राजनीति

पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल तुम्हारा जाने है

buta_singh1भ्रष्टाचार कांग्रेस के चरित्र में हैं और इसके कीटाणु पार्टी नेता बूटा सिंह के रग-रग में है। ध्‍यातव्‍य हो कि कल ही सीबीआई ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बूटा सिंह के बेटे सरोबजीत सिंह उर्फ स्वीटी को एक ठेकेदार से एक करोड़ रुपए की कथित रिश्वत मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया। अब जब बूटा जी के सुपुत्र ने भी स्वीकार कर लिया है कि १ करोड़ की रिश्वत आदरणीय बूटा जी की सहमति से ही ली गयी थी, बूटा सिंह जैसे लोग सदा से ही इस पुनीत लोकतंत्र को कलंकित करने काम करते रहे हैं। राज्यपाल पद पर रहते हुए जिस तरह से बूटा ने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए बिहार विधानसभा को बर्खास्त कर दिया था वह तो लोकतंत्र का काला अध्याय बन कर रह गया है। यहाँ तक कि बाद मे न्यायालय ने भी उनके फैसले के खिलाफ आदेश दिया था। लेखक ने उस दौरान बिहार को गर्त में धकेल देने की भर्त्सना करते हुए राज्यपाल को जो पत्र लिखा था उसकी अविकल प्रस्तुति.

स. बूटा सिंह जी

नमस्कार

आशा है आप अपने सुपुत्र स्वीटी और लवली के साथ पटना के राजभवन में सानंद एवं सकुशल होंगे। साथ ही बिहार के राज्यपाल, यूपीए के द्वारपाल एवं ”मैडम” के आदेशपाल की विरोधाभासी भूमिका में भी संतुलन स्थापित करते हुए मगन होंगे। हो सकता है राजग के द्वारा निवर्तमान विधानसभा के 125 से अधिक सदस्यों सहित राष्ट्रपति के सामने उपस्थित होने से आपका संतुलन थोडा डावाडोल हो गया हो या असमय आपके द्वारा काल कवलित कर दिये गये सदन के चार निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा दायर याचिका पर केन्द्र सरकार को नोटिस जारी होने से आपकी मगन्ता में थोडी सी खलल पडी हो। वैसे हमें इस बात की आशंका है कि पहले भी विभिन्न तरह के सच्चे आरोपो से बच निकलने के अपने ”अनुभवों” का लाभ उठा आप जनतंत्र की छाती पर मूंग दलना जारी रखेंगे, और बिहार का वही होगा जो होने के लिए वह अभिशप्त है। अस्तु!

 

सरदार साहब, क्या आप पप्पू को जानते हैं? नहीं, शायद नहीं जानते होंगे। पप्पू कोई व्यक्ति विशेष नहीं है, वह प्रतीक है – बिहार से पोटली में सत्तू बांध, घर से खजूर बनवा बिना किसी आरक्षण के रेलों के साधारण डब्बे में भेड बकरियों की तरह ठुँसकर क्लर्क बनने की प्रतियोगिताओं में शामिल होने पटना से मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, बिलासपुर, भिलाई आदि शहरों में जाते उन युवाओं का जिनमें से मात्र मुठ्ठी भर ही अपने अभीष्ट को प्राप्त कर पायेंगे, और मुकद्दर का ऐसा सिकंदर बन जाने पर भी उनका वेतन उतना ही होगा जितना शायद आपके स्वीटी और लवली जी के कुत्तों के बिस्किट का खर्च। आपको मालूम है सरदार साहब, उन ढेर सारी मुसीबतों को झेल कर प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने नगर-नगर घुमकर वहां के रहवैयों की गाली सुनने, भूखे प्यासे रात्रि विश्राम के लिए एक अदद छत की तलाश में अपनी बची खुची उर्जा भी निछावर कर, कभी कभार उन नगरजनों की मार खाकर भी, वर्षों वर्ष तक ऐसी तपस्या, संघर्ष के बाद जब शेष अधिकांश असफल युवाओं की इन परीक्षाओं में भाग लेने की भी उम्र समाप्त हो जाती है तो उन ‘पप्पुओं’ के पास बचता है तकरीबन एक दशक तक की भाग दौड से टूटा शरीर, बिखरा यौवन, आहत मन, लुटा आत्मविश्वास, अंधकारमय भविष्य, परिचितों का उपहास एवं बिहार में पैदा होने की नियति पर सर पीटता, जार-जार आंसू बहाता हृदय। और जानते हैं आप? भूखे प्यासे, थके मांदे उन शहरों की खाक छानकर प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने की न्यूनतम योग्यता यानी स्नातक होने के लिए भी कितने पापड बेलने पडे होते हैं उनको? जी हाँ महामहिम, जेठ की तपती दुपहरी में भी कभी नंगे पांव, तो कभी आधे पेट कई-कई किलोमीटर का फासला पैदल तयकर पहुंचते हैं वो अपने उच्च विद्यालय, या टूटी फूटी मरम्मत की हुई साइकिल के सहारे बीसों किलोमीटर का सफर तय कर महाविद्यालय। तब जाकर ग्रेजुएट बने विभिन्न राज्यों के स्थानीय नागरिकों की विद्रूप हंसी का सामना करने लायक योग्यता हासिल की होती है उन युवाओं ने।

