खेल की राजनीति और राजनीति का खेल


राकेश कुमार आर्य

खेल की भावना से यदि कोई कार्य किया जाए तो उसे सबसे उत्तम माना जाता है। खेल में बच्चे गिरते हैं-चोट खाते हैं, जीतते और हारते हैं-पर खेल के मैदान से बाहर आते ही हाथ मिला लेते हैं। हार जीत के खट्टे मीठे अनुभवों को वहीं छोड़ देते हैं, और एक अच्छे भाव के साथ पुन: आगे बढऩे का संकल्प लेते हैं।

वास्तव में खेल की यह भावना गीता की ‘निष्काम कर्म’ की भावना है। गीता की ‘निष्काम कर्म भावना’ को जीवन में अपनाना तो साम्प्रदायिकता हो जाएगी इसलिए हमारे ‘धर्मनिरपेक्ष विद्वानों’ ने गीता के ‘निष्काम कर्म भाव’ को अपनाकर चलने की बात न कहकर खेल की भावना को अपनाने की बात पर बल दिया है। इससे उन्हें दो लाभ हुए हैं-एक तो अपनी बात रखने में वे सफल रहे हैं, दूसरे उस अच्छी बात का भारतीयकरण या भगवाकरण होने से बच गया। जीवन जीने की सर्वोत्तम कला को भी हमने दूसरा नाम देकर इसलिए अपनाया है कि उसे उसके मूल नाम से पुकार कर कहीं हम भी साम्प्रदायिक न बन जाएं। यह हमारा शुतुरमुर्गी धर्म है। ध्यान रहे कि शुतुरमुर्ग अपने शिकारी को अपनी ओर आते देखकर अपनी गर्दन को रेत में छिपाने का प्रयास करता है और बड़ी सहजता से अपने आप ही अपना शिकार करवा लेता है।

हमने अपने जीवन सिद्घांत से मुंह फेरा तो गीता के निष्काम कर्म की भावना का उपहास उड़ाने वालों ने मोर्चा खोल लिया और हमें ही जीवन जीने की कला सिखाने लगे। वास्तव में वे स्वयं नही जानते कि खेल की भावना क्या होती है और इसका मूलोद्गम कहां है? अपने पड़ोसी पाकिस्तान का ही उदाहरण लें। वह खेल को भी शत्रुभाव से खेलता है। यदि गलती से भारत के विरूद्घ उसे कोई सफलता मिल जाए तो उस पर ऐसे खुशियां मनाता है कि जैसे अपने किसी देश को ही जीत लिया हो। पाकिस्तान की इस भावना से ‘खेल की भावना’ को ठेस पहुंची है। इस प्रकार ठेस पहुंचने का मूल कारण यही है कि पाकिस्तान खेल की राजनीति तो जानता है पर राजनीति में खेल (निष्काम कर्मभाव) को अपनाना नही जानता। वह कालुष्यभाव अपनाता है और उसी में सड़ता रहता है।

इधर भारत में कुछ लोग हैं जो भारत-पाक संबंधों को लेकर धर्मनिरपेक्ष भाषण झाड़ते रहते हैं कि दोनों देशों की जनता तो एकता और भाईचारा चाहती है पर सियासत बीच में आ जाती है, इसलिए दोनों देशों के संबंध मधुर नही हो पाते। इन धर्मनिरपेक्ष विद्वानों को इतनी समझ होनी चाहिए कि जब इस देश का बंटवारा मजहब के नाम पर किया गया था तो यहां से रातों-रात पाकिस्तान के लिए चल देने वाले लोग वही जनता के लोग थे जो आज पाकिस्तान के नागरिक हैं। उनके हृदय में भारत के लोगों के प्रति विष था और उसी विष के कारण वह सीमा के उस पार जाकर चिल्लाने लगे थे कि ‘हंसके लिया पाकिस्तान, लडक़े लेंगे हिन्दुस्तान’ जब वे लोग ऐसा नारा लगा रहे थे तो उन्हें पूर्ण विवेक था। उनके इस उन्माद ने पाकिस्तानी शासकों को सदा उन्मादी रहने के लिए प्रेरित किया है। इन लोगों ने अपने इसी उन्माद के कारण पाकिस्तान में रह रहे करोड़ों हिंदुओं को मार-मार कर या तो समाप्त कर दिया या फिर उनका धर्मांतरण कर लिया। इस प्रकार पाकिस्तान की राजनीति उस उन्माद से खाद पानी लेती है जिसे वहां की जनता तैयार करती है। पाकिस्तान की राजनीति के इस खेल को समझने की आवश्यकता है।

सियासत को दोषी बताने वाले समझें कि सियासत को दोषी कौन बना रहा है?
अब आते हैं-खेल की राजनीति पर। भारत से क्रिकेट में परास्त हुए पाकिस्तानी खिलाडिय़ों को अपने लोगों के क्रोध और गालियों का शिकार बनना पड़ता है। इस पर वहां की राजनीति गरमा जाती है। तब खेल की भावना कहां मर जाती है? इसका अभिप्राय है कि पाकिस्तान खेल की भावना को न तो जानता है और न मानता है। इसका कारण यही है कि वह खेल की भावना के मूल अर्थात गीता के ‘निष्काम कर्मभाव’ को नहीं जानता।

इधर भारत का समाज गीता के ‘निष्काम कर्मभाव’ को अपनाकर चलता आया है। जिसने उसे उदार और सहिष्णु बनाया है। इसकी उदारता और सहिष्णुता को भारत की राजनीति ने अपना हथियार बनाकर उसी प्रकार प्रयोग किया है जिस प्रकार पाकिस्तानी लोगों की कट्टरता को वहां की सियासत और सियासतदानों ने हथियार बनाकर प्रयोग किया है।

भारत ने पाकिस्तान के विरूद्घ दो ‘सर्जिकल स्ट्राईक’ कर दी हैं, जिन्हें वह नकार रहा है, कि-‘मेरे साथ कुछ नही हुआ, भारत की सेना और सरकार झूठ बोल रही है कि उसने कोई सर्जिकल स्ट्राईक की है।’ पाकिस्तान की हां में हां मिलाकर भारत के कुछ ‘जयचंदों’ ने भी तुरंत भारत की सेना से ‘सर्जिकल स्ट्राईक’ के प्रमाण मांग लिये। अब इंगलैंड की भूमि से भारत की क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान के विरूद्घ एक तीसरा ‘सर्जिकल स्ट्राईक’ कर दिखाया है। इसे सारे विश्व ने देखा है। भारत की टीम ने ऐसा खेल खेला है कि अब भारत का भी कोई ‘जयचंद’ प्रमाण नही मांग रहा। सब की बोलती बंद हो गयी है। खेल के बहाने से पाकिस्तान की राजनीति भारत को ललकारे और भारत बैठा रहे यह भी तो उचित नहीं था। इसलिए जो लोग भारत को पाकिस्तान के विरूद्घ मैच खेलने से रोकने की वकालत कर रहे थे-उन्हें भी समझना चाहिए कि पाकिस्तान को खेल की राजनीति और राजनीति में खेल का अंतर स्पष्ट करना आवश्यक था। उसको रगड़ा लगना चाहिए, और हर जगह लगना चाहिए। अब वह नही कह सकता कि भारत ने मेरे विरूद्घ कोई ‘सर्जिकल स्ट्राईक’ नहीं की है। इंगलैंड की भूमि पर शत्रु के घुटने तोडऩे के लिए टीम इंडिया को बधाई।

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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