समाज

अमरिका में प्रवासी भारतीय सद्भाव कैसे बढाएँ ?

डॉ. मधुसूदन

(प्रवेश) हमारी समन्वयिता (आर्यत्व) का स्वागत:
ॐ ==> प्रधान मन्त्री श्रीमती मार्गारेट थॅचर का हिन्दू स्वयंसेवकों को संबोधन था –*आप अपनी संस्कृति ना छोडें*, और आगे कहा था। *पर, अपनी शाला के सहपाठियों में आपके अपने संस्कार फैलाएँ। हम हर कोई को इस मेल्टिंग पॉट में मेल्ट होने प्रोत्साहित करते हैं। पर आप के संस्कार अच्छें और ऊंचें है। आप उसका प्रसार करें।
— प्रधान मन्त्री श्रीमती मार्गारेट थॅचर

ॐ ==> *हम पूरे देश को बदल नहीं सकते। पर जहाँ हम रहते हैं, वहाँ आसपास के पडोस में अपने प्रति (भारतीय प्रवासी के नाते) सद्-भाव अवश्य बढा सकते है।* द्वंद्वात्मक संघर्ष से सफलता संभव नहीं लगती; न वो सक्षम पर्याय है। ऐसा संघर्ष शत्रुता बढा सकता है।

क्या करें, ये जानने के लिए आगे पढें।
आज आवश्यकता है; कुछ रचनात्मक और सक्रिय रचनात्मक कामों की; साथ साथ बिना भूले, उसके प्रचार की भी। ऐसे काम, जो अमरिका की (छोटी ही सही) समस्याओं को सुलझाने में सहायक हो।
कुछ घटे हुए, उदाहरण आलेख में प्रस्तुत है। स्थान स्थान पर ऐसे छोटे छोटे उपक्रम प्रारंभ होने से भारतीयों को, हितैषियों की दृष्टि से देखा जाएगा। और साधारण समाज जो हमें समस्या की दृष्टि से देख सकता है; उसकी मानसिकता में बदलाव आएगा।

उदाहरण(१)
एक त्रिनिदाद से आए आर्य समाज से संस्कारित पण्डित। आस पास के पडोसी बालकों-युवाओं को संध्या पर, एकत्रित कर,(Home Work)गृह पाठ में विना मूल्य सहायता करते थे। कुछ समय बीतने पर उनका नाम धीरे धीरे मेयर तक पहुँच गया। समाचारों में आने लगा। कुल, परिणाम यह हुआ, कि, उनको मान्यता मिलने लगी। आगे चलकर उनकी स्वतंत्र शाला खुली और उसे चार्टर्ड स्टेटस प्राप्त हुआ।विशेष आस पास पडोस में उनकी साख बढी; साथ साथ सद्भाव बढा।

उदाहरण(२)
और एक उदाहरण मेरे सामने है। एक मेरे परिचित मित्र के तीन लगभग समान आयु के बेटे अपने घर के बाहर खेला करते; एक *लघोरी* नाम का खेल। महाराष्ट्र में छोटे छोटे चपटे पत्थरों को एक के ऊपर एक ऐसे सात पत्थरों को रखकर, बच्चे उसको लक्ष्य कर एक पत्थर मारकर उस मिनार को, ध्वस्त करने का खेल खेलते हैं। धीरे धीरे खेल का नाम *लघोरी* ऐसे गली में फैला कि बहुत सारे बच्चे खेल खेलने आने लगे। साथ साथ मित्र नें, कहानियाँ कहना भी प्रारंभ किया। इस घटना की प्रसिद्धि होने लगी। भारतीयता के प्रति और मित्र के प्रति सद्भाव भी बढने लगा।

उदाहरण (३)
आपको एक ऐतिहासिक घटना का स्मरण दिलाता हूँ; लन्दन संघ शाखा के वर्ष-प्रतिपदा उत्सव पर प्रधान मन्त्री श्रीमती मार्गारेट थॅचर के भाषण का।प. पू. डॉ. हेडगेवार जी की प्रतिमा को श्रीमती थॅचर ने हार पहनाया था।और अपने भाषण में, युवा स्वयंसेवकों को हट के कहा था; *आप अपनी संस्कृति ना छोडें*। पर, आप अपनी शालाओं के सहपाठियों में आपके संस्कार फैलाएँ। हम हर कोई को इस मेल्टिंग पॉट में मेल्ट होने प्रोत्साहित करते हैं। पर आप के संस्कार अच्छें और ऊंचें है। ध्यान रहें; कि,जहाँ हिन्दुओं की बस्ती सर्वाधिक है, ऐसे लेस्टर नामक जिला में (Juvenile Crime Rate)युवा अपराध सबसे कम है। पुलिस विभाग ने भारतीय परिवारों और संस्कारों को इसका कारण बताया था। जिसे जानने के बाद श्रीमती थॅचर ने शाखा के वर्ष प्रतिपदा उत्सव पर आने का मन बनाया था। क्या यही हमारे *कृण्वन्तो विश्वमार्यम* की अभिव्यक्ति नहीं है?

