राजनीति

इतिहास की सुनो

गंगानन्‍द झा

“We learn from history that we do not learn from history.”

नब्बे के दशक में भारतीय राजनीतिक अंगरेजी पत्रकारिता में एक जुमला उभड़ा था, “टीना फैक्टर”(TINA_ There is no alternative)—–कोई विकल्प नहीं है। आज के परिप्रेक्ष्य में यह विद्रूतात्मक रूप से प्रासंगिक हो गया है। डॉक्टर मनमोहन सिंह इसी टीना फैक्टर के कारण आउटसोर्सिंग के जरिए देश के प्रधानमंत्री बने। जबकि सोनिया गाँधी त्यागी और इसलिए महान हो गईं। इस सवाल पर बहस हो सकती है कि क्या सोनिया का यह फैसला दायित्वग्रहण करने से बचना नहीं कहा जाएगा। यह बात तय थी कि अगर उन्होंने आउटसोर्सिंग नहीं की होती तो सुषमा स्वराज और उमा भारती का एजेण्डा रंग लाता। पर जिम्मेदारी का अर्थ ही तो कठिन स्थितियों से जूझना हुआ करता है। सोनिया गाँधी ने जनादेश की आउटसोर्सिंकर टीना फैक्टर के समाधान का सहज विकल्प अपनाया। इसके अलावे ‘त्यागी’ का लेबल लगने से इस देश में सहजता से उपलब्ध स्वीकार्यता से विभूषित हो गईं। इस मानसिकता को अरविन्द केजरीवाल, प्रशान्त भूषण,किरण बेदी तथा उनके सहयोगी की स्वयंघोषित सिविल सोसायटी अच्छी तरह जानती है। तभी उन्होंने अण्णा हजारे को अपने अभियान का अगुआ बनाया। यह भी एक तरह की आउटसोर्सिंग ही कही जाएगी। बाबा रामदेव का अपने अभियान के अपहरण से आशंकित होना लाजिमी था।

सन 1974 ई. में एक त्यागी श्री जयप्रकाश नारायण ने आन्दोलन को अपनी अगुवाई दी थी। पर तबकी सरकार ने उस आन्दोलन को सम्माननीयता नहीं दी थी। उसे अपने इकबाल का, जनादेश का सम्मान करना था। लगता है, उस रवैए की परिणति का खयाल कर इस बार सरकार ने चुनौती का सामना न कर उसे सम्मान देने का कौशल किया। अपनी औकात का, अपने इकबाल का और अपनी सीमाओं का खयाल नहीं किया। आउटसोर्सिंग से बनी यह सरकार समस्या से निपटने का कठिन विकल्प लेने में असमर्थ है.। इसने हमेशा विरोध के सामने शॉर्टकट अपनाया है जो समाधान नहीं हो सकता।

अण्णा के द्वारा पुनः पुनः अनशन की धमकी ऋषि कौशिक की याद दिलाती है। महाभारत में चर्चा है। वे पेड़ के नीचे तपस्या में लीन थे। तभी पेड़ की डाल पर से किसी पक्षी ने उनके ऊपर बिट कर दिया। ऋषि ने उधर देखा तो पक्षी भस्म हो गया। ऋषि समझ गए कि उनको सिद्धि मिल गई। फिर वे एक गृहस्थ के दरवाजे पर भिक्षाटन करने गए और गुहिणी के देर कर आने पर क्रुद्ध हो गए थे।

देश के इतिहास में पहली बार प्रधान मंत्री लोकसभा का सदस्य नहीं है। सोनिया गाँधी के आउटसोर्सिंग के फैसले को त्याग बताया गया। जबकि यह फैसला विरोध को कुन्द करने के लिए लिया गया था। सोनिया गाँधी के विदेशी मूल का मुद्दा निष्प्राण हो गया। सत्ता से दूर रहने के फैसलों को हम त्याग की संज्ञा देकर गौरवान्वित करते हैं , इसे दायित्व ग्रहण करने से बचना नहीं मानते। जब त्यागी लोग अपने तथाकथित त्याग की कीमत अपना पावना मानते हैं।