दिग्विजय की राह पर केजरीवाल

विपिन किशोर सिन्हा

अपुष्ट प्रमाणों के आधार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर किसी का भी चरित्र-हनन करना अरविन्द केजरीवाल का स्वभाव बन चुका है। वे अपने उद्देश्य से भटक गए हैं। अन्ना हजारे को लगभग दो वर्षों तक उन्होंने भुलावे में रखा। जन लोकपाल बिल के लिए अन्ना के आन्दोलन से ही अरविन्द केजरीवाल अचानक नायक की भांति उभरे। अन्ना के गिरते स्वास्थ्य की चिन्ता किए बिना उन्होंने अन्नाजी को मुंबई और दिल्ली में अनिश्चित काल के लिए अनशन पर बैठा दिया। अन्नाजी को अरविन्द केजरीवाल की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को पहचानने में दो वर्ष लग गए। एक कहावत है – साधु, चोर और लंपट ज्ञानी, जस अपने तस अनका जानी। साधु अन्ना अपनी तरह ही अपने सलाहकारों को साधु समझते रहे। उन्हें पहला झटका स्वामी अग्निवेश ने दिया, दूसरा झटका केजरीवाल ने। जब आन्दोलन के पीछे केजरीवाल की राजनीतिक मंशा से पर्दा हटा, तो उन्होंने न केवल इसका विरोध किया, अपितु केजरीवाल से अपना संबन्ध विच्छेद भी कर लिया। किरण बेदी ने भी यही किया। अन्नाजी ने सार्वजनिक रूप से अपने नाम का उपयोग करने से केजरीवाल को स्पष्ट मनाही कर दी। आज दोनों के रास्ते अलग-अलग हैं। एक व्यवस्था परिवर्तन चाहता है, तो एक अन्ना के आन्दोलन का लाभ उठाकर सत्ता। प्रश्न यह है कि अगर अरविन्द केजरीवाल के सपनों का जन लोकपाल कानून बिना किसी काट-छांट के पास भी कर दिया जाय, तो क्या गारन्टी है कि यह भारत की न्याय-व्यवस्था की तरह भ्रष्टाचार का केन्द्र बनने से बच पाएगा? हमारी सारी समस्याओं की जड़ हमारा उधारी संविधान, इसके द्वारा संचालित व्यवस्था और इसके द्वारा उत्पन्न चारित्रिक गिरावट है। एक नहीं, सौ लोकपाल बिल पास आ जाएं, फिर भी भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आएगी, वरन बढ़ेगा। अवैध धन कमाने का एक और काउंटर खुल जाएगा। अन्नाजी ने देर से इस तथ्य को समझा। इसीलिए वे बाबा रामदेव, किरण बेदी और जनरल वी.के.सिंह के साथ व्यवस्था परिवर्तन के लिए कार्य कर रहे हैं।

अरविन्द केजरीवाल अब दिग्विजय सिंह की राह पर चल पड़े हैं। सलमान खुर्शीद, वाड्रा, मुकेश अंबानी और गडकरी पर उन्होंने जो आरोप लगाए हैं, वे मात्र सनसनी फैलाने के लिए हैं। २-जी, कामनवेल्थ और कोलगेट के मुकाबले ये घोटाले कही ठहरते नहीं हैं। उन्हें डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी की तरह पूरे प्रमाणों के साथ कोर्ट में जाना चाहिए ताकि राष्ट्र का कल्याण हो सके। २-जी स्कैम के लिए अगर स्वामी सुप्रीम कोर्ट में नहीं गए होते, तो इसे कभी का दबा दिया गया होता। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने देश पर एक बड़ा उपकार किया है। सरकार की अनैतिक गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश लगाया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ़ उनका संघर्ष सही दिशा में है। केजरीवाल या तो दिग्भ्रान्त हैं या अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए कटिबद्ध हैं। वे अपने रहस्योद्घाटनों से यह सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं कि सभी राजनीतिज्ञ भ्रष्ट हैं। ऐसा करके परोक्ष रूप से वे भ्रष्टाचार की जननी कांग्रेस की ही मदद कर रहे हैं। वे यह धारणा बनवा रहे हैं कि पूरे भारत में उनके अतिरिक्त कोई भी ईमानदार नहीं है। यदि उन्हें बेहतर राजनीतिक विकल्प देने की चिन्ता होती, तो वे राजनीतिक पार्टी बनाने की दिशा में ठोस पहल करते, जो कांग्रेस और भाजपा का विकल्प बनने की क्षमता रखती। राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाना कोई हंसी ठठ्ठा नहीं है। उनके पास हिमाचल और गुजरात के चुनावों से आरंभ करने का एक सुनहरा अवसर था, जिसे उन्होंने खो दिया। यदि उनकी पार्टी २०१४ के लोकसभा के चुनाव से कार्य आरंभ करना चाहती है, तो भी सदस्य बनाने, संगठन बनाने, चुनाव कोष एकत्रित करने और ५४२ योग्य उम्मीदवारों का चयन कोई छोटी प्रक्रिया नहीं है। वर्तमान व्यवस्था में बड़ी जटिल प्रक्रिया है यह। इसके अतिरिक्त श्री केजरीवाल को राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों, यथा अर्थव्यवस्था, विदेश नीति, आतंकवाद, कश्मीर, बांग्लादेशी आव्रजन, सर्वधर्म समभाव, पूंजीवाद, समाजवाद, स्वदेशी, रक्षानीति, व्यवस्था परिवर्तन, जनलोकपाल में मीडिया, एन.जी.ओ. और कारपोरेट घरानों को सम्मिलित करने के विषय में, राष्ट्रीयकरण, निजीकरण, निवेश, ऊर्जा नीति, आणविक नीति, शिक्षा, चिकित्सा, न्याय पद्धति, कृषि, उद्योग, ब्यूरोक्रेसी और आरक्षण पर अपने सुस्पष्ट विचारों से भारत की जनता को अवगत कराना चाहिए।

कांग्रेस के साथ भाजपा की विश्वसनीयता को संदिग्ध बनाकर कुछ भी हासिल नहीं होनेवाला। कल्पना कीजिए – अगर केजरीवाल के प्रयासों के कारण भाजपा की विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है, तो देश की जनता के पास क्या विकल्प रहेगा? केजरीवाल विकल्प नहीं दे सकते। क्या भारत की जनता सन २०१४ के बाद भी अगले पांच सालों तक कांग्रेस को झेलने के लिए पुनः अभिशप्त होगी? अन्ना के आभामंडल का भरपूर दोहन कर केजरीवाल जनता में भ्रम की स्थिति का निर्माण कर रहे हैं। वे पूर्ण रूप से दिग्विजय सिंह की राह पर चल चुके हैं, परिणाम की परवाह किए बिना। हिन्दी न्यूज चैनलों के समाचार वाचकों की तरह चिल्ला-चिल्ला कर बोलने से न तो समस्याएं कम होती हैं और न समाधान निकल पाते हैं। सनसनी समाधान नहीं बन सकती।

36 COMMENTS

  1. कभी” इंडिया अगेंस्ट करप्शन” के वाहन पर बैठे कपटी अरविन्द केजरीवाल के प्रभाव में आ मैं यहाँ अपनी टिप्पणियों के लिए बहुत लज्जित हूँ| भारत के इतिहास में ईस्ट इंडिया कंपनी, अंग्रेजी साम्राज्य और तत्पश्चात उनके कार्यवाहक प्रतिनिधि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समर्थन में अब तक लगे भारतीय मूल के देशद्रोहियों से दुष्टतर अरविन्द केजरीवाल आज स्वतन्त्र भारत के माथे पर कलंक है|