उदाहरण: (४)
एक प्रोफ़ेसर अपने निकट के युवा छात्रों को सफल (Study)अध्ययन की कुंजियाँ समझाता है। वह किसी आर्थिक अपेक्षा से सहायता नहीं करता; पर कुछ लोग उसे इस पर स्वेच्छा से चेक देकर जाते हैं।

उदाहरण (५)
एक परामर्शक अभियंता गलती से अधिक लिया हुआ शुल्क लौटाने गया। उसकी प्रामाणिकता देखकर क्लायंट इतना प्रभावित हुआ, कि उस अतिरिक्त शुल्क का ही उपहार उस अभियन्ता को देकर, आग्रहपूर्वक स्वीकार करवाया।

उदाहरण (६)
हमारे विश्वविद्यालय की इण्डिया स्टुडन्ट एसोसिएशन, हर वर्ष, दीपावली बडे पैमाने पर और धूमधाम से मनाती है। काफी आमंत्रितों के सुनियोजित भारतीय मनोरंजन कार्यक्रम एवं भोज का भव्य कार्यक्रम ४-५ घण्टेतक चलता है। ७००-८०० तक की जनसंख्या भारत के प्रति सद्‍भावना लेकर जाती है। क्लायंटों के मुँह से कई बार ऐसे कार्यक्रम की प्रशंसा सुनी हुयी है।अनुभव है; भारत का सद्‍भाव बढाने में ऐसा कार्यक्रम बहुत सफल सिद्ध होता है।

उदाहरण (७)
प्रतिवर्ष मई में मॅसेच्युसेट्ट्स राज्य के राज्यपाल एक हिन्दू हेरिटेज डे घोषित करते हैं। हिन्दू संस्थाएं मिलकर आधे दिनका एक भव्य मनोरंजन एवं भोज का कार्यक्रम आयोजित करती है। हजार-बारह सौ की जनसंख्या भाग लेती है। और हमारे प्रति सद्भाव भी बढता है। ऐसे कार्यक्रम ही प्रवासी भारतीयों की और भारत की साख बढाने में बडा योगदान देते हैं।
कुछ सुझाव:
(क)आप अपनी स्वयंसेवी संस्था के नाम पर Adopt a highway का एक मील ले कर, उसको स्वच्छ रखने स्वयंसेवी संस्था तैयार हो सकती है। ध्यान रहे, उसके नाम की पट्टी में India वा Hindu का उल्लेख अवश्य हो। (हमारी India Student Association ने ऐसा उत्तरदायित्व लिया है।)
(ख)सूप किचन,
(ग) निवृत्त वरिष्ठों से वार्तालाप,
(घ) उनकी छोटी मोटी सेवा …इत्यादि विचार करने पर आप बुद्धिमान मित्रों को कई और कल्पनाएँ भी आएगी। काम छोटा या बडा कैसा भी हो। आप का काम बोलता है, और बोलेगा ही। ऐसा छोटा बडा काम करें। और इसका प्रचार अवश्य करें।
आपको बडा योगदान करने की आवश्यकता नहीं है।जहाँ आप रहते हैं, उस आस पडोस के परिवारों को किसी न किसी रूपमें सहायता करने का काम होना चाहिए।
यदि, हमारे विषय में भ्रांत धारणा है, कि, हमारे कारण देश में समस्याएँ हैं, तो उसका निर्मूलन यथा संभव हो जाना चाहिए, तो जो छुट पुट हत्त्याओं की घटनाएँ हो रही है; उनकी मात्रा में कमी की संभावना बढ जाएगी। कुछ अज्ञानियों की ईर्ष्या भी ऐसी घटनाओं के पीछे काम करती है।ध्यान अवश्य रहे; बिल्कुल भूले नहीं।अपने हक की लडाई शत्रुता जगाती है। संघर्ष समाधान नहीं है। समन्वयता, सहकार, भाईचारा, ॥कृण्वन्तोऽविश्वमार्यम्‌॥
यही कूंजी है। *हम समस्या की अपेक्षा वास्तव में, समस्याओं का समाधान हैं* यह संदेश उजागर होना चाहिए। तो, हम लोगों की आँख में खटकेंगे नहीं।
आप, सारे प्रवासी भारतीय बुद्धिमान और संस्कारी हैं, विद्वान हैं। सकारात्मक सोच से आपको और भी सक्रिय कामों की कल्पनाएँ आएंगी।

यह अकर्मण्य बैठने की घडी नहीं है।*कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन*