प्रवक्ता न्यूज़

कलावती लड़ेगी चुनाव तो राहुल कहाँ जायेंगे


लोकतंत्र के चाहने वालों के लिए एक और खुशखबरी है .आगामी महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव में कलावkalavatiती चुनाव लड़ रही है .पिछले साल सुर्खियों में रहने वाली विदर्भ के किसान की विधवा और ७ बच्चों की माँ कलावती यवतमाल के वणी विधानसभा सीट से चुनावी समर में कूद पड़ी हैं . कलावती ने तमाम राजनितिक दलों के टिकट को ठुकराकर विदर्भ जनांदोलन समिति और शेतकरी संघर्ष समिति के बैनर तले चुनाव लड़ना स्वीकार किया है .

कलावती को आप कैसे भूल सकते हैं , राहुल गाँधी की राजनीति में विदर्भ की कलावती का नाम सांसद तक में गूंजा था .पूरा देश कलावतीमय हो गया था . राहुल के दलित,गरीब और किसान प्रेम से भारतवासी चकित थे . दलित नेताओं की कुर्सी उसी तरह हिलने लगी थी जैसा किसी तपस्वी के तप से इन्द्र का सिंघासन !

ऐसा नहीं है कि कलावती अचानक से राजनीति में आ गयी है .विगत एक वर्ष में कलावती ने विदर्भ के आंदोलनकारी किसान नेता किशोर तिवारी के साथ मिलकर किसानों को फसल ऋण और कर्जमाफी के लिए दर्जनों आन्दोलन और धरनों का प्रतिनिधित्व किया है . अपनी भूख और गरीबी से लड़ने के लिए कलावती ने खुद को किसी बड़े नेता के सहयोग की मोहताज समझा . आखिर पूरी दुनिया में उनका नाम जो हो गया है . इसीलिए किसी बड़े नेता की बाट जोहने के बजाय खुद को ही संघर्ष के लिए तैयार कर लिया.

महिला आरक्षण पर चर्चा के दौरान भी लालू प्रसाद यादव ने कलावती, भगवती की चर्चा कर डाली थी . लालू ने इस बिल पर बोलते हुए कहा कि इसमें ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे कलावती जैसी करीब महिलाएं भी संसद में आ सकें. आज कलावती विधानसभा में आने को कमर कस चुकी है . आगे -आगे देखिये होता है क्या ?

सामुदायिक ब्लॉग ” सच बोलना मना है “ पर प्रकाशित दीपाली पाण्डेय की इस रपट को पढ़कर वाकई भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का अहसास होता है .एक विधवा जिसके किसान पति ने आत्महत्या कर ली हो उसका यूँ चुनाव में खड़े होने लोकतंत्र के इतिहास मेंअनोखी घटना है . बहुबल और धनबल की जोर आजमाइश में हक़ की लड़ाई लड़ना  एक साहसिक और सराहनीय कदम है . बहरहाल , इसी तरह आम आदमी अपने प्रतिनिधित्व के लिए खुद आगे आये तो राहुल गाँधी जैसे अनुकम्पा वाले नेताओं को और कलावतियों के नाम पर अपनी राजनीति चमकाने का अवसर नहीं मिलेगा .