संतों महंतों के ट्रस्टों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

‘योगसूत्र’ में योग के क्रियात्मक पक्ष की चर्चा की गई है। यह यौगिक क्रिया ध्यान लगाने की औपचारिक कला, मानव का आंतरिक स्थिति में परिवर्तन लाने, और मानव चेतना को पूर्ण रूप से अंतर्मुखी बनाने से संबद्ध थीं।

ए.ई.गौफ ने ‘फिलासफी ऑफ दि उपनिषदाज’(1882) में लिखा है कि योग का आदिम समाजों, खासकर आदिम जातियों-निम्न जातियों से संबंध है। दार्शनिकों की एकमत राय है कि योग का तंत्र-मंत्र, जादू टोने से भी संबंध रहा है। इस परिप्रेक्ष्य को ध्यान रखकर देखें तो बाबा रामदेव ने आधुनिक धर्मनिरपेक्ष योगियों की परंपरा का निर्वाह करते हुए योग-प्राणायाम को तंत्र-मंत्र,जादू-टोने से नहीं जोड़ा है।

बल्कि वे अपने कार्यक्रमों में किसी भी तरह के कर्मकांड आदि का प्रचार भी नहीं करते। अंधविश्वासों का भी प्रचार नहीं करते। सिर्फ सामाजिक-राजनीतिक तौर पर उनके जो विचार हैं वे संयोगवश संघ परिवार या हिन्दुत्ववादियों से मिलते हैं।

बाबा रामदेव का विखंडित व्यक्तित्व हमारे सामने है। एक ओर वे योग-प्रणायाम को तंत्र वगैरह से अलगाते हुए धर्मनिरपेक्ष व्यवहार पेश करते हैं, लेकिन दूसरी ओर अपने जनाधार को बढ़ाने के लिए हिन्दुत्ववादी विचारों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इस समूची क्रिया में योग-प्राणायाम प्रधान है, उनके राजनीतिक-सामाजिक विचार प्रधान नहीं है। उनका योग-प्राणायाम का एक्शन महत्वपूर्ण है।

उनका हिन्दुत्व का प्रचार महत्वपूर्ण नहीं है। हिन्दुत्व के राजनीतिक विचारों को वे अपने योग के बाजार विस्तार के लिए इस्तेमाल करते हैं।

वे एक राजनीतिक दल बना चुके हैं जो अगले लोकसभा चुनाव में सभी साटों पर उम्मीदवार खड़े करेगा। मैं समझता हूँ उन्हें राजनीति में सफलता नहीं मिलेगी। इसका प्रधान कारण है उनका राजनीतिक आधार नहीं है। उनके योग शिविर का सदस्य उनका राजनीतिक सदस्य नहीं है। यदि संत-महंतों की राजनीतिक पार्टियां हिट कर जातीं तो करपात्रीजी महाराज जैसे महापंडित और संत की रामराज्य परिषद का दिवाला नहीं निकलता। हाल के वर्षों में बाबा जयगुरूदेव की पार्टी के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त न हुई होती।

उल्लेखनीय है बाबा जयगुरूदेव की उन इलाकों में जमानत जब्त हुई है जहां पर उनके लाखों अनुयायी हैं। बाबा रामदेव को यह ख्याल ऱखना चाहिए कि वे विश्व हिन्दू परिषद से ज्यादा प्रभावशाली नहीं हैं। लेकिन कुछ क्षेत्रों को छोड़कर अधिकांश भारत में विश्व हिन्दू परिषद चुनाव लड़कर जमानत भी नहीं बचा सकती है। इससे भी बड़ी बात यह है कि भारतीय राजनीतिक जनमानस में अभी भी धर्मनिरपेक्षता की जड़ें गहरी हैं। कोई भी पार्टी धार्मिक या फंडामेंटलिस्ट एजेण्डा सामने रखकर चुनाव नहीं जीत सकती। गुजरात या अन्य प्रान्तों में भाजपा की सफलता का कारण इन सरकारों का गैर धार्मिक राजनीतिक एजेण्डा है। दंगे के लिए घृणा चल सकती है। वोट के लिए घृणा नहीं चल सकती। यही वजह है कि गुजरात में व्यापक हिंसाचार करने के बावजूद भाजपा यदि जीत रही है तो उसका प्रधान कारण है उसका अधार्मिक राजनीतिक एजेण्डा और विकास पर जोर देना।

