कविता साहित्‍य

जीवन संघर्ष

earthवेदना के किसी क्षण में,

कोई शुभ संदेश आये,

अंधियारी रातों मे जैसे,

जुगनू कोई चमक जाये।

रात पूर्णिमा की हो या,

हो अमावस का अंधेरा,

दुख दर्द सब समेट लूँ,

होने वाला है सवेरा।

मुरझाई सी बगिया है ,

धूप की चकाचौंध से,

रात होने से पहले ही,

पानी डालूँ हर पौध में।

सींच कर हरा भरा करदूँ,

हर बेल और हर पेड़ को,

वर्षाऋतु आने से पहले,

झुलसने इनको न दूँ।

ऊर्जा पाँऊ सूर्य से मैं,

तपिश को भूल जाऊँ,

जीवन संघर्ष में मैं,

आँख ख़ुद से मिला पाऊँ।