  2. राम नारायण सुथर जी आपको शक क्यों है कि भ्रष्टाचार के अतिरिक्त भी अन्य मुद्दे भारत में हैं ?हो सकता है कि हों,पर अधिकतर मुद्दे भ्रष्टाचार की देन हैं।यह भी सही है कि केवल जन लोकपाल से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा .जन लोकपाल भ्रष्टाचार उन्मूलन की दिशा में एक सशक्त कदम मात्र है।जब तक हमारे रवैये में फर्क नहीं आयेगा तब तक भ्रष्टाचार ख़त्म हो ही नहीं सकता,पर यह भी सही है कि कारगर और शख्त क़ानून उस पर अंकुश अवश्य लगा सकता है।ऐसे भ्रष्टाचार पर मैं पहले भी बहुत लिख चुका हूँ और हर बार मैंने यही समझाने का प्रयत्न किया है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगते हीं बहुत समस्याएं अपने आप ख़त्म हो जायेगीं .सबसे पहले नक्शल समस्या ख़त्म होगी।मैं रांची में बहुत सालों तक रहचूका हूँ।उस इलाके में इसके उद्भव और विकास से मैं अच्छी तरह परिचित हूँ।इस अनुभव के बल पर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आज भी अगर उन इलाकों के वास्तविक विकास पर ध्यान दिया जाये और उस विकास में वहां के निवासियों को भागीदार बनाया जाए तो यह समस्या अपने आप ख़त्म हो जायेगी। कश्मीर और पूर्वोतर भारत की समस्या की जड़ में भी यही भ्रष्टाचार है।कश्मीर में तो एक अन्य देश के साथ जुड़ने का विकल्प भी है,पर पूर्वोतर भारत में तो ऐसा भी कुछ नहीं है।वहां तो विकास के नाम पर दिए गए अरबों खरबों रूपयों का लूट इस समस्या का वास्तविक कारण है। कश्मीर में भी नेहरू जी ने हालांकि भयानक भूल की थी ,पर उसके बाद भी वहां जो हुआ ,वह कम शर्मनाक नहीं है। अरबों रूपये वहां विकास के नाम पर जाते रहे,पर वहां की आम जनता के लाभ के बदले वे पैसे ख़ास लोगों की जेबें भरते रहे।आज भारत में जहां भी असंतोष है,उसके पीछे मूल कारण भ्रष्टाचार है।यह भी सही है कि जब तक सत्ता और आर्थिक शक्ति केन्द्रित रहेगी और जब तक हम आत्म भूतरहेंगे तब तक इस पर काबू नहीं पाया जा सकता ,जिसके फलस्वरूप समस्याएं बढ़ती रहेगी।आज गांधी ही नहीं,पंडित दीन दयाल उपाध्याय को भी समझने की आवश्यकता है तभी आपलोग इस आन्दोलन और भविष्य में आने वाली पार्टी के उद्देश्यों को भी समझ सकेंगे। ऐसे यह भविष्य गर्भ में है कि केजरीवाल के पार्टी भी इस कसौटी पर खरी उतरेगी कि नहीं ,पर आज की परिस्थिति में अन्य विकल्प क्या है?

  3. केजरिवाल के बारे में दिये लिन्क को मैने देखा, पढा है https://www.dropbox.com/s/37jow5959vs2270/DI-November-Issue-2012-in-Hindi.zip आखें खोलने वाला है. इस पत्रिका में और भी अनेक लेख ऐसे हैं कि एक बार शुरु कर के पूरा पढे बिना नहीं रह सकते. इस स्तर की पत्रिकायें अब दुर्लभ हैं. जहां तक बात केजरिवाल की है तो जरा इन स्वालों का जवाब ढूंढिये ;
    १. केजरिवाल केवल भारत की कम्पनियों के घोटालों की ही बात क्यूं करते हैं ? उनसे कहीं बडे घोटाले करने वाली विदेशि कम्पनियों का नाम भूल कर भी नहीं लेते. क्या इस लिये कि वे असल में इन विदेशी कम्पनियों की कठपुतली हैं ?
    २. राबर्ट के नाम पर धमाकेदार शुरुआत के बाद इनकी यात्रा को देखें. अरबों, ख्ररबों के घोटालों को दर किनार कर के केवल गड्करी पर अटके हुए हैं, आखिर क्यों ? सारे देश का ध्यान केन्द्र सरकार के दुश्कर्मों और बेपनाह लूट से भ्टक कर अब केवल इस बात पर अटक गया है कि भाजपा, कांग्रेस एक जैसे बेईमान हैं. महंगाई, घोटाले, विदेशि कम्पनियों की लूट ; ऐफडीआई आदि सारे बडे मुद्दे गटर में गये. क्या इसी के लिये सारा नाटक केजरीवाल ने नहिं रचा ? है कोई शक ?
    ३. बाबा रामदेव और उनके भूखे, निहथे साथियों पर डन्डे बरसाने वाली सरकार केजरीवाल के प्रति इतनी विनम्र क्यों है ? कानून तोडकर बिजली के कनैक्शन जोडने पर एक रपट तक दर्ज नहिं हुई, पुलिस बुलाने की तो बात ही क्या ? दाल मे कुछ तो काला है न ?
    ४. निश्चित रूप से बिका हुआ ये मीडिया केवल केजरीवाल पर इतना मेहरबान होने के हुछ तो कारण होने चाहियें ? विदेशि ताकतों का हस्तक, सोनिया जुंडलि की कठ्पुतलि ; ऐसे मीडिया द्वारा अन्ना, बाबा राम देव, श्री श्री रविशंकर तथा और अनेक ऊंचे लोगों की अनदेखी कर के इस अदने से व्यक्ती को इतना महत्व देना… ? कुछ तो है जिसकी बडी पर्देदारी है.
    ५. ये सज्जन किसी भी मुद्दे को सिरे नहिं चढाते. केवल मीडिया- नैटन्की किये जा रहे हैं. लोगों का ध्यान महत्व्पूर्ण मुद्दों से हटाने, भटकाने के इलावा इन सज्जन की और कोई उपलब्धी है क्या ?
    क्या उपरोक्त सारी बातों से नहीं लगता कि ये सज्जन किसी के हस्तक हैं, किसी के मोहरे हैं, जो दिखा रहे हैं वह नहीं; ये कुछ और ही हैं ? वैसे ये सच देर तक तो युं भी छुपने वाला है नहीं , पर तब तक देश को लूटने, तबाह करने वाले कई घपले और कर चुके होंगे, देश को और कंगाल बना चुके होंगे.
    * अस्तु लेखक महोदय ने बडी दूर्दर्शितापूर्ण लेख लिखा है, इस विद्वत्तापूर्ण प्रस्तुति हेतु साधुवाद !

    • बहुत सटीक टिप्पणी के लिए राजेश कपूर जी को साधुवाद। सत्य बड़ा कड़वा होता है। केजरीवाल मंडली सबकी पोल खोलने में लगी है, परन्तु जब उनकी पोल खुलती है, तो वे और उनके समर्थक आक्रामक हो जाते हैं। आलोचना करने वाले को आलोचना सहने की की भी क्षमता रखनी चाहिए। काले धन के विषय में बि्के हुए मीडिया के सहयोग से केजरीवाल ने जो रहस्योद्घाटन किया, उसे हम खोदा पहाड़ और निकली चुहिया की संज्ञा दे सकते हैं। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं।मुकेश अंबानी के सौ करोड़ रुपए विदेशी बैंक में जमा हैं। यह कौन सी नई बात है? अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने वालों के लिए विदेशी बैंकों में खाता रखना आम बात है। केजरीवाल ने सार्क और व्हेल को छोड़कर झींगा मछली को अपना निशाना बनाया है। स्विस मैगज़ीन श्र्च्वेइज़ेर इल्लुस्त्रिएते के अंक ११.११.९१ के अनुसार राजीव गांधी के यूनियन बैंक आफ़ स्विटज़रलैंड के खाते में उअ समय २.२ मिलियन डालर एवं सोनिया गांधी के खाते में १३०० करोड़ रुपए जमा थे। रुडल्फ़ एल्मर द्वारा इन्टरनेट पर दी गई सूचना के अनुसार ए.राजा, हर्षद मेहता, एच.डी.कुमारस्वामी, लालू प्रसाद यादव, ज्योतिरादित्य सिन्धिया, कलानिधि मारन, करुणानिधि, शरद पवार, सुरेश कलमाडी, पी.चिदंबरम आदि नेताओं के नाम हजारों लाख करोड़ रुपए विदेशी बैंकों में आज भी जमा हैं। खाता संख्या और बैंक के नाम के साथ पूरा विवरण, वाराणसी के संसकृति शोध एवं प्रकाशन द्वारा प्रकाशित और प्रो. वीरेन्द्र कुमार दूबे द्वारा लिखित पुस्तक ‘उधारी संविधानःदूषित लोकतंत्र’ में उपलब्ध है। केजरीवाल ने इन बड़ी मछलियों की अपने भंडाफोड़ प्रेस कान्फ़ेरेन्स में चर्चा तक नहीं की। निश्चित रूप से दाल में काला है। राजेश कपूर जी की शंका निराधार नहीं है। बहुत जल्दी सच सामने आएगा।