कहने का तात्पर्य यह है कि बाबा रामदेव टीवी चैनलों पर जिस तरह की राजनीतिक बातें करते हैं उसके आधार पर वे कभी चुनाव नहीं जीत सकते। क्योंकि उनका राजनीति से नहीं योग से संबंध है। उन्होंने जितने साल संयासी के रूप में गुजारे उतने साल राजनीतिक दल बनाने और राजनीतिक संघर्ष करने पर खर्च किए होते तो संभवतः उन्हें कुछ सफलता मिल भी सकती थी।

बाबा रामदेव कम्पलीट पूंजीवादी मानसिकता के हैं। वे योग और अपने संस्थान से जुड़ी सुविधाओं का चार्ज लेते हैं। उनके यहां कोई भी सुविधा मुफ्त में प्राप्त नहीं कर सकते। यह उनका योग के प्रति पेशेवर पूंजीवादी नजरिया है। वे फोकट में योग सिखाना,अपने आश्रम और अस्पताल में इलाज की व्यवस्था करने देने के पक्ष में नहीं हैं। मसलन उनके हरिद्वार आश्रम में चिकित्सा के लिए आने वालों में साधारण सदस्यता शुल्क 11हजार रूपये, सम्मानित सदस्यता 21 हजार रूपये, विशेष सदस्यता शुल्क 51 हजार रूपये, आजीवन सदस्यता एक लाख रूपये, आरक्षित सीट के लिए 2लाख 51 हजार रूपये और संस्थापक सदस्यों से 5 लाख रूपये सदस्यता शुल्क लिया जाता है।

आयकर विभाग की मानें तो बाबा रामदेव द्वारा संचालित दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट भारत के समृद्धतम ट्रस्टों में गिना जाता है। जबकि अभी इसे कुछ ही साल अस्तित्व में आए हुए हैं। गृहमंत्रालय के हवाले से ‘तहलका‘ पत्रिका ने लिखा है कि बाबा रामदेव की सालाना आमदनी 400 करोड़ रूपये है। यह आंकड़ा 2007 का है।

असल समस्या तो यह है कि बाबा अपनी आय का आयकर विभाग को हिसाब ही नहीं देते। कोई टैक्स भी नहीं देते। पत्रिका के अनुसार ये अकेले संत नहीं हैं जिनकी आय अरबों में है। श्रीश्री रविशंकर की सालाना आय 400 करोड़ रूपये,आसाराम बापू की 350 करोड़ रूपये,माता अमृतानंदमयी ‘‘अम्मा’’ की आय 400 करेड़ रूपये,सुधांशु महाराज 300 करोड़ रूपये,मुरारी बापू 150 करोड़ रूपये की सालाना आमदनी है। (तहलका,24जून, 2007)

एक अन्य अनुमान के अनुसार दिव्ययोग ट्रस्ट सालाना 60मिलियन अमेरिकी डॉलर की औषधियां बेचता है। सीडी, डीवीडी, वीडियो आदि की बिक्री से सालाना 5 लाख मिलियन अमेरिकी डॉलर की आय होती है। बाबा के पास टीवी चैनलों का भी स्वामित्व है।

उल्लेखनीय है बाबा रामदेव अपने कई टीवी भाषणों और टीवी शो में विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने और भ्रष्टाचार के सवाल पर बहुत कुछ बोल चुके हैं। हमारी एक ही अपील है कि बाबा रामदेव अपने साथ जुड़े ट्रस्टों, आश्रमों, अस्पतालों और योगशिविरों के साथ-साथ चल-अचल संपत्ति का समस्त प्रामाणिक ब्यौरा जारी करें, वे यह भी बताएं कि उनके पास इतनी अकूत संपत्ति कहां से आयी और उनके दानी भक्त कौन हैं, उनके नाम पते सब बताएं। बाबा रामदेव जब तक अपनी चल-अचल संपत्ति का समस्त बेयौरा सार्वजनिक नहीं करते तब तक उन्हें भारत की जनता के सामने किसी भी किस्म के नैतिक मूल्यों की वकालत करने का कोई हक नहीं है। भारत में अघोषित तौर पर संपत्ति रखने वाले एकमात्र अमीर लोग हैं या बाबा रामदेव टाइप संत-महंत। जबकि सामान्य नौकरीपेशा आदमी भारत सरकार को आयकर देता है, अपनी संपत्ति का सालाना हिसाब देता है। भारत सरकार को सभी किस्म के संत-महंतों की संपत्ति और उसके स्रोत की जांच के लिए कोई आयोग बिठाना चाहिए और इन संतों को आयकर के दायरे में लाना चाहिए।

