कविता

प्रेम

 

प्रेम इतना भी न करो किसी से,

कि दम उसका ही घुटने लगे,

फ़ासले तो हों कभी,

जो मन मिलन को मचलने लगे।

भले ही उपहार न दो,

प्रेम को बंधन भी न दो,

एक खुला आकाश दे दो,

ऊंची उड़ान भरने का,

सौभाग्य दे दो…..

लौट के आयेगा तुम्हारे पास ही,

ये तुम वरदान ले लो।

प्रेम बंधन है, न बलिदान है,

प्रेम मे विस्तार है,

प्रेम मे गहराई है,

प्रेम मे संग साथ है,

साथी का विश्वास है,

प्रेम तो बस प्रेम है,

समझ है,

ना कि उन्माद है।