समाजसेवी अन्ना हजारे के खास सिपहसालार अरविंद केजरीवाल ने देश की राजधानी दिल्ली सहित अनेक शहरों में विरोध प्रदर्शन करवा कर जहां कांग्रेस सरकार पर एक और हमला बोला, वहीं प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के मुंह पर भी कालिख पोत दी। आंदोलन को अब क्रांति की संज्ञा देने वाले केजरीवाल को कितनी कामयाबी मिलेगी, यह तो वक्त ही बताएगा, मगर उन्होंने विदाई की दहलीज पर खड़ी कांग्रेस को तो एक धक्का और दिया ही, भाजपा के आगमन पर भी ब्रेक लगाने की कोशिश की है। कहते हैं न कि जहां सत्यानाश, वहां सवा सत्यानाश, कांग्रेस को इस मुहिम से उतना नुकसान नहीं हुआ, जितना भाजपा को। कांग्रेस तो पहले से बदनाम है, भाजपा भी बदनाम हो गई। कांग्रेस की कमीज पर पहले से अनेक दाग थे, एक ओर दाग लगने से कोई खास फर्क नहीं पड़ा, मगर भाजपा की सफेद झग कमीज पर लगा दाग अलग से ही चमक रहा है। कोयला घोटाले में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की संलिप्ता के आरोपों के बहाने कांग्रेस सरकार को गिराने की कगार तक पहुंचाने को आतुर भाजपा की धार अब भोंटी हो गई है। वह इस वजह से भी कि जिस पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी को चोर की उपमा दी गई हो, वह पलट कर एक शब्द भी नहीं बोल पाई। ऐसे में यकायक वह विडंबना भी ख्याल में आ जाती है कि जिस भाजपा की पीठ पर सवार हो टीम अन्ना ने अपना कद ऊंचा किया, मौका पड़ते ही उसे भी धक्का दे दिया। केजरीवाल का यह वार कितना गहरा हुआ है, यह तो आगामी चुनाव में ही पता लगेगा, मगर इससे यह तो साबित हो ही केजरीवाल बड़े ही शातिर खिलाड़ी हैं।
अन्ना की गैर मौजूदगी और प्रमुख सहयोगी किरण बेदी की मतभिन्नता के बीच टीम केजरीवाल के नाम से शुरू हुई इस क्रांति की समीक्षा में यह साफ तौर पर उभर कर आया है कि इससे कांग्रेस को फौरी मगर बड़ी राहत मिली है। जिस तरह से तकरीबन दस घंटे तक दिल्ली में प्रदर्शनकारियों के प्रति नरम रुख के कारण नौटंकी का लाइव शो हो रहा था, उससे पूरे देश में यह संदेश चला गया है कि कांग्रेस तो भ्रष्ट है ही, कांग्रेस को लगातार बदनाम करने वाली भाजपा के हाथ भी भ्रष्टाचार से रंगे हुए हैं। कांग्रेस यही तो चाहती थी। कदाचित इसी वजह से प्रदर्शनकारियों को मामूली रोक टोक के बीच अति सुरक्षा वाले प्रधानमंत्री आवास सहित सोनिया गांधी व नितिन गडकरी के निवास पर प्रदर्शन करने की खुली छूट दे दी गई। बाद में दिखावे के लिए हल्का लाठीचार्ज करके पुलिस को भी अपनी इज्जत बचाने का मौका दे दिया। सरकार की कुटिल चतुराई उजागर करने के लिए क्या यह प्रमाण काफी नहीं है कि जिन आंदोलकारी नेताओं अरविंद केजरीवाल, कुमार विश्वास, मनीष, गोपाल राज व संजय सिंह को सुबह ही पकड़ लिया गया था, उन्हें मामूली जद्दोजहद के बाद छोड़ दिया गया ताकि वे जंतर मंतर पर अपने समर्थकों के साथ गुरिल्ला युद्ध के लिए तैयार कर सकें। इतना ही नहीं कूच करने पर आंदोलनकारियों को रोकने का प्रयास तक नहीं किया गया। जबकि सच्चाई ये है कि मीडिया बार-बार जिस पुलिस को लाचार करार दे रही थी, वह चाहती तो उनको छठी का दूध याद दिला देती। साफ है कि यह सब सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा था। भले ही इसे सरकार व केजरीवाल की मिलीभगत का संज्ञा नहीं दी जा सके, मगर जो नूरा कुश्ती हुई, उससे दोनों ही अपने-अपने मकसद में कामयाब हो गए। कांग्रेस इस बात से संतुष्ट है कि उसके साथ भाजपा भी बदनाम हो गई व अब उसके शब्द बाणों में वह तरारा नहीं रहेगा, वहीं केजरीवाल इस बात से कि पिछले नाकाम अनशन से हुई किरकिरी से हताश कार्यकर्ताओं में नए जोश का संचार हो गया। साथ ही आगामी आम चुनाव में राजनीतिक विकल्प देने का प्लेटफार्म तैयार हो गया।