नव्य उदारतावाद के दौर में टैक्सचोरों और कालेधन को तेजी से सफेद बनाने की सूची में भारत के नामी-गिरामी संत-महंतों की एक बड़ी जमात शामिल हुई है। इन लोगों की सालाना आय हठात् अरबों-खरबों रूपये हो गयी है। इस आय के बारे में राजनीतिक दलों की चुप्पी चिंता की बात है। उनके देशी-विदेशी संपत्ति और आय के विस्तृत ब्यौरे को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

संतों-महंतों के द्वारा धर्म की आड़ में कारपोरेट धर्म का पालन किया जा रहा है। धर्म जब तक धर्म था वह कानून के दायरे के बाहर था लेकिन जब से धर्म ने कारपोरेट धर्म या बड़े व्यापार की शक्ल ली है तब से हमें धर्म उद्योग को नियंत्रित करने, इनकी संपत्ति को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने, सामाजिक विकास कार्यों पर खर्च करने की वैसे ही व्यवस्था करनी चाहिए जैसी आंध्र के तिरूपति बालाजी मंदिर से होने वाली आय के लिए की गई है।

इसके अलावा इन संतों-महंतों के यहां काम करने वाले लोगों की विभिन्न केटेगरी क्या हैं, उन्हें कितनी पगार दी जाती है,वे कितने घंटे काम करते हैं, किस तरह की सुविधा और सामाजिक सुरक्षा उनके पास है। कितने लोग पक्की नौकरी पर हैं, कितने कच्ची नौकरी कर रहे हैं। इन सबका ब्यौरा भी सामने आना चाहिए। इससे हम जान पाएंगे कि धर्म की आड़ में चल रहे धंधे में लोग किस अवस्था में काम कर रहे हैं।

संतों-महंतों के द्वारा संचालित धार्मिक संस्थानों को कानून के दायरे में लाना बेहद जरूरी है। भारत में धर्म और धार्मिक संत-महंत कानून से परे नहीं हैं। वे भगवान के भक्त हैं तो उन्हें कानून का भी भक्त होना होगा। कानून का भक्त होने के लिए जरूरी है धर्म के सभी पर्दे उठा दिए जाएं।

22 COMMENTS

  1. हाँ एक बात और सर आपके आलोचकों के लिए. अधिकांश ने आपसे चर्च या फिर इस्लाम के खिलाफ लिखने की अपील की है. un logo ko ye nahi pata की aapne apne ghar के burai के bare me khul के बात की . ye to apne ghar की safai और jhadu lagane jaisa है. yah एक najir है की dusre bhi apna ghar cocrochon se saaf karen……..

  2. धन्यवाद् जगदीश्वर सर, आपके लेख पर नकारात्मक प्रतिक्रिया करने वाले या तो सामाजिक सच्चाई को नहीं स्वीकार करने वाले हाँ या परम कूप-मंडूक. कोई बाबा या संत हो और वो किसी भी धर्म का हो जो जितना ल्क्सारी भोग रहा है वो उतना ही दुसरे के भाग का हिस्सा लूट रहा है. यह सभी बाबाओ के साथ राजनितिज्ञो के भी साथ में घटने वाला अकाट्य सत्य है. वास्तव में गड़बड़ी वही है जहा मार्क्स और बाद में लोहिया बताते है. धर्म में . सभी धार्मिक राजनीतिज्ञ बनना चाहते है और सभी राजनीतिज्ञ भी घूम फिर के या तो इसके समर्थन की या विरोध की राजनीति के ही इर्द – गिर्द मंडरा रहे है. ….. समाज और कामन मैंन तो किसी के अजेंडे में नहीं…. वरना ऐसे लोगो पे लेख लिखके आप भी अपना समय जाया नहीं करते.

