आर्थिकी

कालाधन

 

कालेधन पर बहुत बात हो चुकी है। हमारे देश और समाज में गजब की असमानता और संतुलन का अभाव है। किसी के पास इतने धन है कि वह अपने, अपनों और सरकार से छुपाये छुपाये विदेशी बैंकों के शरण में पहुँच गया है। देश में कई कर्मचारी धन्ना सेठ निकल रहे हैं। कहीं अनाज खुले आसमान के नीचे सड़ रहे हैं तो कहीं भूख के मारे लोग दम तोड़ रहे हैं।

कालाधन वर्तमान समय का ज्वलन्त विषय है और इस विषय पर कहीं राजनीति हो रही है तो कहीं कार्यवाई भी चल रही है। और यह विषय विश्व भर के देशों में है। कानूनी प्रक्रिया, अंतरराष्ट्रीय समझौतों और स्वीस बैंक की गोपनियता के चक्कर में, कालेधन के कूबेरों को धन निकासी और उसको ठीकाने लगाने का पर्याप्त समय मिल गया है और ऐसा लगने लगा है कि जब हमारी सरकार सभी प्रकार की सबूत जुटा लेगी और हर प्रकार की कानून से गुजर जाऐगी तब तक उन्हें स्वीस बैंक में कुछ भी हाथ न लगे।

स्वीस बैंक ऐशोसियेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार-32 खरब डाॅलर विश्व भर के बैंकों में गैरकानूनी तौर पर मौजूद है जो धन लोगों ने टैक्स से बचने के लिये जमा कर रखे हैं और इतनी बड़ी रकम में से 7 खरब डाॅलर सिर्फ स्विस बैंकों में जमा है। स्विस बैंकों में 1456 अरब डाॅलर सिर्फ भारतीये के जमा है। यहाँ रूस, इंग्लैंड, चीन, पाकिस्तान, मैक्सिको, मलेशिश एवं अरब देशों के नागरिकों का काला धन भी बड़ी संख्या में जमा है।

काले धन की जमाखोरी ने विश्व अर्थव्यवस्था को लड़खड़ा दिया है और चरमराते अर्थव्याख्या ने विश्व के देशों को कालेधन के विरोध् में, सरकार के माध्यम से कठोर कदम उठाने पर मजबूर किया है। टैक्स से बचने के लिऐ लोग शील कम्पनियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन कम्पनियों की जमा रकम और काले धन जमा करने वालों का नाम गुप्त रखा जाता है। टैक्स चोरी के कारण बड़े-बड़े देशों की आर्थिक बोझ और असंतुलन के कारण जी.8 और जी.20 के सदस्य देशों ने इन गुमनाम कम्पनियों को अन्तरराष्ट्रीय समस्याओं की श्रेणी में रखते हुऐ। इन देशों ने कुछ कदम उठाऐ हैं। और कुछ समझौतो पर हस्ताक्षर भी हुऐ हैं। मगर अभी इस दिशा में प्रारम्भिक कदम ही उठाऐ गऐ हैं। अभी बहुत कुछ होना शेष है। स्वीस बैंकों में खाता खोलने और धन जमा करने के लिऐ बैंकों में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। करैन्ट और सेविंग एकाउन्ट के अतिरिक्त स्विस बैंक सीक्रेट एकाउन्ट खोलने के लिऐ भी जाना जाता है। जिसके अन्तर्गत खाताधारकों का नाम और उनके नाम पर जमा की गई राशि को गुप्त रखा जाता है और यह एकाउन्ट मात्रा एक पासवर्ड के तहत सरलता पूर्वक संचालित किए जाते हैं। जबकि आज भी हम उस व्यवस्था में जीवन बिता रहे हैं। जहाँ पर देश की राजधानी में रहनेवालों को जमा और निकासी के लिए पूरा पूरा दिन गवाना पड़ता है।

स्विस बैंकों में, बैंक ब्याज की रकम नहीं देती बलिक खाता धारकों के द्वारा बैंकों को सर्वीसेज चार्ज अदा करना पड़ता है। 300 वर्ष पुराने नियमों के अधीन बैंकों के द्वारा राशि के श्रोत की जानकारी के बगैर खाता खोल देती है और वह अपने ग्राहक के सम्बंध् में जानकारी देने के लिऐ भी बाध्य नहीं है। जबकि स्विस सरकार टैक्स की चोरी को बड़ा अपराध् मानती है। अगर किसी ग्राहक के सम्बंध् में टैक्स चोरी के प्रमाण प्रस्तुत किए जाऐ तो बैंक और स्वीस सरकार उस खाताधारकों के सम्बंध् में सूचना दे सकती है। स्वीस बैंक ऐशोसिएशन के अनुसार- उत्तराधिकारी, तलाक, कर्ज की वसुली, अथवा दिवालिया होने की स्थिति में या मनी लान्डरींग, क्रिमनल संगठनों से सम्बंध्, अथवा चोरी के आरोप की स्थिति में खाताधारकों के सम्बंध् में बैंकों के द्वारा सूचना देना कानून के अधीन अनिवार्य हो जाता है। स्विस कानून के तहत स्विस न्यायालय अपने अनुसंधान मं पाता है कि बैंकों में जमा की गई राशि गैर कानुनी है तो उस खाता धारकों की जमा राशि को जब्त करके सम्बंधित सरकारों की राशि हस्तांतरित किया जाने का प्रावधन है। मगर वर्तमान बदलते परिवेश में मनी लान्डरींग और कालेधन ट्रांजक्शन, नीत नऐ कानून बनने और सरकारों की तत्पड़ता से कठिन कठिन होता जा रहा है। मगर टैक्स चोरों ने अन्य उपाय तो तलाश कर लिये होंगे

कालेधन और मनी लान्डरींग जो अन्तराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिऐ सबसे बड़ी चुनौती बन कर सामने आई है। विश्व भर के 51 देशों के प्रतिनिधियों के द्वारा जर्मनी की राजधानी वर्लीन में एक संधि पर हस्ताक्षर हुए और इस पर विस्तृत चर्चाऐं भी सम्पन्न हुई। इस संधि के आधार पर 2017 से सम्बंधित सूचनाओं का आदान प्रदान एक देश दूसरे देशों के बैंकों से कर पाऐंगे। इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में, ब्रिटेन, प्रंफास, इटली, जर्मनी, लेक्जमवर्ग, नीदरलैंड, पोलैंड, पुर्तगाल, स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, मैकसीको, कोरिया, अर्जेनटीना, अस्ट्रेलिया जैसे 51 देश शामिल है। 51 देशों के अन्तर्राष्ट्रीय संधि के प्रारम्भिक दौर में स्वीटजरलैंड वार्ता में अवश्य ही शामिल हुआ था परन्तु अन्तिम समय पर उन्होंने संधि पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया, जबकि इस अंतराष्ट्रीय संधि पर जिन 39 विश्व के देशों ने हस्ताक्षर नहीं किऐ हैं उसमें भारत भी है।

उच्चतम न्यायालय ने 30 अक्टूबर 2014 को अपने आदेश में सरकार से कहा कि वह 627 खाताधारकों के नामों की सूची न्यायालय में जमा करवाऐं और भारत सरकार की ओर से वित्त मंत्राी ने इनके नामों की सूचि न्यायालय में जमा करवाई। सीबीआई के एक रिपोर्ट के आधार पर कुछ भारतीये व्यापारियों ने मारिशस, ब्रिटेन, आयरलैंड और स्वीटजरलैंड जैसे देशों में 500 अरब डालर से अधिक का धन छुपा रखा है। और सबसे अधिक भारतीयों का धन स्विस बैंक में जमा है। इतने भारी भरकम धन का लाभ भारतीये अर्थव्यवस्था को न पहुँच कर इसका लाभ कोई अन्य देश उठा रहा है। जबकि यह धन भारत और भारतीय जनता की सम्पत्ति है और इसका लाभ भी इन्हें भी कानूनी रूप से प्राप्त होना चाहिए।

फखरे आलम