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 छात्रशक्ति का महाकुम्भ 

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अ.भा.वि.प. की स्थापना के अमृत महोत्सव वर्ष में आयोजित 69 वां राष्ट्रीय अधिवेशन

–           प्रो. रसाल सिंह

चरित्र निर्माण को शिक्षा की आधार-सरणि मानने वाले विश्व के सबसे बड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का स्वातंत्र्योत्तर भारत के निर्माण में उल्लेखनीय योगदान हैI भारत के सांस्कृतिक गौरव से प्रेरणा और ऊर्जा प्राप्त करने वाला यह संगठन राष्ट्रीय एकीकरण और सशक्तिकरण को समर्पित हैI शिक्षा, संस्कार, कला, रंगमंच, पर्यावरण, सेवा,समरसता, सामाजिक परिवर्तन, और राजनीति आदि क्षेत्रों में उसका कार्य-विस्तार हैI सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाले देश भारत में ऐसे असीम व्याप वाले छात्र संगठन को नज़रन्दाज नहीं किया जा सकता है!

राष्ट्रीय एकीकरण, सांस्कृतिक जागरण और राजनीतिक संगठन के लिए कुछ उत्साही छात्रों और प्राध्यापकों ने  मिलकर 9 जुलाई,1949 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की। यशवंत राव केलकर जी ने संगठन को मूर्तिमान करते हुए उसका व्यापक प्रसार किया। ज्ञान, शील,एकता के ध्येय-वाक्य से प्रेरित और पोषित विश्व का यह सबसे बड़ा छात्र संगठन मानवीय भावों और राष्ट्रीय बोध का संवाहक है। अभाविप रोजगारोन्मुख संस्कारपरक शिक्षा की सबसे बड़ी पाठशाला और प्रशिक्षण-केंद्र हैI इस छात्र संगठन की पहुँच, प्रभाव और कार्य-विस्तार समाज के प्रत्येक समुदाय, भौगोलिक क्षेत्र, भाषाभाषी  और आर्थिक वर्ग के छात्र-छात्राओं तक है। सार्वदेशिक और सार्वभौमिक उपस्थिति वाले इस संगठन के 75 वें स्थापना वर्ष के अवसर पर 7-10 दिसम्बर तक दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन में भारतवर्ष के कोने-कोने से 10 हज़ार से अधिक छात्र प्रतिनिधियों ने भाग लियाI अभाविप का राष्ट्रीय अधिवेशन मंथन, मंचन और मंत्रण का ऐसा विशिष्ट और विश्वसनीय मंच है; जो विचार-विमर्श, कलात्मकता, रचनात्मकता आदि पर बल देते हुए  शिक्षा, समाज तथा राष्ट्र के पुनरुथान एवं पुनर्निर्माण से जुड़े विषयों पर देशभर की  युवाशक्ति को सम्मिलन,समागम और सहभाग का अमूल्य अवसर और अनुभव देता है।