  3. चतुर्वेदी जी में आपका लेख http://www.crimebureau.in के लिए लेना चाहता हूँ
    कृपया अपनी स्विकारोत्ति मुझे दे
    आपका आभारी रहूँगा

  4. जगदीश्वर जी आपको कसम है आपकी लेखनी की अगर लिख सको तो चर्चो मस्जिदों के आय के साधनों पर कुछ लिखो, अजीब बदमाशी है जिसे देखो वही हिन्दू आस्था को खंडित करने में लगा है, और भैया कभी लिखो तो इन्सुरांस करा के लिखना धन्यवाद

  5. श्री रतन जी, सुरेश जी, श्री अनिल जी और श्री दिनेश जी की टिप्पणियों का पूर्ण समर्थन करते है.

  6. # October 27th, 2010 at 8:26 pm

    “उनके यहां कोई भी सुविधा मुफ्त में प्राप्त नहीं कर सकते। यह उनका योग के प्रति पेशेवर पूंजीवादी नजरिया है। वे फोकट में योग सिखाना,अपने आश्रम और अस्पताल में इलाज की व्यवस्था करने देने के पक्ष में नहीं हैं। मसलन उनके हरिद्वार आश्रम में चिकित्सा के लिए आने वालों में साधारण सदस्यता शुल्क 11हजार रूपये, सम्मानित सदस्यता 21 हजार रूपये, विशेष सदस्यता शुल्क 51 हजार रूपये, आजीवन सदस्यता एक लाख रूपये, आरक्षित सीट के लिए 2लाख 51 हजार रूपये और संस्थापक सदस्यों से 5 लाख रूपये सदस्यता शुल्क लिया जाता है।”
    चतुर्वेदीजी के लेख पर टिप्पणियां बराबर आये जा रही हैं जिनमें चतुर्वेदीजी से कुछ नितांत प्रासंगिक प्रश्न पूछे गए हैं .चौबेजी उत्तर नहीं देंगे क्योंकि उत्तर उनके पास है ही नहीं न उन्हें सत्य से कोई सरोकार नहीं है बाबा रामदेव को गाली देकर वे अपने कर्त्तव्य अथवा उत्तरदायित्व का निर्वहन कर चुकते हैं.
    मैंने इस टिपण्णी के आरम्भ में उनके लेख का एक अंश केवल इस लिए उद्धृत किया की पाठक जान सकें की चतुर्वेदी जो उद्भट विद्वान तथा विश्वविद्यालय आचार्य होने का दम भरते हैं उनकी विश्वसनीयता किस श्रेणी की है .सब को ज्ञात है की पतंजलि योगपीठ में रोगियों से कोई परामर्श शुल्क नहीं लिया जाता. चतुर्वेदी जी ने जो ग्यारह हज़ार से लेकर लाखों तक की फीस बताई है वह दिव्या योगपीठ ट्रस्ट के मेम्बर बन ने की राशी है .दिव्या योग मंदिर योगपीठ ,से सम्बंधित सभी जानकारी इन्टरनेट पर उपलभध है हजारों लोग ऐसे हैं जो स्वयं हरिद्वार जा कर उपचार करा चके हैं. व्हिकित्सलाया में प्रतिदिन कई हज़ार रोगी निशुल्क परामर्श तथा अल्प मूल्य की औषधियों का लाभ उठाते हैं पर चतुर्वेदीजी को तो जो कहना था बिना कोई जानकारी प्राप्त किये उन्हिओने कह दिया. अब आप ही निर्णय करें की यह गुरु हैं या गुरु घंटाल.
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    प्रेम सिल्ही Says:

  7. “उनके यहां कोई भी सुविधा मुफ्त में प्राप्त नहीं कर सकते। यह उनका योग के प्रति पेशेवर पूंजीवादी नजरिया है। वे फोकट में योग सिखाना,अपने आश्रम और अस्पताल में इलाज की व्यवस्था करने देने के पक्ष में नहीं हैं। मसलन उनके हरिद्वार आश्रम में चिकित्सा के लिए आने वालों में साधारण सदस्यता शुल्क 11हजार रूपये, सम्मानित सदस्यता 21 हजार रूपये, विशेष सदस्यता शुल्क 51 हजार रूपये, आजीवन सदस्यता एक लाख रूपये, आरक्षित सीट के लिए 2लाख 51 हजार रूपये और संस्थापक सदस्यों से 5 लाख रूपये सदस्यता शुल्क लिया जाता है।”
    चतुर्वेदीजी के लेख पर टिप्पणियां बराबर आये जा रही हैं जिनमें चतुर्वेदीजी से कुछ नितांत प्रासंगिक प्रश्न पूछे गए हैं .चौबेजी उत्तर नहीं देंगे क्योंकि उत्तर उनके पास है ही नहीं न उन्हें सत्य से कोई सरोकार नहीं है बाबा रामदेव को गाली देकर वे अपने kartavya अथवा उत्तरदायित्व

  8. जगदीश्वर चतुर्वेदी हमें बता चुके हैं कि उन्हें “बाबा रामदेव अच्छे लगते हैं।“ बाबा के प्रति उनकी अपार श्रद्धा के कारण ही अपने ब्लाग, नया जमाना, पर पोस्ट कीये इसी लेख के शीर्षक, बाबा रामदेव अपने ट्रस्ट की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजानिक करें, में उनके नाम के स्थान पर “संतो महंतों” का उपयोग कीया है| क्योंकि उनके पास सभी संतो महंतों के चित्र नहीं हैं, उनके इस लेख से बाबा रामदेव का चित्र भी नदारद कर दिया है| उनका कहना है कि बाबा रामदेव के साथ कोई व्यक्तिगत पंगा नहीं है; वे हम सब के पूज्य हैं लेकिन मैं केवल उनकी सफलता के सांस्कृतिक आध्यात्मिक कारणों को जानने की कोशिश कर रहा हूं| वो जानना चाहते हैं कि आखिर वे कौन से कारण हैं जिनके गर्भ से बाबा रामदेव जैसा फिनोमिना पैदा हुआ है। व्यक्तिगत और व्यावसायिक तौर से जिज्ञासु हैं जगदीश्वर सतुर्वेदी| जगदीश्वर चतुर्वेदी को बाबा रामदेव अच्छे लगते हैं क्योंकि वे इच्छाओं को जगाते हैं; आम आदमी में जीने की ललक पैदा करते हैं; भारत जैसे दमित समाज में इच्छाओं को जगाना ही सामाजिक जागरण है। बाबा रामदेव फिनोमिना को समझने के पश्चात अब उन पर कीचड उछालने की इच्छा बन आई है| दमित समाज में सदा ऐसा ही देखने को मिला है| हम भी डूबें तुम भी डूबो|

    मेरे विचार में जगदीश्वर चतुर्वेदी बाबा रामदेव फिनोमिना समझ ही नहीं पाये है अन्यथा उन पर कीचड उछालने के बदले फिनोमिना में सार्वजनिक हित की व्याख्या करते| जवाहरलाल नेहरु के प्रयोगात्मक समाजवाद से उत्पन्न अभाव से बचने के लिए तथाकथित स्वतन्त्र भारत की पहली पढ़ी-लिखी पेशेवर युवा पीढ़ी ने १९७० दशक से भारत छोड़ अमरीका और दूसरे पाश्चिम देशों में जा बसने का जो बीज बोया था वह वास्तविकता में उनकी संपूर्ण आज़ादी थी—अंग्रेजों द्वारा बनाये कानूनी चक्रव्यूह से और समाजवाद से| तभी से विदेश में जा बसने का जैसे तांता ही लग चुका है| भारत में यथार्थ स्वतंत्रता ही बाबा रामदेव फिनोमिना है| पिछले तिरेसठ वर्षों से सभी प्रकार के राजनीतिक वर्ग और उनके नेता भारत को निजी अखाड़ा बनाए सर्व-व्यापी भ्रष्टाचार और अनैतिकता के वातावरण में फल फूल रहे है| प्रवकता.कॉम के इन्हीं पन्नों पर लिमटी खरे द्वारा प्रस्तुत लेख, भारत की यह मजबूरी है, भ्रष्टाचार जरूरी है, बाबा रामदेव का भारत पुनर्निर्माण के लिए रण-नाद की आवश्यकता की मांग है|

