीं तो हार का भी सामना करना
पड़ा।उत्‍तर प्रदेश के ग्राम सरकार चुनाव मे तो भाजपा जमीन तलाशती नजर
आयी ।मध्‍य प्रदेश मे पालिका चुनाव और बंगाल मे निकाय चुनाव मे भी उसे
हार का सामना करना पड़ा ।अलबत्‍ता इस मामले मे केरल से उसे खुशी मिली और
पहली बार जीत उसके खाते मे आयी ।लेकिन गुजरात निकायों मे उसे अपेक्षित
सफलता नही मिली । सभी ओपिनियन पोल और एक्जिट पोल को गलत साबित करते हुए
नीतीश कुमार नीत महागठबंधन ने बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा नीत
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को करारी शिकस्त दी। इस चुनाव की सबसे खास
बात यह रही कि विकास मुद्दे पर शुरू हुआ यह चुनाव आखिरकार जातिवाद और
प्रांतवाद के मुद्दे पर खत्म हुआ। साल 2015 में आतंकवाद का कहर और बढ़
गया। साल की शुरुआत में फ्रांस की राजधानी पेरिस में आतंकी घटना हुई तो
साल खत्म होते-होते फिर पेरिस ने एक और आतंकी हमला देखा, जिसने 130 से
ज्यादा लोगों की जान ले ली। इराक और सीरिया समेत दुनियाभर के और भी
हिस्सों में आईएसआईएस का आतंक देखने को मिला। हालांकि, इन पर अमेरिका के
नेतृत्व में गठबंधन सेना के हमले जारी रहे और इन हमलों में इस साल
फ्रांस, रूस और ब्रिटेन भी शामिल हो गए। इसके अलावा दुनिया के कई देशों
में भी आतंकवाद ने अपने पैर पसारे। इस साल 2015 में देश के विभिन्‍न
जगहों पर कई बड़ी आपराधिक और आतंकी घटनाएं हुईं। बहुचर्चित शीना बोरा
हत्याकांड, अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की गिरफ्तारी, मुंबई हमलों के दोषी
याकूब मेमन को फांसी, उधमपुर और गुरुदासपुर में आतंकी हमलों समेत कई बड़ी
घटनाएं सामने आईं। इन घटनाओं ने देश को झकझोर कर रख दिया। कई मामलों में
तो सियासत भी खूब हुई। देश की केंद्रीय सत्ता समेत विभिन्‍न राज्‍यों में
अनेक राजनीतिक घटनाएं हुईं, जो साल 2015 में सुर्खियों में बनी रही। देश
की राजनीति में विवाद, राजनेताओं के विवादित बयान, नेताओं का सम्‍मान,
भारत-पाक वार्ता, मोदी के विदेश दौरों को लेकर सवाल समेत कड़वी-मीठी
यादें देकर यह साल गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जनवरी में तीन
दिवसीय भारत यात्रा पर आए। गणतंत्र दिवस के मौके पर राजपथ पर मुख्य अतिथि
और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत की सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक
विविधता की झांकी देखी। सुरक्षा के लिहाज से किले के रूप में तबदील कर
दिए गए राजपथ पर देश के संविधान बनने के उत्सव पर ओबामा के सामने रंग
बिरंगी झाकियों के रूप में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की विरासत की
झलक दिखाई दी।
साल 2015 की झोली में खुशी-गम के
अलावा ऐसे लोगों का छोड़कर जाना भी याद कराएगा जिन्हें उनके कार्य से याद
किया जाता। इस फेहरिस्त में चाहे डॉ एपीजे अब्दुल कलाम हो या रजनी
कोठारी,आऱ के लक्ष्मण,कलबुर्गी-दाभोलकर औऱ पनेसर सहित अशोक सिघल जैसी
हस्तियां शामिल है। अपनी लगातार विदेश यात्राओं की वजह से विपक्ष के
निशाने पर आ चुके पीएम नरेंद्र मोदी ने वास्तव में सबसे ज्यादा देशों में
जाकर एक रिकार्ड बनाया है। उन्हें इसके लिए विपक्ष की आलोचना का शिकार
होना पड़ता है। वे सबसे कम समय में सबसे ज्यादा विदेश यात्रा करने वाले
भारतीय पीएम तो बन ही गए हैं साथ ही विश्व के दूसरे राष्ट्राध्यक्षों की
तुलना में भी मोदी ने ज्यादा विदेश यात्राएं की हैं।यहां तक कि अमेरिका
,चीन और जापान के प्रमुखों ने भी उनसे कम विदेश यात्राएं की । हालांकि
सरकार व साथी मंत्रियों का भी मानना है कि मोदी ने ये विदेश यात्राएं
नाहक नहीं की हैं और विदेश नीति के फ्रंट पर भी देश ने बड़ी उपलब्धियां
हासिल की हैं। विदेश मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि उन्होंने 2015-16
में 26 देशों की यात्रा की और वे लगभग 62 दिन यानी दो महीने तक विदेश में
ही रहे। सरकार कुछ भी कहे लेकिन विपक्ष के पास एक बहाना है मोदी की
आलोचना करने के लिए और बार-बार मोदी की विदेश यात्राओं का जिक्र होगा तो
जनता के बीच मैसेज यही जाएगा कि वे देश में कम रहते हैं और विदेश में
ज्यादा रहते हैं। ऐसे में मोदी के सामने नए साल में ये चुनौती बनी रहेगी
कि वे किस तरह से अपनी छवि को खराब होने से बचाएंगे या फिर इस धारणा को
बदलने का कोशिश करेंगे।
अब एक और नया साल शुरू हो चुका है इस
लिये हमे देखना है कि पर्यावरण क्षरण की असल बुनियाद कहां है, उससे किस
तरह निबटें? ठंडा पड़ता घरेलू माल तथा कृषि उत्पादन व निर्यात कैसे बढ़े?