यह अमृत महोत्सवी अधिवेशन अपनी विशिष्ट संरचना और संकल्पना में अभूतपूर्व और ऐतिहासिक थाI यह भारत-बोध और राष्ट्र-जागरण  का अभूतपूर्व और अद्वितीय अवसर थाI  यह देश की सांस्कृतिक समृद्धि और राजनीतिक चेतना की अभिव्यक्ति का एक ऐसा सार्थक आयोजन था, जिसमें ‘विविधता में एकता’ का साक्षात्कार हुआI विद्यार्थियों को आधुनिकता के साथ-साथ अपनी परम्परा से परिचित कराने तथा उन्हें एक राष्ट्र के रूप में भारतवर्ष की सतत प्रवाहमान यात्रा के स्वरूप को समझाने के लिए आयोजन-स्थल पर निर्मित सुरुचिपूर्ण,सुंदर, भव्य और विशाल टेंट सिटी का नाम  पांडवकालीन राजधानी इंद्रप्रस्थ नगर रखा गया थाI  इस नगर के मुख्य सभागार का नाम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के तपस्वी राष्ट्रीय संगठन मंत्री और प्रख्यात संगठनकर्ता  स्व. मदनदास देवी के नाम पर रखा गया। इस इंद्रप्रस्थ नगर के आवासीय परिसरों के द्वारों के नाम महाराज सूरजमल तथा सम्राट मिहिर भोज के नाम पर रखे गए। इस महासंगम में विश्वगुरु भारत एवं अन्य ऐतिहासिक थीमों के साथ तैयार होने वाली भव्य प्रदर्शनी का नाम दत्ता जी डिडोलकर प्रदर्शनी रखा गया। पूरे अधिवेशन परिसर में भारत को गौरवान्वित करने वाले वीर – वीरांगनाओं ; महापुरुषों एवं अभाविप के 75 वर्ष की गौरव पूर्ण यात्रा के महान ध्येय  यात्रियों की आठ प्रतिमाएं लगायी गयीं : 1. महाराणा प्रताप; 2. महाराजा सूरजमल; 3. महाराजा मिहिरभोज; 4. रानी दुर्गावती; 5. छत्रपति शिवाजी महाराज; 6. पृथ्वीराज चौहान; 7. दत्ता जी डिडोलकर; 8. मदन दास देवी

इस महासंगम से पूर्व निधि संग्रह के लिए विशेष अभियान चलाया गयाI  यह विराट आयोजन समाज द्वारा समर्पित राशि से  ही संभव हुआI छात्रों, प्राध्यापकों, अभिभावकों, दुकानदारों और गृहणियों ने मुक्त ह्रदय से इस आयोजन हेतु आर्थिक सहयोग कियाI इतनी बड़ी धनराशि का संग्रहण समाज में इस संगठन की विश्वसनीयता का प्रतिबिम्बन हैI दिसम्बर की सर्दी में देश-विदेश के दस-बारह हजार छात्र-छात्राओं के आवास, भोजन और आवागमन आदि की तमाम व्यवस्थाएं दिल्ली प्रान्त के कार्यकर्ताओं द्वारा की गयींI साधारण कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया व्यवस्था-प्रबंधन बड़ी-से-बड़ी इवेंट मैनेजमेंट कम्पनी के लिए भी चकित आश्चर्यजनक, प्रेरणास्पद और अनुकरणीय थाI देशभर में अपशिष्ट प्रबंधन (वेस्ट मैनेजमेंट) एवं निस्तारण एक बड़ी पर्यावरणीय समस्या है। इसी को  मद्देनज़र रखते हुए ‘उतना ही लें थाली में, कि व्यर्थ न जाये नाली में’ नारा देकर जीरो फ़ूड वेस्ट पॉलिसी सुनिश्चित की गयी। इसके अलावा प्लास्टिक का उपयोग भी नहीं किया गयाI 

अधिवेशन से पहले आयोजित किये गये इंटर्नशिप कार्यक्रमों  और विभिन्न यात्राओं ने इस आयोजन में चार चाँद लगा दिएI इनमें ‘कबाड़ से जुगाड़ (वेस्ट रीसाइकिल मॉडल)’ ‘भित्ति चित्रावली’ जैसी इंटर्नशिप और  ‘पूर्वोत्तर अध्ययन यात्रा’ एवं  ‘हिन्दवी स्वराज यात्रा’ आदि उल्लेखनीय हैंI दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ द्वारा राष्ट्रीय कला मंच के सहयोग से आयोजित्त भित्ति चित्रावली  विशेष रूप से सराही गयी। इस भित्तिचित्रावली  (ग्रैफ़िटी) के विषय भारतीय इतिहास के महापुरुषों एवं जननायकों जैसे -रानी लक्ष्मीबाई, स्वामी विवेकानंद आदि की गौरव गाथा, दिल्ली की सुंदरता और इतिहास का प्रतिनिधित्व करने वाले स्मारक, राष्ट्रीय राजधानी की कला, संस्कृति और भोजन आदि पर केंद्रित थे।