हालांकि भाजपा के कोयला घोटाले में संलिप्त होने के सबूत कांग्रेस के पास भी हैं, मगर उसने संसद में बहस का न्यौता देकर उन्हें दबा रखा था। वह जानती थी कि अगर वह उस सच को उजागर करेगी तो उसका उतना असर नहीं होगा, क्योंकि खुद उसके हाथ भी कालिख से पुते हुए हैं। वैसे भी युद्ध में पहले जिसने वार किया हो, उसी की जीत नजर आती है, जवाब में किया गया वार सुरक्षा की श्रेणी में ही गिना जाता है। यही सच टीम केजरीवाल उजागर करेगी तो लोग ज्यादा विश्वास करेंगे। ठीक वैसा ही हुआ।
ऐसा नहीं है कि केजरीवाल ने इसमें पाया ही पाया है, कुछ खोया भी है। और यही वजह है कि चौपालों व पान की थडिय़ों पर उनकी समालोचना भी हो रही है। लोग पूछ रहे हैं कि संसद का अधिवेशन चलने के दौरान रविवार का ही दिन प्रदर्शन के लिए क्यों चुना? क्या इसके लिए सरकार से कोई टाईअप किया गया था? तय रणनीति से हट कर सुबह छह बजे ही धरना देने क्यों पहुंच गए? इस रणनीति का मीडिया को पता कैसे लगा? कहीं प्रदर्शन का असल मकसद प्रचार मात्र पाना था? पुलिस के नरम रुख के लिए हालांकि वही जिम्मेदार है, मगर इससे मिलीभगत की बू तो आती ही है, वरना कार्यकर्ता सारे सुरक्षा घेरे तोडऩे की हिमाकत कैसे कर गए?
लब्बोलुआब, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के सहारे हुए इस नाटक ने लोगों को नई बहस में उलझा दिया है।
आपका लेख पढ़ कर एसा लग रहा है. क़ि ईस्वर ने नया रास्ता दिखने के लिए आपको भेजा है. संतोष गंगेले लेखक/पत्रकार
ओह, ऐसा कुछ नहीं है, मैं तो एक छोटा सा लेखक हूं
भाजपा में धार बची है ही नहीं , धार तो बस तिवारीजी के घर के पास है जहाँ राजा भोज की तरह अटलजी की कहानी बची है
केजरीवाल अच्छे छात्र जरूर रहे हैं आन्दोलनों का अनुभव उन्हें नहीं है
लड़ाई एक साथ सभी मोर्चे पर कर हिटलर भी बंकर में मारा गया था
क्रान्ति करने के लिए, उसका नेता बनाने के लिए भारत में किसी के पास त्याग और संयम की पूंजी चाहिए
इसलिए ही अन्ना कुछ हद तक सफल हुए लोगों को अपने पीछे लाने में
जनता व्यवस्था में परिवर्तन चाहती है, सत्ता बदलने का १९७७ का फोर्मुला अब नहीं चलेगा
जयप्रकाश भी क्रान्ति के चक्कर में कुछ नहीं कर पाए सत्ता बदलकर भी
देश की जनता को अपनी अस्मिता से प्रेम है आर्थिक अस्तित्व के मोल पर भी यह समझने में जयप्रकाशजी से भी भूल हो गयी
महान विरासत के देश में क्रान्ति की नहीं शुद्धिकरण की जरूरत है जो सभी दलों पर लागू है पर मांग प्रमुख दल से ही की जाती रहेगी
लोग अब समय नहीं देना चाहते सामाजिक कार्यों आन्दोलनों में यह भी समझना चाहिए और लम्बी चौड़ी योजनायें नहीं बना पाए जा सकनेवाले उद्देश्यों के लिए बात करनी चाहिए
केजरीवाल के चलते भाजपा को कोई नफ़ा या नुकशान नहीं होना है
वह हरी थी अपनी करनी से – यदि उसने उन्हें दुरुस्त नहीं किया तो जीतेगी नहीं जो अलग विश्लेषण का मुद्दा है
purush vali nahi hot hai, samay hot balvaan!
