नेता तो नेता, अब न्यायाधीश भी पीछे क्यों रहे? सरकारी माल है। सूंत सके तो सूंत। नरेंद्र मोदी ने विदेश-यात्राओं पर दो साल में करीब एक अरब रु. खर्च कर दिए तो हमारे सर्वोच्च न्यायालय के जज करोड़-आधा करोड़ भी खर्च न करें क्या? मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने पिछले तीन साल में 36 लाख 36 हजार रु. हवाई टिकिटों पर खर्च किए और जस्टिस ए के सीकरी ने 37 लाख 91 हजार रु. खर्च किए। कई अन्य जज भी इसी तरह कम-ज्यादा खर्च करते रहे हैं।
नेताओं की बात तो समझ में आती है। उनकी विदेश यात्राएं राष्ट्रहित-संपादन के लिए की जाती हैं लेकिन अफसरों और जजों को पता होता है कि इन यात्राओं में असली काम कितना होता है। हमारी संसद के दोनों सदनों को इन विदेश-यात्राओं पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। नेता लोग सरकारी पैसे पर मजे लूटते हैं तो अफसर और जज भी क्यों न लूटें? इनसे कोई पूछे कि कहीं आपका भाषण है तो वहां आपकी पत्नी का क्या काम है? वह वहां क्या करेगी?
आप पत्नी को साथ ले जाते हैं तो सरकार का खर्च दुगुना हो जाता है। जब पत्नी साथ होती है तो आप अपने गंतव्य पर सीधी उड़ान नहीं भरते। टिकिट इस तरह बनवाते हैं कि स्विटजरलैंड भी बीच में आ जाए। सिंगापुर, पेरिस, लंदन भी आ जाए। याने गोष्ठी एक दिन की और यात्रा आठ दिन की। कोई पूछनेवाला नहीं है। भत्ता रोजाना, होटल और टैक्सी का खर्च सरकार के जिम्मे!
यह सिलसिला बरसों-बरस से चला आ रहा है। मोदी के डर के मारे मंत्री और सांसद तो जरा चौकन्ने हैं लेकिन जज तो स्वायत्त हैं। उनके पास अपना कोष है। इसका अर्थ यह नहीं कि विदेश यात्राओं पर प्रतिबंध हो। कई बार वे जरुरी भी होती हैं लेकिन हमारे नेताओं और जजों से हम आशा करते हैं कि वे ‘माले-मुफ्त, दिल-ए-बेरहम’ की कहावत को चरितार्थ न करें। आज देश में जजों की इज्जत नेताओं से कहीं ज्यादा है। वे जितनी सादगी बरतेंगे, आम आदमियों पर उतना ही अच्छा प्रभाव पड़ेगा। वे चाहें तो जहाज की प्रथम श्रेणी में चलने की बजाय साधारण श्रेणी में चलें, पांच सितारा होटलों की बजाय सादी होटलों में ठहरें और मर्सिडीज़ और बीएमडब्ल्यू की बजाय सस्ती टैक्सियां ले तो वे काफी पैसा बचा सकते हैं।