इस्लाम को कलंकित करती है कन्हैया की हत्या

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                                                                               तनवीर जाफ़री

 मंहगाई,बेरोज़गारी,भय,भूख,भ्रष्टाचार ,सांप्रदायिकता,जातिवाद,लोकतांत्रिक,आर्थिक व सीमावर्ती चुनौतियों जैसी अनेक समस्याओं से जूझ रहे हमारे देश में आये दिन कोई न कोई ऐसा  ‘भूचाल ‘ आ जाता है या जानबूझकर लाया जाता है जिससे देश की यह वास्तविक समस्यायें नेपथ्य में चली जाती हैं। ऐसा ही एक विषय जिसे लेकर विगत एक महीने से भी अधिक समय से पूरा देश उद्वेलित हो रहा है वह है भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता के रूप में एक भाजपाई नेत्री नूपुर शर्मा द्वारा गत 27 मई को ज्ञानवापी मस्जिद के मुद्दे पर एक टीवी चैनल पर डिबेट के दौरान पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद साहब पर की गई एक आपत्तिजनक टिप्पणी। नूपुर शर्मा द्वारा पैग़ंबर मोहम्मद साहब पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद मुस्लिम समुदाय के लोग देश के कई राज्यों में सड़कों पर प्रदर्शन करने उतर आए थे। इस दौरान कई जगहों पर प्रदर्शनकारियों के उग्र हो जाने के चलते हिंसा भी भड़क उठी थी। कई इस्लामिक देशों ने भी इस टिप्पणी पर भारत सरकार से नाराज़गी दर्ज कराई थी। परिणाम स्वरूप भाजपा ने नूपुर शर्मा को प्रवक्ता पद व पार्टी से हटाते हुए यह भी कहा था कि नूपुर शर्मा का बयान भारत सरकार का मंतव्य नहीं है। परन्तु दो कट्टरपंथी लोगों ने इसी प्रकरण के चलते पिछले दिनों उदयपुर में नुपुर शर्मा समर्थक कन्हैया नामक एक दर्ज़ी की बेरहमी से गला रेत कर हत्या कर दी। बताया जा रहा है कि हत्यारों में से एक कुछ समय पूर्व पाकिस्तान भी गया था अतः इस हत्याकांड में पाकिस्तान की कथित साज़िश की भी पड़ताल की जा रही है।

                                           इन सब के बीच इसी प्रकरण में पिछले दिनों देश के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश जेबी परदीवाला की अवकाशकालीन बेंच ने नुपुर शर्मा की एक अर्ज़ी पर सुनवाई करते हुए उसे कड़ी फटकार लगाई और कहा कि शर्मा के बयान ने पूरे देश में अशांति फैला दी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान नुपुर शर्मा की टिप्पणियों को “तकलीफ़देह” बताया और कहा कि “उनको ऐसा बयान देने की क्या ज़रूरत थी?” सर्वोच न्यायालय ने ये सवाल भी किया कि एक टीवी चैनल का एजेंडा चलाने के अलावा ऐसे मामले पर डिबेट करने का क्या मक़सद था, जो पहले ही न्यायालय के अधीन है? माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने शर्मा की बयानबाज़ी पर सवाल किया और कहा, “अगर आप एक पार्टी की प्रवक्ता हैं, तो आपके पास इस तरह के बयान देने का लाइसेंस नहीं है.” सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उन्हें टीवी पर जाकर पूरे देश से माफ़ी मांगनी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “जिस तरह से नुपुर शर्मा ने देशभर में भावनाओं को उकसाया, ऐसे में देश में ये जो भी हो रहा है उसके लिए वह अकेली ज़िम्मेदार हैं। माननीय अदालत ने यह भी कहा, “जब आपके ख़िलाफ़ एफ़आईआर हो और आपको गिरफ़्तार नहीं किया जाए, तो ये आपकी पहुँच को दिखाता है। उन्हें लगता है उनके पीछे लोग हैं और वो ग़ैर-ज़िम्मेदार बयान देती रहती हैं”। अदालत ने इसके अतिरिक्त भी अनेक तल्ख़ टिप्पणियां कीं।