”विश्व गुरुभारत” थीम पर आयोजित दत्ताजी  डिडोलकर प्रदर्शनी  के माध्यम से राष्ट्रीय कला मंच ने भारत के गौरवशाली इतिहास का चित्रण कियाI इसके लिए पेंटिंग इंटर्नशिप का आयोजन किया गया जिसमें देश के महत्वपूर्ण संस्थानों सैकड़ों विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक सहभाग करते हुए अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। प्रदर्शनी में विश्वगुरु भारत के अलावा ‘ आजादी की गौरव गाथा’, राष्ट्रीय एकात्मता, छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य के 350 वर्ष, अभाविप के  गौरवपूर्ण 75 वर्ष आदि विषयों पर भी हृदयस्पर्शी  चित्रों का निर्माण किया गया।

राष्ट्रीय अधिवेशन के तीसरे दिन 9 दिसंबर के दिन अधिवेशन स्थल इंद्रप्रस्थ नगर से लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय तक भव्य शोभा यात्रा निकाली गयीI इस शोभायात्रा में देश के विभिन्न प्रांतों से, एवं विदेश से आने वाले सहभागी अपने  पारम्परिक परिधानों में देश की सांस्कृतिक विविधता की भव्यता एवं सुंदरता का परिचय देते हुए भारत के विराट रूप की मनोरम झाँकी प्रस्तुत की। अभाविप के शिल्पकार प्रा. यशवंत राव केलकर की स्मृति में सामाजिक, शैक्षिक, विज्ञान, तकनीकी जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले 40 वर्ष या उससे कम आयु के युवाओं को प्रत्येक वर्ष  पुरस्कृत किया जाता हैI इस वर्ष यह पुरस्कार निर्धन एवं वंचित भारतीय युवाओं को विश्वस्तरीय शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए श्री शरद विवेक सागर (पटना,बिहार), श्री अन्न के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए सुश्री लहरीबाई पडिया (डिंडौरी, मप्र), और दिव्यांगों के जीवन को आत्मविश्वासयुक्त और गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए डॉ. वैभव भंडारी (पाली, राजस्थान) को  प्रदान किया गयाI

                              राष्ट्र-निर्माण को समर्पित अभाविप के पूर्व-कार्यकर्त्ता

अभी हाल में ही पाँच राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़,राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनाव संपन्न हुएI इन पाँच प्रान्तों में से चार में मुख्यमंत्री बनने वाले राजनेता अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के पूर्व-कार्यकर्त्ता हैंI मोहन यादव (मप्र), विष्णुदेव साय (छतीसगढ़), भजन लाल शर्मा (राजस्थान) और रेवंथ रेड्डी (तेलंगाना) ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत परिषद के कार्यकर्त्ता के रूप में की थीI विश्व के सबसे बड़े छात्र संगठन से जुड़कर शिक्षित-प्रशिक्षित हुए और व्यक्तित्व-निर्माण कियाI सार्वजनिक जीवन में लगातार सक्रिय रहते हुए कर्मठता,कार्य-क्षमता और व्यवहार-कुशलता से अपनी अलग छाप छोड़ते हुए विशेष पहचान बनायीI अभाविप की संस्कारशाला में अर्जित सादगी,सरलता और संगठन-कौशल के बल पर वे सार्वजनिक जीवन के शिखर पर पहुंचे हैंI

