कायस्थ समाज आज मना रहा है अपने कुल देवता भगवान चित्रगुप्त जी की जयंती

1
293

                                                                                                                   

 संजय सक्सेना
           पूरा देश जहां भैया दूज मना रहा है,वहीं कायस्थ समाज भैया दूज के साथ-साथ आज अपने कुल देवता भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज की जयंती भी मना रहा है। आज के दिन कायस्थ समाज परम्परागत रूप से कलम-दवात की पूजा करके विद्या की देवी माॅ सरस्वती की भी पूजा करता है। भगवान चित्रगुप्त के बारे में सभी जानते होंगे। चित्रगुप्त एक प्रमुख हिन्दू देवता हैं। वेदों और पुराणों के अनुसार धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी अपने दरबार में मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करके न्याय करने वाले बताए गये हैं।आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि हमारे मन में जो भी विचार आते हैं वे सभी चित्रों के रुप में होते हैं। भगवान चित्रगुप्त इन सभी विचारों के चित्रों को गुप्त रूप से संचित करके रखते ह।ैं अंत समय में ये सभी चित्र दृष्टिपटल पर रखे जाते हैं एवं इन्हीं के आधार पर जीवों के पारलोक व पुनर्जन्म का निर्णय सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश भगवान चित्रगुप्त करते हैं। विज्ञान ने यह भी सिद्ध किया है कि मृत्यु के पश्चात जीव का मस्तिष्क कुछ समय कार्य करता है और इस दौरान जीवन में घटित प्रत्येक घटना के चित्र मस्तिष्क में चलते रहते हैं। इसे ही हजारों बर्षों पूर्व हमारे वेदों में लिखा गया हैं। जिस प्रकार शनि देव सृष्टि के प्रथम दण्डाधिकारी हैं भगवान चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश हैं, उन्हें न्याय का देवता माना जाता है।  मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात, पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नरक का निर्णय लेने का अधिकार चित्रगुप्त के पास है। अर्थात किस को स्वर्ग मिलेगा और कौन नर्क में जाएगा? इस बात का निर्धारण भगवान धर्मराज चित्रगुप्त जी द्वारा ही किया जाता है। श्री चित्रगुप्त जी महाराज के बारे में ऐसी मान्यता है कि वह यमराज के यमलोक में नाना प्रकार के जीव-जन्तुओं के कर्मोे का हिसाब किताब रखते थे। चित्रगुप्त जी महाराज  यमराज के बहनोई हैं। ब्रह्मा की काया से उत्पन्न होने के कारण इन्हें ‘कायस्थ’ भी कहा जाता है। विश्वकर्मा की तरह ही कायस्थ समाज के लोग ब्राह्मणों का उपवर्ग हैं। गरूड़ पुराण में यमलोक के निकट ही चित्रलोक की स्थिति बताई गई है।
    कायस्थ समाज के लोग भाईदूज के दिन श्री चित्रगुप्त जयंती मनाते हैं। इस दिन पर वे कलम-दवात की पूजा करते हैं जिसमें पेन, कागज और पुस्तकों की पूजा होती है। यह वह दिन है, जब भगवान श्री चित्रगुप्त का उद्भव ब्रह्माजी के द्वारा हुआ था। चित्रगुप्त के अम्बष्ट, माथुर तथा गौड़ आदि नाम से कुल 12 पुत्र हुए। मतांतर से चित्रगुप्त के पिता मित्त नामक कायस्थ थे। इनकी बहन का नाम चित्रा था। पिता के देहावसान के उपरांत प्रभास क्षेत्र में जाकर सूर्य की तपस्या की जिसके फल से इन्हें ज्ञान हुआ। वर्तमान समय में कायस्थ जाति के लोग चित्रगुप्त के ही वंशज कहे जाते हैं।
कायस्थ समाज के लोग देशभर में फैले हुए हैंे। कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्यभारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं।कायस्थों को मूलतः12 उपवर्गों में विभाजित किया गया है। यह 12 वर्ग श्री चित्रगुप्त की पत्नियों देवी शोभावती और देवी नंदिनी के 12 सुपुत्रों के वंश के आधार पर है। भानु, विभानु, विश्वभानु, वीर्यभानु, चारु, सुचारु, चित्र (चित्राख्य), मतिभान (हस्तीवर्ण), हिमवान (हिमवर्ण), चित्रचारु, चित्रचरण और अतीन्द्रिय (जितेंद्रिय)।उपरोक्त पुत्रों के वंश अनुसार कायस्थ की 12 शाखाएं हो गईं- श्रीवास्तव, सूर्यध्वज, वाल्मीकि, अष्ठाना, माथुर, गौड़, भटनागर, सक्सेना, अम्बष्ठ, निगम, कर्ण और कुलश्रेष्ठ।श्री चित्रगुप्तजी के 12 पुत्रों का विवाह नागराज वासुकि की 12 कन्याओं से हुआ जिससे कि कायस्थों की ननिहाल नागवंशी मानी जाती है। माता नंदिनी के 4 पुत्र कश्मीर में जाकर बसे तथा ऐरावती एवं शोभावती के 8 पुत्र गौड़ देश के आसपास बिहार, ओडिशा तथा बंगाल में जा बसे। बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था।

1 COMMENT

  1. माननीय सक्सेना साहब, क्षमा के साथ आपके आलेख से इतेफाक नही रखता. आदि पिता सह कुलदेवता की दोनो पत्नियां यानी अपनी अदिमाता एक क्षत्रिय वर्ण की थीं और एक ब्रह्मण्ड वर्ण की. तो अपना ननिहाल है क्षत्रिय और ब्रह्ममणों के घर. सकल चराचर जगत की उत्पत्ति जो चार वर्णों में है के बाद श्री चित्रगुप्त जी महाराज की उत्पत्ति हुई. इसलिए कायस्थ किसी भी वर्ण मे नही है तो उपजात कैसे हो सकता है ? केवल कायस्थों को ही शस्त्र और शास्त्र का अधिकार है और संभवतः वेदाध्ययन न करने के कारण कायस्थ स्वयं से अनभिज्ञ हो गए हैं. अत्एव कायस्थ क्षत्रिय और ब्रहमण से श्रेष्ठ और पूज्य हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here