                                              उपरोक्त अदालती टिप्पणियों से एक बार फिर यह ज़ाहिर हो गया कि देश में सत्ता अपने निजी एजेंडे पर चलने के लिये भले ही बेलगाम क्यों न हो परन्तु इसके बावजूद देश में क़ानून का राज है और देश की अदालतों के फ़ैसले ही सर्वमान्य हैं। परन्तु यदि कोई भी पक्ष भावनाओं को भड़काने के नाम पर हिंसा का सहारा ले या निर्मम हत्या का सहारा लेने लगे तो उसे किसी भी क़ीमत पर सही नहीं ठहराया जा सकता। वैसे भी यदि पूरे विश्व में ‘भावनाओं को भड़काने’ के नाम पर हत्याएं होने लगें और क़ानून के बजाये हिंसा का सहारा लिया जाने लगे फिर तो पूरा संसार ही सुलग उठेगा। आज इस दुनिया में जहां हज़रत इमाम हुसैन के मानने और उनपर अपनी जान तक न्योछावर करने वाले करोड़ों लोग हैं वहीं दुनिया में यज़ीद समर्थक भी मौजूद हैं। राम को आराध्य मानने वाले हैं तो रावण के समर्थक भी मिल जायेंगे। जहां हमारे ही देश में गाँधी को महात्मा कहने व उन्हें अपना आदर्श मानने वाले हैं वहीं उनके हत्यारे गोडसे के चाहने वालों की भी कमी नहीं। तो क्या वैचारिक मतभेद के चलते लोगों की ‘भावना आहत’ हो और लोग एक दूसरे की हत्या और हिंसा पर उतारू हो जायें ?

                                            कोई भी व्यक्ति किसी के भी विचारों से सहमत या असहमत हो सकता है। अकेले कन्हैया लाल ही नुपुर शर्मा का समर्थक नहीं बल्कि लाखों लोग उसके साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। यदि उदयपुर जैसी घटना हर जगह घटित होने लगे फिर तो न क़ानून बचेगा न देश न ही इंसानियत। वैसे भी क्रूर हत्यारों ने जिस तरह कन्हैया की हत्या कर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को धमकी दे डाली और हत्या की वीडीओ बनाकर सोशल मीडिया पर डालने जैसा दुस्साहस किया वह निश्चित रूप से न केवल अक्षम्य अपराध है बल्कि यह किसी बड़ी साज़िश का हिस्सा भी प्रतीत होता है। इस्लाम धर्म वैसे भी बदले से अधिक क्षमा करने की प्रेरणा देता है। अपने उद्भव काल से लेकर आज तक पूरे विश्व में इस्लाम की बदनामी व रुस्वाई का कारण ही कट्टरपंथी व अतिवादी मुसलमानों के हिंसक कारनामे रहे हैं। करबला से लेकर तालिबानी अफ़ग़ानिस्तान तक इसके अनेक उदाहरण नज़र आते हैं। नुपुर शर्मा के आपत्तिजनक बयान से दुनिया के मुसलमानों में जितना उबाल आया था वैसी ही स्थिति कन्हैया की बेरहमी से की गयी हत्या के बाद खड़ी हो गयी है। मुसलमानों के विरोध के मौक़े की तलाश में बैठे लोगों को एक बार फिर ‘ऊर्जा ‘ मिल गयी है जिसके ज़िम्मेदार कन्हैया के हत्यारे तथा ‘ धार्मिक भावनाओं ‘ के नाम पर हिंसा भड़काने वाले अतिवादी प्रवृति के लोग हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस्लाम और इंसानियत दोनों को ही कलंकित करती है कन्हैय्या की नृशंस हत्या। 

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