भूमि समझौताः ऐतिहासिक करार के फलितार्थ

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-प्रमोद भार्गव-

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आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा के पहले दिन ही बहुप्रतिक्षत भूमि सीमा समझौता हो गया। पिछले 41 साल से लंबित इस विवाद का हल एकाएक निकाल लेना इस बात का संकेत है कि वाकई में नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति मजबूत है और वे अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दे रहे हैं। हालांकि इस समस्या के निदान की कोशिश 2011 में अपनी बांग्लादेश यात्रा के पहले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने भी की थी,लेकिन दो कारणों से वे समझौते पर अमल कराने से वंचित रह गए थे। एक तो भूमि समझौता विधेयक संसद से पारित नहीं करा पाए थे, दूसरे समझौते में रोड़ा बनीं प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राजी नहीं कर पाए थे ? मोदी ने करार की पृष्ठभूमि रचते हुए पहले तो करार से संबंधित विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित कराया और फिर ममता को न केवल राजी करने में सफल हुए,बल्कि उन्हें अपनी यात्रा में भी सहयात्री बनाने में कामयाब रहे। इस समझौते पर भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्रियों के साथ ममता बनर्जी के भी हस्ताक्षर हैं। जाहिर है,अपने कार्यकाल के 13 माह के भीतर मोदी ने अंतरराश्ट्रीय स्तर पर सीमा-विवाद सुलझाकर एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल कर ली है। जो उनके कार्यकाल की उपलब्धियों में स्वर्ण-अक्षरों से लिखी जाएगी।

बांग्लादेश यात्रा, दोनों देशों के परस्पर हित जुड़े होने के कारण बेहद अहम् है। इस यात्रा से भारत के सामरिक और व्यापरिक हित तो जुड़े ही थे,अब भौगोलिक हित का भी समावेश हो गया है। इसके पहले किए प्रयासों में यह विवाद इसलिए हल नहीं हो पा रहा था, क्योंकि भारतीय संविधान में प्रावधान है कि किसी भी अन्य देश से भूमि ली अथवा दी जाती है तो इस विधेयक के प्रारुप को संसद के दोनों सदनों से पारित कराया जाना जरूरी है, वह भी दो तिहाई बहुमत से ? इसके बाद इस विधेयक पर देश के 50 प्रतिशत राज्यों की सहमति भी जरूरी है। केंद्र की राजग सरकार इन दोनों प्रावधानों को पालन कराने में सफल रही। इस हेतु विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी प्रधानमंत्री से पहले बांग्लादेश की यात्रा करके अनुकूल माहौल बनाने का काम कर चुकी थीं। दोनों देशों के विदेश सचिवों की भी अनेक बैंठके हो चुकी थीं। तय है, यह समझौता बातचीत के कई चरणों को आगे बढ़ाने के बाद अमल में आया है। हालांकि यह समझौता 16 मई 1974 से लंबित था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बांग्लादेशी समकक्ष शेख मुजीबुर्रहमान ने भी हस्ताक्षर कर दिए थे। बांग्लादेशी जातीय संसद ने भी समझौते को मंजूरी दे दी थी,लेकिन भारत में इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत थी, जो अब जाकर विधेयक के जरिए पूरा हो पाया।

इस समझौते के मुताबिक अब तक बांग्लादेश के आधिपत्य में भारत 17,160 एकड़ भूखंडों में फैली 111 भारतीय बस्तियां थीं,जो बांग्लादेश को हस्तांतरित हो जाएंगी। इसी प्रकृति की 7110 एकड़ के अलग-अलग भूखंडों में आबाद 51 बांग्लादेशी नगरिकों की बस्तियां थीं,जो अब पूरी तरह भारतीय गणराज्य के अधीन हो जाएंगी। 2011 की जनगणना के मुताबिक बांग्लादेश में बसी भारतीय बस्तियों में 37,334 लोग रह रहे थे,जबकि बांग्लादेशी बस्तियों में 14,000 लोग रहे हैं। हालांकि ताजा अनुमान के मुताबिक यह आबादी अब बढ़कर करीब 51,000 हो गई है। इसलिए ऐसा कयास है कि लगभाग 51 हजार लोगों को भारतीय नागरिकता देते हुए उन्हें राषन एवं आधार कार्ड दिए जाएंगे ? भारतीय नागरिकता कानून 1955 के अनुसार भारत सरकार जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर किसी भी खास इलाके में रहने वाले लोगों को भारत का नागरिक घोशित कर सकती है। लेकिन इस प्रावधान को लाने से पूर्व कुछ सावधानियां भी बरतना जरूरी है। क्योंकि समझौते में दर्ज षर्तों के मुताबिक उन लोगों को भी उन इलाकों में रहने का अधिकार दिया जाएगा ,जिन्हें स्थानातंरित किया जाना है। सरकार इन लोगों को भारत या बांग्लादेश में से एक देश का नागरिक बनने का विकल्प देगी। अधिकतम 51 हजार लोगों को भारतीय नागरिकता देने की सीमा षायद इसलिए रखी गई है,जिससे उन अवैध घुसपैठियों को नागरिक न बनाया जा सके,जो 2011 की जनगणना के बाद भारतीय बस्तियों में नाजायज तौर से घुसे चले आए हैं। घुसपैठियों में मुस्लिमों की संख्या ज्यादा से ज्यादा हो सकती है ?