    • यहाँ प्रस्तुत लेख को लेकर अब तक कुछ तेरी कुछ मेरी में केवल डा: मधुसूदन उवाच जी के विचार “बाट देखता हूँ। परिस्थिति आप ही आप स्पष्ट होगी।” पर विश्वाश बनते दिखाई देता है|

      • सिन्हासाहेब अब तो लगता है कि केजरिवाल की दाल में काला नहीं, सारी दाल ही काली है. जब तक विश्व परिद्रिश्य की पूरी कल्पना न हो, तब तक घटनाओं के सही अर्थ निकालना सम्भव नहीं हो पाता. सरलचित भारतीय तो सोच भी नहीं सकते कि विश्व की अमानवीय, व्यापारी शक्तियां किस सीमा तक जाकर क्या-क्या कर रही हैं. इसे जानने के लिये एक विशेष पुस्तक है ”जागतिक षडयन्त्र” ( मूल पुस्तक है The Word Conspiracy) , प्राप्ति स्थान; स्वराज विद्या पीठ परिसर, २१-बी, मोतीलाल नेहरू रोड, इल्हाबाद-२११००२, फोन- ०९२३५४०६०४३ .
        पाठक मित्रों से आग्रह है कि इसे मंगवा कर एक बार पढें, फिर दुनियां को देखने व घटनाओं के अर्थ निकालने में क्रान्तिकारी परिवर्तन आयेगा. आज सारी दुनियां कार्पोरेशनों के इशारों पर नाच रही है. दुनियां की लगभग सारी समस्याओं की जड ये मैगा- कार्पोरेशनें हैं. देशों की सरकारें तो उनकी कठपुतली मात्र हैं. संसार के अनेक देशों में अनेकों केजरीवाल इन्होंने पाले हुए हैं. भारत पर विशेष क्रिपा का कारण केवल एक है, भारत की अपार सम्पदा, विशाल बाजार. सारी कवायद उसी पर कब्जे की है. केजरीवाल तो उन कम्पनियों के अनेकों में से एक अदना मोहरा है, उससे अधिक आशायें बान्धने का अर्थ है अधिक बडी निराशा. * सरल समाधान की म्रिग-मारीचिका में भटकने की बजाय वास्तविकता की कठोर भूमि पर हम अपने समाधान तलाश क्युं न करें ? सरल समाधान की चाह में अपने हितों के ठेके दूसरों को देने की आदत के कारण हम बार-बार धोखे खाते रहे हैं. बस अब और नहिं. अपनी समस्याओं के समाधान हम सब को स्वयम सोचने, करने की आदत डालनी होगी. हजारों साल से हमारा समाज यही करता था. अब जब से अपने हित के ठेकेदार सरकार और नेताओं को बनाने लगे, तभी से सब गलत होने लगा है. अब केजरीवाल जैसे नहीं , हम स्वयम मिल-जुल कर अपने समाधान तलाशें तो …….?

        • अरविंद केजरीवाल को बाहर कर हम कैसे मिल-जुल कर अपने समाधान तलाशें?

      • परिस्त्थिया स्पष्ट होने के बाद भी बाट देखते रहना किस बात का धोतक है

        • डा: मधुसूदन उवाच जी तो दूर प्रदेश में बैठ परिस्थिति के आप ही आप स्पष्ट होने की बाट जोहते हैं| यहां तात्पर्य यह है कि अमानवीय, व्यापारी शक्तियों के विरोध और कार्पोरेशनों के इशारों पर नाच रही कठपुतली सरकार के राजनीतिक दाव पेच और उस पर संशयी लोगों के अविश्वाश के होते अरविंद केजरीवाल और उनके आन्दोलन का क्या होगा? भय्या, जब हाथ पे हाथ धरे बैठे हो तो यह सब सपष्ट होने की बाट ही तो देखोगे! नहीं तो कह दो आप देश में वर्तमान स्थति से संतुष्ट हैं| यह किसी अज्ञात पुस्तक को पढ़ कर नहीं केवल आप ही को स्वयं सोच कर कहना है|

    • डायलाग इंडिया का नवम्बर अंक देखा जैसा मैंने सोचा था वैसा ही कुछ देखने को मिला। पहले तो मुझे इसी बात से विरोध है कि उसके एक लेख में कहा गया है कि केवल भ्रष्टाचार ही मुद्दा नहीं है,जबकि मेरे विचार से भारत में आज केवल एक ही मुद्दा है,वह है भ्रष्टाचार।अन्य सब मुद्दे भ्रष्टाचार की देन हैं।दूसरा अहम् प्रश्न यह है कि क्या केजरीवाल केवल कांग्रेस और सोनिया के मोहरे हैं (जैसा कि डायलग इंडिया के इस अंक में समझाने का प्रयत्न किया गया है ) या उनका कोई अपना व्यक्तित्व भी है?इस प्रश्न का उत्तर तो मेरे विचार से कुछ ही दिनों में सामने आ जाएगा।आलोचक सही हैं या गलत यह भी कुछ समय पश्चात जाहिर हो जाएगा।ऐसे मेरे विचार से अरविन्द केजरीवाल के खुलासों का दौर अभी थमा नहीं है। शायद पार्टी की घोषणा की तैयारी में कुछ समय के लिए रूकावट आ गयी है। यह भी मार्के की बात है कि दिग्विजय जिस ग्रुप को बीजेपी का पीठ लगू समझ रहे थे ,वही गडकरी के बारे में खुलाशा करतेहीं कांग्रेस का मोहरा समझा जाने लगा।

  4. श्री दिग्विजयसिंह जी ने १० साल तक मुख्यमंत्री [मध्यप्रदेश] का भार वहन किया है. वे कई बार विधायक रहे हैं. शायद कभी कोई चुनाव नहीं हारे. वे उस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं जो १८८५ बनाई गई थी और जिसका मेरे जैसे लोग आजीवन विरोध करते आ रहे हैं , वावजूद इसके उनकी पार्टी आज भी सत्ता में है और भले ही विगत १० सालों में दिग्विजयसिंह जी स्वघोषित राजनैतिक अपरिग्रह के वादे पर अटल रहे हों किन्तु राजनीतिक गलियारों में सर्वाधिक सक्रियता के साथ विवादास्पद इतने रहे की अब उनकी कार्यशेली को उस नजीर के रूप में पेश किया जा रहा है जिसे ‘पोल खोल’ के हीरो केजरीवाल के लिए मीडिया ने सुनिश्चित कर रखा है. वास्तव में दिग्विजयसिंह जी अपनी रेखा बढाने या बढ़ाये रखने के लिए वर्तमान विपक्ष और खास तौर से भाजपा या संघ परिवार पर जायज -नाजायज हमले करते रहे हैं जबकि केजरीवाल के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है किन्तु यह सच है की केजरीवाल ने पहले कांग्रेस फिर भाजपा और अब पूंजीपतियों ,भृष्ट अफसरों और मी लार्ड़ों की बीभत्स तस्वीर पेश कर देश का उपकार किया है. उनकी तुलना दिग्विजय सिंह से करना महज़ ‘भाजपाई या संघी ‘ मानसिकता ही हो सकती है.

