– ललित गर्ग –
भारतीय जनता पार्टी ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व राजस्थान में ऐतिहासिक जीत के बाद जिस प्रकार मुख्यमन्त्री पद पर चौंकाने वाले नामों के फैसले लेकर सबको चकित किया हैं, उनसे स्पष्ट है कि यह पार्टी राजनीति की नयी परिभाषा गढ़ने के साथ जमीनी कार्यकर्ताओं को भविष्य के नेता बनाने के लिये तत्पर है। पार्टी एवं विशेषतः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आम जनता को सन्देश दे रहे हैं कि साधारण से साधारण कार्यकर्ता भी पार्टी में एक दिन ऊंचे से ऊंचे पद पर पहुंच सकता है। छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय, मध्य प्रदेश में मोहन यादव और आज राजस्थान में श्री भजनलाल शर्मा को जिस तरह मुख्यमन्त्री का पद सौंपा गया है उससे यह भी साफ करने की कोशिश की गई है कि कोई भी अपनी लोकप्रियता का ढिंढोरा पीटकर और विधायकों को अपनी जेब में रखने का भ्रम दिखा कर मुख्यमन्त्री बन सकता है तो भाजपा आलाकमान उसकी यह दादागिरी बर्दाश्त नहीं करेगा। भाजपा में गढ़ी जा रही नयी राजनीतिक परिभाषाएं ही उसके प्रचंड जीत का आधार बन रही है। भाजपा नेतृत्व में सिर्फ औरो पर हुकूमत नहीं की जाती, बल्कि सबका साथ, सबका विकास के आधार राजनीति धरातल को मजबूती दी जाती है। सबके अस्तित्व को नकार कर सिर्फ स्वयं के होने की प्रस्तुति कभी नेतृत्व एवं कर्तृत्व के कद को ऊंचाई दे सकती।
भाजपा ने न केवल नए चेहरों पर भरोसा किया है बल्कि राजनीति के धुरंधर खिलाड़ियों को भी उनकी जमीन दिखाने की कोशिश की है, इस तरह की राजनीति के दूरगामी सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं, वहीं राजनीति में नये चेहरों के आने से ताजगी का अहसास किया जा सकता है। राजनीति किन्हीं नेताओं की बपौती नहीं है, यह बात मोदी जैसे नेता ही सिद्ध कर पाये हैं। वरना भारतीय राजनीति में परिवारवाद, धन एवं ताकत का बोलबाला रहा है, जमीन से जुड़े लोग तो राजनीति से घबराने लगे थे। लेकिन भाजपा की राजनीति ने सिद्ध कर दिया कि यहां कुछ भी असंभव नहीं। अनेक विधायकों की उम्र बीत जाती है मुख्यमंत्री पद का इंतजार करते, पर राजस्थान में भाजपा ने पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर एक ऐसा संदेश दिया है, जिसका असर पार्टी में निचले स्तर के कार्यकर्ताओं तक एक खुशखबरी की तरह पहुंचा है। ऐसे फैसले कम होते हैं, पर जब होते हैं, तब लोकतंत्र और उसकी जमीनी राजनीति के प्रति आम लोगों का भरोसा बढ़ता है। इससे लोकतंत्र भी मजबूत होता है और अपने वास्तविक एवं आदर्श स्वरूप को आकार देने का पात्र बनता है। मोदी ने अपने नाम पर प्रादेशिक चुनाव लड़कर एवं जीतकर एक नयी प्रकार की राजनीति को विकसित करने का धरातल तैयार कर दिया है। इसी का परिणाम है कि राजस्थान की राजनीति में अब पीढ़ी परिवर्तन का बिगुल बज गया है। राजस्थान में अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे बारी- बारी सत्ता संभालते आ रहे थे और सत्ता छोड़ने को तैयार नहीं थे, ऐसे में उनको निराशा हाथ लगी है। अब व्यक्तिवादी राजनीति का युग समाप्ति की ओर अग्रसर है, यह भारत में राजनीति को अधिक स्वच्छ, आदर्श एवं दमदार बनायेगा।
इस बार के चुनाव प्रचार के दौरान ही यह साफ हो गया था कि जिस व्यक्ति को भी श्री मोदी का आशीर्वाद प्राप्त होगा और जिसे नवनिर्वाचित विधायक पसन्द करेंगे वही मुख्यमन्त्री होगा। भाजपा ने ये चुनाव प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा आगे रख कर लड़े थे और स्वयं श्री मोदी ने अपनी गारंटी देकर लोगों से वोट मांगे थे। तीनों मे से किसी एक राज्य में भी संभावित मुख्यमन्त्री का चेहरा रखकर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश नहीं की गई थी। इससे चुनाव प्रचार के दौरान ही यह साफ हो गया था कि इस बार मुख्यमंत्री के नाम न केवल चौंकायेंगे बल्कि सुखद अहसास का सबब भी बनेंगे। राजस्थान में इसके कहीं कोई आसार नहीं दिख रहे थे कि पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा मुख्यमंत्री बन सकते हैं। वैसे तो भाजपा इस तरह के चकित करने वाले फैसले पहले भी करती रही