माफ कीजिएगा सरदार साहब, आप सोच रहे होंगे यह कौन कलमघिस्सू हमारे आराम में दखल देने, क्यूं हमें डिस्टर्ब करने आ गया। लाट साहब, सारे संसार को मानवता एवं सत्य अहिंसा का पाठ पढाने वाले प्रदेश (बिहार) के इन युवाओं की निस्तेज सूनी आंखों का शब्द चित्र खींचकर, इन पंक्तियों के लेखक ने आपसे यह जानने की कोशिश की है कि दशकों से गर्त में जा रहे उस गरीब प्रदेश को तीन महीने के अंदर पुन: गर्त में धकेलकर, अगठित विधानसभा की भ्रूण हत्या कर, दर्जनों सुहागनों का सुहाग, मांओं की ममता को दांव पर लगाने का, प्रदेश को पुन: आतंक के साये में धकेल देने का एक और पाप अपनी पार्टी के क्षुद्र स्वार्थ के लिए जो आपने किया है उसकी जितनी भर्त्सना की जाय उतनी कम है।

वैसे तो राज्यपाल का पद किसी भी दलीय पूर्वाग्रह से परे होता है। किसी भी संवैधानिक पद पर उंगली उठाते हुए हमारे हाथ भी कांपते हैं, लेकिन उपाय क्या है? आखिर उस पद पर बैठने वाले लोगों के चाल एवं चरित्र से ही प्रभावित होना पडता है सभी को। ‘एक और पाप’ शब्द इस्तेमाल हमने इसलिए किया है कि इससे पहले भी आप अपनी कौम के साथ विश्वासघात करने के पाप में शामिल रहे हैं। चाहे ऑपरेशन ब्लू स्टार का मामला हो या श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के कत्लेआम के समय अपनी उपयुक्त भूमिका नहीं निभाने का। आपके द्वारा उसी पटना के हर मंदिर साहिब में जूठे बर्तन साफ कर, झाडू लगाकर ‘तनखैया’ से मुक्त होने हेतु प्रायश्चित करना आपके स्वयं के द्वारा किये गये अपराधों की आत्मस्वीकृति थी। फिर इससे ज्यादा हास्यास्पद बात क्या हो सकती है कि विधायकों की खरीद फरोख्त का आरोप लगाकर आपने उस समय बिहार विधानसभा भंग की जब प्रदेश में सरकार का गठन होना लगभग तय हो गया था। आपको क्या लगता है संपूर्ण राष्ट्र ”झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड” को भूल गया है? नहीं लाट साहब, इतनी कमजोर नहीं होती जनता की यादाश्त उसे याद है कि बिना किसी सबूतों के राजग पर जनप्रतिनधियों को खरीदने का आरोप लगा, विधायकों की नीयत पर प्रश्नचिन्ह लगा, सदन को भंग कर लोकतंत्र का चीरहरण कर लेने वाला ‘बूटा सिंह’ झामुमो के चारों सांसद एवं पी.वी. नरसिम्हा राव, सतीश शर्मा समेत सभी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 12. के तहत आपराधिक षड्यंत्र और भ्रष्टाचार निवारक अधिनियम की विभिन्न सुसंगत धाराओं के तहत सांसदों को घूस देने के आरोपी थे। इस प्रकरण में सबूतों की कोई कमी नहीं थी लेकिन आप सभी तकनीकी आधार पर बरी हुए थे।

