ये दुनिया चंद दिन का मेला

—विनय कुमार विनायक
यहाँ हर कोई अच्छा हो नहीं सकता
मगर जहाँ में हर कोई चाहता
यहाँ हर कोई हो अच्छा और सच्चा!

सबके दिल में छेद बहुत है, पर हाथ अहं का प्याला है
भाई-भाई में मतभेद बहुत है, बिना पीए ही मतवाला है
यहाँ नहीं कोई बहन बहनोई, दुख में काम आनेवाला है
और नहीं कोई सरहज साला, जो अपना समझनेवाला है
वक्त पर हर कोई मिजाज बदलता बनके भोला-भाला है!

किसी को किसी का विचार नहीं लगता अच्छा
किसी को किसी का व्यवहार नहीं लगता अच्छा
कोई चाहता दुनिया का सारा वैभव हो उसका
कोई चाहता सारे जग में शोहरत हो केवल उसका!

ये दुनिया बड़ी जालिम तंगदिल और मगरूर है
यहाँ नाकाबिल भी सजा लेता महफिल में गुरूर है
कोई थोड़ा पाकर भी खुद को समझने लगता बड़ा
अहंकारी भ्रष्टाचारी हमेशा रहता अपनी जिद पर अड़ा!

यहाँ हर कोई देखता सपना दुनिया की हर चीज हो अपना
पर कोई नहीं चाहता सुख समृद्धि को जरूरतमंद में बाँटना
यहाँ जो पा लेता थोड़ी सी उपलब्धि वो हो जाता है पाखण्डी
दिल से दिलदार नहीं मानवता से प्यार नहीं हो जाता मतलबी!

ये दुनिया की रीत है,दिखावे का प्रीत है, अब दिखावा भी नहीं
चंद पैसों के लिए लोगों को छला, बुरे कर्म का पछतावा भी नहीं
दुनिया में आश्चर्य यही है कि बुरा स्वयं को समझता बुरा नहीं
और जो दिल से है भला,उसे बुरे लोग समझते नहीं भला कभी!

धन दौलत जिसके पास होते,रिश्ते नाते उसके साथ होते
जो जीवन में उसूल के साथ जीते वे कड़वे अहसास पीते
ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती,त्यों-त्यों रिश्तेदारियाँ तेजी से घटती
माँ पिता मामा के जाने से रिश्ते में आत्मीयता खटकती!

जिन भाई-बहनों को गोद में तुमने
खेलाने खिलाने पढ़ाने ब्याहने का फिक्र किया
उन्होंने निज संतति के विवाह निमंत्रण पत्र में
तुम्हारे नाम तक का भी नहीं जिक्र किया!

जिनके हो तुम भैया काका मामा फूफा ताऊ,
उनके घरबार में तुम्हारी उपस्थिति है उबाऊ
जिस ससुराल के तुम थे सीधे साधे चहेते जमाता,
वहाँ सास श्वसुर के मरते ही हो जाते यम के जैसा!

दोस्त जो थे तुम्हारे जिगरी बुढ़ापे में उनके घर जाने से
उनके बच्चों की आँखों में तुम बन जाते हो किरकिरी
अगर तुम बस गए घर से बाहर बहुत दूर जहाँ की नौकरी
पुश्तैनी मकान में तुम्हारी संतान आती भाई गोतिया से डरी-डरी!

ये याद दिलाती है कि तुम आए थे अकेला और जाना भी होगा अकेला
ये दुनिया चंद दिनों का मेला,बचपन में माँ पिता भाई बहन संग खेला
यौवन में पढ़ाई सगाई काम का झमेला,बुढ़ापा में स्वजन विछोह झेला!

कभी सूट-बूट पर टाई टांकने के लिए सुन्दर-सुन्दर दो कलाई थी
यौवन में बच्चों के लिए नोक-झोंक किए जिसमें सबकी भलाई थी
अंत में एक दूजे का साथ ना छूटे राम करे किसी का भाग्य ना फूटे
मगर विधि का विधान है ऐसा जहाँ से आए वहाँ अकेले जाना होता
अंत समय में संत हो, संतान भी नहीं तंग हो,राम राम कहना होता!
—विनय कुमार विनायक

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