सुरेश हिन्दुस्थानी
जैसे जैसे दिल्ली विधानसभा की तारीखें नजदीक आती जा रहीं हैं, वैसे ही चुनाव प्रचार में उफान आता जा रहा है। इस चुनाव में जहां भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, वहीं आम आदमी पार्टी भी स्वयं को कमतर मानकर नहीं चल रही। भाजपा रणनीतिक तरीके दिल्ली के चुनाव को लड़ रही है, उसने अपनी इसी नीति के तहत ‘आप’ प्रमुख अरविन्द केजरीवाल के समक्ष सवालों का जो पुलिन्दा दागा है, केजरीवाल उन सवालों से किनारा करते दिखाई दे रहे हैं। सवालों का जवाब न देकर वे अपने स्वभाव के अनुसार पिछले चुनावों की तरह ही आरोप प्रत्यारोप की राजनीति कर रहे हैं। अपने 49 दिनों के कार्यकाल के बारे में याद ही नहीं करते। इससे ऐसा लगता है कि स्वयं केजरीवाल भी यह मान चुके हैं कि उनके वे 49 दिन सबक सिखाने का रास्ता बनकर राह का रोड़ा बन गया है। उन्होंने सरकार छोड़कर बहुत बड़ी भूल की थी। इस भूल को उनकी सनक भी कह सकते हैं। इसी सनक के चलते आम आदमी पार्टी से कई संस्थापक सदस्य तक किनारा कर गए हैं, और किनारा कर रहे हैं। अरविन्द केजरीवाल की सनक के कारण ही यह भी कहा जाने लगा है कि आम आदमी पार्टी में लोकतंत्र ही समाप्त हो गया है, केवल केजरीवाल जैसा चाहते हैं, वही होता है। आप में केवल चार पांच व्यक्तियों की मित्र मंडली ही सारे निर्णय करती है। इससे यह प्रमाणित होता है कि आप पार्टी आज पूरी तरह से कांगे्रस के नक्शे कदम पर ही कदमताल कर रही है।
दिल्ली के चुनाव पर पूरे देश की निगाहें हैं। दिल्ली विधानसभा के चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह चुनाव भाजपा के विजय रथ के लिए अहम पड़ाव है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों में एक के बाद जीत का इतिहास रच रही भाजपा के लिए यह चुनाव अपनी ताकत को दिखाने का अवसर है। दिल्ली विधानसभा की चुनावी जंग दिनों दिन रोचक होती जा रही है। अन्ना के जनलोकपाल आंदोलन से निकले दो चेहरे इस चुनाव मेें आमने-सामने हैं, वहीं यह चुनाव आने वाले दिनों में पूरे देश को बताएंगें कि क्यों भाजपा देश के अन्य राजनैतिक दलों से अलग है, भाजपा के बारे में प्राय: यही जन धारणा है कि भाजपा राष्ट्रीय हितों के मसले पर अन्य दलों से बेहतर चिन्तन करती दिखती है। उसके पास सांगठनिक स्तर पर समर्पित कार्यकर्ताओं का एक ऐसा समूह है जो केवल और केवल पार्टी के बारे में ही सोचता है। इसके अलावा राष्ट्रहित व जनहित के मुद्दों पर भाजपा का रुख भी जगजाहिर है।
दिल्ली में दस साल तक सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस चुनावी घमासान में दूर-दूर तक मुकाबले में नहीं है। कांगे्रस की ओर से कमान संभाल रहे अजय माकन भी कांगे्रस के अस्तित्व में सुधार के संकेत देने में असमर्थ साबित हो रहे हैं। इतना ही नहीं कांगे्रस के राहुल गांधी भी सड़क प्रदर्शन करके पार्टी की छवि को उस स्तर पर नहीं ले जा पाएं हैं, जिसकी उम्मीद कांगे्रस कर रही है। रहा सवाल आम आदमी पार्टी का तो भाजपा ने चुनावी