  5. आर . सिंह जी
    में बीकानेर राजस्थान से हु मेरे यहाँ अगर केजरीवाल आते है तो आप सही कह रहे है की भीड़ काफी इकठी हो जाएगी क्योंकि मीडिया में लगातार चर्चित रहने के कारन लोग एक बार उस व्यक्ति को देखने जरुर उमड़ पड़ते है पर ये बात ध्यान रखिये की वहा पर केजरीवाल का साथ देने वालो की संख्या आधी भी नहीं होगी वो सिर्फ और सिर्फ जैसे सर्कस देखने जाते है ऐसे ही आयेंगे कोई सहयोग या भ्रष्टाचार मिटाने के लिए नहीं अगर आपको विश्वास न हो तो केजरीवाल को कहिये की वो अब जंतर मंतर पर अनशन की नोटंकी करे और देखे की कितने लोग वहा पर आते है और कितने लोग चंदा देते है
    हमारे यहाँ पिछले से पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी से धर्मेन्द्र (अभिनेता ) खड़ा हुआ था तो लोग हीरो को देखने के लिए बड़ी संख्या में आते थे और हीरो हिरोगरी में वो चुनाव भी जित गया लोगो ने उसको इसलिए वोट नहीं दिया की ये हमारा विकास करेगा बल्कि इसलिए दिया की ये फिल्मो में आता है और जब वो आता था तो मीडिया वाले और पुलिस वाले भी बड़ी तादाद में जुटते थे पर कैमरा हमेशा धर्मेन्द्र की तरफ होता था जनता की और नहीं एसे ही केजरीवाल आएगा तो मीडिया भी आएगी पुलिश भी आएगी और नोटंकी देखने जनता भी आएगी इसमें कोई शक नहीं पर वो कैमरा केजरीवाल की तरफ ही होगा और जो लोग समर्थन देंगे वो बेचारे इनकी असलियत से अनजान होंगे और आपको पता ही होगा की इस देश की गाँवो में बसने वाली लगभग जनता भावनाओ में बहने वाली होती है तो जब ये लोग भ्रष्टाचार मिटाने की नोटंकी करते है तो वो लोग भावनाओ में बहकर इनके साथ आ जाते है पर वो इनकी असलियत से अनभिग्य होते है इसीलिए समर्थको की संख्या जानकारों से मापी जाती है अनजानों से नहीं
    और मेरी स्वनिर्मित वाटिका किसी दुसरे के सहारे पर टिकी हुई नहीं है इस वाटिका में खिले विचार अभी तक तो काफी पुष्ट है कोई उन विचारो की जड़ो को हिला नहीं सका वो उपजाऊ जमीन में बड़ी मेहनत करके उगाये गए है समय समय पर कीटनाशक और पानी का में ध्यान में रखता रहता हु जिसके कारन कोई कीटाणु अब तक इसमें प्रवेश नहीं कर सका है उस वाटिका के बाहर की दुनिया में भी में विचरता रहता हु कोई अच्छा फुल जिसकी खुसबू दूर दूर तक जाती है और दुर्गन्ध मिट जाती है तो में उस पौधे को भी वाटिका में लगा लेता हु
    सांतनु जी ने जो लिंक दिया उसको आप एक बार जरुर पढ़े उसमे काफी कुछ विश्लेषण किया गया है इस बारे में पढ़कर काफी अच्छा लगा इस लिंक को खोलने पर दाई और downlaod मेनू है जिसमे direct downlaod पर click करने पर एक 6.1mb की फाइल downlaod हो जाती है नहीं तो इस नए लिंक पर क्लिक करे https://www.ziddu.com/download/20838930/DI-November-Issue-2012-in-Hindi.zip.html
    धन्यवाद

    • यह लिंक तो अभी भी नहीं खुला,पर उससे ज्यादा अंतर नहीं पड़ता है।मैंने केजरीवाल को बहुत बार सुना और उसकी पुस्तक स्वराज को भी मैंने एक से अधिक बार पढ़ा है और उसको समझने का प्रयत्न किया है।मैंने विनोबा भावे का यह विचार किशोरावस्था में पढ़ा था कि जिसने नई चीज सीखने की आशा छोड़ दी वह बूढा है।मैं विचारों की दृष्टि से आज भी बूढा नहीं होना चाहता अतः आज भी अपनी ज्ञान वृद्धि में लगा रहता हूँ।रही बात केजरीवाल की तो मैंने बार बार लिखा है कि मेरे विचारानुसार अरविन्द केजरीवाल उसी कार्य को आगे बढ़ाना चाहते हैं,जो महात्मा गाँधी ने आजादी के बाद करने को कहा था या फिर जिसे पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने भारत के विकास के लिए आवश्यक बताया था।आज मैं यह प्रश्न उन लोगों से पूछना चाहता हूँ जो कांग्रेस या बीजेपी के पक्षधर है कि क्या उन दोनों महापुरुषों द्वारा बताई गयी विचार धारा भारत के लिए अनुकूल नहींथी अगर थी तो इन दोनों पार्टियों ने अपने अपने शासन काल में उसको क्यों कार्यान्वित नहीं किया?आज अगर उन्हीं विचारों को मूर्त रूप देने के लियेव अरविन्द केजरीवाल और उसकी टीम आगे बढ़ रही है तो लोग क्यों उसका साथ न देकर भ्रष्टाचार और देश में बिषमता को बढ़ावा देने वाले पुष्पोंसे अपनी विचार रूपी वाटिका की शोभा बढाने की कटिबद्धता दिखा रहे है?

  6. शांतनु जी, आपकी योद्धा या मोहरा वाला लिंक तो खुला नहीं,पर खर्चे के व्योरों वाला लिंक पुराना है।खर्चों का विस्तृत विवरण जानने का अधिकार प्रत्येक आदमी को है,पर बिना उस विस्तृत जानकारी के उसके बारे में अंदाजा लगाना ठीक नहीं है।यह भी सही हैं कि केजरीवाल जिस रास्ते पर चल रहे हैं,वहां इस तरह केव्यव्धान पग पग पर आयेंगे।जो लोग सत्ता या उससे युक्त भ्रष्टाचार से लाभ उठा रहे हैं,वे तो कभी नहीं चाहेंगे कि आज की व्यवस्था में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन आये।उनकी संख्या भी कम नहीं है,पर ऐसे लोग भी बहुत अधिक संख्या में हैं जो इसका लाभ भले ही न उठा रहे हों, पर वे यथा स्थिति में रहने के आदी हो गएँ है।उनको भी अनिश्चितता से भय लगता है।अतः व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए इन दोनों बाधाओं को पार करना होगा।
    एक अच्छा प्रश्न पूछा गया है कि हिमाचल और गुजरात के चुनावों में ये लोग क्यों नहीं उतरे? पर प्रश्न कर्त्ताओं ने यह क्यों नहीं सोचाकि इन चुनावों में कौन उतरता?अभी तो पार्टी ही अस्तित्व में नहीं आयी है।पहले उसको तो अस्तित्व में आने दीजिये।
    दूसरा प्रश्न उठाया गया है कि क्या वे 271(इस2 72 या 273 होना चाहिए था) स्थानों पर जीत सकेंगे ?उसके पहले तो यह प्रश्न आता है कि क्या भारत में अगले संसदीय चुनाव में प्रत्यासी के रूप में खड़ा होने के लिए इनके कसौटी वाले इतने ईमानदार उम्मीदवार मिल जायेंगे ? जीत उतना आवश्यक या संभावी नहीं है जितना इनके विजन डाकुमेंट या इनके विस्तृत घोषणा पत्र को जनता के सामने रख कर चुनाव में हिस्सा लेना।यह तो मतदाता पर निर्भर करता है कि वह परिवर्तन चाहता है या नहीं।
    इंसान से मेरा विनम्र निवेदन है कि वे विचार बैभिन्य को व्यक्तिगत शत्रुता में न बदलें।किसी को अन्य को भी अपना पक्ष रखने का उतना ही अधिकार है जितना मुझे और आपको।कौन जानता है कि भविष्य किसका साथ दे .पर मैं इतना अवश्य दुहराना चाहूँगा कि अगर कोई “स्वराज ” में वर्णित विचार धारा को आधार बनाकर आगे बढ़ता है तो उससे उम्मीद अवश्य जगती है,क्योंकि यह तो हमारे विरासत की वह देन है,जिसे हम सब भुला बैठे हैं।

