प्रदेश की बदहाल कानून व्यवस्था अब बनेगी चुनावी मुददा

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मृत्युंजय दीक्षित
प्रदेश की बदहाल होती जा रही कानून और व्यवस्था अब चुनावी मुददा बनने जा रही है। बहुजन समाजवादी पार्टी और भाजपा सहित कांग्रेस आदि भी इसे भुनाने के लिए तत्पर दिखलायी पड़ रही हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती कुछ जरूरत से ज्यादा ही अब हमलावर हो गयी हैं तथा राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग कर रही हैं। यह बात बिल्कुल सही है कि वर्तमान समय में प्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत बहुत ही दयनीय हो चुकी है। भारतीय जनता पार्टी 2017 के चुनावों में मथुरा हो या फिर कैराना या फिर मुख्तार असांरी, अतीक अहमद जैसे प्रकरणों को पूरे जोर शोर से उठाने की तैयारी कर रही है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने इस बात का पूरा संकेत दे दिया है कि मिशन -2017 का चुनाव प्रचार ढीलाढाला नहीं अपितु जोरदार होगा तथा उसमें सपा और बसपा के कर्यकलापों का भरपूर प्रचार होगा। ज्ञातव्य हे कि विगत चुनावों में समाजवादी पार्टी ने बसपा के भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की बात करते हुए चुनाव जीता था लेकिन अब अगले चुनाव आ गये हैं लेकिन मायावती सरकार द्वारा बनाये गये न तो किसी स्मारक को हाथ लगाया और नहीं उसके निर्माण में हुए घोटाले की जांच के लिए किसी भी प्रकार का आयोग ही गठित किया। अब वहीं मायावती अगली सरकार बनने के बाद सपा के गुंडों व बदमाशों को जल भेजने की बात कह रही हैं। लेकिन अब भाजपा यह विश्वास जताना चाह रही है कि सपा ,बसपा के खिलाफ चुनाव जीतकर आयी लेकिन उसने बसपा के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया वहीं इसी प्रकार का काम बसपा भी करने वाली है। इन दोनों दलों के बीच भ्रष्टाचार और अपराध के बीच सत्तापाने की सांठगांठ हैं। यही कारण है कि भाजपा जैसी साम्प्रादयिक ताकतों को सत्ता में आने से रोकने के नाम पर सपा ,बसपा और कांग्रेस जैसे तथाकथित दल एक हो जाते हैं जिसका नजारा अभी राज्यसभा और विधानपरिषद चुनावों में देखने को मिला है। यही कारण है कि इन सभी दलों के बीच भाजपा को रोकने के लिए महागठबंधन की बात होने लग जाती है।
विगत 15 वर्षो से भी अधिक समय से प्रदेश में इन्हीं दलों का राज चल रहा है। अतः आज प्रदेश में जिस प्रकार से अपराधों की बाढ़ आयी हुयी है उसके लिए सपा ,बसपा और अन्य तथाकथित उनके सहयोगी दल ही जिम्मेदार है। यह सभी दल भाजपा को केवल साम्प्रदायिक और दंगा पार्टी कहकर ही अपमानित कर सकते है। इसके अलावा इन दलों के पास भाजपा को आरोपित करने के लिए कोई और अन्य कारण नहीं है।
इसलिए यदि भाजपा की ओर से कानून व्यवस्था का मामला उठायाजाता है तो अधिक उचित होगा। इतिहास गवाह है कि भाजपा की पर्वूवर्ती कल्याण सिंह की सरकार में यह कहा जाता था कि उस समय लडकियां भी देर रात तक अकेले बिना डर के घूम सकती थीं। लेकिन आज समाजवादी सरकार में विपरीत हवा बह रही है। प्रदेश में चारांे ओर हर प्रकार के जरायम अपराधों का बोलबाला है। लूट, हत्या, डकैती, युवतियों के साथ निर्मम बलात्कार व हत्या जैसी जघन्य वारदातों की बाढ़ आ गयी है। पूरे प्रदेश में हरप्रकार के तस्करों की पौबारह हो गयी है। अवैध खनन के काराबोरियों वं रंगदारी मांगने वाले कुख्यात अपराधी बैखौफ हो गये हैं। आज समाजवादी सरकार में हर प्रकार के गुंडों को सरकर व संगठन स्तर पर संरक्षण मिल रहा है। पुिलस व सरकार अधिकरी असुरक्षित हो गये है। अच्छे व साहसिक पुलिस वालों को कार्यवाही के दौरान शहीद होना पड़ रहा है। प्रदेश में अपराधों का आलम यह है कि राजधानी लखनऊ जैसे शहर में भी चेन खीचने , पर्स लूट, मेाबाइल लूट व सरेआम डकैती जैसी जघन्य वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है। पशु तस्करों आदि का भी मनोबल बढ़ा हुआ है। पशु तस्कर अब पुलिस पर सीधे हमले कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी की ओर से अवैध कब्जे को लेकर एक हेल्पलाइन शुरू की गयी है जिसमें अब तक 450 से अधिक शिकायतें आ चुकी हैं।साथ ही भाजपा यह भी वायदा कर रही है कि जो शिकायतें प्राप्त हो रही हैं उन पर सरकार बनने के बाद कड़ी कार्यवाही भी की जायेगी। वही भाजपा कार्यकर्ता हर थाने पर प्रदर्शन आदि भी करेंगे व कर रहे हैं।
बसपानेत्री मायावती का यह कहना सही है कि यदि उनकी सरकार सत्ता में आ गयी तो जब वह गुंडों के खिलाफ कार्यवाही प्रारम्भ करेंगी तब सपा खाली हो जायेगी। आज प्रदेश के हालात इस कदर खराब हो गये हैं कि संगीन सं संगीन अपराध जिनकी जांच सीबीआइ के हवाले कर दी गयी थी उनका फालोअप तक तो दूर जांच तक शुरू नही हो पायी है। जिसमें राजधानी लखनऊ के निकट मोहनलालगंज का महिला के साथ सामूहिक बलात्कार और उसकी जघन्य हत्या का मामला जगजाहिर है।इस कांड से लखनऊवासियों ही नहीं अपितु प्रदेश की जनता के रोंगटे खड़े हो गये थे। यह मामला भी राजनैतिक दबाव के चलते ठंडे बस्ते में चला गया है।
आंकड़ों से पता चलता है कि विगत छह माह में पुलिस पर हमले की 93 घटनाएं घटित हुईं। इन घटनाओं में जहां 8 पुलिसकर्मी शहीद हुए वहीं 130 घायल हुए हैं। दुखद यह भी है कि छठे माह के मात्र 23 दिनो में ही चर पुलिसकर्मी शहीद हो चुके हैं। पहली जनवरी 2016 से 31 मई 2016 के बीच प्रदेश में पुलिस पर हमले की 89 घटनाएं घटित हुईं जिनमें अभियुक्त बनाये गये 300 अपराधी अभी भी पकड़ से बाहर हैं। इस मान्यता से कोई इंकार नहीं कर सकता कि पुलिस पर हमले की घटनाएं अपराधियों के बेखैाफ होने का संदेश देती हैं। अब तो हालात इतने अधिक बिगड़ गये है कि गौवंश आदि की तस्करी करने वाले गिरोह भी पुलिसबल पर उसी प्रकार हमले कर रहे हैं जिस प्रकार से आतंकवादी आदि करते है। कहने को तो सरकार समाचार पत्रों आदि में बड़े- बड़े विज्ञापन देकर काफी दावे कर रही है अब प्रदेश की बदहाली व बिगड़ती हुई कानून व्यवस्था चुनावी मुददा बनने के लिए तैयार है।

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