महामना और अटल : भारत रत्न का सार्थक निर्णय

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सुरेश हिन्दुस्थानी
भारत की दो विभूषियों ग्वालियर के सपूत श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी एवं हिन्दी के पुरोधा महामना मदनमोहन मालवीय को भारत रत्न मिलने की प्रसन्नता देश के वातावरण में चतुर्दिक दृश्यव्य है। कहना चाहिए कि आज भारत देश धन्य हो गया। निश्चित ही यह दोनों महान विभूति भारत के अनमोल रतन हैं। दोनों के जीवन से सम्पूर्ण भारत के दर्शन होते हैं। दोनों के जन्म दिन पर मिला यह उपहार वास्तव में राष्ट्र की ओर से दिया गया सबसे बड़ा सम्मान है।
भारत रत्न जैसे सर्वोच्च सम्मान के वास्तविक अधिकारी यह दोनों महापुरुष महामना मालवीय और श्रद्धेय अटलजी आज के राजनीतिक समाज के लिए अंत:प्रेरणा है। इनका सम्मान किया जाना वास्तव में पूरे देश का सम्मान है। आज हर व्यक्ति संभवत: यही सोच रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में भारत रत्न सम्मान के प्रति वास्तविक न्याय हुआ है, हालांकि इसका आशय यह कतई नहीं माना जा सकता कि पूर्व की सरकारों ने यह सम्मान देते समय अन्याय किया था, लेकिन कई अवसरों पर जिस प्रकार से ऐसे अवसरों पर सरकार की आलोचना हुई उससे निश्चित ही सरकार की नीयत पर सवालों का पुलिन्दा स्थापित हो गया था। पूर्व सरकारों की इसी नीयत के कारण ही भारत रत्न प्राप्त करने के वास्तविक हकदार राजनीतिक कारणों से वंचित ही हो जाते थे। इस सम्मान को देने के लिए सर्वप्रथम तथ्य तो यही है, कि इसमें किसी प्रकार की राजनीति नहीं होना चाहिए, लेकिन पिछली बार के निर्णय में इस प्रकार का सन्देह दिखाई दिया, महीनों भर के गहन मंथन के परिणाम स्वरूप दिए जाने वाले इस सम्मान के लिए आनन फानन में निर्णय करके महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न घोषित कर दिया। देश में कई प्रकार के सवाल उठे और सरकार की तीखी आलोचना भी हुई। वास्तव में देखा जाए तो कांगे्रस पार्टी ने ऐसे निर्णयों में भी कांगे्रसी छाप का ही दर्शन कराया। कांगे्रस के नेताओं को देश के अंदर अन्य विभूतियां दिखाई नहीं देती थीं, अपनी संकुचित नजर के कारण ही आज देश में कांगे्रस के बारे में यह धारणा बन गई है कि वह ऐसे मामलों में भी राजनीति करती आई है।
हम जानते हैं कि भारत में लम्बे समय से दो प्रकार के विचार प्रभावी रहे हैं, जिसमें एक विशुद्ध सांस्कृतिक भारत के समर्थन है तो दूसरा मुसलमान और ईसाइयों को खुश रखने वाला धर्मनिरपेक्षता का विचार है। यहां यह बात गौर करने लायक है कि देश में जब से भारत रत्न देने का सिलसिला प्रारंभ हुआ, तबसे सत्ताधारी राजनीतिक ताकतों ने सांस्कृतिक भारत का समर्थन करने वालों का हमेशा ही विरोध ही किया। यह बात इस प्रकार से आसानी से समझ में आ सकती है कि भारत में जिन लोगों को यह सम्मान दिया गया है, उनको आज भी सारा भारत तक नहीं जानता, फिर सवाल यह भी उठता है कि समाज उनके कार्यों से किस प्रकार प्रेरणा प्राप्त करता होगा। मैंने स्वयं इस बात को प्रमाणित करने का मन बनाया और अपने शहर ग्वालियर में कुछ लोगों से अभी तक भारत रत्न से सम्मानित व्यक्तियों के नाम पूछे तो उनके जवाब सुनकर आश्चर्यचकित रह गया, वे अब तक के कुल 45 सम्मानित व्यक्तियों में से केवल छह या सात लोगों के नाम ही बता सके। अब सवाल यह आता है कि क्या ऐसे लोगों को यह सम्मान दिया जाना चाहिए?
वर्तमान केन्द्र सरकार ने अभी हाल ही में जिन दो महान विभूतियों को यह सम्मान देने का स्वागत योग्य निर्णय किया है, वह अत्यंत ही अभिनन्दनीय कहा जाएगा। देश में बहुत कम क्षेत्र ऐसे होंगे, जहां महामना मालवीय और अटल बिहारी वाजपेयी को जानने वाले न हों।
वर्तमान में मोदी सरकार ने महामना मालवीय और अटलजी को भारत रत्न का सम्मान देकर निश्चित ही देश के सामने यह सन्देश दिया है कि अब इस मामले में कहीं भी राजनीतिक प्रभाव नहीं दिखाई देगा। भारत देश के गौरव पुरुष दोनों ही महान व्यक्तित्वों को यह सम्मान दिया जाना वास्तव में भारत रत्न का मान बढ़ाने वाला कदम है।
जहां एक ओर विश्व के राजनीतिक क्षितिज पर अमिट छाप छोडऩे वाले श्रद्धेय अटलजी भारत के लिए एक स्फुरणीय विचार हैं, वहीं दूसरी ओर वे राजनीतिक संत के रूप में सबके दिलों में समाए हुए हैं। उनके लिए कोई विरोधी नहीं, वैसे ही उनका भी कोई विरोध नहीं। इस प्रकार की अवधारणा को अंगीकार करने वाला राजनीतिक व्यक्तित्व वर्तमान समय में मिल ही नहीं सकता। इसी प्रकार मदन मोहन मालवीय के बारे में यही कहा जा सकता है कि उन्होंने भारत की संस्कृति से परिचय कराने वाला जो पौधा वाराणसी में स्थापित किया, आज वह पल्लवित होकर भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार कर रहा है। हम जानते हैं कि हमारे देश में अन्य धाराओं की शिक्षा प्रणाली के बड़े बड़े केन्द्र हैं, यहां तक कि वैश्विक शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारत में शैक्षिक संस्थान भी हैं, लेकिन सांस्कृतिक समावेश के तहत पठन पाठन के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का नाम आज अग्रणी की भूमिका में है। दोनों विभूतियों को समाज के लिए अत्यन्त ही प्रेरणादायी हैं।

1 COMMENT

  1. भारत रत्न के काबिल जो समझी सरकार ने
    प्रथम पुरुष थे जिनको महामना कह डाला |
    ऐसा व्यक्ति आज तलक कोई नहीं बन पाया
    जिनकी तारीफ करते-करते थक गए गांधी |
    क्रोधी के वे दुश्मन प्यार मोहब्बत वाले जी
    कर्म साधना उनके मृदुभाषी मतवाले जी ||

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