    • मुझे आश्चर्य है कि आपको मेरी टिप्पणियों में व्यक्तिगत शत्रुता का आभास हो रहा है| मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि ऐसी कोई बात नहीं है| मुझे गर्व है कि जिस प्रकार स्वामी विवेकानंद जी ने सहज में “जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को गद्दार समझता हूँ जो उनके बल पर शिक्षित बना और अब उनकी ओर ध्यान तक नहीं देता|” कह दिया उसी सहजता में मैं कांग्रेस अथवा भाजपा पक्षपाती को देश के प्रति अधर्मी कहता हूँ| मैं ऐसे अधर्मी को राष्ट्र के प्रति उसके सोये हुए दायित्व को जगाने के प्रयास में लगा हुआ हूँ| जब डा: मधुसूदन उवाच लिखते हैं, “आप की टिपण्णी ने विचारों को उत्तेजित कर मेरा उपकार ही किया” तो मैं समझता हूँ कि मैं शत्रु कदापि नहीं हूँ| मेरी समझ में वार्तालाप मित्रता की पहचान है| शत्रुओं में वार्तालाप समाप्त हो जाता है|

  7. मैं हवा-हवाई में विश्वास नहीं करता। धरती का आदमी हूं और धरती पर रहकर ही काम करता हूं। मेरे इन्सान भाई को सार्थक आलोचना में विश्वास नहीं है, इसीलिए मुझपर व्यक्तिगत कटाक्ष करने से स्वयं को रोक नहीं पाए। मैं अपनी सफ़ाई में कुछ विशेष नहीं कहना चाहता हूं। लेकिन इतना अवश्य कहूंगा कि मेरी कथनी और करनी में अन्तर नहीं होता। विश्वास न हो तो पता कर लें – मैंने अपना पूर्ण विवरण अपने परिचय में दे रखा है। मैं केजरीवाल का विरोधी नहीं हूं लेकिन उनके द्वारा सार्थक विकल्प न देकर अपनी ऊर्जा मात्र सनसनी फ़ैलाने में खर्च करने का अन्धभक्त भी नहीं हूं। हमें विभिन्न विषयों पर, जिसका वर्णन अपने लेख में मैंने किया है, पर केजरीवाल के विचार जानने का हक है। वे वर्तमान संसदीय व्यवस्था में २७१ का जादूई आंकड़ा कैसे पाएंगे, यह तो बताना ही पड़ेगा। वे भ्रम की स्थिति का निर्माण करके यथास्थिति को कायम करने में सिर्फ़ मदद कर सकते हैं, परिवर्तन नहीं ला सकते। अगर भाजपा और कांग्रेस, दोनॊं ही देश के लिए उपयुक्त नहीं हैं, तो उन्होंने हिमाचल और गुजरात के चुनावों से मुंह क्यों फ़ेर किया? मैं पलायनवादी नहीं हूं। जहां भी रहता हूं देश और जनता के लिए काम करता हूं। मेरा योगदान सागर में एक बूंद की तरह भले ही हो लेकिन वह बूंद डिस्टिल्ड वाटर की है।

    • सिन्हा जी, आपने बताया नहीं मैंने कैसा व्यक्तिगत कटाक्ष किया है? आप ही के कहे हुए विचारों को दोहराने में कैसी रोक? यदि भाजपा और कांग्रेस दोनॊं ही देश के लिए उपयुक्त नहीं हैं तो भारत की दुर्दशा देखते हुए किसी विकल्प का स्वागत करने के स्थान पर आप क्योंकर चौराहे में खड़े उस पर प्रश्न चिन्ह दागते हुए उसका अपमान कर रहे हैं? भारत और भारतीयों की दयनीय स्थिति में मुख्यत: दो ही वर्ग हो सकते हैं| आज का राष्ट्रद्रोही वर्ग जो अपने स्वार्थ के लिए भ्रष्ट व्यवस्था को ज्यों का त्यों बनाये रख समाज विरोधी तत्वों को समर्थन देता है और दूसरा वर्ग है राष्ट्रवादी जो निस्वार्थ देश और देशवासियों की सेवा में जुट जाने को लालयित है| मैंने संशयी लोगों को हाथ पर हाथ धरे तो देखा है लेकिन आप हैं कि गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाते आने वाली सुबह को दूर भगाने में लगे हुए है| यदि आप अरविंद केजरीवाल नहीं बन पाए तो अवश्य स्वयं मेरी तरह उनके अनुयायी हो सकते हैं| अब मैं आपको कैसे समझाऊं अनुयायी की भी मर्यादा होती है!

  8. ये एक पत्रिका का लिंक है जिसमे “केजरीवाल योध्हा या मोहरा ” नाम से लेख है जिसे पढ़कर केजरीवाल के बारे ज्यादा तो नहीं पर थोड़ी बहुत उस दिशा में जानकारी जरुर मिलेगी
    https://www.dropbox.com/s/37jow5959vs2270/DI-November-Issue-2012-in-Hindi.zip
    जरुर पढ़े जन हित में जारी
    धन्यवाद

    • रमेश जी
      लिंक पुराना होने से अपनी जवाबदारी कम थोड़े ही हो जाती है भ्रष्टाचार का लाभ उठाने वाले में नवीन जिंदल का नाम अग्रणी है परन्तु वो जितना हो सके केजरीवाल के ही साथ में है इसीलिए तो कभी केजरीवाल उस पर कोई आरोप नहीं लगाये जबकि कोयले में लगभग 30% हिस्सेदारी उसी की थी परन्तु गडकरी के घर का घेराव जरुर कर लिया जिसमे साबुत नहीं केवल छोटा सा तुक मिल रहा था
      धन्यवाद

  9. क्या कोई बताएगा की अगर मीडिया केजरीवाल का साथ न दे तो केजरीवाल का आन्दोलन कितने दिनों का है उसके आन्दोलन का मिडिया के बिना कोई आधार है जो उसे जिवंत रख सके और मीडिया देश का भला कब से चाहने लगी है उसे सुब्रमनियम स्वामी जब सबूतों के साथ कोर्ट में खड़े होते है तब भी दिखाने का टाइम नहीं होता परन्तु जब केजरीवाल एक इशारा करता है की वो कल किसी की पोल खोलेगा तो मीडिया अपना पूरा जोर उसे दिखाने में लगा देती है आखिर मीडिया को वो ही खबर सबसे बड़ी या महत्व पूर्ण क्यों लगती जो केजरीवाल के मुह से निकलती है उसके आगे थोरियम घोटाले को भी वो छोटा समझाने लगते है
    लगभग पूरी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बिकाऊ है इसमें किसी की दो राय नहीं होनी चाहिए फिर केजरीवाल जब छिकता है तब भी वो लाइव दिखा देते है तो इससे क्या अर्थ निकला जाना चाहिए ……………………….स्पष्ट है

    • राम नारायण सुथर जी आप भूल रहे हैं कि मीडिया वहीं साथ देता है,जहां जनता खडी दिखती है,खासकर ऐसे आन्दोलनो से सम्बंधित मामलों में .आप शायद राँची में रहते हैं।आपका क्या ख्याल है?अगर केजरीवाल राँची पहुँच जाएँ तो उनके स्वागत के लिये या उनका भाषण सुनने के लिए कितनेलोग आयेंगे ? ज़रा सोच कर उत्तर दीजिएगा,क्योंकि मुझे तो अंदाजा है कि रांची ,बोकारो या जमशेदपुर ही नहीं बल्कि झारखण्ड के छोटे कस्बों में भी आई ए सी के साथ खड़े होने वालों की तादाद काफी है।आपलोग स्व निर्मित आनंद वाटिका से बाहर आइये और देखिये .भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े होने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।

  10. आज ही गुरुमूर्ति जी का गडकरी पर लगे आरोपों का खंडन करने वाला, आलेख हिंदुस्तान टाइम्स के जालस्थल पर देखा. उसके साथ जोड़कर देखने पर बिपिन जी का यह आलेख केजरीवाल के पैंतरें के भीतर झाँक कर उसकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के संकेत की पुष्टि करता है.
    समयोचित आलेख. लेखक ने सही विश्लेषण प्रस्तुत किया है. साथमें नया पक्ष स्थापित करना कोई खेल नहीं है, यह भी बता दिया है.
    बिपिन जी बहुत बहुत धन्यवाद.