आज सार्वजनिक जीवन का ऐसा कोई आयाम नहीं है, जिसका नेतृत्व अभाविप के पूर्व-कार्यकर्त्ता नहीं कर रहे हैंI आज अनेक मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री, राज्यपाल, कुलपति और आई ए एस-आई पी एस जैसी प्रतिष्ठित केन्द्रीय सेवाओं के हजारों वरिष्ठ अधिकारी अभाविप के पूर्व-कार्यकर्त्ता हैंI  सामाजिक,सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्र में इन पूर्व-कार्यकर्ताओं के विशिष्ट नेतृत्वकारी भूमिका हैI अपनी प्रशासनिक दक्षता, सुशासन अभिव्यक्ति-क्षमता के लिए ख्यातिलब्ध  लोगों में आधुनिक भारतीय राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सड़क परिवहन और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल,खेल मंत्री अनुराग ठाकुर, पूर्व उपराष्ट्रपति वैंकैय्या नायडू, शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान, जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरन रिजिजू, जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली, प्रमोद महाजन, अनंत कुमार, गोपीनाथ मुंडे, मनोहर पर्रीकर, रवि शंकर प्रसाद, विजय गोयल , हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, प्रसिद्ध पत्रकार और इण्डिया टीवी के स्वामी रजत शर्मा आदि का नाम उल्लेखनीय हैI 

अपने संगठन-कौशल से चमत्कारिक उपलब्धियां अर्जित करने वालों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्ताजी होसबले, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आम्बेकर, भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, भाजपा महासचिव सुनील बंसल आदि प्रमुख हैंI इनके अलावा केंद्र सरकार, संसद के दोनों सदनों, विभिन्न राज्य सरकारों और विधान मंडलों के असंख्य सदस्य अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के पूर्व-कार्यकर्त्ता हैंI  ये नाम भारत के सार्वजनिक जीवन में इस संगठन के योगदान को रेखांकित करते हैंI

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् केवल चुनावी मौसम में राजनीति में भागीदारी करने वाला छात्र संगठन नहीं है, बल्कि अनवरत सामाजिक सरोकारों और राष्ट्र-निर्माण को समर्पित रहने वाला छात्र संगठन हैI  वर्षभर छात्रों और समाज के बीच सक्रिय रहकर यह संगठन ऊर्जा, शक्ति और विश्वास अर्जित करता हैI स्वातंत्र्योत्तर भारत की ऐसी कोई महत्वपूर्ण घटना नहीं जिसमें अभाविप ने सकारात्मक और सक्रिय भूमिका न निभाई होI शिक्षा-व्यवस्था के भारतीयकरण पर केंद्रित राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के निर्माण एवं क्रियान्वयन में उसकी अग्रिम भूमिका है।

चाहे पाकिस्तान और चीन के साथ हुए युद्ध हों, या फिर भूकम्प, अकाल, बाढ़, चक्रवात और कोरोना जैसी आपदाएं हों; अभाविप के कार्यकर्ताओं ने एक राष्ट्रसेवी संगठन के रूप बढ़-चढ़कर भारत माता और भारतवासियों की सेवा और सहयोग कियाI देशभर में समय-समय पर लाखों रक्तदान शिविर आयोजित कियेI विद्यार्थी परिषद् ने अपनी स्थापना से लेकर आजतक हजारों छोटे-बड़े आन्दोलन, एकता/जागरण यात्रायें और ‘हर घर तिरंगा’ जैसे अभियान  चलायेI भारतीय भाषाओं के उत्थान और प्रचार-प्रसार के लिए भी परिषद ने निरंतर कार्य किया है।

