महाराष्ट्र घटनाक्रम : अस्सी घंटे का सियासी ड्रामा!

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लिमटी खरे

22 और 23 नवंबर की दर्मयानी रात में महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर जो कुछ हुआ वह अपने आप में अद्भुत और आश्चर्यजनक था। देश खामोश था, सबको इंतजार था सियासी दलों की अगली चाल पर। लोग मान रहे थे कि इक्कसीवीं सदी के दूसरे दशक में भाजपा के अमित शाह जिस तरह चाणक्य की भूमिका में उबर रहे हैं उनका यह दांव खाली नहीं जाएगा, पर मराठा क्षत्रप और पुराने सियासतदार शरद पंवार ने जिस तरह का खेल खेला, उसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी। अब सोशल मीडिया पर चाणक्य के वर्तमान उत्तराधिकारी को लेकर बहस तेज हो गई है।

अस्सी के दशक में जब देश में क्रिकेट का जादू लोगों के सर चढ़कर बोल रहा था। उस दौर में एक बाल में क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता था। कमोबेश यही आलम सियासी हल्कों का होता था। इसलिए कहा जाता था कि राजनीति और क्रिकेट में कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता है।

महाराष्ट्र में त्रिशंकु सरकार के बनने के बाद से ही सियासी ड्रामा आरंभ हुआ। एक के बाद एक किरदार बदलते गए और सस्पेंस बढ़ता चला गया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के क्षत्रप शरद पंवार के भतीजे अजीत पंवार ने आश्चर्य जनक रूप से भाजपा को समर्थन देते हुए देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री और खुद को उप मुख्यमंत्री बनाते हुए शपथ तक ग्रहण करवा दी।

इसके बाद आरंभ हुआ कयासों का दौर। सबकी नजरें दिल्ली पर टिकी थीं। लोग मान रहे थे कि केंद्र में भाजपा की सरकार है और उसके द्वारा सीबीआई और ईडी के जरिए बड़े नेताओं की गिरेबान में हाथ डालकर अपने मन माफिक काम करवा लिए जाएंगे। सोशल मीडिया पर इस तरह की इबारतों और कार्टून्स अट गए थे।

विधायको की खरीद फरोख्त (कथित हार्स ट्रेडिंग) की बातें भी जमकर सामने आ रहीं थीं इस सबके बीच मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंचा। सर्वोच्च अदालत के द्वारा फ्लोर टेस्ट की बात कही गई। इसके बाद भी सूबे में किसकी सरकार होगी! इस बात पर से कुहासा नहीं हट पाया था।

मंगलवार को अचानक ही बाजी पलटी। शपथ लेकर चहकने वाले देवेंद्र फड़नवीस के चेहरे पर मायूसी साफ झलक रही थी। उन्होंने मीडिया से कहा कि वे अपना त्यागपत्र राज्यपाल के पास लेकर जा रहे हैं। उनके पास 105 सीटों का जनादेश है। उन्होंने शिवसेना पर आरोप लगाया कि नंबर के खेल में शिवसेना ने उनके साथ खेल खेला। फडनवीस ने यह तक कह दिया कि शिवसेना ने अपने आदर्श सोनिया गांधी के चरणों में रख दिए और गैर वैचारिक पार्टियों के साथ मुख्यमंत्री पद को लेकर समझौता कर लिया।

सियासी हल्कों में चल रही चर्चाओं को अगर सच माना जाए तो भाजपा के आलंबरदार नेता यह भूल गए कि शरद पंवार पुराने सियासतदार हैं। वे मूलतः कांग्रेसी रहे हैं, बाद में उन्होंने अपना अलग दल बनाया है। आजादी के बाद से अब तक सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस के द्वारा ही देश पर शासन किया है, जाहिर है कांग्रेस के नेताओं को सियासी दांव पेंच बहुत ही बेहतर तरीके से आते हैं।

चर्चाओं के अनुसार भाजपा के नेता यह भांप नही पाए कि अजीत पंवार का इस तरह शरद पंवार से हटकर जाना सोझी समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता था। दरअसल, काफी समय से शरद पंवार और अजीत पंवार के बीच सब कुछ सामान्य नहीं चल रहा था। चतुर सुजान मराठा क्षत्रप के द्वारा अजीत पंवार को विधान मण्डल के दल का अध्यक्ष क्यों बनाया इस पर अगर भाजपा के नेता विचार कर लेते तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाता।

कहा तो यह भी जा रहा है कि शरद पंवार की नजरें अब रायसीना हिल्स (राष्ट्रपति भवन) पर हैं। वे चाहते हैं कि अब वे सक्रिय राजनीति से किनारा करते हुए देश के अगले राष्ट्रपति बनें। वहीं, दूसरी ओर भाजपा में प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवारों का सियासी कैरियर चौपट करने का ताना बाना भी बुना जा रहा है। संभवतः यही कारण था कि जल्दबाजी में ही सारे निर्णय लिए जाकर देवेंद्र फड़नवीस को फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ आनन फानन दिलवा दी गई। अब जबकि शरद पंवार और अजीत पंवार एक दूसरे के गले में हाथ डाले नजर आ रहे हैं तब देवेंद्र फड़नवीस के लिए आने वाली राह बहुत ही कठिन दिख रही है।

सियासी जानकार यह भी कहते आए है कि अर्जुन सिंह के बाद शरद पंवार और राजा दिग्विजय सिंह ही ऐसे राजनेता हैं, जिनके अगले कदमों को भांपना बहुत ही दुष्कर है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. सुंदर लाल पटवा कहा करते थे कि दिग्विजय सिंह शोध का विषय हैं। इसी तरह शरद पंवार के बारे में कहा जाता था कि जब वे मुंबई एयरपोर्ट पर प्रवेश करते थे तो उनके जेब में दो जगहों के बोर्डिंग पास हुआ करते थे . . .!कुल मिलाकर महाराष्ट्र में मंगलवार को जो कुछ भी हुआ है उससे भाजपा से ज्यादा नुकसान देवेंद्र फड़नवीस को हुआ है। आने वाला समय ही बताएगा कि अस्सी घंटे चले इस सियासी ड्रामे के पीछे की असलियत आखिर थी क्या!

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