    • स्वामीनाथन गुरुमूर्ति द्वारा नितिन गडकरी के बचाव पर हिंदुस्तान टाइम्स में छपे समाचार और यहाँ प्रस्तुत आलेख के जोड़ से अरविंद केजरीवाल के पैंतरें के भीतर झाँकते आपने उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के संकेत की पुष्टि कर ली है| कैसी विडंबना है कि भारत में अधिकांश लोग कोल्हू के बैल की तरह आंखों की पट्टी चड़ा मालिक के आदेश का पालन करते अपना जीवन बिता देते हैं| लेकिन संयुक्त राष्ट्र अमरीका से ऐसा कहते लिखते आपने अनजाने में अपनी अदूरदर्शी दृष्टिकोण का प्रमाण दिया है| और “नया पक्ष स्थापित करना कोई खेल नहीं है” केवल निराशावादी प्रतिध्वनि ही है! हिंदुस्तान टाइम्स के जालस्थल पर देखा समाचार और इस लेख के जोड़ में यदि मेरे निम्नलिखित विचारों को मिला दें तो संभवत: स्थिति में कुछ रुचिकर अंतर आ जाये|
      “जीवन के सत्तर से अधिक अपने जीवन काल में मैंने कल तक केवल भारतीय जन संघ और तत्पश्चात भारतीय जनता पार्टी को अपना समर्थन दिया है| यदि कोई ध्यान से निरिक्षण करे, पिछले पैंसठ वर्षों में अधिकांश काल विपक्ष में रहे इस राजनैतिक गुट नें न तो भारतीय लोकतंत्र को कोई नयी दिशा दी है और न ही सत्ताधारी कांग्रेस द्वारा देश भर में साधारण नागरिक के जीवन में किसी प्रकार का सुधार अथवा समाज में कोई प्रगति दिलवाई है| यद्यपि भाजपा भ्रष्ट नहीं, तथापि उनके विपक्ष में रहते समस्त भारत में भ्रष्टाचार और अनैतिकता क्योंकर फल फूल रही है? आज बाजपा में ऐसे तत्व हैं जो लूट मार में कांग्रेस गठबंधन से होड़ लगाये हुए हैं| अवश्य ही भारतीय जनता पार्टी ने मुझे निराश कर दिया है| अब प्रश्न यह है कि यदि यह सभी राजनैतिक गुट भारत और भारतवासियों का भला चाहते हैं तो वे अरविंद केजरीवाल का क्यों विरोध कर रहे है?”
      आपसे निवेदन है कि आप बिना भावनाओं में बह किसी विषय की गरिमा और वास्तविकता को पहचाने और अपने विचारों में संतुलन दिखाते अपने पाठकों को कृतार्थ करें|

      • इंसान भाई —
        (१) आप की टिपण्णी से दिशा का कुछ कुछ संकेत मिलता है. पर पूरा समझ नहीं पाया.
        मानता हूँ की राजनीति को ठीक करने भी कुछ— “शठं प्रति शाठ्यम” —आवश्यक होता है.
        गटर में हाथ डालने पर हाथ मलिन होगा ही.
        शायद, आप के पास समय हो, और पूरा लेख डाल पाए, तो अनेकों पर कृपा होगी.

        (२)पर मुझे आज दो ही विकल्प दिखते हैं, भा ज पा और कांग्रेस. केजरीवाल मेरी दृष्टी में आज कोई विकल्प नहीं है. आगे भी अपेक्षा नहीं करता. क्वचित बन पाए, तो मेरी निष्ठा भारत के प्रति ही सर्वोपरि है, मैं भी उसीको साथ दूंगा, पर आज मैं केजरीवाल को विकल्प नहीं मानता.

        (३) आज भी भाजपा शासित गुजरात सभी से (?) आगे बढ़ा हुआ है.
        (४) अटलजी ने ही यूनो में हिंदी भाषण दिया था,
        (५)और पोखरण का विस्फोट किया था—क्या आप इन सब को उपेक्षित कर रहें हैं?
        (६) भा ज पा के नेता जब न्यू यॉर्क दूतावास में होते थे, तब दूतावास भी अधिक कर्मठ और भारतीय हो जाता था.

        पर, पश्चात दर्शन से भूतकाल देखने पर गलतियाँ सहज दिखती है|

        (७) भा ज पा राजनैतिक पक्ष है, आप ने एकात्म मानव वाद तो पढ़ा होगा ही. शासकीय महत्वाकांक्षा सदा भ्रष्ट करती है. इसी लिए राज सत्ता पर ऋषि सत्ता (संघ) का अंकुश आवश्यक है.
        —पर इस धरापर यह उठा पटक कभी भी समाप्त नहीं होती, न हुयी है.

        (८) सारे विकल्पों में मुझे भा ज पा और भा ज पा में नरेंद्र मोदी यही विकल्प सर्वोत्तम लगता है.भा ज पा में सुधार के लिए प्रयास करना कम कठिन लगता है, क्यों की संघ भी ऋषि सत्ता की भांति ही क्रियान्वयन करेगा ही .
        (९) केजरीवाल का नियमन कौन सी संस्था करेगी?

        पर, आप की निराशा समझ सकता हूँ, मैं निराश नहीं हूँ.
        विचार करें आपकी निष्ठा के विषय में कोई संदेह नहीं है.
        आज के युग में प्रवासी भारतिय उतना ही दूर है, जितना कोई निवासी भारतीय भारत के समाचार से दूर है.
        आप की टिपण्णी ने विचारों को उत्तेजित कर मेरा उपकार ही किया.
        धन्यवाद

        • यह खेद की बात है कि आप मेरी टिप्पणी को समझ नहीं पाए हैं| भले ही आप प्रवासी भारतीय हैं लेकिन तुलनात्मक ढंग से दूर सभ्य देश में रहते अस्तव्यस्त भारतीय लोकतंत्र में प्रत्यक्ष दरिद्रता और जीवन में अभावपूर्ण आधुनिक उपलब्धियों के कारणों को आप निस्संदेह पहचान सकते हैं| पैंसठ वर्षों पश्चात भूतकाल की गलतियों को सहज देखते आप कैसा न्याय कर रहे हैं? आपने ठीक कहा, गटर में हाथ डालने से हाथ मलिन तो होगा ही फिर भी मैंने आपके सभी बिंदुओं पर उसी अनुरूपता से प्रकाश डालने का प्रयास किया है|

          १. आज केवल “शठम् शाठयम् समाचरेत” का समयोचित प्रतिउत्तर ढूंढ़ना होगा।
          २. कांग्रेस और भाजपा दो समस्याएँ हैं; विकल्प कैसे हो सकते हैं?
          ३. भाजपा नहीं, नरेंद्र मोदी को अरविंद केजरीवाल के संग देखना चाहूँगा|
          ४. अटल जी द्वारा युएनओ में दिया गया १९७७ का भाषण हिंदी को राष्ट्रभाषा न बना पाया|
          ५. पोखरण विस्फोट गर्व की बात है लेकिन सर्वव्यापी भ्रष्टता और अनैतिकता का पुरुस्कार कैसा?
          ६. भारत में अव्यवस्था से न्यू योर्क स्थित दूतावास की कर्मठता का क्या लेना देना?
          ७. इस उठा पटक में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद को क्योंकर कोई माने?
          ८. असफल भाजपा को भंग कर उनमें नरेंद्र मोदी जैसे राष्ट्रवादी तत्वों को फिर से उभर भारत को नयी दिशा देनी होगी|
          ९. जन लोकपाल बिल पारित होने से बना कानून|

          • बाट देखता हूँ.
            परिस्थिति आप ही आप स्पष्ट होगी.
            ||दीपावली की शुभेच्छाएं||