जंग के बीच पांच सवाल पूछ कर आम आदमी पार्टी को उसके ही दावों पर पटखनी देकर पहले ही हमले में चारों खाने चित्त कर दिया। भाजपा केजरीवाल के क्रेज की असलियत जनता के सामने लाई है। अनर्गल बयानबाजी करने वाले आप के मुखिया अरविन्द केजरीवाल के पास भाजपा के सवालों के जवाब नहीं हैं। भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी पर बहस से बचने का आरोप लगाने वाले केजरीवाल भाजपा के पांच सवालों का जवाब देने से क्यों कतरा रहे हैं? खुद को आम आदमी का प्रतिनिधि बताने वाले अरविन्द केजरीवाल यह बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं कि उन्होंने जनता से किए वादे और घोषणाओं को पूरा क्यों नहीं किया।
अच्छा होता केजरीवाल दिल्ली के मतदाताओं को बताते कि कांग्रेस का समर्थन न लेने की घोषणा करने वाली आप ने सत्ता की किस लालसा के लिए कांग्रेस का समर्थन लेकर सरकार बनाई। आप की ओर से भाजपा के इस सवाल का जवाब दिया गया और न ही चार अन्य सवालों का। आम आदमी पार्टी की तरफ से सवालों के जवाब को लेकर जो प्रतिक्रिया सामने आई है वह हास्यास्पद और बचकानी है। आम आदमी पार्टी के योगेन्द्र यादव ने इस मामले में जो बयान दिया है, वह आप की पोल खोलने के लिए काफी है। बहरहाल भाजपा ने तय किया है वह आम आदमी पार्टी से प्रतिदिन चुनाव प्रचार समाप्त होने तक पांच सवाल पूछेगी। सवालों के इस क्रम में पहले ही दिन आम आदमी पार्टी ने ठोस जवाब न देकर यह स्पष्ट कर दिया कि जनता को झूठे वादे और घोषणाएं कर जनता को गुमराह करने में उसका कोई सानी नहीं है। यही वजह रही कि अपनी स्थापना के बाद देश के राजनैतिक परिदृश्य पर तेजी से उभरी आम आदमी पार्टी को पूरे देश ने उतनी ही जल्दी नकार भी दिया। दिल्ली में आप का जो थोड़ा-बहुत अस्तित्व बचा है वह भी इस चुनाव के बाद ढूंढे नहीं मिलेगा। देश की राजनीति में कांग्रेस का भी यही हश्र हुआ। पिछले लोकसभा चुनाव में गठबंधन की राजनीति के दौर में सत्ता को ब्लैकमेल का हथियार बनाने वाले क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व भी नहीं बचा। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश की जनता ने भाजपा को जो जनादेश दिया है, उससे स्पष्ट है कि देश की जनता का भरोसा सिर्फ और सिर्फ भाजपा में है। हरियाणा, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनावों में भी मतदाताओं ने इसी भरोसे को दोहराया। अब जंग दिल्ली में है और जनता के भरोसे का इतिहास फिर दोहराने का दौर चल पड़ा है। अरविन्द केजरीवाल अपने प्रचार अभियान में कांग्रेस को कोसें लेकिन उनके पास भाजपा के इस सवाल का भी जवाब नहीं है कि वह दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ जांच बैठाने के अपने वादे से क्यों मुकर गए। सरकार आने के बाद उन्होंने जांच क्यों नहीं बैठाई। आप की कथनी और करनी के इसी फर्क की टीस दिल्ली के मतदाताओं को है। जिस दिल्ली ने केजरीवाल और उनकी पार्टी को सर आंखों पर बैठाया उसी केजरीवाल ने दिल्ली के मतदाताओं की पीठ पर छुरा घोंपा। यही टीस चुनाव में आम आदमी पार्टी को सबक सिखाएगी।