  9. भारत सरकसर के बाद देश में सबसे अधिक भुसम्पत्ती चर्चों के पास है. उनकी हज़ारों करोड़ की आय का विवरण आप मांगेंगे की नहीं ? वे भी तो आज़ादी के बाद से अब तक अकूत धन विभिन्न साधनों से प्राप्त कर चुके हैं जिसका कर नहीं दिया गया. बाबा रामदेव की आय तो चर्चों की आय के आगे चिड़िया का चुग्गा साबित होगी. ज़रा उनसे हिसाब माँगने की इमानदारी दिखाईये, तो आपको निष्पक्ष मानूगी. वरना आप पर हिन्दू विरिधी होने का ठप्पा ठीक ही है.

  10. श्रीमान जी आप ने जितने आरोप बाबा रामदेव पर लगाए हैं वे पता नहीं कितने पूर्वाग्रहों से प्रभावित हैं और कितने नहीं. किन्तु क्या आप अपने वामपंथी नेताओं की अकूत सम्पत्ती को सार्वजनिक करने के लिए कहेंगे या नहीं. कम्युनिस्टों ने कामनवैल्थ खेलों के भ्रष्टाचार पर न बोलने का कितना हिस्सा लिया है , यह भी तो सार्वजनिक करने की मांग करिए.

  11. है प्रो.चतुर्वेदी जी में दम तो सुरेश चिपलूनकर की बात का जबाब भी दें कि उनकी इन प्रश्नों पर क्या राय है |
    वरना हम तो इस लेख को वामपंथी वमन ही समझेंगे !!

  12. चतुर्वेदीजी अब बाबा रामदेव के पीछे पड़ गए हैं सत्य -असत्य से उन्हें कोई मतलब नहीं . उनका तो एक ही उद्देश्य है भारत के इतिहास उसकी संस्कृति तथा हिन्दुओं के आदर्शों जीवन मूल्यों इत्यादि को निकृष्ट सिद्ध करना. उनके अनुसार मार्क्स से पूर्व का युग असभ्य अंधकारमय युग था.अब तक चतुर्वेदीजी ने जो कुछ प्रवक्ता पर लिखा उसमें हिन्दू धर्मं,दर्शन,मान्यताएं और हिन्दू महापुरुषों आदि को ही बुरा सिद्ध करने के लिएनित नए तर्क-कुतर्क का प्रयोग किया जाता रहा है. चतुर्वेदीजी उस भारत विरोधी वाहिनी के अंग हैं जिसमें जिहादी, मिशनरी,वामपंथी सेकुलरिस्ट इत्यादि मिलकर भारत के टुकड़े करने का प्रयास कर रहे हैं.अरुंधती रॉय, तीस्ता आनंद , हर्ष मंदर,गिलानी जैसे सैकड़ों लोग सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं जो अपने स्वार्थ के लिए भारत की अखंडता, प्रभुसत्ता पर भारत में ही रह कर, यहाँ का नमक खा कर, विदेशिओं के बनाये अजेंडा को कार्यान्वित कर रहे हैं. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हर भारतीय का मौलिक अधिकार सही पर यदि उसका स्पष्ट उद्देश्य देश हित का हनन करना हो तो उस पर रोक लगनी अवश्यक है. क्या प्रवक्ता के अधिकारीगण इस बात पर भी ध्यान देंगे की यह पत्रिका राष्ट्र विरोधी प्रचार का एक और साधन न बन जाए

