मंदिर मस्जिद बैर कराते मेल कराती मधुशाला

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“मंदिर मस्जिद बैर कराती मेल कराती मधुशाला’’| जी हाँ ! यह बात श्री हरिवंश राय बच्चन जी ने बहुत समय पहले ही अपनी मधुशाला मे लिख दी थी और यह बात वर्तमान सरकार ने लोक डाउन तीन का अंतर्गत स्वीकार भी कर ली | “अरे सर वो कैसे ?’’ किसी ने पूछा | दूसरी तरफ से उत्तर आया, “क्या आपको पता नही है,लोक डाउन तीन के अंतर्गत सभी जोनो मे मंदिर मस्जिद और सभी पूजा स्थल बन्द होगे और शराब की दुकाने खुली रहेगी केवल contenment को छोडकर ‘’| सरकार ने ऐसा निर्णय क्यो लिया इसका एक मात्र कारण है कि शराब से सरकार को ढेर सारा रेविन्यू अथवा एक्साइज़ के रूप मे आमदनी होगी जबकि मंदिर मस्जिद से क्या मिलता है उल्टा उनके ऊपर तो कुछ खर्च ही करना पड़ता है | मसलन मौलवियों आदि को वेतन अथवा अन्य किसी प्रकार से आर्थिक सहायता देना |

     दूसरा सरकार का निर्णय लेते समय यह भी विचार होगा कि देश के अन्दर अक्सर मंदिर मस्जिद के कारण ही झगड़े होते रहते है –बाबरी मस्जिद व राम मंदिर इसके जवलंत उदाहरण है जो कि कितने वर्षो के बाद खत्म हुए है वह भी सुप्रीम कोर्ट को धन्यवाद दीजिएगा कि उसने इस बारे मे निर्णय लिया,वरना यह मामला कितने वर्षो तक उलझा या लटका रहता | सरकार ने अच्छा किया कि उसने मंदिर मस्जिद लोक डाउन 3 के अंतर्गत उनको बन्द करने का निर्णय लिया | अगर इनको खोल दिया जाता तो फिर से दोनों समुदाय मे झगड़े हो जाते | सरकार का मानना है कि इस धार्मिक स्थलो मे नमाज या पूजा के कारण सोशल डिस्टेन्स समाप्त हो जाता और कोरोना वायरस को बढ़ावा मिलता | दितीय शराबी अपनी शराब कि बोतल जल्दी से लेकर पीने के जुगाड़ मे वहाँ से जल्दी निकल जाता पर यह बात अलग है कभी कभी पीने वालो को पीने कि जगह नहीं मिलती तो वे शराब की दुकान या ठेके के इर्द गिर्द बैठ जाते है और अपना पीने का जुगाड़ कर लेते है और साथ मे उनको वही नमकीन वाले, अंडे वाले आमलेट बनाने वाले भी मिल जाते है जिसके कारण पुलिस वालो को भी थोड़ी बहुत आमदनी हो जाती है और अगर मौका मिल जाता है तो वे भी एक या दो पैग लगा लेते है या एक दो घूट वे भी अपने गले मे गटक या उतार लेते है इसमे हर्ज भी क्या है | कसूर पुलिस वालो का भी नहीं है वे भी बेचारे सुबह से शाम तक अपनी duity पर खड़े रहते है और थक जाते है | थकान उतारने के लिए एक या दो घूट पी भी ले तो इसमे हर्ज भी क्या है |

     तीसरे,नेताओ को भी शाम को अपनी थकान उतारने के लिए शराब तो चाहिए ही थी और वह भी फ्री की | यह उनको ठेको या शराब की दुकानों से आसानी से मिल जाती है क्योकि नेता भी तो इन लोगो का ध्यान रखते है इसलिए सरकार पर दबाब डालकर इस लोक डाउन मे शराब की दुकाने भी खुलवा दी | चतुर्थ कारण यह भी रहा होगा जो सही सा और दमदार भी लगता है कि सरकार को इस समय पैसा चाहिए क्योकि कोरोना के कारण उसका खजाना खाली हो गया है या हो रहा है | देश के उधयोग भी बन्द है जी एस टी भी नहीं आ रहा है | सरकार के ऊपर चारो तरफ से मार ही मार पड रही है चलो शराब के ठेके ही खोल दे ,कुछ तो मिलेगा,भागते भूत कि लगोटी ही सही | इसके अलावा शराबी ज्यादा शोर शराबा और उधम नहीं मचा पाएगे और लोक डाउन के कारण अपने घर मे बैठे रहेगे और पुलिस वालो व स्वास्थ कर्मियों से लड़ाई झगड़ा मार पिटाई व पत्थरबाजी भी नहीं करगे | एक पंथ दो काज | झगड़ा भी नहीं होगा और सरकार को आमदनी भी हो जायेगी |

      अगर मंदिर खोलते तो सरकार को मस्जिद और दूसरे पूजा स्थल भी खोलने पड़ते और साथ मे मरकज वालो का भी जमाववाडा भी समाप्त हो जाएगा क्योकि इसी जमाववाडे से कोरोना अधिक फैला था जैसा कि सरकारी आकडे बताते है | इसके अलावा रमजान का महीना भी है और ईद भी इसी महीने मे आने वाली है | अत; सरकार मंदिर मस्जिद खोलकर यह रिस्क नहीं लेना चाहती थी | एक बार श्री हरिवंश राय बच्चन जी को धन्यवाद देते है कि उन्होने अपनी सूझ बूझ के कारण पहले से ही लिख दिया था ,”मंदिर मस्जिद बैर कराये,मेल कराती मधुशाला’’ और सरकार ने आज के वातावरण को देखते हुए बात मान ली जो सभी के फायदे की बात रही | सबका भला तो सरकार का भी भला | साथ मे पढ़ने वाले का भला हो और लिखने वाले का भी भला हो क्योकि दोनों का इस लोक डाउन मे समय पास हो जायेगा |

आर के रस्तोगी

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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