विमलेश बंसल ‘आर्या’
होली को पावन त्यौहार आज कछु ऐसे मनाऊँगी।
लगाकर सबके चंदन माथे,
सौम्य हो जाऊंगी।
बड़ों को करके ॐ नमस्ते, छोटों को हृदय लगाऊंगी।
नवान्न आटे की गुजिया बना,
प्रसाद बनाऊंगी।
वृहद यज्ञ सामूहिक कर के
नौत खिलाऊंगी।
उंच नीच का भेद भुलाकर,
प्रीति निभाऊंगी
उत्तम पेय पिला ठंडाई,
फाग गवाऊँगी।
पूरे वर्ष की लगी गन्दगी,
मैल छुटाऊँगी,
“विमल” वेद के पक्के रंग से,
रंगूं रंगाऊंगी।
होली को पावन त्यौहार,
आज कछु ऐसे मनाऊंगी।।