गांवों से बड़ी आबादी के शहर की तरफ पलायन से बुरी तरह दरकते शहरी ढांचों
का सही रखरखाव किस तरह सुनिश्चित हो कि जनता के लिए वहां बुनियादी
सुविधाओं तथा सुरक्षा के साथ रहना संभव हो सके? एक लोकतंत्र में जमीनी
स्तर पर राज-समाज का जीवन और रोजगार चलाने वाले हमारे बीमार सरकारी
अर्धसरकारी संस्थानों का स्वास्थ्य किस तरह ठीक किया जाए? संसद के सत्र
सिर्फ रस्मनिभाई न हों, उनमें सार्थक बहसें कैसे हों? बुझते गांव और हताश
जनपद केंद्र के किसी विशेष पैकज के मोहताज न बनें, खुद अपने विकास में वे
सक्षम भागीदारी किस तरह करें ।देश के करोड़ों विकलांगों के लिए करुणा के
प्रतीकस्वरूप बयान देने की जरूरत अब नही है ।आने वाले दिनों मे उनके लिए
सही इलाज, बेहतर परिवहन साधन, नौकरियां और खास ट्रेनिंग की व्यवस्था
कराने की जरूरत है। केवल सम्‍बोधन के शब्‍द विकलांग से बदल कर दिव्यांग
कहकर पुकारने भर से उनका भला नही होने वाला है । सूबाई चुनावों में हार
से प्रधानमंत्री मोदी की छवि को सीधा नुकसान भले ही नहीं पहुंचा हो,
लेकिन भाजपा के लिए नई चुनौतियां जरूर खड़ी हो गई हैं। आने वाले साल में
असम, बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में चुनाव होने हैं। राज्यों के
क्षत्रपों और राष्ट्रीय दलों के सियासी दांवपेच के बीच सबकी नजर इस बात
पर रहेगी कि क्या मोदी का जादू बरकरार रह पाएगा ।ऐसा भी नही कि मोदी
सरकार ने कुछ काम नही किया , मोदी सरकार ने देश को ई-क्रांति की दिशा में
बढ़ने के लक्ष्य से डिजिटल इंडिया कार्यक्रम लांच किया। स्टार्ट अप
इंडिया कार्यक्रम की शुरुआत देश में छोटे उद्योगों को मकसद से शुरू की
गई। प्रधानमंत्री ने बिजली से वंचित 18,500 गांवों को एक हजार दिन में
बिजली देने का ऐलान किया। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शुरु की गई और
जुवेनाइल जस्टिस विधेयक पर अंतत: संसद की मुहर लग गई। लेकिन देश की असली
ताकत युवा है। युवा ही भारत का भविष्य है। अब युवाओं को अपनी जिम्मेदारी
समझनी होगी। युवाओं को राजनीति में आकर इसकी शुचिता की रक्षा करनी होगी।
युवा ही इस देश का भविष्य है। नई सोच। जागरण की अलख जगाने में अगर कोई
सक्षम है तो वे युवा ही हैं। अब जिम्मेदारी युवाओं पर है कि वह देश को
किस दिशा में ले जाना चाहते हैं।जॉन एफ केनेडी ने कहा था कि इस दुनिया की
समस्याओं का समाधान हमेशा संदेह जताने वालों और चिड़चिड़े लोगों द्वारा
नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनका वैचारिक आकाश सीमित होता है। हमें ऐसे
लोगों की जरूरत है, जो उन चीजों का सपना देखें, जो पहले कभी नहीं हुईं।
वर्षों के भ्रष्टाचार और अनदेखी के बाद भारत को नए रूप में उभारना आसान
काम नहीं है। यह काम सावधानीपूर्वक समाधानों को चुनने, उन्हें एक जगह
एकत्र करने और उन पर सही तरह अमल करने से किया जा सकता है।
** शाहिद नकवी **

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