bhillan lutee gopika ,vahi arjun vahi vaan!!
kiski dhaar tej hai kiski teekhi ye to vakt aane par hi tay hoga….
बेशक, आखिरी फैसला तो वक्त ही करेगा, आमीन
” पुरुष वाली नहिं होत है,समय होत वलवान !
भिल्लन लुटी गोपिका ,वहि अर्जुन वहि वान !!
आपका शुक्रिया
मेरे विचार से डाक्टर धनकर ठाकुर ने विवाद को सुलझाने बदले और उलझा दिया है.जेपी आंदोलनका वह हस्र क्यों हुआ इस पर बहुत कुछ कहा सुना जा चुका है. अगर आज नयी पार्टी बनाने के उत्सुक लोग उससे सबक नहीं लेते तो इसे उनकी मूर्खता के अतिरिक्त कुछ नहीं कहा जा सकता.हिटलर का उदाहरण तो यहाँ व्यर्थ हो जाता है,क्योंकि हिटलर वाली महत्वाकांक्षा और वह माहौल यहाँ है ही नहीं.अगर केजरीवाल अपने बल बूते पर पार्टी बनाना चाहते हैं तो उनके सामने बहुत कठिनाईयां आयेंगी,पर अगर उन्हें अन्ना हजारे का आशीर्वाद मिलता है,और वह लोगों को अपने साथ रख पाते हैं तो यह इतना भी कठिन कार्य नहीं है.इस पर मैं पहले भी अपना दृष्टि कोण जाहिर कर चूका हूँ.अब अगर कुछ कहूँगा तो वह केवल दुहराने वाली बात हो जायेगी.जनता बेकरारीसे विकल्प की प्रतीक्षा कर रही है.अगर सचमुच कोई विश्वसनीय विकल्प सामने आता है, तो चमत्कार भी हो सकता है.
मैं आपके इस विचार से पूरी तरह से सहमत हूं
इस लेख के सन्दर्भ में मेरी लगातार तीसरी टिप्पणी मेरे लिए एक रिकार्ड है,पर अभी कुछ देर पहले जब मैं एबीपी न्यूज देख रहा था तो मुझे यह देख कर आश्चर्य नहीं हुआ कि करीब ७७ % लोग अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों के द्वारा पार्टी बनाए जाने के पक्ष में हैं.अगर आज यह हाल है तो भविष्य में पार्टी बन जाने पर क्या होगा,यह आसानी से समझा जा सकता है.इससे यही सिद्ध होता है कि लोग विकल्प के लिए बेकरार हो रहे हैं.अब तो यह अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों पर निर्भर करता है कि अगले डेढ़ वर्षों में या आवश्यक हुआ तो उससे पहले भी वे इस सैलाब को कौन सी दिशा प्रदान करते हैं..
बेशक लोगों को विकल्प चाहिए, मगर टीम अन्ना विकल्प बन पाएगी, मुझे इसमें संदेह है
अभी प्रतीक्षा करने में क्या हर्ज है?ऊंट किस करवट बैठेगा यह कुछ दिनों में पता चल ही जाएगा.ऐसे भी अगर टीम अन्ना या टीम केजरीवाल,जो भी नाम दिया जाए,ने यह विकल्प नहीं दिया तो यह राष्ट्र का दुर्भाग्य होगा और हम इसी नर्क में जीने के लिए बाध्य होंगे.
अपप ठीक ही कह रहे हैं महाशय
इस लेख से कम से कम यह तो सिद्ध हो गया कि जैसा मैं सोचता हूँ कि यह आन्दोलन कांग्रेस या बी जेपी के सहारे या उनके लिए नहीं है,ऐसा अन्य लोग भी सोचने लगे. मेरे विचार से यह आम जनता का आन्दोलन है.यह उस जनता का आन्दोलन है,जो भ्रष्टाचार और दुर्व्यवस्था से निजात पाना चाहती है और जिसे विकल्प की तलाश हैआज तक वह विकल्प उसे मिला नहीं.उसके लिए एक नागनाथ साबित हुआ तो दूसरा साँपनाथ.पहले तो यह पता नहीं कि यह प्रयोग सफल होगा या नहीं और सफल हो भी गया तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आने वाले लोग उस इतिहास को नहीं दुहराएंग जिसे १९७७ में देखा गया था,जब सांसद महात्मा गाँधी की समाधि पर शपथ लेकर कुकृत्य में लग गए थे.फिर भी जनता को इस विकल्प का साथ देना ही होगा,क्योंकि ठंढी हवा का एक झोंका तो आता हुआ दिख रहा है.बाद में भले हीं यह मृग मरीचिका साबित हो.सच पूछिए तो अन्ना हजारे जिसके वरद हस्त के तले यह आन्दोलन अभी भी आगे बढ़ रहा हैं और टीम केजरीवाल पर यक बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है कि वे जनता के लिए एक अन्य छलावा न सिद्ध हों.
आप बिलकुल सही कह रहे हैं जनाब
भाजपा की धार ??? क्या मजाक है …
जिस औज की आप बात कर रहे है वो भाजपा में सिर्फ दो व्यक्तियों के पास है १) अटल जी २) मोदी
बाकि सब तो “थोथा चना बाजे घना ”
और इसका प्रमाण भी है की ये लोग संसद में बहस से इसलिए डरते है क्युकी कोंग्रेस वाले इनके सिमित ज्ञान पर भारी पड़ेंगे
संभव है आपकी जानकारी और अध्ययन मेरे ज्यादा हो, अतः आपकी बात स्वीकार करने में ही भलाई है
श्री तेजवानी जी …
स्वीकारोक्ति के लिए धन्यवाद् …
कहना का तात्पर्य केवल इतना था की अगर आज कांग्रेस इतने घोटाले करने में कामयाब होती है तो उसका एक ही कारन है कमजोर विपक्ष …
और बात रही मेरे ज्ञान की तो आप को जितने साल लेखन का अनुभव है उतनी तो मेरी उम्र ही नही है …
सार्थक लेख के लिए धन्यवाद ..!!
आपका वाकई महान हैं, अपको नमन
भौटा नहीं जनाब भौंथरा सही शब्द है जिसका तात्पर्य है किसी धारदार चीज की तेज धार का कुंद हो जाना. केजरीवाल को शायद समझ में आ गया है कि अकेले नागनाथ का विरोध करते रहेंगे तो वे और उनके समकालीन सभी मेंबर आफ सिविल सोसायटी सांपनाथ की बांबी में समा जायेंगे. उनका और अन्ना एंड कम्पनी का सारा का सारा आधा अधुरा संघर्ष विपक्ष की खुराख के काम आ सकता है अतएव देर आयद दुरुस्त आयद नागनाथ और सांपनाथ दोनों को अपने निशाने पर ले लिया है.जो इस आन्दोलन से जुड़कर अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाना चाहते थे उन सभी स्वार्थियों को केजरीवाल अब करेला कि तरह कडवे हो गए हैं. किन्तु केजरीवाल के इस सिद्धांत ने उन्हें विश्वसनीयता प्रदान कर दी है. में उन्हें बधाई देता हूँ.
आपका धन्यवाद, मैं आपकी बात से सहमत हूं, आप ठीक कह रहे हैं, वैसे राजस्थान में भोंतरा को भोंटा कहा जाता है
तिवारी जी के मुंह से केजरीवाल को बधाई इस आन्दोलन के लिए एक बहुत बड़ी सफलता है.यह इसलिए नहीं कि तिवारी जी एक बड़े नेता हैं.अगर हैं तो भी मुझे नहीं पता?यह इसलिए कि जब तथाकथित दुश्मन भी किसी की बडाई करने लगे तो उसकी असल महत्ता सामने आती है.मैं तिवारी जी को उनके निष्पक्ष टिप्पणी के लिए धन्यवाद देता हूँ.