  11. आप दोनों विचारकों के विरुद्ध मुंह खोलने में भी डर लगता है,फिर भी दुस्साहस कर रहा हूँ।आपलोगों के उस वक्तव्य पर तो टिप्पणी देना व्यर्थ है,जिसमे आपदोनो ने यह विचार व्यक्त किया है कि बीजेपी के विरुद्ध भ्रष्टाचार का पर्दाफास करने से कांग्रेस को लाभ पहुंचेगा।रही बात अन्य विकल्पों की और हमारे सोच की।हमलोगों को यथा स्थिति से इतना प्रेम क्यों हो गया है कि हम कांग्रेस और बीजेपी से अलग कुछ सोच ही नहीं पाते?क्या दिया है इन दोंनो दलों ने इस देश को?हम लोग यह क्यों नहीं सोचते कि ये दोनों दल जब अपने आधार को ही भूल गए तो वे दूसरों को और देश को क्या दे सकेंगे?महात्मा गांधी और पंडित दीन दयाल उपाधायाय ,दोनों ने भारत के निर्माण और उसके भविष्य के लिए एक स्वप्न देखा था।विभिन्न विषयों पर उनके भिन्न मत होते हुए भी आर्थिक विकास और सत्ता के विकेंद्रीकरण के बारे में उनके विचार करीब करीब एक थे। उनके उन विचारों में सच पूछिए तो कोई नवीनता नहीं थी।वे सदियों पहले भारत में अजमाए विचार थे।क्या कोई बता सकता है कि क्यों न कांग्रेस और न बीजेपी हीं उन विचारों को अपने शासन काल में मूर्त रूप दे सकी ?मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि अगर उन विचारों को मूर्त रूप दिया गया होता तो आज भारत में दुनिया का सबसे धनी व्यक्ति भले ही नहीं होता,पर इतने लोग गरीबी की रेखा के नीचे कदापि नहीं होते और न इस तरह का अनियंत्रित भ्रष्टाचार होता।आज केजरीवाल और उनका ग्रुप भारत के नव निर्माण के लिए उन्ही विचारों को आधार बनाना चाहता है।क्या गलत कर रहे हैं वे लोग?अगर हमारे दल भ्रष्ट हैं तो उनका पर्दाफाश करना गलत है क्या?वे सफल होते हैं या नहीं यह भविष्य के गर्भ में है,पर यह भी सत्य है कि वे एक साध्य विकल्प लेकर हमारे संमने उपस्थित अवश्य हुए हैं।मैं उन बुद्धि जीवियों के बुद्धि पर तरश खाता हूँ जो बिना उसको समझे सुनी सुनाई बातों के बल पर उनको एक दम नकार देना चाहते हैं।ऐसे केजरीवाल ग्रुप कोई नयी विचार धारा हमारे सामने नहीं पेश कर रहा है. यह तो हमें उस जमाने में ले जाने आया है,जब सच में हम दुनिया को कुछ देने के काबिल थे।उस काबलियत को हम भूले हुए हैं,यह टीम उसी को याद दिला रही है।हम लोग अपने हजारों वर्ष पहले के परखे हुए मार्ग पर चल कर उस शिखर पर पहुँच सकते हैं जहाँ पहुंचना हर भारतीय का लक्ष्य होना चाहिए।
    रही बात अन्ना जी और केजरीवाल के मतभेदों की तो उसके लिए अन्ना जी का का हाल का वक्तव्य ऐसे किसी भी अफवाह का खंडन करता है।उन्होंने साफ़ साफ़ कहा है कि हमदोनो में हम दोनों अलग अलग रास्ते से एक ही लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ रहे हैं।केजरीवाल और अन्ना जी की तुलना करते समय हमलोग यह भी भूल जाते हैं कि इस उम्र में अन्ना जी स्वयं क्या थे?कौन जानता है कि अन्ना जी की उम्र तक पहुँचते पहुँचते अगर लोगों का सहयोग मिल जाए तो केजरीवाल भारत को उन्नति के शिखर पर पहुंचा दे। केजरीवाल भारत का एक ऐसा उगता हुआ सितारा है,जिसके सामने हो सकता है की सूर्य की रोशनी भी धीमी पड़ जाये या हो सकता है कि इसकी चमक भारत के भ्रष्टाचार के अँधेरे में खो जाए,पर अगर ऐसा हुआ तो वह इस राष्ट्र का बहुत बड़ा दुर्भाग्य होगा।
    ऐसे जो लोग केजरीवाल की तुलना दिग्विजय सिंह से करते हैं उनको अपने वक्तव्य पर पुनर्विचार की आवश्कता है।

    • आपके प्रश्न, “हम लोगों को यथा स्थिति से इतना प्रेम क्यों हो गया है कि हम कांग्रेस और बीजेपी से अलग कुछ सोच ही नहीं पाते?” का सीधा उत्तर उस परिस्थिति से है जब दोनों के टकराव और मिलीभगत से उत्पन्न भ्रष्टाचार और अनैतिकता में मची लूट का आनंद लेते चरित्र में हम अधिकांश लोग सत्ताधारी के समान हो चुके हैं। अब प्रश्न है ऐसे में ऊँगली कौन उठाये? अरविंद केजरीवाल अपने चरित्र और औचित्य की सूझ भूझ के कारण यथा स्थिति को अस्वीकार करते हुए उस बहुसंख्यक मूक गरीब का सोच रहे हैं जो अनादिकाल से ब्रह्मदंड का आचरण निभाते अव्यवस्था के बोझ तले दबे जा रहे हैं| यह लेख उस गरीब के मन में अरविंद केजरीवाल के प्रति भ्रम और संशय पैदा करने के उद्देश्य से ही प्रस्तुत किया गया है|

      आप ठीक कहते हैं कि “ऐसे जो लोग केजरीवाल की तुलना दिग्विजय सिंह से करते हैं उनको अपने वक्तव्य पर पुनर्विचार की आवश्यकता है|” लेकिन “रिटायरमेन्ट के बाद भी नौकरी पक्की” समझने वाले अधिशासी अभियन्ता और लेखक ऐसा क्योकर करेंगे? अपने दो कंगन खो जाने पर एक दुखी स्त्री चोर के पकडे जाने और कंगनों की वापसी की कामना लीये मंदिर में आँखें मूंदे हाथ जोड़ श्री प्रभु जी को सवा रुपये का प्रसाद चढाने का वादा कर रही थी| प्रार्थना के उपरांत आँखें खुलते उसकी दृष्टि जब श्री प्रभु जी के पुष्प चरण-कमलों पर पड़ी तो उसने वहां एक कंगन पड़ा देखा| चोर ने अपने न पकड़े जाने की प्रार्थना करते पहले से ही एक कंगन श्री प्रभु जी को अर्पित कर दिया था! आज लोकतंत्र में जनता ही श्री प्रभु जी का स्वरूप है और जनता में कई प्रभावशाली लोगों पर नित दिन कंगनो की वर्षा होती रहती है| ऐसे में यथा स्थिति से इतना प्रेम क्यों न हो?

  12. सटीक एवं पूर्ण सत्य ये केजरीवाल कुछ भला करने की बजाय देशवासियों का बहुत बड़ा नुकसान कर रहे हैं | येही स्वार्थ है, जनता को सच्चाई पता लगते लगते बहुत देर हो जाएगी, और हम , काग्रेस और सहियोगियों , को झेलने के लिए मजबूर होंगे ….. काश हमारे देश वासी एस कुत्सित चल को समझ पते तो हमारा देश कुछ भला हो पता.