  13. लोगों को ज्यादा वाग्जाल में न उलझा कर मैं यह कहना चाहता हूँ की संतों, महंतों, मंदिरों मठों की सम्पति का पूर्ण विवरण सामने आना चाहिए और उनकी कानून के दायरे में कार्यवाही होना चाहिए,क्योंकि मेरी द्दृष्टि में यह सब भी उनका व्यापार है और उसके लिए अलग से क़ानून की भी आश्यकता नहीं है,पर मैं चतुर्वेदीजी से यह भी पूछना चाहता हूँ की इसी में मस्जिद, चर्च,इसाई मिसिनरी,मुस्लिम या ईसाई संतों या अन्य मजहब या गैर मजहबी संस्थाओं को क्यों न जोड़ा जाये.मुझे नहीं मालूम की रामदेव जी के दवा बनाने वाली कम्पनियाँ टैक्स के दायरे में लाई गयी हैं या नहीं,अगर नहीं तो उनको इस दायरे में लाया जाना चाहिए,पर यही कम दूसरों के सम्बंभ में भी बिना भेद भाव के होना चाहिए.अगर ऐसा होता है तो किसी को भी एतराज नहीं होना चाहिए.
    रह गयी बात किसी के राजनैतिक दल बनाने और चुनाव लड़ने की , तो आप इसके बारे में भविष्य वाणी करने वाले कौन होते हैं?रामदेवजी जिस तरह की नैतिकता और भ्रष्टाचार उन्मूलन की बात करतेहैं,हो सकता है की उनका यह आह्वान उनको कम से कम एकबार सफलता दिला ही दे.यह दूसरी बात है की सत्ता प्राप्त होने के बाद वे कितने दिनों तक इसको निभा पाएंगे.
    स्वर्गीय जय प्रकाश नारायण के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान औरउसके परिणति की कहानी अभी बहुत पुरानी नहीं हुई है. पर रामदेव जी इस दिशा में प्रयास करते हैं तो बूरा ही क्या है?ऐसे भारतीय संविधान और साम्यवादिओं के संविधान में बहुत फर्क है,अतः चतुर्वेदीजी जैसे लोग इस सम्बन्ध में मुंह न खोले तो ज्यादा अच्छा हो.

  14. jyoti basu aur chandan basu ke bare me kya rai hai mananiya chaturvedi ji, Aap to vampanthi hai fir dharm ki vyakhya me kya par gaye, apne bangal ko bachaiye kahi bangal ki khari me dub marna pare. Musalmano ko arakshan to abhi taja mudda hai. kaha gaya aap ka Vampanth?

  15. जगदीश्वर….एक वामपंथी है वोह सिर्फ विरोध के लियए विरोध करते है…..तो भला वोह समाज मई अच्छा काम करने वाले हिन्दू संत समाज को गल्ली दिय्ये बिना अपने को कैसे एक अचा वामपंथी साबित कर सकता है. इनकी नार इस प्रकार के लेख लिख कर पोलितबुरौ की नज़र मई आना है और हो सक्के तो राज्यसभा विधान सभा आदि मई मन्नोनित होंने की महत्वकंषा को पूरा करना है.

    वोह यह भी भूल गए की यह सारे ट्रस्ट भारत सर्कार के द्वारा रचे गए काननों के द्वारा इस्थापित किय्ये गए है. यह हर साल अपना टैक्स भरते है और सर्कार को अपनी पूरी आय और व्यय का हिसाब देते है. स्वामी रामदेव से खुजली इन्हें इसलिए है क्योंकी वोह एक देशभक्त है और खुल कर हिंदुत्व की विचार धरा को आगे बड़ा रह्हे है. गरीब लोगो का मुफ्त मई इल्लाज करते है और जो समर्थवान है उससे पैसा लेते है. सभी संत समाज को बदनाम करने की यह साजिश चुर्च और वामपंथियों की मिल्ली भगत है, वामपंथ जो की इश्वर मई इसलिए विश्वास नाही करते क्योकि उनकी क्रांति मई धर्म बाधक है क्योकि church तो इन् सभी संतो को बदनाम करके अपनी धर्मांतरण की रोटी सेकना चाहता है पहले यह वोह खुद करता था अब्ब जगदीश्वर जैसे घटिया वामपंथियों से करवा रहा है.

  16. “संतों महंतों के ट्रस्टों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए” -by – जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

    (१) लेखक ने बाबा रामदेव जी के संस्थानों के स्थापन के विषय में, कुछ भी जाने बिना, अनाप-शनाप यह लेख लिखा है.

    (२) ब्रिंदा करात की देख रेख में वाम ट्रेड यूनियन हरिद्वार में आन्दोलन कर चुकी है.

