प्रभुनाथ शुक्ल
द्रौपदी भीड़ में है नग्न हमारी !
कौरव कुल करता यह नर्तन है!!
सत्ता की मौन साधना करता !
धृतराष्ट्र बांध आँखों पर पट्टी !!
मध्यसभा में बिखल रहीं द्रौपदी!
क्या सब गूंगे-बहरे और अंधे हैं !!
कुल श्रेष्ठ पिताम्ह, आचार्य द्रोण!
सब हारे हैं बेचारे बन मौन खड़े !!
दुर्योधन का दम्भ करता अट्टहास !
मर्यादा का यह सब कैसा परिहास!!
दुशासन ! खुद अजेय समझता है !
देखो ! कपटी शकुनी की चालों में !!
पांडव का बल भी गिरवी रखा है !
कपटी मामा की चौसर चालों पर !!
धर्म और कर्म के द्वन्द में उलझा !
धर्मराज का न्याय भी न सुलझा !!
अर्जुन फिर तू क्या अब आएगा !
लाज बचाने गाण्डीव तू लाएगा !!
शायद ! द्वापर अब तो बीत गया !
कलयुग में तो कृष्ण नहीं आएगा !!