बहुत आजकल गुस्सा रहता,
ताले में बैठा “की” होल।
चाबी डाली और घुमाया।
ताला खोला और लगाया।
खुलना लगना रोज मशक्कत,
सबने हाथ जोर आजमाया।
धकम पेल में कोई न समझा,
कितने दुःख में है” की” होल.
जब जब ताला खुला न भाई।
सबने जहमत खूब उठाई।
घर के भीतर जाएँ कैसे,
सबको आई खूब रुलाई।
ताला नहीं खुला चाची का,
बजा गली कूचे में ढोल।
जब भी उसको गुस्सा आता।
बदला लेने पर तुल जाता।
चोरों को आमंत्रित करके,
चाबी डुप्लीकेट मंगाता।
ताला खोल भाग जाते वे,
घर का मॉल सभी कर गोल।