    (३) वैद्यराज आचार्य बाल कृषण दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट, आदि का विवरण आय कर विभाग को भेजते रहते हैं.

    (४) जनवरी २०१० में दो केंद्रीय मंत्री हरिद्वार आये और दो विश्व स्तरीय संस्थाओं का उद्घघाटन किया.

    (५) ३ – ४ राज्यों के मुख्य मंत्री भी उपस्थित थे. वे अपने-अपने राज्यों में बाबा के संस्थानों का, राज्यों के अंशदान से, शीघ्र स्थापन करवाने के लिए आये थे.

    (६) लेखक महोदय यदि आपको विशेष जानकारी कि इच्छा है, जो बाबा जी नहीं देते, तो आप उसे RTI के अंतर्गत सरकारी विभागों से प्राप्त करें.

    (७) निराधार लेख लिख रहें हैं आप.

    ऐसा फिर करेगे तो आप के लिखे पर कोई भी विशवास नहीं करेगा.

    (८) मैं तो प्रवक्ता.कॉम को सुझाव देता हूँ कि वह आपसे हर लेख के साथ an affidavit in support मांगे.

    – अनिल सहगल –

  17. मित्रों इन पर ध्यान न दें, यह एक षड्यंत्र है| जब से गिलानी का सच सामने आया है तब से इन चतुर्वेदी बाबा ने यह नया टॉपिक दूंढ निकाला ताकि हम जैसों का ध्यान वहां से हट कर यहाँ लग जाए और गिलानी सुरक्षित बचकर अपने घिनौने कार्य में लग जाए| इसीलिए यह लेख श्रृंखला बाबा चतुर्वेदी द्वारा जारी की जा रही है| इसका कोई विशेष महत्त्व नहीं है|

  18. मैं चतुर्वेदी जी से सहमत हूं (हैरान मत होईये) सिर्फ़ दो-चार बातें जोड़ना चाहता हूं –

    १) सरकार ने लिखित में माना है कि इस देश में “चर्च” आधिकारिक रुप से सबसे अधिक ज़मीन का मालिक है, उसकी सभी सम्पत्तियों को सार्वजनिक किया जाये और यह भी कि इन बेशकीमती खरबो की ज़मीन में से कितने पर चर्च बने हैं, कितनों पर मोटी फ़ीस वसूलने वाले स्कूल हैं, कितनों पर धर्म परिवर्तन करवाने वाले छात्रावास स्थापित हैं…

    २) आज़ादी के बाद पिछले ६० साल में भारतीय शिक्षा संस्थानों, इतिहास शोध संस्थाओं, अकादमियों, पुरस्कार की रेवड़ी बाँटने वाली समितियों इत्यादि में कितने वामपंथी “घुसपैठ” करे बैठे हैं, इसकी भी पूरी सूची जारी की जाये।

    3) संतों को धन कहाँ से मिलता है इसकी पूरी जाँच और सार्वजनिक घोषणा के साथ, मदरसों-मस्जिदों और जमातों तथा चर्च से सम्बन्धित एनजीओ को कहाँ से कितना धन मिलता है यह भी सार्वजनिक किया जाये।

    ४) विभिन्न प्रसिद्ध मन्दिरों-मठों (तिरुपति, सिद्धिविनायक, शिर्डी, सबरीमाला, अमरनाथ, गंगासागर आदि) के सभी सरकारी ट्रस्टियों के नाम, उनके कांग्रेस से सम्बन्ध, उनके वामपंथ से सम्बन्ध, उन सभी ट्रस्टियों की सम्पत्ति, मन्दिर में आने वाले चढ़ावे का सरकारी गबन, चढ़ावे का दुरुपयोग (सदुपयोग भी), मन्दिर को मिले दान का हिन्दू धर्म के उत्थान के लिये किया गया कार्य, ऊपर बताये गये सभी प्रमुख धार्मिक स्थल गैर भाजपाई राज्यों में हैं अतः उनके सभी ट्रस्टियों के कार्यकलापों और चरित्र का सत्यापन भी सरकार द्वारा करवाया जाये…

    आशा है कि अब चतुर्वेदी जी मुझे अपना वैचारिक विरोधी नहीं समझेंगे… 🙂

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