आआप भाजपा के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए क्यों बाध्य है?वह भी उन बेतुके प्रश्नों के,जिनका उत्तर बार बार दिया जा चूका है.कांग्रेस से मिलकर सरकार क्यों बनाई? जो लोग गठबंधन सरकार और अल्प मत सरकार का अंतर समझते हैं,वे ऐसे बेतुके प्रश्न नहीं पूछते.कांग्रेस ने चिठ्ठी केजरीवाल को नहीं लिखी थी,बल्कि उप राज्यपाल को लिखा था.फिर भी आम आदमी पार्टी नहीं मान रही थी,पर उस समय भी हल्ला मचाने वाले यही लोग थे कि आआप जिम्मेवारी से भाग रही है.आज भी भाजपा कह रही है कि मेनिफेस्टो के ७० वादे कभी पूरे नहीं न किये जा सकते.उस समय के मेनिफेस्टो के बारे में भी कांग्रेस और भाजपा का यही ख्याल था.इसीलिये यह फैसला दोनों पार्टियों की मिलीभगत से लिया गया था पैरों तले जमीन तब खिसकी,जब आआप एक के बाद एक वादे पूरे करने लगी और उसकी लोकप्रियता आसमान को छूने लगी. कांग्रेस ने तो जिस सोच के अंतर्गत उप राज्यपाल को पत्र लिखा था. यह बात उस दिन साफ़ हो गयी थी,जब १३ फरवरी को अरविंदर सिंह लवली ने विधान सभा में कहा था कि हम चालीस हैं ,जबकि आआप केवल २७ है. क्या मुझे बताना पड़ेगा कि यह ४० का आंकड़ा कहाँ से आया था?
रही बात ४९ दिनों के सरकार की, तो आज आआप का सबसे बड़ा अस्त्र वही शासन काल है,जिसको दिल्ली की जनता भूल नहीं सकी.
एक अन्य प्रश्न में यह भी कहा गया है कि केजरीवाल ने पांच पांच कमरों का दो बंगला लिया. यह एक बेतुका नहीं बल्कि बेहूदा प्रश्न है. केजरीवाल ने बंगला नहीं फ़्लैट लिया था,वह भी तीन कमरों का एक.. उसकी पत्नी को सरकार से मिला हुआ फ़्लैट इससे बड़ा है. नियत अवधि के बाद रहने का किराया भी चुकाया. उसका भी हिसाब दे दिया कि वह पैसा कहाँ से आया. इसपर भी जब सार्वजनिक रूप से प्रश्न पूछे जाएंगे, तो उसे बेहूदगी के शिव और क्या कहा जाएगा?
केजरीवाल इस बात को भी स्वीकार करने से कतरा रहे हैं कि उन्होंने मुख्य मंत्री पद से इस्तीफा इसलिए दिया था क्योंकि वे प्रधान मंत्री बनना चाहते थे , उस समय तो वे बहुत सुरूर में थे व आत्मविश्वास से इतने लबरेज कि उन्हें लगने लगा था कि जनता उनके अलावा और किसी को चाहती ही नहीं है। वैसे भी उन्होंने सरकार शहीद होने के अंदाज के लिए सोची समझी रणनीति के अंतर्गत बनायीं थी पर कांग्रेस ने पटखनी दे डाली जिस जनलोकपाल बिल की वे बात अब भी कह रहे हैं वह भी फिर एक झांसा है केंद्र सरकार इसके लिए अनुमति नहीं देगी क्योंकि वह पहले ही बन चुका है दूसरे प्रांतों में लोकपाल नहीं लोकायुक्त की नियुक्ति होनी है अब आप पार्टी को इन प्रश्नों का जवाब देना ही चाहिए रही खुले मंच पर बहस की बात तो वह उत्तम स्थिति व परम्परा भारतीय लोकतंत्र में शुरू हुई ही नहीं ,आये दिन चैनल वाले बैठा कर बहस करते ही रहते हैं उनमें भी सिवाय तू तू मैं मैं के अलावा कुछ नहीं होता न ही निष्कर्ष निकलता है इसलिए इनका जबाब उसी माध्यम से दे देना चाहिए जिस से पूछे गए हैं