इन भूखंडों की अदला-बदली में भारत को तकरीबन 2,777 एकड़ जमीन मिलेगी, जबकि भारत से बांग्लादेश को 2,268 एकड़ जमीन हस्तांतरित की जाएगी। परिवर्तन की इस प्रक्रिया के पूरे हो चुकने के बाद 6.5 किलोमीटर लंबी अंतरराश्ट्रीय सीमा का एक सीधी रेखा में नए सिरे से निर्धारण होगा। फिलहाल, भारत और बांग्लादेश से जुड़ी सीमा की लंबाई 4096 किमी है। यह सीमा सुनिष्चित हो जाने के बाद भारत यदि अपनी सीमा में बागड़ लगाने का काम पूरा कर लेता है,तो बांग्लादेश की तरफ से अवैध घुसपैठ लगभग प्रतिबंधित हो जाएगी। नतीजतन पूर्वोत्तर के सातों राज्यों में षांति कायम होने की उम्मीद बढ़ जाएगी।
भूमि समझौते के साथ ही पहले दिन कुल 19 समझौते हुए हैं। इनमें कोलकाता और अगरतला के बीच ढाका होते दो बस सेवाएं शुरू की गई है। इन्हें प्रधानमंत्री मोदी,बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और ममता बनर्जी ने संयुक्त रूप से हरी झंडी दिखाकर कोलकाता रवाना किया है। एक बस कोलकाता से अगरतला वाया ढाका होते हुए चलेगी। अभी कोलकाता से अगरतला पहुंचने के लिए भारतीय सीमा के सड़क मार्ग से 1650 किमी की दूरी तय करनी पड़ती थी,जो वाया ढाका होते हुए,महज 350 किमी की रह गई है। दूसरी बस कोलकाता से षिलांग वाया ढाका होते हुए चलेगी। इसके अलावा दोनों देशों के बीच एक तटीय जहाजरानी समझौते पर भी हस्ताक्षर हुए हैं,ताकि भारत से आने वाले छोटे पोत बांग्लादेश के चटगांव समेत विभिन्न बंदरगाहों पर लंगर डाल सकेंगे। अभी इन पोतों को सिंगापुर होकर जाना पड़ता है। चटगांव बंदरगाह का विकास हाल ही में चीन ने किया है। दोनों देशों के बीच रेल संपर्क को मजबूत करने की बात भी आगे बढ़ी है। यह वार्ता परिणाम में बदलती है तो 1965 के पहले अस्तित्व में रहे रेल मार्गों की पुनर्बहाली की जा सकती है। यातायात के ये सड़क, समुद्र और रेल के रास्ते खुल जाते हैं तो पहुंच की दृष्टि से दुर्लभ बने पूर्वोत्तर के राज्यों में आवाजाही सरल होगी, नतीजतन व्यापार, पर्यटन और रोजगार को बढ़ावा मिलेगा। मोदी की इस यात्रा के दूरगामी रणनीतिक पहलू भी हैं। भारत की अर्से से पड़ोसी देशों के प्रति चली आ रही उदानसीनता के चलते चीन ने बांग्लादेश समेत श्रीलंका,नेपाल,मालदीव और पाकिस्तान में व्यापार के बहाने रिष्तों को मजबूती दी है। ऐसे में उलझे मुद्दों को षलीनता और गरिमा के साथ सुलझाना नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी सूझबूझ का परिचय देती है। इससे एक संतुलन कायम होगा और चीन को बांग्लादेश में अब तक चली आ रही आसान पैठ मुष्किल होगी। विदेश नीति से जुड़ी नरेंद्र मोदी की यह कुटनीतिक चतुराई ‘सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे‘ कहावत को चरितार्थ करने वाली है।

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