आ. बूटा जी, आप याद कर लें तब आप पर यह आरोप लगा था कि झामुमो सांसदों से संपर्क कर लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट डालने के लिए आपने उन सांसदों की खरीदी की थी। सीबीआई ने ढेर सारे सबूतों के द्वारा यह साबित कर दिखाया था कि बूटा सिंह के निवास से इन सांसदों को पैसे दिये गये थे। ”उल्टा चोर कोतवाल को डांटे” की तर्ज पर आपको बिल्कुल शर्म महसूस नहीं होती, अपना दागदार दामन लिए दूसरों पर आरोप लगाते हुए। आपने संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर राज्यपाल पद की मर्यादा के साथ, विधायकों को बिकने वाला बता उनमें आस्था जताने वाले मतदाताओं के सम्मान के साथ, लोकतंत्र के साथ खिलवाड किया है। उन विधायकों का यही अपराध था न कि वो राज्य से बाहर, राबडीपति शासन के आतंक क्षेत्र से दूर जाकर एक लोकप्रिय सरकार के गठन का मार्ग तलाश रहे थे? क्या लालू यादव या रामविलास पासवान की तरह आप भी उन विधायकों को बंधुआ मजदूर समझते थे? क्या उनको कहीं जाने के लिए आपसे आदेश लेने की जरूरत थी? वो आपसे पूछकर किसी से बात करते? बूटा सिंह जी, बिना सबूतों के उन चुने हुए जनप्रतिनधियों को लांछित करने का जो कुकर्म आपने किया है, इसके लिए कानूनी और नैतिक रूप से आपको पूरे लोकतंत्र से ही ‘तनखैया’ घोषित कर दिया जाना चाहिए। आपने फिर से अवश्यंभावी चुनावी हिंसा में कई सुहागनों के विधवा होने का, बच्चों के यतीम होने का, उपरोक्त वर्णित ‘पप्पुओं’ के और ज्यादा लांछित होने का मार्ग प्रशस्त किया है। बेरोजगारों की आंखों में दम तोडने सपनों की ताबूत में अंतिम कील ठोकने का, दीवालियेपन की कगार पर खडे राज्य पर हजारों करोड का बोझ फिर से डालने का जो घृणित कार्य आपने विधानसभा भंग करने की यूपीए प्रायोजित सिफारिश कर किया है, इसका प्रायश्चित आप हरमंदिर साहिब में झाडू लगाकर तो क्या पूरे प्रदेश के गरीब मतदाताओं के घर के टूटे-फूटे बर्तन साफ करने पर भी नही कर पायेंगे।

बहरहाल, डूबते को तो तिनके का भी सहारा होता है, फिर तो महामहिम राष्ट्रपति एवं माननीय उच्चतम न्यायालय भारत के मेरुदंड है। गेंद अब उन्हीं के पाले में है और यह उम्मीद करना बेमानी नही होगा कि शायद बिहार को न्याय मिल सके और विधानसभा फिर से अस्तित्व में आ जाए। परंतु यदि बिहारीजन को एक और चुनाव झेलना ही पडे तो आशा है इस बार प्रदेश की जनता आपको और आपके संप्रग को, साथ ही (रामविलास पासवान जैसे) अपराधियों के सरताज, तानाशाहों को सबक सिखायेगी, स्पष्ट जनादेश देकर एक ऐसी सरकार का चयन करेगी जिसे फिर से जनादेश को अपने बूट तले रौंदने वाले बूटाओं का मुहताज न होना पडे। एक ऐसी सरकार जो युवाओं को सम्मानजनक रोजगार दिलवाने का प्रयास करे, कोसों पैदल चलकर स्कूली शिक्षा प्राप्त करने को मजबूर नौनिहालों के पांवों के छालों को भरने का प्रयास करे उनकी आंखों में आत्मविश्वास और हृदय में उम्मीदों की लौ जगाये। दशकों से नेस्तनाबुत हो रहे, अपराधियों, लुटेरों, भ्रष्टाचारियों का चारागाह बन रहे प्रदेश में फिर से, किसी सरफिरे को पशुओं का चारा डकारने का, किसी गौतम गोस्वामी को बाढ पीडितों का हक गटक लेने का, किसी संतोष झा जैसे टुच्चे चमचे को बेघरों के सर को ढंकने वाले तिरपाल का पैसा खाने का ,कई दिनों भूख से आकुल मासूमों के मुंह का निवाला छीनने का अवसर नहीं मिले। किसी सत्येन्द्र दुबे जैसे कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार, प्रतिभावान आइआईटी के इंजीनियर को भ्रष्टाचार को उजागर करने की कीमत अपनी जान देकर नहीं चुकानी पडे। किसी शहाबुद्दीन, तस्लीमुद्दीन, साधू यादव जैसे गुर्गों के विरुद्ध कारवाई करने का साहस जुटाने वाले प्रशासनिक अधिकारियों को अपना बोरिया-बिस्तर समेट लेने को विवश नहीं होना पडे । और जैसा कि आप ही के एक केन्द्रीय मंत्री ने कहा- बिहारीजनों को आप जैसे लोगों के हाथों का खिलौना बनने पर मजबूर नहीं होना पडे।

अप्रिय सत्य से आपका साक्षात्कार कराने के लिए क्षमा,

-जयराम दास