कुंभ हादसा : बड़ा सवाल जिम्मेदार कौन? जवाब : खुद हम।

क्षमता को अक्षमता में बदलोगे तो हादसे तो होंगे ही…

सुशील कुमार ‘ नवीन ‘

संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान 29 जनवरी को जो हुआ वह आसानी से भूले जाने वाला नहीं है। 45 दिनों तक चलने वाले इस आयोजन के पहले 16 दिनों ने जहां इसकी ऐतिहासिकता को और भव्य बनाया। वहीं 17वें दिन मची भगदड़ ने इस पर कभी न मिटने वाला दाग लगा दिया। घटना से पूर्व जहां आयोजन के प्रशंसा के कसीदे पढ़े जा रहे थे, वहीं अब जिसे देखो,वहीं अव्यवस्थाओं का रोना रोने में जुट गया है। बड़ा सवाल यह है कि ऐसी स्थिति बनीं ही क्यों? इस पर विचार कर जवाब तलाशना बेहद जरूरी है। प्रबंधन में कमी थी या प्रबंधों को ही किनारे लगा दिया गया। 

  हादसे के बाद चिंतन करने के लिए बड़े बड़े महानुभावों की एक लंबी फेरहिस्त तैयार है। जो आगामी कुंभ तक इस पर लंबी चर्चा करेंगे। इन चर्चाओं का फायदा क्या होगा, ये सब को पहले ही पता है। ऐसे में हमें इस हादसे पर चिंतन करने की कोई आवश्यकता नहीं है  हमें तो बस इतना सोचना है कि हमारी इस आयोजन में क्या जिम्मेदारी थी और हमने क्या किया। जब इस बारे में सोचेंगे तो हादसे के बड़े सवाल का जवाब अपने आप मिल जायेगा। 

  कुम्भ मेला भारत में आयोजित होने वाला भव्य और विशाल आयोजन है। इसमें करोड़ों श्रद्धालु हर 12वें वर्ष प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में से किसी एक स्थान पर पहुंचकर आस्था की डुबकी लगाते हैं। प्रत्येक 12वें वर्ष के अतिरिक्त प्रयागराज में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अन्तराल में अर्धकुंभ भी होता है। वर्तमान में जारी महाकुंभ उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम स्थल पर आयोजित हो रहा है। महाकुंभ हर 144 वर्ष में आयोजित होता है। जो इस वर्ष 13 जनवरी 2025 से प्रारम्भ हुआ है। जो 26 फरवरी तक जारी रहेगा।

   चलिए अब हम भी अपने मस्तिष्क के घोड़े दौड़ाते हैं। 144 वर्ष बाद लगने वाले महाकुंभ का आयोजन उत्तर प्रदेश सरकार के लिए किसी बड़ी परीक्षा से कमतर नहीं रहा है। जानकारी अनुसार सरकार ने महाकुंभ मेला परिसर को राज्य का 76वां जिला घोषित किया हुआ है। लगभग चार हजार हेक्टेयर क्षेत्र को 25 सेक्टर में बांट कुंभ नगरी स्थापित की गई है। 50 हजार से ज्यादा लोग सुरक्षा व्यवस्था को संभाले हुए हैं। ड्रोन और AI कैमरे भी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। एआई युक्त कैमरे लोगों की गिनती करते रहते हैं। अगर किसी इलाके में 2 हजार लोगों के खड़े होने की जगह है तो 1,800 लोग होते ही संबंधित अफसर को जानकारी मिल रही है ।  2,700 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। पानी के अंदर की सुरक्षा के लिए पहली बार नदी के अंदर 8 किलोमीटर तक डीप बैरिकेडिंग की गई है। श्रद्धालुओं की सुरक्षा के साथ-साथ उनकी सुविधाओं पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। 30 पुल बनाए गए हैं। इनमें 15 पुल संगम के नजदीक बनाए गए हैं। घाटों पर 10 हजार से अधिक चेंजिंग रूम हैं। आपात स्थिति से निपटने के लिए सभी घाटों पर 300 से अधिक गोताखोर तैनात किए गए हैं। 

    अब सोचने की बात यह है कि जब इतनी ज्यादा सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है तो अव्यवस्था किस तरह बनीं। हर किसी का अपना विवेक है। मेरे अनुसार इस प्रश्न का जवाब हम सब हैं। भीड़तंत्र जहां प्रभावी होता है वहां सभी व्यवस्थाएं अव्यवस्थाएं बन जाती हैं। ट्रेनों में जगह नहीं है। रिजर्व डिब्बे सामान्य से भी बद्दतर हाल में हैं। जिसे देखो जहां जगह मिले,वहीं सिर पर झोला उठाए फंसा खड़ा है। निजी वाहनों के जमावड़े की तो चर्चा ही बेमानी है। रोड तो जाम होंगे ही जब धर्म की यात्रा को जो ट्रैवल टूर बनाकर छोड़ दिया है। 

  हर एक चीज की सीमा होती है। सीमा को पार करोगे तो परेशानी तो उठानी ही होगी। मंच की क्षमता यदि 50 लोगों को संभालने की है तो 50 तक मंच सुरक्षित हैं। यदि उस पर दस से बीस गुना चढ़ने का प्रयास करेंगे तो हादसा तो होगा ही। यही प्रयाग में हो रहा है। हर पुल की एक क्षमता है, हर एक घाट की क्षमता है। हर व्यवस्था की एक क्षमता है। क्षमता का अक्षमता बनाया तो हमने ही है। आस्था के महासमुंद्र महाकुंभ में डुबकी लगाना जब हम सब की चाह है तो क्या इतने बड़े आयोजन में सहयोग देना हमारा धर्म नहीं है। प्रबंधन को कुप्रबंधन में परिवर्तित करना बड़ा सहज है। करना क्या है, बस आगे वाले को एक धक्का ही तो देना है। उसके बाद तो अपने आप ही धक्काशाही हो जाएगी। जो हुआ है वो यही तो है। ऐसे में किसी और को न कोसकर स्वयं विचारे कि भविष्य में हमें इस तरह के आयोजनों में किस तरह भागीदारी करनी है। जान है तो जहान है। संगम में स्नान तो होते ही रहेंगे। अभी भी समय है स्वयं को भीड़ तंत्र का हिस्सा बनने से बचाएं। धार्मिक यात्रा का धार्मिक यात्रा ही रहने दें, पिकनिक स्पॉट या ट्रैवल टूर न बनने दें।

लेखक;

सुशील कुमार ‘नवीन‘,

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