प्रभुनाथ शुक्ल
हमारे देश में बरसात का मौसम हरियाली उगाने का मौसम होता है। पूरे चौमासा में हरियाली उत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसमें सरकारों की दिलचस्पी अधिक होती है। हरियाली उत्सव के इश्तहार बड़े अच्छे लगते हैं। माननीयों का पवित्र हाथ जिस पर पड़ गया उसका जीवन सुफल हो गया। कहते हैं कि हरियाली नहीं बची तो जीवन नहीं बचेगा। पेड़ मर गए तो जीवन मर जाएगा। जिसकी वजह से सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर हरियाली बचाने के प्रयास हो रहे हैं। मानसून सत्र में पेड़ लगाओ उत्सव चल रहा है। पर्यावरण संरक्षण के नारे गढ़े जा रहे हैं। धरती को हरी-भरी बनाने का अभियान इतना तेज हो चला है कि एक-एक दिन में करोड़ों नवजात पौधे एक जगह से अपदस्थ कर दूसरी जगह वृक्ष स्थापना की उम्मीद में पदस्त किए जा रहे हैं। वैसे भी अपदस्त करने का मौसम चल रहा है। कुछ का द इंड को गया है तो दूसरे वेटिंग लिस्ट में हैं। अपदस्त का मंचन कब सतह पर आ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है। हरियाली स्थापना अभियान चंद्रयान मिशन से भी तगड़ा है। पेड़ों को कागजी कक्षा में बैठाने का सफल परीक्षण जारी है। मिशन को सफल करने में पूरी सरकार लगी है। एक दिन में ग्लोबल ग्रीन का रिकार्ड भी बनाया जा रहा है। गिनीज बुक वालों को खोजा रहा है।
नवजात वृक्ष शिशुओं के लिए यह परम सौभाग्य का दिन है। वह अपने भाग्य पर इठला रहे हैं। नेता, अफसर, संतरी, मंत्री सभी नवजातों को प्रतिस्थापना को लेकर व्यग्र हैं। रंगोली बनाकर वृक्ष लगाए जा रहे हैं। सभी मानसून से चिरौरी करते फिर रहे है कि काश आप इसी तरह हमेेंशा कायम रहें। गली मोहल्ले के छुटभैइये नेता से लेकर पूरी सरकार हरियाली उत्सव में शरीक है। पौधे लगा कर सोशलमीडिया पर हजारों हजार सेल्फी हर रोज अपलोड़ हो रही है। नवजात शिशुओं का टेम्पोंहाई है। वह मुख्यमंत्री, अधिकारी, संतरी, नेता, व्यापारी, बुद्धजीवि, वैज्ञानिक, पर्यावरण विद् के हाथों में पहुंच इतरा रहे हैं। वह खुद को परम सौभाग्यशाली समझ रहे हैं।
नवजात वृक्ष शिशुओं में होड़ लगी है। नवजात वृक्ष खुद एक दूसरे को नीचे दिखा रहे हैं। कोई कह रहा है देख हम सीएम के हाथ से पदस्त हुए, दूसरा बोल रहा है कि हमें सचिव साबह ने रोपा। तीसरा बोल रहा है कि हमें अभिनेता जी ने रोपा और कुछ बगैर रोपे दुनिया से अलविदा हो गए। उन्हें अपने भाग्य पर इतराने का मौका भी नहीं मिला। ट्वीटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक, वाट्सप ग्रुप में हरियाली उत्सव छाया है। जमींन में एक वृक्ष पदस्त हो रहा है, लेकिन मीडिया के सैकड़ों कमैरे चमक रहे हैं। कोई पत्तियां पकड़े है तो कोई जड़ और तना। साहब के हाथ में फावड़ा है। जूते की पालिश तक फीकी नहीं पड़ रही है। हाथ में मिट्टी तक नहीं लगी है। भला यह परम सौभाग्य इन बेचारों को कब मिलता। यह तों सरकारें ही कर सकती हैं। इतना बड़ा उत्सव वहीं मना सकती हैं। यह हर साल बारिश में मनाया जाता है।
अखबारों में हरियाली उत्सव के नारे और बड़े-बड़े इश्तिहार छपते हैं। पर्यावरण बचाने का ज्ञान बखरा जाता है। सख्त से सख्त निर्देश जारी होते हैं। वृक्षों की पदस्थता के लिए करोड़ों खारिज होते हैं। अगले बरस के मानसून का फिर इंतजार किया जाएगा। तब तक जमींन में वृक्षों की जड़ें जमाने और उनकी सुरक्षा के लिए दूसरा बजट खारिज होगा। अगले साल मानसून की दस्तक के साथ हरितिमा की नई योजना बनाई जाएगी। फिर हरियाली उत्सव मनाया जाएगा। फिर नई सरकार आएगी। अपने स्तर से दूसरी योजना लाएगी।
अब तक की सरकारों में जो करोड़ों वृक्ष रोपे गए उसमें कितने प्राण गवा चुके हैं। कितने वेंटीलेटर और आईसीयू में हैं उसकी चिंता किसी को नहीं है। उसमें कोई जिंदा भी है या नहीं इसकी भी फिक्र नहीं है। क्योंकि मरने वालों का हिसाब नहीं रखा जाता। सरकारें सिर्फ वर्तमान का हिसाब रखती हैं। दूसरों का लेखाजोखा नहीं छेड़ना चाहती। गलत परंपरा नहीं डालना चाहती। यह उत्सव ही कागजी होता है। जब से देश में यह अभियान चल रहा है इंच पर जमींन शायद नहीं बचती अगर सारे पदस्थापित पौधे जिंदा बचे होते। अगर ऐसा हो जाएगा तो नयी सरकारों हरियाली उत्सव कैसे मनाएंगी। करोड़ों का बजट कैसे खारिज होगा। यह सरकारों की आपसी समझदारी है। इसिलए पुराने पदस्थ वृक्षों का हिसाब नहीं रखा जाता। बस! आप भी पुरानी हरियाली का लेखा-जोखा मत मांगिए। पेड़ लगाइए। सेल्फी डालिए और हरियाली का उत्सव मनाइए।