काशी होगी पूर्वांचल का पालटिक्स केंद्र

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   प्रभुनाथ शुक्ल
कुछ माह बाद 2019 में लोकसभा के आम चुनाव होने हैं। लिहाजा देश का मूड चुनावी है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में हो रहे आम चुनाव गुलाबी ठंड में भी तपिस बढ़ा दी है। कर्नाटक में हुए उपचुनाव और उसके बाद आए परिणाम ने इस सरगर्मी को और बढ़ा दिया है। गैर भाजपाई दल राज्य विधानसभा चुनाओं को जहां भाजपा और मोदी के लिए प्री-पालटिक्स टेस्ट मान रहे हैं। वहीं कर्नाटक की जीत को महागठबंधन के लिए सरकारात्मक बताया जा रहा है। लेकिन 2019 का फाइनल टेस्ट चार राज्यों के विधानसभा परिणाम को बताया जा रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश के बगैर देश की राजनीतिक अधूरी है। भाजपा और मोदी की निगाह इस वक्त सिर्फ उत्तर प्रदेश पर टिकी है। क्योंकि दिल्ली का रास्ता वाया लखनउ से होकर गुजरता है। उसमें भी पूर्वांचल का हिस्सा किसी भी राजनीतिक दल के लिए बेहद अहम है। 
वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी का दौरा देश की राजनीतिक सरगर्मी को और बढ़ा दिया है। भाजपा चुनावी खेल को फं्रट पर आकर खेल रही है जबकि कांग्रेस और दूसरे दल अभी काफी पीछे दिखते हैं। पीएम मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी यानी काशी में तोहफें की जो बारिश किया उससे यह साबित हो गया है 2019 में मोदी का चुनावी रण काशी ही होगा और वाराणसी से वह दूसरी बार उम्मीदवार होंगे। भाजपा पूर्वांचल को पालटिक्स पावर सेंटर बनाना चाहती है। जिसकी वजह है प्रधानमंत्री ने विकास का पीटारा खोलकर पूर्वांचल को साधने की कोशिश की है। हांलाकि 2019 में यह कितना कामयाब होगा यह वक्त बताएगा। क्योंकि अगर सपा-बसपा एक साथ आए तो भाजपा के लिए पूर्वांचल बड़ी चुनौती होगा। उसी को ध्यान में रखते हुए भाजपा विकास की आड़ में अपना राजनैतिक खेल अभी से शुरु कर दिया है। चुनावी तैयारियों की जहां तक बात करें तो अभी भारतीय जनता पार्टी और टीम अमितशाह सबसे आगे दिखती है। क्योंकि लोगों को साधने के लिए भाजपा के पास अच्छा मौका है। जब तक चुनावी आचार संहिता नहीं लागू होती है तब तक विकास की आड़ में चुनावी तोहफों की झमाझम बारिश की जा सकती है। इसकी वजह है केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार। लिहाजा वह विकास की आड़ में चुनावी खेल खेलने में कोेई भूल नहीं करना चाहती है। जबकि विपक्ष के पास आरोप-प्रत्यारोप के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा है। अब 2019 में काशी की जनता मोदी को कितना पसंद करती है यह कहना जल्दबाजी होगी। क्योंकि भाजपा की पूरी कोशिश है कि 2014 में पूर्वांचल में पार्टी को जो सफलता मिली है उस पर कब्जा बरकरार रखा जाए जिसकी वजह है पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी को पूर्वांचल के पालटिक्स पावर सेंटर के रुप में स्थापित किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबका साथ सबका विकास के मूलमंत्र को आगे बढ़ाते हुए एक बार काशी से पूरे देश को यह संदेश दिया है कि वह विकास की बात करते हैं जबकि विपक्ष राफेल, जीएसटी और नोटबंदी की बात करता है। वाराणसी दौरे में इस बात को उन्होंने उल्लेख भी किया है। पीएम मोदी ने वाराणसी को 2400 करोड़ की विकास योजनाओं की सौगात दी है। निश्चित रुप से यह अपने आप में अहम है। उन्होंने आतंरिक जलमार्गों के इतिहास में एक बड़ी उपलब्धि जोड़ी है। सीधे कोलकाता यानी हल्दिया से वाराणसी को जोड़ा है। 