  13. सिन्हा जी आपकी बात से पूरी तरह सहमत हु केजरीवाल की विचार धारा उनके द्वारा किये गए अब तक के कार्यो से पता चलती है जो केवल और केवल जनता को भटकाने की कोशिश में है और ये आश्चर्य का विषय है की एक बहुत बड़ा बुद्दिजीवी वर्ग केजरीवाल पर केवल श्रधा के भरोसे चल रहा है
    इनसे किसी भी सवाल का जवाब मांगो तो इनके पास कोई जवाब नहीं होता कोई जवाब देने की कोशिश करता है तो अंत में वो सिर्फ केजरीवाल के प्रति अपनी आस्था बताकर और भाजपा व् कांग्रेस को एक सा बताकर बात की इतिश्री कर देते है
    भाजपा में जिस पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे उसे सीधा रास्ता दिखा दिया गया कई नेताओ ने जिन्ना पर बयान दिया तो उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ा विवेकानंद और दाउद की तुलना करने का परिणाम गडकरी झेल ही रहे है
    कोई भी व्यक्ति नई राजनेतिक पार्टी बनाये तो ये तो कोई दावा नहीं कर सकता की मेरी पार्टी में कभी कोई भर्ष्टाचार करेगा ही नहीं फिर भाजपा में अगर कोई भ्रष्टाचारी है तो उसे भगाओ कोन कहता है की उसे वोट देकर संसद में भेजो परन्तु नई पार्टी बनाकर फिर पूर्ण बहुमत से जीतकर केजरीवाल की टीम ससंद में जाएगी फिर भ्रष्टाचार मुक्त कर देगी देश को , ये केवल और केवल आम जनता को बरगलाने का तरीका है क्योंकि केजरीवाल अपनी पूरी जिन्दगी में कभी भी ससंद में पूर्ण बहुमत नहीं ला पायेगा तब तक जन लोक पल पास नहीं होगा मतलब जब तक केजरीवाल पूर्ण बहुमत न लेकर आये तब तक कांग्रेस को झेलो और केजरीवाल के बहुमत का इंतजार करो और पता नहीं बड़े बड़े समझदार कैसे इनके धोखे में आ जाते है
    धन्यवाद

    • देश की जनता भेड़चाल में विश्वास करती है। अगर जनता सोच समझकर वोट देती, तो आज ये दुर्दिन नहीं देखने पड़ते। केजरीवाल पलायनवादी हैं। वे इन्कम टैक्स कमीश्नर के रूप में देश की बेहतर सेवा कर सकते थे। आज की तिथि में सरकार आय कर के रूप में जो भी राजस्व पाती है, उसका सौ गुना वसूल नहीं पाती है। उस विभाग में योग्य एवं ईमानदार अधिकारियों की सख्त जरुरत है। केजरीवाल वहां से भाग खड़े हुए।दूसरों का चरित्र-हनन करना और सनसनी फ़ैलाना सबसे आसान काम है, जो वे कर रहे हैं। अन्ना ने इनका असली चेहरा पहचान लिया, इसलिए अपने से दूर कर दिया। आम जनता भी इन्हें पहचानेगी, लेकिन तब तक विलंब न हो जाय। इनका पूरा आन्दोलन जमीन से उपर मीडिया के भरोसे है।

      • आप ठीक कहते हैं, “इनका पूरा आन्दोलन जमीन से उपर मीडिया के भरोसे है।” यदि ठीक इसी प्रकार होता रहा तो एक दिन आयेगा जब तथाकथित स्वतंत्रता से अब तक कांग्रेस व बीजेपी के बीच घिनौने टकराव और मिलीभगत में मची लूट का आनंद लेते आप जैसे लोग अपनी शर्मिंदगी में अरविंद केजरीवाल के आन्दोलन की सफलता पर खुल कर आनंदोत्सव भी न मना पायेंगे| ऐसा लगता है कि अधिशासी अभियन्ता के कर्तव्य से तनिक अवकाश पा जिन तत्वों की सुविधापूर्ण गोद में बैठ आपने यह लेख लिखा है वे नहीं चाहते कि आप इंडिया अगेंस्ट करप्शन की वेबसाईट देख अपने बीसियों प्रश्नों के उत्तर पा सकें| शायद आपके मालिकों ने देश की सेवा करते अशोक खेमका की दुर्गति पर आपको लडडू नहीं दिए अन्यथा ऐसा भी क्या कि आपको इसकी भनक भी न हुई! अब आप ही बतायें इन्कम टैक्स कमीश्नर के रूप में काम कर रहे कितने भारतीय सपूत हैं जो सत्ता की अवज्ञा कर अरविंद केजरीवाल की भांति देश की सेवा में लगे हैं?

        एक बार सूखे में जब वर्षा के लिए मेघराज इंद्र की पूजा के लिए गाँव के लोग पास ही के एक बड़े मैदान में एकत्रित हुए तो वे हाथ में छाता थामे एक बालक का परिहास करते हंस दिए| बच्चे ने भोलेपन में उन्हें याद दिलाया कि वर्षा होने पर उसे छाते की आवश्यकता पड़ेगी! विश्वास की बात है| और आज का युवा आपके लेख और टिप्पणी में आपके घिनौने उपहास का उत्तर अरविंद केजरीवाल में विश्वास के रूप में देगा| तिस पर मुझे चिंता रहेगी कि आज कोई नेहरु अरविंद केजरीवाल के राष्ट्रवादी आन्दोलन का अपहरण न कर ले| और विलंब न करें, आप भी राष्ट्र धर्म को निभाते अपने साथियों समेत अरविंद केजरीवाल के राष्ट्रवादी आन्दोलन के साथ जुड़ जाएं| इस में देश की भलाई है और इसी में देशवासियों की भलाई है|

        • जरा मान्यवर आप इस लिंक पर केजरीवाल के कुछ घोटालो के साबुत मिले है IAC की किसी साईट पर इसका जवाब है तो आप ही बता दीजिये इतना कष्ट आप हमारे लिए करेंगे तो आपकी अति क्रपा होगी प्रश्न और शंकाए तो और भी बहुत है परन्तु आप जरा इस छोटी सी शंका का एक बार समाधान कर दीजिये फिर आगे बढ़ते है ……..

          https://www.bhaskar.com/article/NAT-india-against-corruption-movement-complete-fund-and-expenditure-details-3836280-PHO.html?seq=4&HT1=%3FBIG-PIC%3D

          https://www.bhaskar.com/article/NAT-india-against-corruption-movement-complete-fund-and-expenditure-details-3836280-PHO.html?seq=5&HT1=%3FBIG-PIC%3D

          जो लोग कहते हैं, कि अरविन्द केजरीवाल को अगर पैसा ही कमाना होता, तो वो राजनीति क्यों आता. वो तो वैसे भी अच्छे सरकारी फंड पर था.

          पर एक बार इस बिल पर ज़रूर नज़र डालें, जो केजरीवाल ने आंदोलन में आए चंदे के हिसाब के रूप में दिया है.

          पहले बिल में ९ लाख २९ हज़ार रुपये सैलरी के दिखाए हैं वही दूसरे बिल में १९ लाख ७८ हज़ार ८२५ रूपये सैलरी के लिए खर्च बताए हैं.
          ऐसी ही कई सारी गडबडियां इस बिल में आप देख सकते हैं. पर मेरा उद्देश्य यहाँ पर केवल इस बात को दिखाने का है, कि क्या यह आंदोलन जनता की हक की लड़ाई था या पैसे लेकर आंदोलनकारियों को बुलाया गया था?
          क्या अन्ना गैंग जो भी अनशन या नौटंकी कर रही थी, वो एक ‘पेड’ स्टंट थे?

          • हा अगर शब्द ही दिए जाये तो कह सकते है की गाँधी तो अन्ना को बनाया गया था और नेहरु केजरीवाल खुद है ही इसमें कोई शक नहीं फिर चुराएगा कोन और क्या ????????????????

          • सांतनु भाई, मैं यहाँ केवल औपचारिकता वश लिख रहा हूँ| हम दोनों रेलवे स्टेशन पर तो अवश्य मिले हैं लेकिन आप दक्षिण की ओर प्रस्थान कर चुके हैं और मैं उत्तर की ओर जाने वाली गाड़ी की प्रतीक्षा में हूँ| अब मैं गाड़ी को देखूं या अपनी यात्रा की गंभीरता पर सोचूं? गाड़ी कैसी भी हो, मेरा विश्वास है वह मुझे मेरे गंतव्य स्थान पर अवश्य पहुंचा देगी|

          • कोई भी समझदार व्यक्ति उस गाड़ी में कतई बैठना पसंद नहीं करेगा जिस गाड़ी के बारे में संदेह हो की उसमे आंतकवादी सवार है अगर कोई भूल से उसमे सवार हो भी गया है तो वो समय रहते उतरने की ही चेष्टा करेगा भूल और धोखा तो इन्सान के साथ हो ही जाता है में आपको एक “डायलोग पत्रिका” का लिंक दे रहा हु जिसमे एक लेख है “”केजरीवाल योधा या मोहरा ” इसे पढ़कर अआप अपनी प्रतिक्रिया जरुर दीजियेगा आपके जैसे भी विचार हो जरुर रखियेगा https://www.dropbox.com/s/37jow5959vs2270/DI-November-Issue-2012-in-Hindi.zip
            धन्यवाद

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