पर्यावरण

संकट में हैं तेंदुए

प्रमोद भार्गव

मध्यप्रदेश में शुरू हो रही तेंदुओं की गिनती के संदर्भ में-

मध्य-प्रदेश के अरण्यों से लुप्त हो रहे चीते जैसी चुस्ती-फुर्ती और ताकत वाले वन्य प्राणी तेंदुओं की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। प्राणियों को सुरक्षित रखने के वन विभाग के अनेक उपायों के बावजूद अवैध शिकार और दुर्घटनाओं का सिलसिला अभी थमा नहीं है। पूरे एशिया के कुल तेंदुओं की 75 फीसदी आबादी भारत में होने के बावजूद यहां तेंदुए अनदेखी का शिकार हैं। अब तक इन्हें बचाने और इनकी गिनती के लिए कोर्इ अभियान नहीं चलाया गया है। आंकड़ों पर गौर करें तो अमूमन हर दिन एक तेंदुआ मौत के मुंह में समा रहा है। साल 2012 से अब तक यानी पांच महीनों के दौरान 135 तेंदुओं की मौत हो चुकी है। तेंदुओं की मौत के मामले में उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। मध्यप्रदेश में हर माह औसत दो तेंदुओं की मौत हो रही है। अब इसे गंभीरता से लेते हुए मध्यप्रदेश सरकार तेंदुओं की गिनती करने की तैयार कर रही है।

मध्यप्रदेश में साल 2011 में 33 तेंदुओं की मौत हुर्इ। साल 2012 में भी तेंदुए लगातार मर रहे हैं। अब जाकर प्रदेश के वन विभाग को तेंदुओं के संरक्षण की याद आर्इ है। लिहाजा इनकी गिनती का सिलसिला भी शुरू होने जा रहा है विभाग की नजर अब शिकारियों पर भी रहेगी। दरअसल मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के शिकारियों के गठजोड़ ने भी बाघ और तेंदुओं के सामने खतरा पैदा कर दिया है। इसके मदेनजर वन विभाग सक्रिय हुआ है। तेंदुओं के प्राकृतिक निवास के सिकुड़ने के साथ जंगलों में लगातार बढ़ते इंसानी दखल ने तेंदुए के सामने वजूद का संकट खड़ा कर दिया है। वहीं, जंगलों में पानी और परंपरागत भोजन की कमी के कारण जब तेंदुए गांवों का रूख करते हैं तो वहां उन्हें मार दिया जाता है। देश के 35 फीसदी तेंदुए ही संरक्षित क्षेत्र में हैं। यह स्थिति तब है, जब एशिया के कुल तेंदुओं की 75 फीसदी आवादी भारत में है। अंतरराष्ट्रीय वन्य प्राणी संरक्षण संस्थान के अध्यक्ष नरेश कदयान का कहना है कि सरकार को बाघ संरक्षण परियोजनाओं की तरह तेंदुआ संरक्षण परियोजनाओं पर भी काम करने की जरूरत है। लेकिन यह परियोजना जब बाघों का संरक्षण नहीं कर पार्इ तो तेंदुओं का क्या करेगी ?

चीते की जाति के तेंदुए को संस्कृत में गुलदार एवं द्वीपी, अंग्रेजी में लियोपार्ड और लेटिन में पेंथर कहते हैं। बिल्ली प्रजाति के जीवों में यह सबसे चपल, चालाक और फुर्तीला जीव माना जाता है। बाघ जैसे आकार और आकृति वाला तेंदुआ बाघ से कुछ छोटा होता है। इसका रंग सुनहरा होने के साथ कालापन लिए हुए होता है,जिस पर अर्धचंद्राकार काले धब्बे होते हैं। जबकि बाघ के शरीर पर काली धारियां होती हैं। यही प्रमुख भिन्नता है, जिससे जंगल में बाघ और तेंदुए की पहचान होती है।

तेंदुए की औसत लंबार्इ 10 फीट 3 इंच तक होती है। अपवाद स्वरूप 8 फीट लंबे तेंदुए भी देखने में आये हैं। इसका औसत वजन 80 से 90 किलोग्राम होता है। भारत में तेंदुआ घने जंगलों से लेकर चारागाही तक और रेगिस्तान से लेकर बर्फ से ढके पहाड़ों पर भी आराम से रह सकता है। इसकी औसत उम्र 15 से 20 साल मानी गर्इ है। इसके अगले पैरों में पांच-पांच और पिछले पैरों में चार-चार नुकीले और तीखे नाखून होते हैं, जो शिकार को अपनी गिरफ्त में ले कर चीर-फाड़ देते हैं।

प्रेमी नर-मादा तेंदुए एक-दूसरे के प्रति बेहद आसक्त रहते हैं। इनमें एक-दूसरे के प्रति समर्पण का भाव आश्चर्यजनक होता है। ये आसानी से अपना जोड़ा भी नहीं तोड़ते। गर्भ धारण करने के बाद मादा तीन माह के पश्चात दो से चार बच्चों को जन्म देती है। ये नवजात शिशु जन्म लेने के दस दिन बाद आंखें खोलते हैं। तेंदुए की एक महत्वपूर्ण और विचित्र विशेषता यह है कि दो तेंदुओं की त्वचा के धब्बे कभी भी एक जैसे नहीं होते, ठीक मनुष्य की अंगुलियों के निशानों की तरह। वन्य प्राणी संरक्षण सोसायटी की रिपोर्ट को माने तो 2009 से 2012 तक देश में कुल 1112 तेंदुए मारे गए इनमें से अकेले मध्यप्रदेश इसी दौरान 115 तेंदुओं की अकाल मृत्यु हुर्इ।

भारत के वन्य प्राणी न्यास के उपाध्यक्ष अशोक कुमार का कहना है, चीन जैसे देशों में बाघ की खाल और अन्य अंगों की जितनी मांग है, उतनी ही मांग तेंदुए की खाल व अन्य अंगों की भी है। इसके अलावा परंपरागत दवाइयों में भी इसके अंगों का स्तेमाल होता है इसलिए इसकी जान पर हमेशा खतरा मडराता रहता है। 1972 में बाघ परियोजना (प्रोजेक्ट टाइगर) शुरू होने के बाद जंगलात के आला अहलकारों ने तेंदुओं की महत्ता और संरक्षण को लगभग नजरअंदाज कर दिया है। फलस्वरूप इनकी संख्या लगातार घटती जा रही है। और ये चीता के तरह किताबों के सफों पर सिमटने की दशा में पहुंचते जा रहे हैं