है, लेकिन इस बार उसने कुछ ज्यादा ही चौंकाने एवं चमत्कृत करने वाले फैसले लिए। भाजपा ने इन तीनों राज्यों की कमान केवल नए चेहरों को ही नहीं थमाई, बल्कि उन नेताओं को मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री बनाया, जो अपेक्षाकृत युवा हैं और पार्टी की विचारधारा से गहरे से जुड़े रहने के साथ जमीनी स्तर पर काम करते रहे हैं। महिला नेतृत्व को भी आगे लाया गया है। ऐसे नेताओं को आगे करके भाजपा ने यही संदेश दिया कि वह एक ऐसा दल है, जिसके सामान्य कार्यकर्ता भी अपनी मेहनत और लगन से उच्च पद पर पहुंच सकते हैं। ऐसा कोई संदेश न तो परिवारवाद को प्रश्रय देने वाली कांग्रेस दे सकने में समर्थ है और न ही क्षेत्रीय दल।
अनेक नये प्रयोगों के माध्यम से भाजपा खुद को मजबूत बना रही है एवं राजनीति की विसंगतियों एवं विडम्बना को दूर करने की गाथा भी लिख रही है। उसने इन तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्रियों के चयन में समाज के विभिन्न वर्गों की आकांक्षाओं का भी ध्यान रखा। इन तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्रियों के चेहरों के जरिये भाजपा ने जिस तरह अपने सामाजिक समीकरण मजबूत किए, उससे उसके विरोधियों के इस तरह के आरोपों की हवा निकल गई कि वह अमुक अमुक वर्ग की उपेक्षा करती है। दलित, आदिवासी, ओबीसी और सामान्य वर्ग के नेताओं को उचित प्रोत्साहन देकर भाजपा ने यह और अधिक अच्छे से रेखांकित किया कि वह समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करती है। भाजपा न केवल मतदाताओं के दिलों को जीतने के मामले में अन्य दलों से कहीं अधिक आगे नजर आने लगी है, बल्कि नेताओं की नई पीढ़ी को तैयार करने और उन्हें अवसर देने के मामले में भी उसने नई लकीरें खींची है। स्पष्ट है कि इससे उसके सामान्य कार्यकर्ताओं में उत्साह का कहीं अधिक संचार हुआ है और मतदाता भी उत्साहित एवं हर्षित दिख रहा है। जहां राजनीति दलों के नेताओं एवं मतदाताओं की निष्ठा का समन्वय नहीं होता, वहां उनकी मानसिकता में या तो दब्बुपन, कायरता, हीनता, भय, तनाव पैदा हो जाती है या फिर वे अति लापरवाह, निस्संकोच, मुंहफट, ढीठ हो जाते है, ऐसी स्थितियों में असंतोष, विरोध, विद्रोह ही पनपते हैं।
नरेन्द्र मोदी के साथ अमित शाह ने भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं को पिछले कुछ वर्षों में यही संदेश दिया है कि वेे पार्टी की मजबूती के लिए बूथ लेवल पर मेहनत करेंगे तो समय आने पर उनको उनका मेहनताना दिया जाएगा। भले ही वह विष्णुदेव साय जैसा जमीनी कार्यकर्ता हों। अमित शाह ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा भी था, विष्णुदेवजी हमारे अनुभवी कार्यकर्ता हैं, नेता हैं, सांसद रहे, विधायक रहे, प्रदेश अध्यक्ष रहे। एक अनुभवी नेता को भाजपा आपके सामने लाई है। आप इनको विधायक बना दो, उनको बड़ा आदमी बनाने का काम हम करेंगे।’ मुख्यमंत्री बनाकर अमित शाह ने सचमुच उन्हें बड़ा आदमी बना दिया है। इसी तरह की सोच की वजह है कि भाजपा केंद्र में भी 2014 से लगातार सत्ता में बनी हुई है और राज्य स्तर पर भी अपनी धमक दिखा रही है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सीएम और डिप्टी सीएम पद के लिए चुने गए नए नाम 2024 की रणनीति के तौर पर भी देखे जा रहे हैं। भाजपा को सत्ता में बनाए रखने के लिए मोदी-शाह फॉर्मूला एकदम साफ है कि उसके नेताओं की साफ-सुथरी छवि होनी चाहिए, आरएसएस से संबंध होना चाहिए, युवाओं को आगे लाने की कोशिश होनी चाहिए, लीडरशिप में नई पीढ़ी को उतारना मकसद हो, सीएम और 2 डिप्टी सीएम फॉर्मूला हिट है एवं जातियों का समान प्रतिनिधित्व होना चाहिए। ये वो फॉर्मूला है, जिसके दम पर भाजपा राज्यों में अपनी पकड़ बनाकर रखती है और केंद्र में जीत के लिए रास्ता साफ करती है। अगर आप तीनों ही राज्यों के मुख्यमंत्री पदों पर बैठने वाले व्यक्तियों को देखें तो, उनके चुने जाने की पहली वजह है साथ सुथरी छवि। तीनों ही सीएम पर किसी तरह का कोई गंभीर आरोप नहीं है, जो पार्टी के लिए मुसीबत बन सके। तीनों ही सीएम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे हैं।