उसके द्वारा चलाये गये असंख्य आंदोलनों में से तीन आन्दोलनों का उल्लेख अपरिहार्य हैI 25 जून, 1975 को देश में इंदिरा गाँधी द्वारा आपातकाल लगाया गयाI भारत के इतिहास के इस काले अध्याय का सबसे मुखर विरोध करने वाले संगठनों में विद्यार्थी परिषद् अग्रणी थाI आपातकाल के विरोध में और अभिव्यक्ति की स्वंतन्त्रता और नागरिक अधिकारों की बहाली के पक्ष में परिषद् के हजारों कार्यकर्त्ता जेल गयेI जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन में  उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लियाI अनुच्छेद 370 और 35 ए की आड़ में जम्मू-कश्मीर में पैदा हुए अलगाववाद, आतंकवाद और अराजकतावाद का परिषद् ने लगातार विरोध करते हुए इन विभाजनकारी अनुच्छेदों के उन्मूलन और भारत की एकता-अखंडता की लड़ाई लड़ीI 1992 में जब आतंक चरम पर था, तब कन्याकुमारी से कश्मीर तक निकाली गयी ‘एकता यात्रा’ परिषद् की सक्रिय भूमिका थीI परिषद् के कार्यकर्ताओं ने आतंकियों की छाती पर चढ़कर श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहरायाI इसीप्रकार बांग्लादेशी और रोहिंग्या  घुसपैठियों के विरुद्ध आन्दोलन चलायेI पूर्वोत्तर प्रान्तों का शेष भारत के साथ संपर्क, संवाद, सामरस्य और समन्वय बढ़ाने में परिषद् की उल्लेखनीय भूमिका रही हैI उसने पूर्वोत्तर के युवाओं को उग्रवाद और अलगाववाद  से विमुख करके सुख, शांति और समृद्धि की ओर उन्मुख कियाI उन्हें देश की मुख्यधारा से जोड़कर देश को सुरक्षित और सशक्त बनायाI नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में न सिर्फ नक्सलियों से मोर्चा लिया, बल्कि निर्दोष नागरिकों की सेवा और संभाल का काम भी अहर्निश कियाI ‘कश्मीर हो या गोहाटी,अपना देश,अपनी माटी’ , ‘जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है’, ‘ अलग भाषा अलग वेश, फिर भी अपना एक देश’,  ‘कश्मीर से कन्याकुमारी, भारतमाता एक हमारी’, छात्र-शक्ति, राष्ट्र-शक्ति’ और ‘वन्दे मातरम्’ जैसे उद्घोष इस संगठन की धमनियों में प्रवाहित होने वाले देशप्रेम के परिचायक हैंI

आज छात्र राजनीति गुंडागर्दी का पर्याय होती जा रही है। झूठ और लूट ही साधन और साध्य हैं।सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र निर्माण को समर्पित और संकल्पित छात्र संगठन नगण्य हैं। ऐसे विपरीत समय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का उत्तरदायित्व बहुत बढ़ जाता है। छात्र शक्ति याकि युवाशक्ति ही किसी भी देश या समाज का दिशा निर्धारण करती है और नेतृत्व प्रदान करते हुए कीर्तिपताका फहराती है। अपराधियों और धनपशुओं की गिरफ्त में हांफती वर्तमान विचारशून्य होती राजनीति को मशाल दिखाने और उम्मीद जगाने का काम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद कर सकती है। चरित्रवान और व्यक्तित्ववान युवा ही स्वामी विवेकानन्द, नेताजी सुभाषचंद्र बोस और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सपनों के भारत का निर्माण कर सकते हैं। सच्चरित्रता, संवेदनशीलता,साहसिकता और संघर्षधर्मिता विहीन नेतृत्व समाज और राष्ट्र को बहुत आगे नहीं ले जा सकता। विद्यार्थी परिषद जिसप्रकार का नेतृत्व निर्माण कर रही है वह इक्कीसवीं सदी की वैश्विक चुनौतियों को न सिर्फ बखूबी समझता है बल्कि उनसे निपटने की क्षमता भी रखता है। आज विश्व भारत की ओर आशा भरी नज़र से देख रहा है। इक्कीसवीं सदी भारत की सदी होने वाली है। विश्व को नेतृत्व प्रदान करने के लिए ऐसे चरित्रवान और सामर्थ्यवान नेतृत्व खड़ा करना होगा। यह कार्य विद्यार्थी परिषद ही कर सकती है। स्वतंत्रता-प्राप्ति से पहले सरदार भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू,  चन्द्र शेखर आज़ाद और  ऊधमसिंह जैसे जाँबाज नौजवानों की जरूरत थी जो देश के लिए मर सकें। आज ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है जो देश के लिए जी सकें। जो अपने कैरियर, अपने परिवार से बढ़कर अपने देश और समाज को मानें और उनके लिए अपना तन,मन धन और जीवन समर्पित कर सकें। ऐसे नौजवान विद्यार्थी परिषद ने तैयार किये हैं और आगे भी करती रहेगी।

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