बिहार में शराब माफिया

            मेरा पैतृक निवास बिहार के सिवान जिले के महाराजगंज तहसील के पास बाल बंगरा गाँव में है। मेरे घर के पास सड़क के उस पार पासियों की एक बस्ती है जिसका पुश्तैनी धंधा ताड़ और खजूर के पेड़ से ताड़ी निकालना और बेचना था। इसके अतिरिक्त वे महुआ की देसी शराब भी बनाते तथा बेचते थे जो आज भी बदस्तुर जारी है। किसी भी देश और किसी भी समुदाय में नशा करना सदियों पुरानी कुप्रवृत्ति है। मेरे गाँव और आसपास की जनता इस अवैध शराब और ताड़ी का सेवन करती थी लेकिन पीकर कोई मरता नहीं था। बिहार के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने बिना सोचे-समझे और सरकारी तन्त्र को दुरुस्त किये बिना पूरे राज्य में पूर्ण नशाबन्दी लागू कर दी। शराब पीना, बनाना और बेचना एक संगीन अपराध घोषित कर दिया गया। सैद्धान्तिक रूप से यह कार्य अच्छा था, पर था अव्यवहारिक। यह असाध्य कार्य बिना जन सहयोग और पुलिस की कठोर, ईमानदार और निःस्वार्थ कार्यवाही के संभव नहीं था। यह कुछ ऐसा ही था कि किसी को उड़ते विमान से बिना पैराशुट के नीचे फेंक दिया जाय। अब यह नीति बैकफायर कर रही है। बिहार में पुलिस की निःस्वार्थ और ईमानदार भूमिका ! तिब्बत को चीन से लिया जा सकता है, परन्तु बिहार पुलिस को कर्त्तवयनिष्ठ नहीं बनाया जा सकता। शराबबन्दी से पुलिस को अकूत कमाई का एक नया स्रोत मिल गया जिसे चौकीदार से लेकर उच्चाधिकारियों तक ने भुनाया। मेरे घर के बगल में तहसील का सबसे बड़ा अवैध शराब का केन्द्र खुलेआम चल रहा है।

            बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा गंगा और सरयू की धारायें तय करती हैं जिनमें नाव से यातायात आम बात है। यू.पी. में शराब की खुली बिक्री है और बिहार में कानूनन बंद। सैकड़ों किलोमीटर लंबी सीमा पर भारत-पाकिस्तान की सीमा की तरह न तो बाड़ लगाई जा सकती है और न चौकसी ही की जा सकती है। मेहरौना, सिसवन, माँझी और बक्सर शराब तस्करी के केन्द्र बन गए हैं। रात में शराब तस्कर नाव द्वारा शराब यू.पी.से बिहार  लाते हैं और उसी रात में ठिकाने तक पहुँचा देते हैं। नीतीश राज में एक नया माफिया फलने-फूलने लगा जिसे शराब माफिया कहते हैं। इनका हौसला इतना बुलन्द है कि कभी-कभी प्रतिरोध की आशंका में पुलिसकर्मियों की हत्या तक कर देते हैं और प्रशासन कुछ नहीं कर पाता। माफिया एक काम से तो  संतुष्ट होता नहीं।  धीरे-धीरे उनकी समानान्तर सरकार चलने लगती है। अब ये शराब माफिया रात में शराब की तस्करी करते हैं और दिन में डे-डकैती। इस गिरोह में बेरोजगार युवा विशेष रूप से शामिल हैं। मेरा गाँव एक शान्तिपूर्ण गाँव था लेकिन अब संगठित डे-डकैतों ने दिन में अपना कारनामा शुरु कर दिया है। वे फोन से अपहरण या हत्या की धमकी देते हुए एक निश्चित रकम माँगते हैं और वसूलते हैं। पैसा न देने या आनाकानी करने की स्थिति में दूकान या घरपर पहुँचकर गोली मार देना आम घटना है। नीतीश द्वारा तेजस्वी यादव (RJD) के साथ सरकार बनाने के बाद डे-डकैतों का हौसला सातवें आसमान पर है।

            कभी-कभी  डिमांड अधिक हो जाने पर शराब माफ़िया सस्ती जहरीली शराब की सप्लाई कर देते हैं जिसका परिणाम पियक्कड़ों को भुगतना पड़ता है। मेरे पुराने संयुक्त छपरा जिले में जहरीली शराब पीने से सैकड़ों लोगों की मौत एक छोटा-सा उदाहरण है। मेरे गाँव में मेरे साथ कंचे, लट्टू, कबड्डी, चिक्का, दोल्हापाती खेलनेवाला एक भी दोस्त ज़िन्दा नहीं है। सब अवैध जहरीली शराब की बेदी पर चढ़कर असमय काल के गाल में चले गए। नीतीश के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती। रोम जल रहा है, नीरो बंसी बजा रहा है।

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