राकेश कुमार आर्य
वेद की बोलें ऋचाएं सत्य को धारण करें
गतांक से आगे….
वेद की ऋचाओं में सत्य-धर्म का रस यूं तो सर्वत्र ही भरा पड़ा है, पर इस वेदमंत्र के ऋषि ने जितनी सुंदरता से सत्यधर्म का रस निचोडक़र हमें पिलाने का प्रयास किया है, वह अनुपम है। मैं समझता हूं कि विश्व में प्रत्येक संविधान को वेद के इस मंत्र को अपने राष्ट्रपति या शासन प्रमुख की योग्यता का पैमाना घोषित करना चाहिए। क्योंकि विश्व के सारे संविधानों का और उनके निर्माताओं का परिश्रम-पुरूषार्थ एक ओर है और वेद के इस मंत्र के ऋषि का चिंतन एक ओर है, और इसके उपरांत भी चमत्कार देखिए कि ऋषि का चिंतन सब पर भारी है।
राजा वचन दे रहा है और उसकी प्रजा उन वचनों को सुन रही है। सत्य-धर्म पर आधारित इन वचनों को आप ‘चुनावी वायदे’ नही कह सकते जिनके पीछे कोई शास्ति नही-होती। इसके विपरीत ये आप्त वचन हैं, जिनके पीछे सत्य-धर्म की शास्ति हैं, अर्थात राजा सत्यधर्म की रक्षा के लिए अपने दिये गये वचनों का पालन करने के लिए बाध्य है। सनातन धर्म की यही अनूठी विशेषता है कि यह कहे गये को करने के लिए प्रेरित करता रहता है, अन्यथा ‘पाप’ के भागी बनने के भय से हमें प्रताडि़त करता है। कहे गये को करने की प्रेरणा हमारे भीतर जहां से उठती है, कहीं-वहीं धर्म और सत्य का वास है।

इस मंत्र में ‘सविता’ उत्पत्ति का प्रतीक है, सविता से प्रेरणा लेकर राजा राष्ट्र में सब प्रकार के आवश्यक उत्पादनों की ओर ध्यान दे। सरस्वती वाणी का प्रतीक है। राष्ट्र की वाणी को (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अर्थात ऐसी स्वतंत्रता जो नये-नये वैज्ञानिक अनुसंधानों को और नये-नये आविष्कारों को जन्म देने वाली हो और जिससे लोगों के मध्य किसी प्रकार की कटुता के बढऩे की तनिक भी संभावना ना हो, एक दूसरे को नीचा दिखाने वाली और एक दूसरे के विरूद्घ अपशब्दों का प्रयोग करने वाली साम्प्रदायिक भाषा न हो) राजा न रोके। मंत्र का अगला शब्द ‘त्वष्टा’ है। ‘त्वष्टा’ रूप का प्रतीक है।
राजा को चाहिए कि वह राष्ट्र में रूपरंग भर दे। कहने का अभिप्राय है कि राजा अपने सभी प्रजाजनों को प्रसन्नवदन रखने का हरसंभव प्रयास करे। सभी की त्वचा पर चमक हो और यह चमक जो कि रूप रंग का प्रतीक है, तभी चमकीली रह सकती है जबकि व्यक्ति समृद्घ और प्रसन्नवदन हो। मंत्र में आये ‘पूषा’ शब्द का भी विशेष अर्थ है। पूषा का अभिप्राय है कि पशुओं की रक्षा करना, पशुओं का रक्षक होकर राज्य करना। राजा के लिए यह आवश्यक है कि वह पशुओं का भक्षक न होकर रक्षक बनकर राज्य करेगा। अभिप्राय स्पष्ट है कि राजा राज्य में पशुवधशालाओं का निर्माण नही कराएगा। ना ही मांसाहारी होगा और ना ही मांसाहार को बढ़ावा देना उचित मानेगा। राजा सृष्टि के जीवन चक्र को समझने वाला हो, जिसके अनुसार प्रत्येक प्राणी का जीवित रहना दूसरे अन्य प्राणियों के लिए आवश्यक है। हर प्राणी के प्राणों की रक्षा का दायित्व राजा के ऊपर इसीलिए है कि वह सभी प्राणियों का संरक्षक है। जो लोग किसी पूर्वाग्रह के कारण या किसी साम्प्रदायिक मान्यता के कारण किन्हीं पशुओं की हत्या करते हैं उन्हें पूषा रूप राजा दण्ड दे। ऐसे राजा को राष्ट्र को कृषि और पशुपालन की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। क्रमश: