मिलन सिन्हा
जिन्हें
ढूंढ़ रही थी आँखें
वो कहाँ चले गए
जिन्हें
देख रही थी आँखें
वो पहचान कहाँ खो गए
जिन रास्तों पर
चलने की सीख
गुरुजनों के दी थी
वे रास्ते क्यों अब
सुनसान पड़ गए
जिन पर चलने से
किया था मना
वे रास्ते क्यों अब
भीड़ से पट गए
परवरिश में तो
नहीं थी कोई कमी
फिर बच्चे
माँ – बाप को छोड़ कर
क्यों चले गए
न जाने
किस काम में लग गए
किस भीड़ में खो गए
कैसे रिश्तों की परिभाषा
ऐसे बदलते गए
कैसे हम
इतने अकेले हो गए
भविष्य के सपने
क्यों ऐसे चकनाचूर हो गए ?