200 करोड़ की लागत से बने देश के पहले मल्टी माडल टर्मिनल का लोकार्पण कर विकास का नया इतिहास लिखा है। मोदी ने अपने संबोधन में इस बात का उल्लेख भी किया कि जो काम बहुत पहले हो जाना चाहिए था वह अब हो रहा है। जलमार्ग के जरिए पूरे पूर्वांचल को जोड़ने की एक नयी सोच विकास में कितना खरी उतरेगी यह तो वक्त बताएगा। लेकिन मोदी ने इसके जरिए पूर्वांचल की जनता का दिल जीत लिया है। इस दौरान गडकरी ने कहा कि पहली बार गंगा के जरिए 16 कंटेनर यहां पहुंचे हैं। गंगा के जरिए भविष्य में 270 लाख टन का परिवहन होगा। हालांकि गर्मियों में जब गंगा में पानी की कम होगा तब यह दावा कितना सफल होता है यह देखना होगा। इसके अलावा बावतपुर एयरपोर्ट से सीधे फोरलेन के जरिए वाराणसी को जोड़ा गया है। 16 किमी रिंग रोड़ का निर्माण किया गया है। काशी को केंद्र मान कर इसके चारों तरफ सड़कों को जाल बिछाया गया है। यह सब बातें बेहद अच्छी हैं। पीएम मोदी की वजह से वाराणसी का विकास हुआ इसमें कोई शक भी नहीं है। लेकिन चुनावी मौसम में यह कितना धरातलीय होगा यह देखना होगा।
गंगा की सफाई मोदी सरकार की प्राथमिकता थी, लेकिन पांच साल बाद भी गंगा कितनी साफ हुई यह कहने की बात नहीं है। काशी को क्वेटो बनाने की मुहिम अभी तक परवान नहीं चढ़ी हैं। जिसकी वजह से सरकार की की कथनी और करनी में काफी अंतर दिखता है। विकास के नाम पर गंगा के घाटों और गलियों के मूल स्वरुप को नुकसान पहुंचाया गया है। जिसकी वजह से काशी के वासिंदे बहोत खुश नहीं हैं। गंगा से सीधे बाबा विश्वनाथ मंदिर मार्ग का चैड़ीकरण वहां के लोगों के गुस्से का कारण बना है। क्योंकि इसकी वजह से काफी लोग बेघर हो जाएंगे और काशी के मूल स्वरुप को नुकसान होगा। हांलाकि गंगा की सफाई मोदी सरकार की प्राथमिकता है, लेकिन उसकी गति बेहद धीमी रही है। दूसरी तरह पूर्वांचल की चीनी मिलें, साड़ी उद्योग, कालीन उद्योग दमतोड़ चुका है। वाराणसी में आज भी गंगा घाटों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। स्वच्छता को अभियान तो एक दिवा स्वप्न भर दिखता है। केंद्रीय मंत्री नीतिन गड़करी ने कहा है कि अगले साल मार्च तक गंगा 80 फीसदी साफ हो जाएंगी। सरकार गंगा सफाई के लिए 10 हजार करोड़ की परियोजना लायी है। यह अपने आप में कितना सच होगा फिलहाल अभी कुछ कहना मुश्किल है।
भाजपा वाराणसी को पूर्वांचल का पालटिक्स पावर सेंटर बनाकर यहां से पूर्वांचल की 22 संसदीय सीटों पर नजर रखना चाहती है। वह काशी प्रांत पर अपनी पकड़ ढ़िली नहीं होने देना चाहती है। वाराणसी से सटे बिहार के राजनीतिक हल्कों पर भी पूरी पकड़ मजबूत रखना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास पीटारे ने यह साबित कर दिया है कि भाजपा किसी भी कीमत पर पूर्वांचल को खोना नहीं चाहती है। वह 2014 की तरह 2019 में भी अपना प्रदर्शन दोहराना चाहती है। वाराणसी देश की धार्मिक और सांस्कृतिक राजधानी है। देश और दुनिया में इसकी अलग पहचान है। कांगे्रस के दौर में भी वाराणसी राजनीतिक का केंद्र रहा था। मोदी युग में यह सोच और आगे बढ़ी है। दूसरी सबसे अहम बात यह है कि राज्य और पूर्वांचल की पिछड़ी जातियों पर भाजपा की पूरी निगाह है। यूपी में 32 फीसदी पिछड़ी जाति के लोग हैं। जबकि पीएम मोदी भी पिछड़ी जाति से आते हैं। दूसरी बात पूर्वांचल सबसे पिछड़ा क्षेत्र रहा है। इसके अलावा यहां से बिहार की बक्सर, आरा और गया करीब है। जबकि छत्तीसगढ़ की पलामू सीट में नजदीक है। जिसकी वजह से पीएम मोदी के काशी से दोबारा चुनाव लड़ने पर इसका पूरे पूर्वांचल के साथ बिहार और छत्तीसगढ़ पर भी असर दिखेगा। जिसकी वजह से भाजपा एक रणनीति के तहत मोदी को यहां से दोबारा चुनाव मैदान में उतारना चाहती है। अब देखना यह होगा कि 2019 में बदलते राजनीतिक समीकरण में भाजपा कितना कामयाब होगी।

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